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भारत के FTAs में कृषि क्षेत्र की अनुपस्थिति

Lokesh Pal May 17, 2025 03:10 13 0

संदर्भ

भारत ने UK, EFTA, तथा US जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) की एक शृंखला स्थापित की है। हालाँकि, कृषि क्षेत्र इन समझौतों में स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है या केवल आंशिक रूप से शामिल है।

 मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) के बारे में 

  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA) दो या दो से अधिक देशों के बीच एक समझौता है, जिसके अंतर्गत हस्ताक्षरकर्ता देशों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार पर टैरिफ, कोटा एवं गैर-टैरिफ बाधाओं को कम या समाप्त किया जाता है।
  • FTA आर्थिक एकीकरण का एक रूप है, जिसमें प्रायः निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPRs) और तकनीकी मानकों पर प्रावधान शामिल होते हैं।
  • FTA की विशेषताएँ
    • टैरिफ उन्मूलन: सदस्य देश कई तरह की वस्तुओं पर आयात शुल्क कम या समाप्त कर देते हैं।
    • संवेदनशील सूचियाँ: प्रत्येक देश उन वस्तुओं की सूची बनाए रखता है, जिन्हें बाहर रखा गया है या जिन्हें लंबी संक्रमण अवधि प्रदान की गई है।
    • व्यापार और निवेश: आधुनिक FTA सेवाओं, निवेश उदारीकरण और सीमापार मुद्दों को शामिल करते हैं।
    • उत्पत्ति के नियम: मानदंड, जो परिभाषित करते हैं कि कौन-सी वस्तुएँ वरीयता प्राप्ति के लिए योग्य हैं।
    • सुरक्षा खंड: यदि घरेलू उद्योगों को अचानक आयात में उछाल का सामना करना पड़ता है तो अस्थायी सुरक्षा उपायों की अनुमति दी जाती है।

भारत के FTA से कृषि को बाहर क्यों रखा गया है?

  • कृषि राजनीतिक रूप से संवेदनशील और चुनावी रूप से अस्थिर: भारत में कृषि केवल एक आर्थिक क्षेत्र नहीं है, यह 50% से अधिक कार्यबल के लिए आजीविका का स्रोत है, और पहचान, संस्कृति तथा वोट बैंक की राजनीति से गहराई से जुड़ा हुआ है।
    • वर्ष 2020 के कृषि कानूनों जैसे सुधारों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिससे सरकार को उन्हें वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे इस क्षेत्र को उदार बनाने की उच्च राजनीतिक लागत का पता चलता है।
  • आयात वृद्धि और घरेलू बाजार में व्यवधान का डर: न्यूजीलैंड से सस्ते डेयरी आयात में उछाल की आशंकाओं के कारण भारत वर्ष 2019 में RCEP से बाहर हो गया, जो छोटे डेयरी किसानों को नुकसान पहुँचा सकता था।
    • RCEP से वापसी (वर्ष 2019) न्यूजीलैंड से सस्ते डेयरी आयात में उछाल की आशंकाओं से प्रेरित थी।
  • कृषि पर अत्यधिक सब्सिडी देना तथा यह वैश्विक मानदंडों का अनुपालन नहीं करता: भारत के मॉडल में मुफ्त बिजली, सब्सिडीयुक्त यूरिया और सुनिश्चित MSP शामिल हैं, जो WTO सब्सिडी मानदंडों का उल्लंघन करते हैं और यदि FTA के तहत कृषि को उदार बनाया जाता है तो इसे आसानी से जारी नहीं रखा जा सकता है।
    • कृषि पर उरुग्वे दौर समझौता (Agreement on Agriculture- AoA) और WTO प्रतिबद्धताएँ ऐसी सब्सिडी में कमी की माँग करती हैं। हालाँकि, भारत खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण रोजगार का हवाला देते हुए छूट चाहता है।
  • गैर-टैरिफ उपाय (Non-Tariff Measures- NTM) अतिरिक्त बाधाएँ पैदा करते हैं: जब FTA में टैरिफ कम किए जाते हैं, तो SPS तथा व्यापार के लिए तकनीकी बाधाएँ (Technical Barriers to Trade- TBT) जैसे गैर-टैरिफ उपाय, निर्यात को प्रतिबंधित करते हैं।
    • विकसित देश कठोर आयात नियम लागू करते हैं, जिससे भारतीय उत्पादकों के लिए विशेषतः कृषि-निर्यात क्षेत्र में उनका अनुपालन करना मुश्किल हो जाता है।
  • FTA में बहिष्करण सूचियों का रणनीतिक उपयोग: भारत आमतौर पर FTA वार्ता के दौरान कृषि उत्पादों को ‘संवेदनशील सूचियों’ में रखता है  अतः इन्हें टैरिफ कटौती से बाहर रखा जाता है या लंबी संक्रमण अवधि (जैसे, 20-25 वर्ष) के अधीन किया जाता है।
    • यह प्रमुख क्षेत्रों की रक्षा के लिए एक वार्ता रणनीति है, लेकिन यह भारत को वैश्विक बाजारों में अपने कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का लाभ उठाने से भी रोकती है।

