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भारत में कृषि क्षेत्र

Lokesh Pal June 06, 2024 03:23 278 0

संदर्भ

जैसे-जैसे भारत अमृत काल (Amrit Kaal) की ओर बढ़ रहा है, कृषि क्षेत्र की यात्रा कठिन होगी, और चुनौतियों से भरी होगी, जिनका प्राथमिकता के आधार पर समाधान किया जाना चाहिए।

भारत में कृषि क्षेत्र

  • अर्थव्यवस्था में योगदान: अर्थव्यवस्था के कुल सकल मूल्य वर्द्धन (Gross Value Added-GVA) में कृषि की हिस्सेदारी वर्ष 1990-91 में 35% से घटकर 2022-23 में 15% हो गई है।
    • वित्त वर्ष 2024 में भारत के GVA में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 18% होने का अनुमान है।

कृषि की परिभाषा

  • खाद्य और कृषि संगठन (FAO) कृषि को “भूमि पर खेती करने, फसल उत्पादन और पशुधन में वृद्धि से संबंधित विज्ञान, कला और अभ्यास” के रूप में परिभाषित करता है। 
  • यह कृषि में शामिल विशिष्ट गतिविधियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, जैसे फसलें उगाना और पशुधन में वृद्धि करना।
  • नीति आयोग के अनुसार, पिछले छः वर्षों में 140 मिलियन हेक्टेयर के शुद्ध फसली क्षेत्र में से सिंचित क्षेत्र 47% से बढ़कर 55% हो गया है।

  • रोजगार सृजन: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey-PLFS) के अनुसार वर्ष 2022-23 के दौरान कुल कार्यबल का लगभग 45.76% कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में कार्यरत है।

  • विदेशी आय: वर्ष 2022-2023 के दौरान, कृषि निर्यात 43.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो पिछले वित्तीय वर्ष 2021-2022 की इसी अवधि के दौरान 40.90 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात से 6.04% की वृद्धि प्रदर्शित करता है।
    • भारत फलों, सब्जियों, चाय, मत्स्यपालन, गन्ना, गेहूँ, चावल, कपास और चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। बागवानी उत्पादन 355.25 मिलियन टन था, जो भारतीय बागवानी के लिए अब तक का सबसे अधिक है।
  • महत्त्व: वित्त वर्ष 2023 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 329.7 मिलियन टन था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14.1 मिलियन टन अधिक है।
    • चावल, गेहूँ, दालें, पौष्टिक/मोटे अनाज और तिलहन के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।
    • भारत का वैश्विक प्रभुत्व कृषि वस्तुओं तक विस्तृत हुआ है, जिससे यह दुनिया भर में दूध, दालों और मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है।
    • कृषि क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था का आधार है।
      • वैश्विक स्वास्थ्य संकट और जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तनशीलता से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, इस क्षेत्र ने उल्लेखनीय दृढ़ता और लचीलेपन का प्रदर्शन किया है तथा भारत के आर्थिक सुधार और विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

भारत में कृषि क्षेत्र से संबंधित चिंताजनक आँकड़े

  • गिरावट की प्रवृत्ति: कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में ‘सेक्टोरल डिफ्लेटर’ वर्ष 2013-2014 में 9.4 से घटकर वर्ष 2019-2020 में 5.0 और वर्ष 2023-2024 में 3.7 हो गया।
  • आय और लाभप्रदता: कृषि कीमतों में भारी गिरावट के कारण किसानों की आय में कमी आई है।
    • वर्ष 2012-13 और 2018-19 के बीच कृषि से कृषि परिवारों की वास्तविक आय में लगभग 1.4% की गिरावट आई।
      • कृषि से होने वाली आय में गिरावट का कारण कृषि मूल्यों में स्थिरता या गिरावट तथा कृषि में प्रयुक्त होने वाली वस्तुओं, विशेषकर उर्वरकों की लागत में तीव्र वृद्धि थी।

