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कृषि वानिकी: भारत के लिए चुनौतियाँ और अवसर

Lokesh Pal June 10, 2025 02:59 125 0

संदर्भ

हाल ही में एक शोध पत्र ‘कृषि वानिकी: हरित संरक्षक’ (Agroforestry: The Green Guardian) प्रकाशित हुआ, जिसमें यह पता लगाया गया कि कृषि वानिकी को किसानों की आजीविका का समर्थन करने, कार्बन को पृथक करने और पूरे भारत में पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिए कैसे बढ़ाया जा सकता है।

कृषि वानिकी के बारे में

  • कृषि वानिकी एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें एक ही भूमि इकाई पर स्थानिक या कालक्रमानुसार फसलों और/या पशुधन के साथ वृक्षों एवं झाड़ियों का एकीकृत और उद्देश्यपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाता है।
  • यह कृषि, वानिकी और पारिस्थितिक स्थिरता को एकीकृत करता है, घटकों के बीच सहक्रियात्मक अंतःक्रियाओं को बढ़ावा देता है।

कृषि वानिकी प्रणालियों के प्रकार

  • कृषि-वन-संवर्द्धन: वृक्ष + फसलें (जैसे- मक्का या दालों के साथ सागौन की फसल उगाना)।
    • मृदा की उर्वरता और फसल की पैदावार को बढ़ाता है।
  • सिल्विपैस्टोरल (Silvipastoral): पेड़ + चारागाह/पशुधन (जैसे- चरने वाले जानवरों के साथ सुबाबुल जैसे चारे के पेड़)।
    • पशुधन उत्पादकता और मृदा संरक्षण का समर्थन करता है।
  • कृषि-वन-पशुपालन: पेड़ + फसलें + पशुधन (जैसे- फलों के पेड़, फसलें और बकरियाँ)।
    • भूमि उत्पादकता और विविधीकरण को अधिकतम करता है।
  • घरेलू उद्यान: पेड़ों, झाड़ियों और फसलों (जैसे- केरल में नारियल, केला और सब्जियाँ) के साथ घरों के पास बहु-स्तरीय प्रणालियाँ।
    • खाद्य सुरक्षा और आय सुनिश्चित करता है।
  • अवनलिका फसल (Alley Cropping): अवनलिका में उगाई जाने वाली फसलों के साथ पेड़ों की पंक्तियाँ (जैसे- बाजरा के साथ ल्यूकेना)।
    • मृदा की संरचना और पोषक चक्रण में सुधार करता है।
  • वायुरोधक/आश्रय बेल्ट: फसलों को हवा से बचाने के लिए लगाए गए पेड़ (जैसे- खेत की सीमाओं के साथ नीलगिरी)।
    • मृदा के कटाव और फसल की क्षति को कम करता है।
  • पेड़ों के साथ मधुमक्खी पालन: परागण और शहद उत्पादन के लिए पेड़ों के साथ एकीकृत मधुमक्खी पालन।
    • जैव विविधता और आय को बढ़ाता है।

भारत में कृषि वानिकी

  • पारंपरिक जड़ें: केरल में घरेलू उद्यान, नगालैंड में जाबो खेती और राजस्थान में खेती-वाड़ी जैसी स्वदेशी प्रणालियाँ भारत की कृषि वानिकी विरासत को दर्शाती हैं।
  • वर्तमान कवरेज: कृषि वानिकी का अभ्यास 28.42 मिलियन हेक्टेयर पर किया जाता है, जो भारत के भौगोलिक क्षेत्र (FSI, 2021) का 8.65% है।
    • वर्ष 2011-2021 के बीच वृक्ष आवरण में 490,400 हेक्टेयर की वृद्धि हुई।