भारत के कृषि निर्यात के मुख्य तथ्य

  • निर्यात मूल्य और रुझान: भारत का कृषि निर्यात वर्ष 2023-24 में 48 बिलियन डॉलर रहा, जो वर्ष 2022-23 में 52 बिलियन डॉलर था।
    • वर्ष 1991 से कृषि में शुद्ध निर्यातक होने के बावजूद, वैश्विक कृषि व्यापार में भारत की हिस्सेदारी मामूली बनी हुई है।

शीर्ष निर्यात वस्तुएँ

  • बासमती चावल, मसाले, कॉफी, तंबाकू का निर्यात वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड ऊँचाई पर है।
    • भारत की कुल कृषि-निर्यात आय में अकेले बासमती चावल का योगदान 21% है।
  • समुद्री उत्पाद: $8.1 बिलियन (वर्ष 2022-23) घटकर $7.4 बिलियन (वर्ष2023-24) रह गया।
  • चीनी निर्यात: सरकारी प्रतिबंधों के कारण $5.8 बिलियन (वर्ष 2022-23) घटकर $2.8 बिलियन (वर्ष 2023-24) रह गया।
  • गेहूँ निर्यात: घरेलू आपूर्ति संबंधी चिंताओं के कारण $2.1 बिलियन (वर्ष 2021-22) घटकर वर्ष 2022 के बाद लगभग शून्य हो गया।
  • गैर-बासमती चावल: प्रतिबंध/शुल्कों के बावजूद स्थिर बना हुआ है।
  • कॉफी: ब्राजील में सूखे और वियतनाम में तूफानों के कारण निर्यात में तेजी।
  • तंबाकू: ब्राजील और जिम्बाब्वे में फसल खराब होने के कारण उछाल।