    • ग्रामीण भारत में वास्तविक मजदूरी वर्ष 2016-17 के बाद कभी नहीं बढ़ी और वर्ष 2020-21 के बाद तो इसमें गिरावट भी आई है।
      • नाममात्र वेतन में सभी वृद्धि मुद्रास्फीति द्वारा समाप्त कर दी गई थी।
  • बेरोजगारी में वृद्धि: ग्रामीण बेरोजगारी में वर्ष 2011-12 और 2018-19 के बीच वृद्धि हुई। ग्रामीण पुरुषों के लिए यह वृद्धि 1.7% से 5.6% तक थी, जबकि ग्रामीण महिलाओं के लिए यह 1.7% से 3.5% तक थी।
    • वर्ष 2018-19 के बाद ग्रामीण बेरोजगारी दर में गिरावट आई, लेकिन वर्ष 2022-23 में यह 2011-12 की तुलना में अधिक रही, जो पुरुषों के लिए 2.8% और महिलाओं के लिए 1.8% थी।
  • गैर-कृषि क्षेत्रों के बेरोजगार श्रमिक, कृषि क्षेत्र में उस समय अत्यधिक संलग्न हुए, जब कृषि कीमतें नहीं बढ़ रही थीं और कृषि आय घट रही थी।

भारत सरकार द्वारा कृषि से संबंधित 

कुछ महत्त्वपूर्ण पहलें

  • राष्ट्रीय कृषि बाजार (National Agriculture Market-eNAM): यह एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है, जो कृषि वस्तुओं के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार निर्माण के लिए मौजूदा APMC मंडियों को जोड़ता है।
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA): इसे एकीकृत कृषि, जल उपयोग दक्षता, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करके विशेष रूप से वर्षा आधारित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है।

 

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इसे सिंचाई के कवरेज को बढ़ाने के दृष्टिकोण के साथ ‘हर खेत को पानी’ और जल उपयोग दक्षता में सुधार – ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ – स्रोत निर्माण, वितरण, प्रबंधन, क्षेत्र अनुप्रयोग और विस्तार गतिविधियों पर अंतिम समाधान के साथ एक केंद्रित तरीके से तैयार किया गया है।
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था। यह केंद्र प्रायोजित योजना (CSS), राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के तहत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (Soil Health Management-SHM) का एक विस्तारित घटक है।
    • PKVY का उद्देश्य जैविक खेती को समर्थन और बढ़ावा देना है, जिससे मृदा  के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): यह एक सरकार प्रायोजित फसल बीमा योजना है, जो कई हितधारकों को एक मंच पर एकीकृत करती है।
  • सूक्ष्म सिंचाई निधि (Micro Irrigation Fund-MIF): सरकार ने कृषि उत्पादन और किसानों की आय को बढ़ावा देने के अपने उद्देश्य के तहत अधिक भूमि को सूक्ष्म सिंचाई के तहत लाने के लिए 5,000 करोड़ रुपये के समर्पित फंड (नाबार्ड के तहत स्थापित) को मंजूरी दी।
  • डिजिटल कृषि: इसका उद्देश्य प्रासंगिक सूचना सेवाओं के माध्यम से समावेशी, किसान-केंद्रित समाधान को सक्षम करने के लिए कृषि हेतु डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे का विकास करके कृषि में मौजूदा राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (National e-Governance Plan in Agriculture- NeGPA) में सुधार करना है।
  • नई कृषि निर्यात नीति: इसका उद्देश्य स्थिर व्यापार नीति व्यवस्था के साथ कृषि निर्यात को वर्तमान 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक बढ़ाकर वर्ष 2022 तक 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक करना तथा उसके बाद अगले कुछ वर्षों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाना है।
    • निर्यात बास्केट और गंतव्यों में विविधता लाना तथा शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए उच्च मूल्य और मूल्यवर्द्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा देना।

