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कृषि, विकसित भारत के निर्माण की कुंजी है

Lokesh Pal August 09, 2025 02:34 20 0

संदर्भ

वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनने का भारत का दृष्टिकोण (एक विकसित, समृद्ध और समावेशी राष्ट्र) मजबूत आधारभूत क्षेत्रों पर आधारित है और कृषि इस परिवर्तन का केंद्र बिंदु बनी हुई है।

संबंधित तथ्य

  • हाल ही में प्रधानमंत्री ने एम. एस. स्वामीनाथन की 100वीं जयंती के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय एम. एस. स्वामीनाथन शताब्दी सम्मेलन (MS Swaminathan Centenary International Conference) का उद्घाटन किया।
  • इस सम्मेलन का विषय ‘एवरग्रीन रिव्ल्यूशन: द पाथवे टू बायो हैपीनेस’ (Evergreen Revolution: The Pathway to Bio Happiness) है, जो खाद्य सुरक्षा के प्रति प्रोफेसर स्वामीनाथन की आजीवन प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालता है।

विकसित भारत @2047, स्वतंत्रता के 100वें वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का विजन है। इस विजन में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, पर्यावरणीय स्थिरता और सुशासन सहित विकास के विभिन्न पहलू शामिल हैं।

भारतीय कृषि क्षेत्र की वर्तमान स्थिति

  • भारत एक खाद्य-असुरक्षित देश से खाद्य-अधिशेष राष्ट्र में परिवर्तित हो गया है।
  • खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 1950-51 में 50.82 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2024-25 में 353.96 मिलियन टन हो गया (वर्ष 2024-25 के अग्रिम अनुमानों के अनुसार)।
  • औसत वार्षिक वृद्धि: वित्त वर्ष 2017 से वित्त वर्ष 2023 तक 5%, जो मजबूत लचीलेपन को दर्शाता है। (वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही की वृद्धि: 3.5%)
  • कृषि का सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) हिस्सा 24.38% (वित्त वर्ष 2015) से बढ़कर 30.23% (वित्त वर्ष 2023) हो गया।
  • कृषि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगभग आधी आबादी का भरण-पोषण करती रही है और ग्रामीण भारत में रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत बनी हुई है।
  • बागवानी उत्पादन 1960 के दशक के 40 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2024-25 में 334 मिलियन टन हो गया है, जिससे खाद्य विविधता एवं पोषण सुरक्षा दोनों में योगदान मिला है।

संबद्ध क्षेत्रों में वृद्धि

कृषि की कहानी अब केवल फसलों तक सीमित नहीं रही। डेयरी, मत्स्यपालन और मुर्गी पालन जैसे संबद्ध क्षेत्रों ने असाधारण वृद्धि दर्ज की है।

  • श्वेत क्रांति के कारण दूध उत्पादन 1970 के दशक के 20 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 तक 239 मिलियन टन हो गया।
  • मछली उत्पादन 2.4 मिलियन टन से बढ़कर 19.5 मिलियन टन हो गया है, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष समुद्री खाद्य निर्यातकों में शामिल हो गया है।
  • अंडे का उत्पादन 10 बिलियन से बढ़कर 143 बिलियन हो गया है, और पोल्ट्री मांस का उत्पादन 1,13,000 टन से बढ़कर 5 मिलियन टन हो गया है।

भारत में कृषि परिवर्तन को प्रेरित करने वाले महत्त्वपूर्ण बदलाव: नीति और अनुसंधान पहल

कृषि अवसंरचना निवेश: कृषि अवसंरचना कोष (Agricultural Infrastructure Fund- AIF) और प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (Pradhan Mantri Kisan Sampada Yojana- PMKSY) जैसी योजनाएँ भंडारण, प्रसंस्करण तथा रसद का आधुनिकीकरण कर रही हैं, जो फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और आपूर्ति शृंखलाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

  • कृषि अवसंरचना कोष (Agricultural Infrastructure Fund- AIF) की शुरुआत ₹1 लाख करोड़ के वित्तपोषण प्रावधान के साथ की गई थी, जिसका वितरण वित्त वर्ष 2020-21 और वित्त वर्ष 2025-26 के बीच किया जाएगा और यह सहायता वित्त वर्ष 2032-33 तक जारी रहेगी।
  • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (Pradhan Mantri Kisan Sampada Yojana- PMKSY) अनुदान सहायता के माध्यम से ऋण-आधारित वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य खेत से लेकर खुदरा क्षेत्र तक मजबूत आपूर्ति शृंखलाएँ बनाना है। इससे जल्दी खराब होने वाली फसलों की बर्बादी कम करने और खाद्य उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने में मदद मिलती है।