भारत में कृषि वानिकी के सर्वोत्तम अभ्यास

  • पंजाब और हरियाणा में चिनार आधारित कृषि-वन-पालन: किसान कृषि चक्र (6-8 वर्ष) में गेहूँ, गन्ना और हल्दी जैसी फसलों के साथ तेजी से बढ़ने वाले चिनार के पेड़ों (पॉपुलस डेल्टोइड्स) को एकीकृत करते हैं।
    • कृषि वानिकी मृदा जैविक कार्बन (Soil Organic Carbon- SOC) को 0.62% (मोनोकल्चर) से बढ़ाकर 1.14% कर देती है और 10-15 tCO₂/ha/वर्ष (ICAR, 2020) को अलग कर देती है।
  • केरल और तमिलनाडु में नारियल आधारित होमगार्डन: बहु-स्तरीय प्रणालियाँ नारियल के पेड़ों को मसालों (काली मिर्च, जायफल), फलों (केला, आम) और सब्जियों के साथ जोड़ती हैं, जिससे वर्ष भर आय सुनिश्चित होती है।
    • जैव विविधता (जैसे- परागणकर्ता, पक्षी) और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाता है, जिसमें 80% गृहस्थी घरेलू पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करती हैं (ICAR, 2019)।
  • ओडिशा और पूर्वोत्तर भारत में बांस आधारित कृषि वानिकी: बांस (जैसे- बम्बूसा बम्बोस) को बाजरा, दालों या सब्जियों के साथ उगाया जाता है, जिससे आजीविका और भूमि पुनर्स्थापन में सहायता मिलती है।
    • राष्ट्रीय बांस मिशन रोपण और प्रसंस्करण इकाइयों के लिए सब्सिडी प्रदान करता है।
  • राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में सिल्वी-पशुपालन प्रणाली: पशुओं के चरने के लिए चारण वृक्षों (जैसे- प्रोसोपिस सिनेरिया, बबूल निलोटिका) को चारागाहों के साथ एकीकृत किया जाता है, जिससे सूखे के प्रति लचीलापन बढ़ता है।
    • मृदा की उर्वरता में सुधार होता है (SOC  में 0.5-0.8% की वृद्धि होती है) और सूखे के मौसम के दौरान चारा उपलब्ध होता है (ICAR, 2020)।
  • बुंदेलखंड में किसान-प्रबंधित प्राकृतिक पुनर्जनन (Farmer Managed Natural Regeneration- FMNR): किसान खराब हो चुकी कृषि भूमि पर देशज पेड़ों के तने [जैसे- एनोगेइसस पेंडुला (Anogeissus Pendula), ब्यूटिया मोनोस्पर्मा (Butea Monosperma)] को पुनर्जीवित करते हैं, जिसके लिए न्यूनतम इनपुट की आवश्यकता होती है।
    • कृषि वानिकी पर उप-मिशन (Sub-Mission on Agroforestry- SMAF) और ‘डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स’ जैसे गैर सरकारी संगठनों द्वारा समर्थित, 10,000 से अधिक किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
  • पश्चिमी घाट में कॉफी एवं सुपारी आधारित कृषि वानिकी: कॉफी और सुपारी के बागान छायादार पेड़ों (जैसे- सिल्वर ओक, कटहल) के नीचे उगाए जाते हैं, जो जैव विविधता और प्रीमियम बाजारों का समर्थन करते हैं।
    • 15-25 tCO₂/ha/वर्ष को एकत्रित करता है और मृदा की नमी को 20-30% तक बढ़ाता है (ICAR, 2021)।
  • नागालैंड में जाबो खेती: स्वदेशी जाबो प्रणाली, पेड़ों (जैसे- एल्डर, फलों के पेड़) और पहाड़ी क्षेत्रों में पशुधन को एकीकृत करती है, जिससे जल और मृदा का संरक्षण होता है।
    • 10-18 tCO₂/ha/वर्ष को एकत्रित करता है और स्थानीय खाद्य आवश्यकताओं का 90% बनाए रखता है (ICAR-NRC ऑन एग्रोफॉरेस्ट्री, 2022)।

