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एरोसोल वितरण: UACI और UAPI

Lokesh Pal July 21, 2025 02:55 11 0

संदर्भ

141 भारतीय शहरों पर किए गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि उत्तर-पश्चिमी और उत्तरी सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्रों के कई शहरों में उनके आस-पास के इलाकों की तुलना में अपेक्षाकृत कम एरोसोल स्तर पाया गया है।

संबंधित तथ्य

  • यह अध्ययन IIT भुवनेश्वर के पृथ्वी, महासागर एवं जलवायु विज्ञान स्कूल के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था।
  • यह अध्ययन वर्ष 2003 से वर्ष 2020 तक भारत के 141 शहरों से उपग्रह द्वारा प्राप्त एरोसोल डेटा पर आधारित है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • शहरी एरोसोल स्वच्छ द्वीप (Urban Aerosol Clean Island-UACI): उत्तर-पश्चिमी और उत्तरी सिंधु-गंगा मैदान (IGP) के 43% शहरों में देखा गया, जहाँ शहरों में आस-पास के क्षेत्रों की तुलना में एरोसोल का स्तर कम था।
  • शहरी एरोसोल प्रदूषण द्वीप (Urban Aerosol Pollution Island-UAPI): इसके विपरीत, दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी भारत के 57% शहरों में आस-पास के क्षेत्रों की तुलना में शहर के भीतर एरोसोल का स्तर अधिक पाया गया।
  • वायु अवरोधन प्रभाव: शहरी अवसंरचना सतही पवनों को कमजोर कर देती है, जिससे अदृश्य अवरोध बनते हैं, जो रेगिस्तानी धूल जैसे लंबी दूरी के स्रोतों से एरोसोल के प्रवेश को आंशिक रूप से अवरुद्ध कर देते हैं।
  • मानसून-पूर्व प्रभाव: मानसून-पूर्व अवधि के दौरान शुष्क परिस्थितियाँ और धूल का अधिक परिवहन होने के कारण, UACI प्रभाव सबसे अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
  • भौगोलिक प्रभाव: दक्षिणी शहरों में सीमित बाह्य प्रदूषण परिवहन के कारण UAPI दिखाई देता है, जिससे आंतरिक स्रोत अधिक प्रभावी हो जाते हैं।

एरोसोल के बारे में

  • एरोसोल वायुमंडल में निलंबित सूक्ष्म ठोस या तरल कण होते हैं, जिनका आकार कुछ नैनोमीटर से लेकर कुछ माइक्रोमीटर तक होता है।
  • ये अपने सतह-आधारित स्रोतों के कारण मुख्यतः निचले वायुमंडल (<1.5 किमी) में केंद्रित होते हैं।

एरोसोल के प्रकार

प्रकार

विवरण और स्रोत

उदाहरण

प्राथमिक एरोसोल सीधे वायुमंडल में उत्सर्जित धूल, समुद्री फुहारा, धुआँ
द्वितीयक एरोसोल वायुमंडल में रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा निर्मित SO₂ से सल्फेट, नाइट्रेट

दीर्घकालिक एरोसोल

  • एरोसोल, उनके सूक्ष्म कण आकार (small particle size) और/या उच्च वायुमंडलीय स्तरों पर उपस्थिति के कारण, वायुमंडल में कुछ सप्ताह से लेकर कई वर्षों तक बने रह सकते हैं।
  • उदाहरण
    • ज्वालामुखीय सल्फेट एरोसोल: माउंट पिनातुबो (वर्ष 1991) जैसे विस्फोटों से उत्सर्जन, जिसके कारण दो वर्षों तक वैश्विक शीतलन हुआ।
    • औद्योगिक सल्फेट और नाइट्रेट: ऊपरी वायुमंडल में, विशेष रूप से पूर्वी एशिया जैसे प्रदूषित क्षेत्रों में, बने रह सकते हैं।
    • परिवहित धूल: सहारा रेगिस्तान की धूल का अमेरिका तक पहुँचना या पूर्वी एशियाई एरोसोल का प्रशांत महासागर को पार करना, वैश्विक वायुमंडलीय परिवहन की शक्ति को दर्शाता है।

प्रमुख उदाहरण

  • खनिज युक्त धूल: सहारा या थार जैसे रेगिस्तानों से।
  • समुद्री फुहार: समुद्री तरंगों से नमक और कार्बनिक पदार्थ।
  • धुआँ: वनाग्नि या फसल जलने से, जिसमें ‘ब्लैक कार्बन’ प्रचुर मात्रा में होता है।
  • औद्योगिक एरोसोल: जीवाश्म ईंधन के जलने से सल्फेट, नाइट्रेट।
  • ज्वालामुखी एरोसोल: विस्फोटों से राख और सल्फेट।
  • जैविक एरोसोल: पराग, बीजाणु और पौधों से निकलने वाले कार्बनिक यौगिक।

एरोसोल के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव

नकारात्मक प्रभाव

सौर विकिरण को परावर्तित करके पृथ्वी की सतह को ठंडा रखने में मदद करता है। श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का कारण बनता है।
सहारा रेगिस्तान की धूल, हवा के माध्यम से उड़कर अमेजन वर्षावनों को उर्वर बनती है। सूर्य के प्रकाश के बिखराव के कारण सौर ऊर्जा दक्षता में कमी।
बादल संघटन और वर्षा में सहायता दृश्यता में कमी और परिवहन संबंधी व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं।
ज्वालामुखीय एरोसोल अस्थायी वैश्विक शीतलन का कारण बनते हैं। बर्फ पर मौजूद ब्लैक कार्बन बर्फ पिघलने और जलवायु परिवर्तन को तीव्र करता है।

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