डिजिटल प्रौद्योगिकी एकीकरण

  • डिजिटल कृषि मिशन (वर्ष 2024 में शुरू) एक डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) स्थापित कर रहा है जिसमें एग्रीस्टैक, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली और मृदा प्रोफाइलिंग शामिल है।
  • नमो ड्रोन दीदी योजना का लक्ष्य वर्ष 2023-24 और वर्ष 2025-26 के बीच 15,000 चयनित महिला-नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को कृषि ड्रोन प्रदान करना है।
  • नैनो यूरिया: इफको द्वारा वर्ष 2021 में शुरू किया गया, इस तरल उर्वरक में नैनोस्केल नाइट्रोजन कण होते हैं। यह फसलों द्वारा पोषक तत्त्वों के अवशोषण में सुधार करता है, साथ ही पारंपरिक यूरिया और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करता है।
  • पूसा डिकंपोजर: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित, यह सूक्ष्मजीवी घोल फसल अवशेषों के अपघटन को तेज करता है, और पराली जलाने का एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करता है।

सतत् और जैविक कृषि: भारत में जैविक खेती की एक दीर्घकालिक परंपरा रही है, जो प्राचीन कृषि पद्धतियों पर आधारित है।

  • वर्ष 2001 में राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (National Programme for Organic Production- NPOP) की शुरुआत के साथ जैविक खेती के आधुनिक ढाँचे को औपचारिक रूप दिया गया।
  • सिक्किम ने वर्ष 2016 में पहला पूर्णतः जैविक राज्य बनकर वैश्विक इतिहास रच दिया। त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने भी इसी राह पर चलने के लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture- NMSA): वर्ष 2014-15 में शुरू किया गया यह मिशन NMSA जैविक पोषक तत्त्व प्रबंधन को बढ़ावा देता है, जल-उपयोग दक्षता में सुधार करता है और जलवायु-अनुकूल खेती को प्रोत्साहित करता है।
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana (PKVY): वर्ष 2015 में शुरू की गई यह योजना समूह-आधारित जैविक खेती को बढ़ावा देती है। यह किसानों को जैविक पद्धतियों को अपनाने में मदद करते हुए, इनपुट, बीज और आवश्यक संसाधनों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

मत्स्यपालन और जलीय कृषि: भारत का मत्स्यपालन क्षेत्र वैश्विक मंच पर एक प्रमुख हितधारक है, और नीली क्रांति ने देश में मत्स्यपालन और जलीय कृषि के अत्यधिक महत्त्व को उजागर किया है।

  • भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक मछली उत्पादन में लगभग 8% का योगदान देता है। भारत विश्व स्तर पर दूसरा बड़ा जलीय कृषि उत्पादक है।
  • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana-PMMSY): जलकृषि उत्पादकता में वृद्धि, मत्स्य प्रबंधन में सुधार और एकीकृत जलपार्क जैसे बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
  • नीली क्रांति योजना: एकीकृत योजना और प्रबंधन के माध्यम से समुद्री तथा अंतर्देशीय मत्स्यपालन दोनों के विकास के लिए एक व्यापक पहल है।
  • मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (Fisheries and Aquaculture Infrastructure Development Fund- FIDF): बंदरगाहों, हैचरी और कोल्ड चेन सहित समुद्री तथा अंतर्देशीय मत्स्यपालन में आवश्यक बुनियादी ढाँचे के निर्माण का समर्थन करता है।
  • समुद्री मत्स्यपालन पर राष्ट्रीय नीति (NPMF, 2017): समुद्री मत्स्य संसाधनों के संरक्षण, सतत् उपयोग और प्रबंधन के लिए एक नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है।

पशुधन और डेयरी क्षेत्र

पशुधन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का एक महत्त्वपूर्ण उप-क्षेत्र है। वर्ष 2014-15 से वर्ष 2022-23 तक इसकी चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 12.99% रही।

  • भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है और वैश्विक दुग्ध उत्पादन में 24.76% का योगदान देता है।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, भारत विश्व में अंडा उत्पादन में दूसरे और मांस उत्पादन में पाँचवें स्थान पर है।
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन: देशी गौवंश नस्लों के संरक्षण और आनुवंशिक सुधार पर केंद्रित है। उत्पादकता बढ़ाने और देशी पशुधन के संरक्षण के लिए चयनात्मक प्रजनन तथा वैज्ञानिक प्रबंधन को बढ़ावा देता है।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन: पशुधन उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार लाने का लक्ष्य रखता है। क्षमता निर्माण, चारा विकास का समर्थन करता है और पशुधन मूल्य शृंखला में उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: फलों, सब्जियों, बाजरा, चाय, खाद्यान्न, दूध और पशुधन के विश्व के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में, भारत खाद्य प्रसंस्करण में वैश्विक अग्रणी बनने की अच्छी स्थिति में है।