भारत में कृषि वानिकी का महत्त्व एवं लाभ

  • आर्थिक महत्त्व
    • आय विविधीकरण: कई आय स्रोत प्रदान करता है: लकड़ी, फल, ईंधन की लकड़ी, चारा, NTFP (जैसे- बाँस, औषधीय पौधे)।
      • अकेले सागौन से 40-50 रुपये प्रति किलोग्राम की आय हो सकती है, जो समान परिस्थितियों में यूकेलिप्टस से 10 गुना अधिक है।
    • लकड़ी पर आत्मनिर्भरता: भारतीय वन अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) के अनुसार, भारत की 93 प्रतिशत से अधिक घरेलू लकड़ी ‘जंगलों के बाहर के पेड़ों’ से उत्पन्न होती है, जिनमें से अधिकांश कृषि वानिकी भूखंड हैं।
      • आयातित लकड़ी पर निर्भरता कम करता है; वर्ष 2023 में भारत का लकड़ी आयात बिल $2.7 बिलियन था।
    • संबद्ध उद्योगों के लिए सहायता: राष्ट्रीय स्तर पर 60% लुगदी की लकड़ी, 50% ईंधन की लकड़ी और 11% चारे की माँग की आपूर्ति करता है।
      • कृषि वानिकी का कच्चा माल कागज, फर्नीचर, निर्माण और पशुधन क्षेत्रों का समर्थन करता है।
  • पर्यावरणीय लाभ
    • कार्बन पृथक्करण: कृषि वानिकी प्रणालियाँ प्रजातियों और घनत्व के आधार पर 13.7-27.2 tCO₂/ha/वर्ष कार्बन पृथक्करण करती हैं।
      • बहुस्तरीय प्रणालियाँ वर्ष 2050 तक वैश्विक स्तर पर 23.94 GtCO₂e तक योगदान कर सकती हैं, जिससे उच्च लाभप्रदता प्राप्त हो सकती है।
    • उर्वरक पर निर्भरता कम होती है: कृषि वानिकी नाइट्रोजन-स्थिरीकरण वृक्षों को शामिल करके उर्वरक पर निर्भरता कम करती है, जो प्रति हेक्टेयर वार्षिक रूप से 50-100 किलोग्राम नाइट्रोजन की आपूर्ति कर सकते हैं।
    • मृदा स्वास्थ्य संवर्द्धन: पेड़ मृदा के कार्बनिक कार्बन (SOC) और संरचना में सुधार करते हैं।
      • उदाहरण के लिए, पंजाब में, पॉपलर कृषि वानिकी के तहत SOC 0.62% (मोनोकल्चर) से बढ़कर 1.14% हो गया।
    • जल प्रबंधन: पेड़ों की जड़ें जल के रिसाव को बढ़ाती हैं, अपवाह को कम करती हैं।
      • ‘जल्टोल मॉडल’ प्रजातियों के चयन को अनुकूलित करने के लिए फसल-पेड़ जल प्रतिस्पर्द्धा का मूल्यांकन करता है।
    • जैव विविधता संरक्षण: कृषि वानिकी परागणकों, प्राकृतिक कीट शिकारियों और बीज फैलाने वाली प्रजातियों को संरक्षित करती है।
      • कृषि परिदृश्य में आवास निरंतरता प्रदान करता है।
  • सामाजिक और आजीविका लाभ
    • ग्रामीण रोजगार और कौशल विकास: CAFRI-ICRAF प्रशिक्षण के माध्यम से 25,000 से अधिक किसानों को शामिल किया गया है।
      • 35% प्रशिक्षु महिलाएँ हैं, विशेष रूप से रेशम उत्पादन और घरेलू कृषि वानिकी में।
    • आजीविका लचीलापन: पेड़ सूखे, फसल विफलताओं और जलवायु तनावों के विरुद्ध प्राकृतिक बीमा के रूप में कार्य करते हैं।
      • संपूर्ण विश्व के रोजगार के माध्यम से मौसमी पलायन को कम करता है।
    • पोषण और खाद्य सुरक्षा: फल और चारा आधारित प्रणालियाँ आहार विविधता और पशुधन उत्पादकता को बढ़ाती हैं।
      • रसोई उद्यान, घरेलू और आदिवासी खाद्य प्रणालियों को मजबूत करता है।
  • राष्ट्रीय एवं वैश्विक प्रासंगिकता 
    • नीति एकीकरण: कृषि वानिकी भारत के NDC लक्ष्यों और कई SDG (2, 13, 15) का समर्थन करती है।
      • इसके मुख्य घटक:
        • राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (2014)
        • हरित भारत मिशन
        • भारत बांस मिशन, महात्मा गांधी नरेगा
    • अंतरराष्ट्रीय मॉडल: भारत के कृषि वानिकी मॉडल को ASEAN, नेपाल, रवांडा, इथियोपिया ने अपनाया है।
      • कृषि वानिकी पर आसियान दिशा-निर्देश (2018) भारत के NAP से प्रेरित हैं।