भारतीय कृषि क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • बड़ी संख्या में छोटे भू-जोत: ये छोटे भू-जोत (कुल कृषि योग्य भूमि का 85%) प्राथमिक उत्पादकों के लिए दायरे को मूलतः सीमित कर देते हैं।
    • छोटे किसानों के सामने एक बड़ी चुनौती कम उत्पादकता है। 
    • नवीन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके उत्पादकता बढ़ाने के बारे में ज्ञान की कमी के कारण उन्हें संघर्ष करना पड़ता है।
    • कई सीमांत किसान गरीब हैं और अपने छोटे पैमाने की कृषि गतिविधियों की परिचालन दक्षता में सुधार के लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को वहन करने में असमर्थ हैं।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: कृषि और पर्यावरण एक-दूसरे से बहुत करीब से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। मिट्टी और पानी की गुणवत्ता में गिरावट, मिट्टी के कटाव में तेजी, भूजल का प्रदूषण तथा खराब जल प्रबंधन कृषि रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कुछ बुरे प्रभाव हैं।
    • घटते जलभृत: कृषि की अत्यधिक माँग के कारण जलभृत घट रहे हैं, जो एक सीमा बिंदु पर पहुँच गए हैं, जहाँ सिंचाई के लिए जल का निष्कर्षण आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होगा।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु में अपरिवर्तनीय रूप से बदतर परिवर्तन हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन ने मौसम की घटनाओं की तीव्रता को बढ़ा दिया है, बाढ़, सूखा, खरपतवार और कीटों का प्रकोप बढ़ा है और आजीविका के रूप में खेती के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति कृषि की संवेदनशीलता, अधिक जनसंख्या के कारण उत्पन्न खाद्य असुरक्षा को बढ़ा सकती है।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO) की बाधाएँ: विश्व व्यापार संगठन में कोई बदलाव नहीं होगा। कई वर्षों से, अमेरिका ने जानबूझकर विवाद-निपटान तंत्र को कमजोर कर दिया है, जो भारत के लिए घरेलू स्तर पर निर्णयों को लागू करने में बाधाएँ पैदा करता है।
    • विभिन्न नेतृत्त्वकर्त्ताओ और विशेषज्ञों ने कहा कि WTO की नीति किसानों के लिए बहुत खराब है। WTO  किसानों को उनके अधिकार नहीं देता है।

सब्सिडी पर विश्व व्यापार संगठन 

  • विश्व व्यापार संगठन  समझौते में, सब्सिडी को आम तौर पर “बॉक्स” द्वारा पहचाना जाता है, जिन्हें ट्रैफिक लाइट के रंग से संबंधित नाम दिए गए हैं: ग्रीन (अनुमति), एम्बर (धीमा करना – यानी कम करने की आवश्यकता है), और रेड (निषिद्ध)।
  • विश्व व्यापार संगठन के कृषि समझौते का अनुच्छेद-6: यह ब्लू और ग्रीन बॉक्स को छोड़कर सभी घरेलू समर्थन को परिभाषित करता है। ये समर्थन सीमाओं के अधीन हैं क्योंकि वे व्यापार विकृति का कारण बनते हैं और पर्यावरणीय प्रभाव डालते हैं।

