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Lokesh Pal
August 09, 2025 02:34
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वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनने का भारत का दृष्टिकोण (एक विकसित, समृद्ध और समावेशी राष्ट्र) मजबूत आधारभूत क्षेत्रों पर आधारित है और कृषि इस परिवर्तन का केंद्र बिंदु बनी हुई है।
कृषि की कहानी अब केवल फसलों तक सीमित नहीं रही। डेयरी, मत्स्यपालन और मुर्गी पालन जैसे संबद्ध क्षेत्रों ने असाधारण वृद्धि दर्ज की है।
कृषि अवसंरचना निवेश: कृषि अवसंरचना कोष (Agricultural Infrastructure Fund- AIF) और प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (Pradhan Mantri Kisan Sampada Yojana- PMKSY) जैसी योजनाएँ भंडारण, प्रसंस्करण तथा रसद का आधुनिकीकरण कर रही हैं, जो फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और आपूर्ति शृंखलाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
सतत् और जैविक कृषि: भारत में जैविक खेती की एक दीर्घकालिक परंपरा रही है, जो प्राचीन कृषि पद्धतियों पर आधारित है।
मत्स्यपालन और जलीय कृषि: भारत का मत्स्यपालन क्षेत्र वैश्विक मंच पर एक प्रमुख हितधारक है, और नीली क्रांति ने देश में मत्स्यपालन और जलीय कृषि के अत्यधिक महत्त्व को उजागर किया है।
पशुधन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का एक महत्त्वपूर्ण उप-क्षेत्र है। वर्ष 2014-15 से वर्ष 2022-23 तक इसकी चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 12.99% रही।
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: फलों, सब्जियों, बाजरा, चाय, खाद्यान्न, दूध और पशुधन के विश्व के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में, भारत खाद्य प्रसंस्करण में वैश्विक अग्रणी बनने की अच्छी स्थिति में है।
फसल विविधीकरण का अभाव: भारतीय कृषि अभी भी चावल और गेहूँ पर ही केंद्रित है।
भारत का कृषि परिवर्तन खाद्यान्न की कमी के ऐतिहासिक सिद्धांतों को अप्रभावी साबित करता है और खाद्य सुरक्षा, किसानों की उच्च आय और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन हासिल करने में प्रौद्योगिकी, नीतिगत सुधारों और अनुसंधान की भूमिका को उजागर करता है। बढ़ती और शहरीकृत होती आबादी की बदलती माँगों को पूरा करने के लिए निरंतर निवेश और रणनीतिक पुनर्संरेखण महत्त्वपूर्ण होगा।
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