कृषि बहिष्कार के निहितार्थ

  • उच्च मूल्य वाले कृषि-निर्यात में छूटे अवसर: कृषि को FTA से बाहर रखने से भारत की बासमती चावल, मसालों और जीआई-टैग वाले ODOP उत्पादों जैसे अपने प्रतिस्पर्द्धी उत्पादों के लिए वरीयता प्राप्त बाजार पहुँच हासिल करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • घरेलू कृषि के आधुनिकीकरण में देरी: FTA से प्रतिस्पर्द्धी दबाव के बिना, भारत में अपनी कृषि पद्धतियों, बुनियादी ढाँचे और मूल्य शृंखलाओं को उन्नत करने के लिए मजबूत प्रोत्साहन की कमी है।
    • थाईलैंड और ब्राजील जैसे देशों ने कृषि-प्रसंस्करण, अनुपालन प्रयोगशालाओं और रसद में FTA से जुड़े निवेश के माध्यम से अपने कृषि-क्षेत्रों में सुधार किया, जिससे थाई कृषि-निर्यात में 8% CAGR की वृद्धि हुई।
  • क्षेत्रों में असंतुलित व्यापार लाभ: FTA औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों का पक्ष लेते हैं, जबकि कृषि को बाहर रखा जाता है, जिससे शहरी-औद्योगिक और ग्रामीण-कृषि अर्थव्यवस्थाओं के बीच असमानता बढ़ती है।
    • भारतीय FTA कपड़ा, आईटी, इंजीनियरिंग आदि पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन कृषि या तो संवेदनशील सूचियों में है अथवा लंबी संक्रमण अवधि की पेशकश की जाती है, जिससे क्षेत्रीय लाभ कम हो जाते हैं।
  • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (Global Value Chains- GVC) का कमजोर एकीकरण: FTA तक पहुँच के बिना, भारतीय किसान प्रसंस्करण, ब्रांडिंग और गुणवत्ता अनुपालन प्रणालियों सहित आधुनिक निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र से वंचित रह जाते हैं।
  • घरेलू तनावों से बाजारों का नुकसान: स्थिर निर्यात बाजारों की अनुपस्थिति में, भारत अत्यधिक फसल अधिशेष उत्पादन के दौरान घरेलू कीमतों को स्थिर करने के लिए बाहरी माँग का उपयोग नहीं कर सकता है।
    • भारत प्रायः स्थानीय मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए निर्यात प्रतिबंध (जैसे- गेहूँ, प्याज पर) आरोपित करता है, जो वैश्विक मूल्य लाभ से वंचित करके किसानों की आय को नुकसान पहुँचाता है।
  • बिचौलियों की पहुँच और किसानों की कम सौदेबाजी की शक्ति: FTA के माध्यम से कोई प्रत्यक्ष निर्यात मार्ग न होने के कारण, छोटे किसान बिचौलियों पर निर्भर रहते हैं, जो बाजार तक पहुँच और मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करते हैं।
  • क्षेत्रीय व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता का क्षरण: चूँकि भारत FTA में कृषि को शामिल करने से बचता है, इसलिए प्रतिस्पर्द्धी देश गहरे व्यापार संबंध बनाकर क्षेत्रीय कृषि-बाजारों पर अधिकार कर लेते हैं।
    • आसियान और भारत के लिए वियतनाम तथा थाईलैंड आक्रामक FTA भागीदारी के माध्यम से प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गए हैं, जबकि भारत को आसियान क्षेत्र से कृषि आयात में व्यापार घाटा है।