  • SDG 2:  शून्य भुखमरी (Zero Hunger)
  • SDG 13:  जलवायु कार्रवाई (Climate Action)
  • SDG 15:  स्थल पर जीवन (Life on Land)

भारत में कृषि वानिकी पर सरकारी नीतियाँ एवं पहल

  • राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (NAP), 2014: भारत कृषि वानिकी पर समर्पित नीति अपनाने वाला विश्व का पहला देश बन गया।
    • मुख्य विशेषताएँ
      • निजी और सामुदायिक भूमि पर एकीकृत कृषि-वानिकी प्रणालियों को बढ़ावा देना।
      • कृषि, पर्यावरण और ग्रामीण विकास मंत्रालयों के बीच सामंजस्य का आह्वान।
    • अनुशंसाएँ
      • वृक्षोन्मूलन और पारगमन विनियमों को सरल बनाना।
      • संस्थागत समर्थन स्थापित करना (जैसे- CAFRI)।
      • अनुसंधान-विस्तार संबंधों को प्रोत्साहित करना।
    • परिणाम: कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) की नींव रखी।
      • जलवायु-अनुकूल कृषि में भारत की भूमिका को मजबूत किया।
      • वैश्विक नीतियों (ASEAN, रवांडा, नेपाल, इथियोपिया) को प्रेरित किया।
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के तहत कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
    • यह मिशन वर्ष 2016 से परिचालन में है।
    • उद्देश्य
      • कृषि भूमि पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देना (विशेष रूप से लघु एवं सीमांत किसानों के लिए)।
      • पौध खरीद, रोपण, संरक्षण और विस्तार के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना।
      • MNREGA, RKVY, NABARD परियोजनाओं के साथ जुड़ना।
  • कृषि वानिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (All India Coordinated Research Project- AICRP)
    • वर्ष 1983 में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की स्थापना विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए उपयुक्त कृषि-वानिकी पद्धतियों का अध्ययन और विकास करने के लिए अनुसंधान केंद्रों के समन्वित नेटवर्क के रूप में की गई थी।
    • उद्देश्य: पूरे भारत में कृषि-वानिकी प्रणालियों की जाँच एवं सुधार करना।
  • GROW: कृषि वानिकी के साथ बंजर भूमि का हरितीकरण और पुनरुद्धार (GROW: Greening and Restoration of Wasteland with Agroforestry)
    • नीति आयोग द्वारा शुरू की गई GROW एक राष्ट्रीय पहल है, जिसका उद्देश्य कृषि वानिकी आधारित हस्तक्षेपों के माध्यम से भारत में क्षरित और कम उपयोग की गई भूमि को पुनःस्थापित करना है।
    • भूमि पुनर्स्थापन और जलवायु परिवर्तन शमन पर भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का समर्थन करने के लिए शुरू की गई।
    • भुवन (Bhuvan) पर होस्ट किया गया GROW पोर्टल, राज्य और जिला स्तर पर कृषि वानिकी उपयुक्तता डेटा तक अखिल भारतीय पहुँच प्रदान करता है, जिससे सतत् कृषि के लिए सूचित निर्णय लेने में सुविधा होती है।
    • मुख्य उद्देश्य
      • भारत की बॉन चैलेंज प्रतिबद्धता के अनुरूप, वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को पुनः स्थापित करना।
      • पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के अनुसार 2.5 से 3 बिलियन टन CO₂ समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक स्थापित करना।
    • प्रयुक्त प्रौद्योगिकी एवं उपकरण
      • रिमोट सेंसिंग और GIS: कृषि वानिकी के लिए भूमि की उपयुक्तता का मानचित्रण करने के लिए उपयोग किया जाता है।
      • कृषि वानिकी उपयुक्तता सूचकांक (Agroforestry Suitability Index- ASI)
        • विषयगत घटक (मृदा, वर्षा, भूमि उपयोग, आदि) का उपयोग करके विकसित एक वैज्ञानिक उपकरण।
        • राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर कृषि वानिकी कार्यान्वयन के लिए क्षेत्रों को प्राथमिकता देने में मदद करता है।
  • राज्य स्तरीय कृषि वानिकी नीतियाँ
    • ओडिशा कृषि वानिकी नीति (2025 प्रारूप): देशज लकड़ी, फल और बांस की प्रजातियों को बढ़ावा देने के लिए ₹2000 करोड़ के निवेश का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
      • आजीविका, कार्बन बाजार और जनजातीय भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करना।
    • तमिलनाडु कृषि वानिकी नीति (2025 प्रारूप): महोगनी, लाल चंदन और चंदन जैसी बाजार से जुड़ी उच्च मूल्य वाली लकड़ी पर जोर देती है।
      • शहरी कृषि वानिकी मॉडल और अनुसंधान-विस्तार लिंकेज को एकीकृत करता है।
    • कृषि वानिकी के माध्यम से पंजाब फसल विविधीकरण (Crop Diversification through Agroforestry- CDAF) योजना: प्रत्येक रोपित पेड़ पर ₹8-10 का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रदान करता है।
      • CAFRI के मार्गदर्शन में प्लाईवुड उद्योग के लिए चिनार और नीलगिरी के बागानों को बढ़ावा देता है।
  • कानूनी एवं नियामक सुधार
    • राष्ट्रीय पारगमन पास प्रणाली (National Transit Pass System- NTPS): केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा विकसित, जिसे ‘एक राष्ट्र-एक पास’ व्यवस्था के रूप में देखा गया है।
      • इसका उद्देश्य राज्यों में पेड़ों के पारगमन के लिए QR-कोडेड, डिजिटल परमिट जारी करना है।
      • सुधारों में प्रगति: केरल में TiGram ऐप परमिट को डिजिटाइज करने के लिए जियोटैगिंग और फोटो-सत्यापन का उपयोग करता है।
    • भारतीय वन एवं लकड़ी प्रमाणन योजना (Indian Forest and Wood Certification Scheme- IFWCS): केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई।
      • उद्देश्य: भारत में स्थायी वन प्रबंधन और कृषि वानिकी प्रथाओं को बढ़ावा देना।
    • प्रजाति छूट सूची: 20 से अधिक तेजी से बढ़ने वाली प्रजातियाँ (जैसे- बांस, नीम, सुबाबुल) अब अधिकांश राज्यों में पारगमन/कटाई नियमों से मुक्त हैं।
      • हालाँकि, सागौन, महोगनी, शीशम जैसी मूल्यवान देशी प्रजातियाँ अभी भी विनियमित हैं।

अन्य राष्ट्रीय मिशनों में कृषि वानिकी

उद्देश्य

कृषि वानिकी की प्रासंगिकता

हरित भारत मिशन 

(Green India Mission)

बंजर भूमि पर कृषि वानिकी के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना।
राष्ट्रीय बांस मिशन 

(National Bamboo Mission)

निजी एवं सामुदायिक भूमि पर बांस आधारित कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करता है।
मनरेगा 

(MGNREGA)