  • मेक इन इंडिया पहल के तहत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र एक प्राथमिकता है।
  • कृषि क्षेत्रों में मेगा फूड पार्क विकसित किए जा रहे हैं, जो उपयोग के लिए तैयार सुविधाएँ और आवश्यक उपयोगिताएँ प्रदान करते हैं।
  • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PM Kisan Sampada Yojana- PMKSY): वर्ष 2017 में स्वीकृत, इस योजना का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण और आपूर्ति शृंखलाओं के लिए आधुनिक बुनियादी ढाँचा तैयार करना, अपव्यय को कम करना, किसानों की आय बढ़ाना और ग्रामीण रोजगार सृजित करना है।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना: घरेलू विनिर्माण, मूल्य संवर्द्धन, ब्रांडिंग और निर्यात को प्रोत्साहित करती है।
  • प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकीकरण योजना: सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के लिए पहली राष्ट्रीय स्तर की योजना। स्थानीय खाद्य प्रसंस्करण क्लस्टर विकसित करने और क्षेत्रीय विशिष्टताओं को बढ़ावा देने के लिए एक जिला एक उत्पाद (ODOP) दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।

भारतीय कृषि को कमजोर कर रहे संरचनात्मक मुद्दे

खंडित भूमि जोत

  • भारत की कृषि भूमि का आकार लगातार घट रहा है। औसत जोत वर्ष 1970-71 में 2.3 हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2015-16 में 1.08 हेक्टेयर रह गई, और वर्ष 2047 तक इसके और घटकर केवल 0.6 हेक्टेयर रह जाने का अनुमान है।
  • वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना के अनुसार, 86.1% भारतीय किसान छोटे और सीमांत (2 हेक्टेयर से कम भूमि के मालिक) श्रेणी में आते हैं।
  • छोटी जोत मशीनीकरण में बाधा डालती है, पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं को सीमित करती है और औपचारिक ऋण तक पहुँच को कम करती है।

कृषि भूमि के अंतर्गत क्षेत्रफल

  • भूमि उपयोग सांख्यिकी के अनुसार, भारत का कृषि भूमि क्षेत्र वर्ष 2018-19 में 180.62 मिलियन हेक्टेयर (mha) से थोड़ा कम होकर वर्ष 2021-22 में 180.मिलियन हेक्टेयर हो गया।
  • तीव्र शहरीकरण और औद्योगीकरण के साथ, इसके और घटकर लगभग 176 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान है।

जल की कमी और जलवायु जोखिम

  • विश्व की 18% आबादी का आवास होने के बावजूद, भारत के पास दुनिया के केवल 4% जल संसाधनों तक पहुँच है।
  • कृषि अभी भी मानसून की बारिश पर बहुत अधिक निर्भर है और वर्ष 2022-23 तक केवल 52% कृषि योग्य भूमि ही सिंचित हो पा रही है।
  • अकुशल सिंचाई प्रणालियाँ और अप्रत्याशित मौसम पैदावार को कम करते हैं।
  • वर्ष 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन से कृषि आय में 15-18% और वर्षा आधारित क्षेत्रों में 25% तक की कमी आ सकती है।
  • हाल ही में आई भीषण गर्मी (वर्ष 2022-2023) ने गेहूँ की फसलों को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया है, जिससे जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता उजागर हुई है।

बाजार की अक्षमताएँ

  • किसानों की सुरक्षा के लिए बनाई गई APMC प्रणाली अक्सर बिचौलियों द्वारा शोषण का कारण बनती है। किसान अंतिम खुदरा मूल्य का केवल 15-20% ही कमा पाते हैं।
  • एकीकृत डिजिटल बाज़ार बनाने के लिए वर्ष 2016 में शुरू किए गए ई-नाम (E-NAM) की पहुँच सीमित है, फ़रवरी 2024 तक केवल 1.77 करोड़ किसान ही पंजीकृत थे।