FTA में कृषि को शामिल करने के लाभ

  • किसानों के लिए विस्तारित बाजार पहुँच: FTA में शामिल होने से भारतीय किसानों को विदेशी बाजारों में वरीयता प्राप्त टैरिफ तक पहुँच प्राप्त होती है।
    • इससे बासमती चावल, मसाले, समुद्री उत्पाद और चाय जैसे प्रतिेस्पर्द्धी उत्पादों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
  • मूल्य संवर्द्धन और कृषि प्रसंस्करण को प्रोत्साहन: अंतरराष्ट्रीय बाजारों की माँग खाद्य प्रसंस्करण, पैकेजिंग और ब्रांडिंग में निवेश को प्रोत्साहित करती है।
    • ब्राजील के ‘सोया-टू-ऑयल’ मॉडल के समान, भारत के कृषि-निर्यात को कम मूल्य वाली कच्ची वस्तुओं से प्रसंस्कृत और उच्च-मार्जिन वाले उत्पादों में बदलने में मदद करता है।
  • बुनियादी ढाँचे और अनुपालन में सुधार को बढ़ावा देता है: FTA से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, देशों को कोल्ड चेन, प्रमाणन प्रयोगशालाओं तथा MSP अनुपालन में निवेश करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
    • भारत की वैश्विक मानकों को पूरा करने की क्षमता को बढ़ाता है, अस्वीकृतियों को कम करता है और निर्यात विश्वसनीयता में सुधार करता है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखला (Global Value Chain- GVC) एकीकरण को मजबूत करना: FTA में शामिल होने से क्षेत्रीय और वैश्विक कृषि आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की भागीदारी सुगम होती है।
    • कृषि-लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग और अनुबंध कृषि में विदेशी निवेश को आकर्षित करके दीर्घकालिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा मिलता है।
  • फसल पैटर्न का विविधीकरण: निर्यात बाजारों में बागवानी, दलहन, तिलहन और विदेशी फसलों की अधिक माँग किसानों को चावल तथा गेहूँ जैसी MSP से जुड़ी अति उत्पादित प्रमुख फसलों से दूर कर सकती है।
    • अधिक सतत् और बाजार-संरेखित फसल प्रणालियों को प्रोत्साहित करता है।
  • वैश्विक स्तर पर भारत की सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाता है: FTA में सक्रिय कृषि भागीदारी WTO  वार्ता और भविष्य के व्यापार सौदों में भारत की विश्वसनीयता को बढ़ाती है।
    • वैश्विक व्यापार मानदंडों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है और व्यापार भागीदारों के साथ विश्वास का निर्माण करता है।

भारत के कृषि निर्यात में सफलता की कहानियाँ

  • बासमती चावल ब्रांडिंग में एक सफलता: बासमती चावल की ब्रांडिंग और निर्यात में भारत की सफलता क्षेत्र-विशिष्ट, प्रीमियम कृषि-उत्पादों की निर्यात क्षमता को दर्शाती है।
    • बासमती चावल कुल कृषि-निर्यात का 21% है, जो जीआई टैगिंग, वैश्विक उपभोक्ता वरीयता और निरंतर गुणवत्ता द्वारा संचालित है।
  • ODOP के तहत जीआई टैग किए गए उत्पादों को प्रोत्साहन: ‘एक जिला, एक उत्पाद (One District, One Product- ODOP)’ योजना ने वैश्विक बाजारों के लिए अद्वितीय स्थानीय उपज और विशिष्ट कृषि वस्तुओं को बढ़ावा देने में मदद की है।
    • अल्फांसो आम, कश्मीरी केसर तथा मालाबार काली मिर्च जैसे उत्पादों को तेजी से जीआई टैग के तहत पहचाना और निर्यात किया जा रहा है।
    • ये उत्पाद वैश्विक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, भले ही पैमाने और कनेक्टिविटी की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • आसियान बाजारों में निर्यात विविधीकरण: AIFTA  (आसियान-भारत FTA) के बाद आसियान को भारत के कृषि निर्यात (चावल, मांस और मछली जैसे उत्पाद) में निरंतर वृद्धि देखी गई है।