    • उदाहरण: अमेरिका अपने किसानों को ग्रीन बॉक्स में वार्षिक रूप से 8500 अमेरिकी डॉलर की सब्सिडी दे रहा है, भारत की सब्सिडी अभी लगभग 258 रुपये है और दोनों के बीच कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं हो सकती।
  • उपभोक्ताओं के लिए कम खाद्य कीमतें सुनिश्चित करना वैश्विक प्राथमिकता है: कृषि के प्रारंभिक चरण में कीमतों को कृत्रिम रूप से कम करके इसे सबसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन इससे खेती पर्यावरणीय दृष्टि से असंवहनीय और आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी हो जाती है।
  • खराब बुनियादी ढाँचे और उन्नत प्रौद्योगिकियों का अभाव: खराब भंडारण सुविधाओं और कीट नियंत्रण की कमी से फफूँद और कीटों का प्रकोप हो सकता है तथा उपज बर्बाद हो सकती है। 
    • इसके अलावा, प्रौद्योगिकी और संबद्ध सेवाओं तक पहुँच की कमी के कारण फसलें खेतों में सड़ जाती हैं। 
    • खाद्य हानि और बर्बादी कृषि मूल्य शृंखला में सभी हितधारकों के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बनती है और खाद्य कीमतों में वृद्धि करती है, जो कमजोर समूहों के लिए खाद्य सुरक्षा और भोजन तक पहुँच को प्रभावित करती है।
  • अकुशल शासन और गैर-जवाबदेही: केंद्र और राज्यों में कृषि क्षेत्र का प्रबंधन करने वाले मंत्रालयों में अकुशल शासन और जवाबदेही की कमी शीर्ष अधिकारियों के अधिनायकवादी रवैये के कारण है।
    • उचित ध्यान न दिया जाना: कृषि राज्य का विषय है, जहाँ राज्य राष्ट्रीय उद्देश्यों के अनुरूप कार्य नहीं करते हैं, बल्कि भविष्य में निवेश करने के बजाय लोकलुभावन योजनाओं के लिए अल्प संसाधनों का उपयोग करते हैं।
  • सब्सिडी संस्कृति (Subsidies Culture): उर्वरक सब्सिडी जैसी इनपुट सब्सिडी के कारण उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग होता है, जिससे लोगों और ग्रह के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • कोई महत्त्वपूर्ण निवेश नहीं: कृषि में सार्वजनिक निवेश, सामान्य तौर पर और साथ ही कृषि अनुसंधान और विस्तार जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में, पिछले दशक में लगातार स्थिर रहा, और कभी-कभी कम भी हो गया।
    • कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में पूँजी निवेश नहीं बढ़ा। 
    • कृषि के लिए आपूर्ति किए गए अधिकांश दीर्घकालिक बैंक ऋण को कॉरपोरेट्स और कृषि-व्यवसाय फर्मों को अल्पकालिक ऋण के रूप में भेज दिया गया।
  • क्षेत्र में/क्षेत्र से बाहर डेटा स्रोतों की कमी: कृषि उद्योग में विश्वसनीय डेटा की कमी का अर्थ है कि यह सटीक रूप से इंगित करना संभव नहीं है कि कहाँ हस्तक्षेप की आवश्यकता है (कृषि नीतियों या प्रक्रियाओं में)।

