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व्यभिचार और संबंधित प्रावधान

Lokesh Pal February 17, 2025 03:39 32 0

संदर्भ

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि कि भरण-पोषण देने से इनकार करने के लिए व्यभिचार सिद्ध करने हेतु यौन संभोग संबंधी साक्ष्य  प्रदान करना आवश्यक है।

  • यद्यपि व्यभिचार अब कोई आपराधिक अपराध नहीं है, फिर भी सशस्त्र बलों में यह अब भी दंड का आधार बना हुआ है।

व्यभिचार (Adultery) 

  • परिभाषा: व्यभिचार से तात्पर्य विवाहित व्यक्ति द्वारा अपने जीवनसाथी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक यौन संबंध बनाने से है।
  • पिछली कानूनी स्थिति: IPC की धारा 497 के तहत, व्यभिचार एक आपराधिक अपराध था, जिसके लिए पाँच वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती थी।
  • पुराने कानून में लैंगिक पूर्वाग्रह: केवल पुरुषों पर ही मुकदमा चलाया जा सकता था तथा अपराध के लिए महिला के पति की सहमति आवश्यक थी।

व्यभिचार को अपराधमुक्त करने से पहले उसके लिए कानूनी प्रावधान

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497: व्यभिचार को पति की सहमति के बिना एक पुरुष और एक विवाहित महिला के बीच यौन संबंध के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 198: केवल पीड़ित पति ही शिकायत दर्ज करा सकता है।
  • गैर-अपराधीकरण: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2018 में व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया था, लेकिन तलाक और भरण-पोषण से संबंधित दीवानी मामलों में यह अभी भी प्रासंगिक है।

भारत में व्यभिचार से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के मामले

  • यूसुफ अब्दुल अजीज बनाम बॉम्बे राज्य (1954): सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को बरकरार रखते हुए निर्णय सुनाया कि महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान अनुच्छेद-15(3) के तहत उचित हैं।
  • सौमित्री विष्णु बनाम भारत संघ (1985): न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को बरकरार रखते हुए कहा कि केवल पति को ही मुकदमा चलाने का अधिकार है, जिससे व्यभिचार कानूनों में लैंगिक पूर्वाग्रह को बल मिलता है।
  • वी. रेवती बनाम भारत संघ (1988): न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और CrPC की धारा 198(2) को बरकरार रखा और तर्क दिया कि कानून का उद्देश्य महिलाओं को दंडित करने के बजाय विवाह की पवित्रता को बनाए रखना है।
  • के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017): निर्णय में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया, जिससे व्यभिचार को अपराधमुक्त करने के तर्क को बल मिला।
  • जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018): सर्वोच्च न्यायालय ने विवाह में लैंगिक समानता, गोपनीयता और स्वायत्तता की पुष्टि करने वाली धारा 497 IPC को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। इसे इस आधार पर खारिज किया गया कि यह संविधान के अनुच्छेद-14, अनुच्छेद-15 और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन करती है।

भारतीय न्याय संहिता (BNS) में व्यभिचार के लिए प्रावधान

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS), जिसने वर्ष 2024 में IPC की जगह ली, में व्यभिचार को आपराधिक अपराध के रूप में शामिल नहीं किया गया है।
  • यह सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय के अनुरूप है, जिसमें कहा गया है कि व्यभिचार कोई अपराध नहीं है, लेकिन यह नागरिक राहत के लिए प्रासंगिक है।

भारत में विवाह और तलाक कानून

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (SMA) व्यभिचार को तलाक के लिए आधार मानते हैं।
  • साक्ष्य की आवश्यकता: तलाक के मामलों में व्यभिचार को स्थापित करने के लिए न्यायालयों को यौन संभोग के साक्ष्यों की आवश्यकता होती है।
  • न्यायिक उदाहरण: कई न्यायालयों ने निर्णय दिया है कि संभोग के साक्ष्य के बिना केवल संदेह या अंतरंगता व्यभिचार को सिद्ध करने के लिए अपर्याप्त है।

हिंदू कानून के तहत भरण-पोषण के प्रावधान

  • पत्नी को भरण-पोषण: एक हिंदू पत्नी अपने पति से जीवन भर भरण-पोषण पाने की हकदार है।
  • वह भरण-पोषण का खर्च उठाए बिना अलग रह सकती है, यदि पति:-
    • उसे त्याग देता है या उसकी उपेक्षा करता है।
    • उसके साथ क्रूरता से पेश आता है।
    • दूसरी पत्नी रखता है या उपपत्नी रखता है।
    • दूसरा धर्म अपना लेता है।
  • विधवा बहू का भरण-पोषण: यदि विधवा के पास वित्तीय संसाधन नहीं हैं और वह अपने परिवार या पति की संपत्ति से सहायता प्राप्त नहीं कर सकती है, तो वह अपने ससुर से भरण-पोषण का दावा कर सकती है।
    • यदि ससुर के पास वित्तीय साधन नहीं हैं या महिला पुनर्विवाह कर लेती है तो उसका दायित्व समाप्त हो जाता है।
  • बच्चों और माता-पिता का भरण-पोषण: एक हिंदू व्यक्ति को अपने बच्चों और वृद्ध/अशक्त माता-पिता का भरण-पोषण करना चाहिए।
    • नाबालिग बच्चे और अविवाहित बेटियाँ भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं, यदि उनके पास वित्तीय साधन नहीं हैं।
  • आश्रितों का भरण-पोषण: हिंदू संपत्ति प्राप्त करने वाले उत्तराधिकारियों को मृतक आश्रितों का भरण-पोषण करना चाहिए।
    • यह दायित्व विरासत में मिले हिस्से के अनुपात में होता है।
  • भरण-पोषण का निर्धारण और संशोधन: न्यायालय वित्तीय स्थिति, आवश्यकताओं और परिस्थितियों के आधार पर भरण-पोषण की राशि तय करते हैं।
    • परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण बदलाव होने पर भरण-पोषण को संशोधित किया जा सकता है।
  • रखरखाव संबंधी दावों को प्रभावित करने वाली शर्तें
    • भरण-पोषण पाने के लिए दावेदार का हिंदू धर्म को अपनाए रहना। 
    • ऋण भरण-पोषण के दावों पर प्राथमिकता।
    • जब तक कि उन्हें पहले से सूचना न दी गई हो, तब तक किसी हस्तांतरित व्यक्ति के विरुद्ध भरण-पोषण के अधिकार लागू नहीं किए जा सकते हैं।
    • व्यभिचार से पीड़ित पत्नी अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है।

सशस्त्र बलों में व्यभिचार

  • सेना, नौसेना और वायु सेना अधिनियम ‘अनुचित आचरण’ और व्यभिचार सहित अनुशासन के उल्लंघन के लिए दंड की अनुमति देते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के इस तर्क को बरकरार रखा कि सैन्य कर्मियों को सेवा कानूनों के तहत व्यभिचार के लिए अभी भी दंडित किया जा सकता है।

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