अभिसरण मोड के तहत वृक्षारोपण और संरक्षण गतिविधियों का समर्थन करता है।
प्रतिपूरक वनरोपण निधि अधिनियम (CAMPA) प्रतिपूरक वृक्षारोपण क्षेत्रों में कृषि वानिकी घटकों की अनुमति देता है।

अंतरराष्ट्रीय साझेदारियाँ एवं पहल

  • भारत में वनों के बाहर पेड़ (TOFI): कार्बन क्रेडिट और किसान सहायता के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) और संयुक्त राज्य अमेरिका अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) परियोजना।
  • FAO-ICRAF सहयोग: तकनीकी सहायता, क्षमता निर्माण और डिजिटल निगरानी उपकरणों का समर्थन करता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030): कृषि वानिकी को एक प्रमुख पुनर्स्थापन मार्ग के रूप में मान्यता दी गई।

कृषि वानिकी में सर्वोत्तम वैश्विक अभ्यास

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES)– कोस्टा रिका
    • सरकारें और निजी संस्थाएँ कृषि वानिकी के माध्यम से कार्बन पृथक्करण, जल शोधन और जैव विविधता संरक्षण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए किसानों को मुआवजा प्रदान करती हैं।
  • FAO समर्थित ‘फार्मर फील्ड स्कूल’ (FFS)– इंडोनेशिया
    • समुदाय आधारित FFS भागीदारी प्रदर्शनों और डिजिटल उपकरणों के माध्यम से प्रजातियों के चयन, मृदा प्रबंधन और बाजार तक पहुँच के बारे में किसानों को प्रशिक्षित करते हैं।
  • वृक्ष-वस्तु एकीकरण– ब्राजील (कृषि वानिकी कोको सिस्टम)
    • कोको को अमेजन में देशज पेड़ों (जैसे- महोगनी, फलों के पेड़) के साथ उगाया जाता है, जिससे आय में विविधता आती है और जैव विविधता बहाल होती है।
  • किसान-प्रबंधित प्राकृतिक पुनर्जनन (Farmer Managed Natural Regeneration- FMNR)– नाइजर
    • किसान प्राकृतिक रूप से पुनर्जीवित होने वाले पेड़ों के तने (जैसे- गुएरा सेनेगलेंसिस) की छंटाई करके खराब हो चुकी भूमि को पुनर्स्थापित करते हैं, जिसके लिए न्यूनतम बाह्य लागत की आवश्यकता होती है।