आगे की राह 

  • मौलिक परिवर्तनों की आवश्यकता: नीतियों को तैयार करने की प्रक्रिया सहित सकारात्मक मौलिक परिवर्तन समय की माँग है। 
    • शिक्षा और जागरूकता: छोटे किसानों को शिक्षित करना और स्मार्ट कृषि के तरीकों को अपनाने के लिए आवश्यक वित्तपोषण प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है।
    • बुनियादी ढाँचा: फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और खराब होने वाली वस्तुओं के लिए बाजार पहुँच बढ़ाने के लिए, कुशल कृषि-लॉजिस्टिक्स और कोल्ड चेन बुनियादी ढाँचे का विकास किया जाना चाहिए।
      • उदाहरण: भारत में “किसान रेल पहल” को परिवहन के अन्य साधनों में पहल द्वारा पूरक किया जा सकता है।
  • प्रौद्योगिकी तक पहुँच: यह छोटे पैमाने की खेती को कुशल, जलवायु-स्मार्ट और लाभदायक बना सकता है। ड्रोन आधारित सटीक कृषि को लागू करना अधिक कुशल और प्रभावी हो सकता है।
    • चूँकि छोटे किसान खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए उन्हें तकनीकी नवाचारों, प्रक्रियाओं और मशीनरी तक पहुँच प्राप्त करनी चाहिए तथा उनके उपयोग के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
      • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत के लघु किसान वे हैं, जिनके पास 2.0 हेक्टेयर से कम कृषि भूमि है।
    • आनुवंशिक संपादन तकनीकें जलवायु-अनुकूल, रोग-प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाली फसल किस्मों को पारंपरिक प्रजनन विधियों, जैसे कि CRISPR-Cas9 प्रणाली की तुलना में अधिक सटीकता और कुशलता से विकसित करने के लिए आवश्यक हैं।
  • एग्रोकेमिकल्स के इष्टतम उपयोग की आवश्यकता: एग्रोकेमिकल्स फसल के स्वास्थ्य में सुधार करते हैं, लेकिन उनका अत्यधिक उपयोग मृदा के पीएच मान में परिवर्तन करके पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। 
    • यदि कृषि रसायन खाद्य शृंखला में प्रवेश करते हैं, तो वे मनुष्यों और जानवरों में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा कर सकते हैं।
  • कृषि पारिस्थितिकी गहनता का उपयोग: इसमें पर्माकल्चर, कृषि वानिकी और पुनर्योजी कृषि जैसी प्रथाएँ शामिल हो सकती हैं।
    • उदाहरण: शून्य बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming-ZBNF) का अर्थ है बिना किसी उर्वरक और कीटनाशक या किसी अन्य बाहरी सामग्री का उपयोग किए फसल उगाना।
  • कृषि उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और ग्रामीण विकास को बढ़ाना: वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित की आवश्यकता है:
    • नई प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और कृषि अनुसंधान एवं विस्तार में सुधार करना
    • जल संसाधन और सिंचाई/जल निकासी प्रबंधन में सुधार करना
    • उच्च मूल्य वाली वस्तुओं के लिए कृषि विविधीकरण को सुगम बनाना
    • उच्च वृद्धि वाली वस्तुओं को बढ़ावा देना
    • बाजारों, कृषि ऋण और सार्वजनिक व्यय का विकास करना
  • अनुसंधान एवं विस्तार सेवाओं में निवेश: ऐसे निवेश मुद्रास्फीति के स्तर से नीचे रहे हैं।
    • वित्तपोषण में वास्तव में गिरावट आई है, जबकि कृषि अनुसंधान में निवेश किया गया प्रत्येक रुपया अन्य निवेशों की तुलना में 10 गुना से अधिक आर्थिक लाभ देता है।
  • संप्रभु दिवालियापन प्रक्रिया: केंद्र और राज्य सरकार दोनों स्तरों पर सार्वजनिक ऋण, दीर्घ अवधि के लिए योजना बनाने के लिए कम वित्तीय अनुकूल है और अंतहीन आगे की सब्सिडी की अनुमति नहीं देता है।
    • कई राज्य तकनीकी रूप से दिवालिया के रूप में वर्गीकृत होने की कतार में हैं और राज्यों के लिए एक संप्रभु दिवालियापन प्रक्रिया से बाहर करने की आवश्यकता है।
  • आदर्श कृषि नीति पर कार्य करना: यह राज्यों को सतत पद्धतियों को बढ़ावा देने, संसाधनों के कुशल उपयोग तथा बेहतर बुनियादी ढाँचे और बाजार पहुँच के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।
    • अशोक दलवई समिति की सिफारिशों के अनुसार, कृषि विपणन को समवर्ती सूची में रखा जाना चाहिए।
  • कृषि नवाचार क्लस्टर स्थापित करना: कृषि नवाचार क्लस्टर या कृषि पार्क विकसित करने की आवश्यकता है, जो अनुसंधान संस्थानों, कृषि-तकनीक स्टार्टअप, किसान सहकारी समितियों और संबंधित उद्योगों को एक सहयोगी पारिस्थितिकी तंत्र में एक साथ ला सकें।
    • सिंगापुर में ‘एग्री-फूड इनोवेशन पार्क’।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: कृषि विस्तार सेवाओं के लिए इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, निजी कंपनियों, कृषि-तकनीक स्टार्टअप और गैर-सरकारी संगठनों की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए किसानों को समय पर सलाह, प्रशिक्षण और सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

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