भारत के कृषि निर्यात में संरचनात्मक चुनौतियाँ

  • निर्यात में कम मूल्य संवर्द्धन: भारत के कृषि निर्यात में कच्चे माल का वर्चस्व है, जिससे आय और वैश्विक मूल्य उतार-चढ़ाव के प्रति लचीलापन दोनों सीमित हो जाता है।
    • ब्राजील के विपरीत, जो सोयाबीन तेल और प्रसंस्कृत मांस का निर्यात करता है, भारत कच्चे चावल और दालों का निर्यात जारी रखता है।
    • APMC के पास कृषि प्रसंस्करण क्लस्टर की कमी मूल्य संवर्द्धन को बाधित करती है।
  • खंडित भूमि जोत और किसान आधार: लघु और सीमांत किसान, जो भारत के कृषि कार्यबल का बड़ा हिस्सा हैं, वैश्विक मूल्य शृंखलाओं और निर्यात प्रणालियों से अलग हैं।
    • भारतीय किसान निर्यात अनुपालन मानकों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं। उदाहरण के लिए, आम में कीटनाशक अवशेष या मूंगफली में एफ्लैटॉक्सिन की उपस्थिति के कारण निर्यात अस्वीकृति सामान्य है क्योंकि छोटे किसानों के पास परीक्षण और प्रमाणन तक पहुँच नहीं है।
  • केंद्र और राज्यों के मध्य विनियामक विघटन: कृषि एक राज्य का विषय है, जबकि व्यापार एक संघ का विषय है, जिसके परिणामस्वरूप खंडित एवं अक्सर विरोधाभासी नीतिगत वातावरण का निर्माण होता है।
    • कीटनाशकों के उपयोग के मानदंड, संगरोध नियम और निर्यात प्रतिबंध राज्यों में अलग-अलग हैं, जिससे निर्यात खेप में देरी हो रही है। इससे निर्यातकों के लिए भ्रम की स्थिति पैदा होती है तथा भारत की एकीकृत कृषि-निर्यात रणनीति कमजोर होती है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और रसद: खराब कोल्ड चेन, भंडारण और अंतर्देशीय संपर्क के कारण खेत से बंदरगाह तक जल्दी खराब होने वाली उपज की आवाजाही बाधित होती है।
    • गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश जैसे तटीय राज्य कृषि-निर्यात में अग्रणी हैं, लेकिन आम और सोयाबीन से समृद्ध उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्य ‘इंटर-मील’ रसद बाधाओं का सामना करते हैं।
  • स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी (Sanitary and Phytosanitary (SPS) मानकों का गैर-अनुपालन: भारतीय कृषि निर्यात विशेषतः विकसित बाजारों के लिए प्रायः अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और स्वच्छता मानदंडों को पूरा करने में विफल रहते हैं।

APEDA के बारे में

  • कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1985 के तहत भारत सरकार द्वारा वर्ष 1986 में स्थापित एक वैधानिक निकाय।
  • मंत्रालय: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन।
  • उद्देश्य: अनुसूचित उत्पादों के निर्यात को विकसित और बढ़ावा देना तथा यह सुनिश्चित करना कि भारतीय कृषि निर्यात वैश्विक गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हैं।
  • अतिरिक्त जिम्मेदारी: APEDA को भारत में चीनी के आयात की निगरानी का भी काम सौंपा गया है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली।
  • संरचना: इसमें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष, विभिन्न मंत्रालयों, संसद, राज्य सरकारों, कृषि अनुसंधान निकायों, निर्यात परिषदों और उद्योग प्रतिनिधियों के सदस्य शामिल हैं, जो व्यापक क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हैं।

    • कीटनाशक अवशेषों या एफ्लैटॉक्सिन के कारण खेपों को बार-बार अस्वीकार कर दिया जाता है। APEDA मानकों को बढ़ावा देता है, लेकिन छोटे किसानों तक इसकी पहुँच बहुत कम है।
  • निर्यात के लिए कमजोर संस्थागत पारिस्थितिकी तंत्र: एकीकृत निर्यात प्रशासन और खंडित संवर्द्धन तंत्र की कमी भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करती है।
    • वर्तमान में, निर्यात मंजूरी और अनुपालन नौकरशाही और विलंबित बने हुए हैं।
  • सब्सिडी-संचालित उत्पादन पर अत्यधिक निर्भरता: इनपुट सब्सिडी (बिजली, पानी, उर्वरक) और MSP,  उच्च-मूल्य या निर्यात-प्रतिस्पर्द्धी फसलों के बजाय चावल तथा गेहूँ जैसी पारंपरिक फसलों को प्रोत्साहित करते हैं।
    • भारत थाईलैंड की तरह बागवानी या औद्योगिक फसलों की ओर रुख करने के बजाय, अपनी क्षमता से अधिक बिजली से अधिशेष चावल उगाने को प्रोत्साहित करना जारी रखता है।
  • सब्सिडी नवाचार को हतोत्साहित करती है: भारत का वर्तमान कृषि-निवेश मॉडल मुफ्त जल और बिजली, सब्सिडी वाले बीज तथा यूरिया एवं सुनिश्चित एमएसपी आदि की सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन नवाचार को हतोत्साहित करता है।
    • किसान पारंपरिक फसलों में ही उलझे रहते हैं, उच्च-मूल्य वाली फसलों के साथ प्रयोग करने से हतोत्साहित होते हैं।