औपचारिक ऋण तक सीमित पहुँच

  • वर्ष 2019 के स्थिति आकलन सर्वेक्षण से पता चला है कि 50% से अधिक कृषक परिवार ऋण के जाल में फँसे में हैं, जिनका औसत बकाया ऋण ₹74,121 है।
  • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के विकास के बावजूद, ऋण की उपलब्धता असमान है, जो दक्षिणी क्षेत्रों तक सीमित है। उच्च ब्याज दरों वाला अनौपचारिक ऋण छोटे किसानों को कर्ज में फँसाता है।

नीतिगत विकृतियाँ और सब्सिडी पर अत्यधिक निर्भरता

  • कृषि नीतियाँ लंबे समय से सब्सिडी पर केंद्रित रही हैं, खासकर उर्वरकों, बिजली और पानी के लिए।
  • वित्त वर्ष 2024 में उर्वरक सब्सिडी ₹1.88 लाख करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है।
  • MSP प्रणाली, मददगार तो है, लेकिन चावल और गेहूँ जैसी फसलों के अत्यधिक उत्पादन को बढ़ावा देती है, जिससे अधिक विविध और टिकाऊ विकल्प समाप्त हो जाते हैं।

फसल कटाई के बाद के नुकसान

  • कृषि उपज का एक बड़ा हिस्सा खराब भंडारण और परिवहन प्रणालियों के कारण नष्ट हो जाता है।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के वर्ष 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में फसल कटाई के बाद होने वाला नुकसान लगभग ₹1,52,790 करोड़ प्रतिवर्ष है।
  • सबसे बड़ा नुकसान जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं से होता है, जिनमें पशुधन उत्पाद जैसे अंडे, मछली और मांस (22%), फल (19%) और सब्जियाँ (18%) शामिल हैं।
  • अपर्याप्त क्षमता: भारत की भंडारण क्षमता उसके कुल खाद्यान्न उत्पादन का 47 प्रतिशत है।

फसल विविधीकरण का अभाव: भारतीय कृषि अभी भी चावल और गेहूँ पर ही केंद्रित है।

  • मुख्य खाद्यान्नों पर अत्यधिक निर्भरता मृदा स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और आय की संभावना को सीमित करती है।
  • हालाँकि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (2023) के दौरान बाजरे को बढ़ावा दिया, फिर भी बड़े पैमाने पर इसे अपनाने की गति धीमी बनी हुई है।

आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाने में धीमी गति

  • हालाँकि हरित क्रांति परिवर्तनकारी थी, लेकिन उसके बाद से प्रगति स्थिर हो गई है।
  • उन्नत उपकरण जैसे सटीक खेती, ड्रोन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)-आधारित प्रणालियाँ धीमी गति से अपनाई जा रही हैं।
  • चावल जैसी भारतीय फसलों की पैदावार वैश्विक मानकों (जैसे- चीन) से पीछे है।
  • अनुसंधान-विस्तार संबंधों और जागरूकता की कमी नवाचार के अंतर को और बढ़ा देती है।

भविष्य का दृष्टिकोण

वर्ष 2047 तक भारत की अनुमानित जनसंख्या 1.6 अरब हो जाएगी, जिसमें से 50% शहरी क्षेत्रों में होगी। इस वजह से कुल खाद्य माँग, खासकर जल्दी खराब होने वाले और पशु-आधारित खाद्य पदार्थों की, दोगुनी हो जाएगी। हालाँकि, कुछ सीमाएँ अभी भी बनी हुई हैं:

  • घटती भूमि जोत: वर्ष 2047 तक प्रति किसान 1 हेक्टेयर से घटकर 0.6 हेक्टेयर
  • कृषि भूमि में कमी: 180 मिलियन हेक्टेयर से घटकर 176 मिलियन हेक्टेयर
  • चावल निर्यात (20 मिलियन टन वार्षिक) से भूजल पर दबाव बढ़ रहा है। 
  • खाद्य तेलों और दालों पर आयात निर्भरता बनी हुई है। 

विकसित भारत के लिए कृषि की पुनर्कल्पना

फसलों में विविधता लाना और स्थायित्व बढ़ाना

  • तिलहन, दलहन, फल, सब्जियाँ, मसाले और जड़ी-बूटियों को बढ़ावा देकर चावल तथा गेहूँ जैसे जल-प्रधान अनाजों पर निर्भरता कम करना, विशेषकर जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में।
  • फसलों की एक विस्तृत शृंखला को समर्थन देने के लिए MSP नीति में सुधार करना, जिसमें गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता, सुनिश्चित बाजार और लक्षित सब्सिडी शामिल हों।
  • कृषि वानिकी, जैव-उर्वरक और शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) जैसी प्राकृतिक तथा पुनर्योजी पद्धतियों को प्रोत्साहित करना।
  • अनुसंधान एवं विकास प्रोत्साहनों और निजी क्षेत्र के सहयोग से एक राष्ट्रीय पुनर्योजी कृषि नीति शुरू करना।
  • बाढ़, सूखे और भीषण गर्मी का सामना करने में सक्षम जलवायु-प्रतिरोधी फसल किस्मों का विकास तथा उपयोग करना।