कृषि-निर्यात में वैश्विक सफलताओं से सीख

  • ब्राजील: मूल्य शृंखला में ऊपर की ओर बढ़ना
    • ब्राजील की सफलता दर्शाती है कि विकासशील देश कच्चे कृषि निर्यात से उच्च मूल्य युक्त प्रसंस्कृत सामान की ओर रुख करके उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं।
    • ब्राजील ने कृषि उत्पादों में $166 बिलियन (वर्ष 2023-24) मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया, जिसमें सोया तेल, सोयाबीन भोजन और प्रसंस्कृत मांस का सबसे बड़ा योगदान रहा। यह बड़े पैमाने पर मशीनीकरण, लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर और एक मजबूत बंदरगाह पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा सक्षम किया गया था।
  • थाईलैंड: मूल्य शृंखला एकीकरण के साथ लक्षित FTA
    • थाईलैंड ने कृषि-प्रसंस्करण और ब्रांडिंग को व्यापार संरचना में शामिल करके विशिष्ट कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रणनीतिक रूप से FTA का उपयोग किया।
    • थाईलैंड ने 18 से अधिक CAGR पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे उसे 8% CAGR पर कृषि निर्यात बढ़ाने में मदद मिली है।
  • वियतनाम: मुख्य वस्तुओं से परे विविधता
    • चावल या गेहूँ जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों पर अत्यधिक निर्भरता निर्यात लचीलापन सीमित करती है। औद्योगिक और प्रसंस्कृत क्षेत्रों में विविधीकरण से दीर्घकालिक लाभ बढ़ता है।
    • वियतनाम ने काली मिर्च, काजू और कॉफी उत्पादन में विविधता लाई है। इसके विपरीत, भारत अभी भी चावल उत्पादन को प्रोत्साहित करता है, जिसकी उसे आवश्यकता नहीं है।

कृषि-निर्यात को बढ़ावा देने और कृषि को FTA में एकीकृत करने संबंधी आगे की राह

  • कृषि को रणनीतिक रूप से एफटीए में एकीकृत करना: भारत को चुनिंदा कृषि-क्षेत्रों को FTA में सावधानीपूर्वक शामिल करना चाहिए, इसे बागवानी, समुद्री उत्पाद, मसाले और मूल्य-वर्द्धित वस्तुओं से शुरू करते हुए संवेदनशील क्षेत्रों के बहिष्करण के माध्यम से संरक्षित करना चाहिए।
    • भारत का पूर्ण बहिष्करण दृष्टिकोण बासमती चावल (कृषि-निर्यात का 21%) जैसे क्षेत्रों को वरीयता पहुँच प्राप्त करने से रोकता है।
  • निर्यात-उन्मुख बुनियादी ढाँचे में निवेश करना: भूमि आबद्ध कृषि-उत्पादक राज्यों से निर्यात को व्यवहार्य बनाने के लिए कोल्ड चेन, परीक्षण प्रयोगशालाओं, लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर और अंतर्देशीय डिपो को बढ़ाना।
    • उत्तर प्रदेश के आम और मध्य प्रदेश के सोयाबीन को रसद बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जबकि तटीय राज्य (गुजरात, आन्ध्र प्रदेश) बेहतर बंदरगाह पहुँच के कारण इसका लाभ उठाते हैं। बुनियादी ढाँचे की कमी अंतर्देशीय राज्यों की निर्यात भागीदारी को सीमित करती है।
  •  APMC के निकट कृषि प्रसंस्करण को बढ़ावा देना: निर्यात से पहले मूल्य संवर्द्धन को सक्षम करने, कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और निर्यात मार्जिन को बढ़ाने के लिए APMC के निकट कृषि प्रसंस्करण क्लस्टर विकसित करना।
    • भारत का निर्यात चावल और दालों जैसी कच्ची वस्तुओं पर केंद्रित है। इसके विपरीत, ब्राजील मजबूत कृषि-औद्योगिक संबंधों के कारण सोयाबीन तेल और भोजन का निर्यात करता है।
  • एकीकृत कृषि-व्यापार प्रशासन को संस्थागत बनाना: एकीकृत कृषि निर्यात सुविधा के लिए केंद्र, राज्यों, APEDA, FSSAI तथा निर्यातकों के मध्य नीति को सुसंगत बनाने के लिए एक राष्ट्रीय कृषि व्यापार परिषद की स्थापना करना।
    • कृषि (राज्य विषय) और व्यापार (केंद्रीय विषय) के मध्य विनियामक असंगति मानदंडों, निर्यात प्रतिबंधों तथा अनुपालन प्रवर्तन संबंधी भ्रम पैदा करती है।
  • कृषि समर्थन में सुधार: इनपुट सब्सिडी (जैसे- मुफ्त बिजली, यूरिया) से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) में संक्रमण विविधीकरण को प्रोत्साहित करेगा और अधिशेष फसलों के अधिक उत्पादन को कम करेगा।
    • भारत अभी भी अधिशेष के बावजूद भारी सब्सिडी के साथ चावल उत्पादन को प्रोत्साहित करता है। डीबीटी जोखिम पूँजी प्रदान कर सकता है और किसानों को निर्यात-प्रासंगिक फसलों को चुनने के लिए सशक्त बना सकता है।
  • अनुपालन और ट्रेसेबिलिटी बैकबोन का निर्माण करना: बाजार पहुँच में सुधार करने और खाद्य सुरक्षा मुद्दों के कारण अस्वीकृति को कम करने के लिए प्रयोगशालाओं, SPS प्रमाणन तंत्र तथा डिजिटल ट्रेसेबिलिटी को मजबूत करना।
    • भारत को वैश्विक SPS मानकों का अनुपालन न करने के कारण बार-बार निर्यात अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है (उदाहरण के लिए- कीटनाशक अवशेषों के लिए आम, एफ्लैटॉक्सिन के लिए मूंगफली)।
  • विस्तार सेवाओं में कृषि-तकनीक को शामिल करना: मौसम, कीटों, निर्यात विनियमों और योजना पात्रता पर स्थानीय, वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करने के लिए एआई, जीआईएस और मोबाइल ऐप का उपयोग करना।
    • तकनीक-आधारित सेवाएँ अनुपालन, उत्पादकता और निर्यात तत्परता में सुधार कर सकती हैं।
  • FPO तथा एग्रीगेटर्स के माध्यम से किसान-निर्यातक संबंध स्थापित करना: किसान उत्पादक संगठनों (Facilitate Farmer Producer Organisations- FPO) तथा निजी एग्रीगेटर्स को छोटे किसानों और वैश्विक खरीदारों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करने में सहायता करना।
    • लघु कृषकों के पास APEDA के प्रमाणन और वैश्विक व्यापार चैनलों तक पहुँच नहीं है। संगठित निर्यात एग्रीगेटर्स इन बाधाओं को कम करने में मदद कर सकते हैं।

निष्कर्ष 

राजनीतिक तथा संरचनात्मक बाधाओं के कारण भारत द्वारा कृषि को FTA से बाहर रखा जाना, इसकी कृषि-निर्यात क्षमता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को सीमित करता है। चुनिंदा कृषि क्षेत्रों को रणनीतिक रूप से शामिल करने के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे, शासन और तकनीकी सुधारों से किसानों के हितों की रक्षा करते हुए विकास को गति मिल सकती है।

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