डिजिटल और तकनीकी परिवर्तन में तेजी

  • मौसम पूर्वानुमान, कीट नियंत्रण, उपज अनुकूलन और जलवायु परामर्श के लिए AI के उपयोग का विस्तार करना।
  • स्थानीय AI प्लेटफॉर्म बनाना और उन्हें कृषि-तकनीक साझेदारियों और सार्वजनिक योजनाओं के माध्यम से बड़े पैमाने पर वितरित करना।
  • वास्तविक समय में कृषि-स्तर पर निर्णय लेने के लिए डेटा-संचालित उपकरणों को बढ़ावा देना।
  • कम लागत वाले स्वचालन, कृषि-तकनीक केंद्रों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से कृषि रोबोटिक्स को किफायती बनाना।
  • क्षेत्र की स्थितियों का अनुकरण करने, अनुसंधान एवं विकास में तेजी लाने और परीक्षण लागत में कटौती करने के लिए डिजिटल ट्विन तकनीक का उपयोग करना।

जलवायु-लचीली और जल प्रभावी खेती को बढ़ावा देना

  • जल उपयोग दक्षता में सुधार के लिए सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम) का विस्तार करना।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana-PMKSY) का विस्तार करना और इसे स्थानीय जल परिसंपत्तियों जैसे सूक्ष्म जलाशयों तथा जलभृत पुनर्भरण संरचनाओं के वित्तपोषण के लिए मनरेगा से जोड़ना।
  • सिंचाई में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए पीएम-कुसुम को मजबूत करना, जिसमें सौर पंप भी शामिल हैं।
  • जल उपलब्धता और जलवायु जोखिमों के आधार पर क्षेत्र-विशिष्ट फसल पद्धति में परिवर्तन का समर्थन करना।
  • दीर्घकालिक जलवायु लचीलापन बनाने के लिए जैव-इनपुट और डिजिटल उपकरणों में निवेश करना।

उद्यमिता और संस्थानों के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना

  • किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाने और बाजार पहुँच में सुधार के लिए समर्थन प्रदान करना।
  • रोजगार सृजन और ग्रामीण आय बढ़ाने के लिए कृषि-स्टार्ट-अप और कृषि-मूल्य शृंखला में नवाचार को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण युवाओं और कृषक समुदायों के लिए क्षमता निर्माण और उद्यमिता सहायता प्रदान करना।

आधुनिक कृषि-बुनियादी ढाँचे का निर्माण

  • PPP मॉडल के माध्यम से कोल्ड चेन, खाद्य प्रसंस्करण और वेयरहाउसिंग में निजी निवेश आकर्षित करना।
  • फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और आपूर्ति शृंखला की दक्षता बढ़ाने के लिए लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना।
  • यह सुनिश्चित करना कि बुनियादी ढाँचा समान पहुँच और सेवा वितरण के माध्यम से छोटे किसानों का समर्थन करे।

डिजिटल और वैकल्पिक खाद्य प्रणालियों का विस्तार

  • मसालों और बासमती चावल जैसी निर्यातोन्मुखी फसलों में ट्रेसेबिलिटी में सुधार के लिए ब्लॉकचेन को पायलट प्रोजेक्ट से आगे बढ़ाना।
  • ब्लॉकचेन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल बुनियादी ढाँचे और किसानों की जागरूकता बढ़ाना।
  • वैश्विक अनुसंधान एवं विकास सहयोग, उत्पादन नवाचार और पादप-आधारित तथा प्रयोगशाला में विकसित प्रोटीन पर उपभोक्ता जागरूकता अभियानों के माध्यम से वैकल्पिक प्रोटीन पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

भारत का कृषि परिवर्तन खाद्यान्न की कमी के ऐतिहासिक सिद्धांतों को अप्रभावी साबित करता है और खाद्य सुरक्षा, किसानों की उच्च आय और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन हासिल करने में प्रौद्योगिकी, नीतिगत सुधारों और अनुसंधान की भूमिका को उजागर करता है। बढ़ती और शहरीकृत होती आबादी की बदलती माँगों को पूरा करने के लिए निरंतर निवेश और रणनीतिक पुनर्संरेखण महत्त्वपूर्ण होगा।

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