भारत में कृषि वानिकी की चुनौतियाँ

  • कानूनी एवं नियामक चुनौतियाँ
    • पेड़ों की कटाई और परिवहन के लिए सख्त नियम: अधिकतर राज्यों में निजी कृषि भूमि पर भी सागौन, शीशम और चंदन जैसे पेड़ों की कटाई या परिवहन के लिए परमिट की जरूरत होती है।
      • ये नियम सभी राज्यों में एक समान नहीं हैं, जिससे भ्रम और उत्पीड़न होता है।
    • न्यायिक बाधा: गोदावर्मन मामले (1996) ने ‘वन’ की व्यापक व्याख्या की, वन नियमों को निजी वृक्षारोपण तक बढ़ा दिया और कृषि वानिकी के विस्तार को प्रतिबंधित कर दिया।
    • क्षेत्राधिकारों का ओवरलैप होना: किसानों को कई विभागों (वन, राजस्व, कृषि) से मंजूरी की आवश्यकता हो सकती है, जिससे वृक्षरोपण हतोत्साहित होता है।
  • बाजार और आर्थिक बाधाएँ
    • MSP और औपचारिक बाजार पहुँच का अभाव: कृषि वानिकी उत्पाद (लकड़ी, बांस, औषधीय पौधे) MSP या नियमित खरीद के लिए पात्र नहीं हैं।
      • अधिकांश बिक्री असंगठित चैनलों के माध्यम से होती है, जिसमें खराब मूल्य प्राप्ति होती है।
    • अपर्याप्त ऋण और बीमा: कृषि वानिकी को कई बैंकों में प्राथमिकता क्षेत्र ऋण से बाहर रखा गया है।
      • वृक्ष फसलों के लंबे समय तक विकास प्रक्रिया के जोखिमों को शामिल करने के लिए कोई अनुकूलित बीमा उत्पाद नहीं है।
    • लकड़ी के आयात पर निर्भरता: घरेलू क्षमता के बावजूद, भारत कानूनी बाधाओं और खराब मूल्य श्रृंखला विकास के कारण वार्षिक रूप से 2.7 बिलियन डॉलर की लकड़ी का आयात करता है।
  • तकनीकी और विस्तार सीमाएँ
    • डेटा और शोध अंतराल: क्षेत्र-विशिष्ट, विज्ञान-समर्थित वृक्ष-फसल अनुकूलता मॉडल की कमी।
      • जल्टोल, एग्रोकनेक्ट या जैव विविधता-आधारित नियोजन प्रणालियों जैसे उपकरणों को कम अपनाया जाना।
    • कृषि वानिकी पर कम ध्यान: खाद्य फसलों की तुलना में कृषि वानिकी पर कम ध्यान दिया जाता है।
      • कृषि और वन विस्तार विभागों के बीच समन्वय खराब है।
  • संस्थागत और नीतिगत चुनौतियाँ
    • NAP 2014 का अधूरा क्रियान्वयन: बहुत कम राज्यों (जैसे- ओडिशा, तमिलनाडु) ने राज्य स्तरीय कृषि वानिकी नीतियों को अधिसूचित किया है।
      • कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) कार्यरत है, लेकिन कई क्षेत्रों में इसका कम उपयोग किया जा रहा है।
    • खंडित संस्थागत संरचना: कृषि वानिकी 6 मंत्रालयों (कृषि, पर्यावरण, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, जनजातीय मामले, वित्त) को जोड़ती है, लेकिन इसका समन्वय कमजोर है।
  • पर्यावरण और पारिस्थितिकी संबंधी चिंताएँ
    • विदेशी एकल कृषि का अत्यधिक उपयोग: यूकेलिप्टस और चिनार जैसी तेजी से बढ़ने वाली प्रजातियाँ व्यावसायिक मूल्य के कारण प्रभावी हैं, इसके नुकसान हैं:-
      • कम जैव विविधता
      • जल की अधिक खपत
      • मृदा की उर्वरता को कम कर सकती है।
    • फसल-वृक्ष प्रतिस्पर्द्धा: वैज्ञानिक नियोजन के बिना, गहरी जड़ों वाले पेड़, विशेष रूप से वर्षा आधारित क्षेत्रों में, जल और पोषक तत्वों के लिए फसलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक और लैंगिक बाधाएँ
    • संसाधनों तक महिलाओं की पहुँच: प्रशिक्षुओं में 35% महिलाएँ होने के बावजूद, कई कृषि वानिकी परियोजनाओं में वृक्षों के स्वामित्व के अधिकार और निर्णय लेने की भूमिका का अभाव है।
    • कम जागरूकता और जोखिम से बचना: कई किसान पेड़ लगाने को कानूनी रूप से जोखिम भरा, धीमी गति से मिलने वाले लाभ और वार्षिक कृषि चक्र के साथ असंगत मानते हैं।

भारत में कृषि वानिकी के लिए आगे की राह

  • कानूनी और विनियामक सरलीकरण: राष्ट्रीय ढाँचे के माध्यम से राज्यों में पेड़ों की कटाई और पारगमन नियमों में सामंजस्य स्थापित करना।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करने, नौकरशाही की देरी को कम करने और किसानों को उच्च मूल्य वाली देशज प्रजातियों के पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए TiGram जैसे डिजिटल उपकरणों के साथ राष्ट्रीय पारगमन पास प्रणाली (NTPS) के कार्यान्वयन को तेज करना।
  • बाजार सुधार और समर्थन तंत्र: प्रमुख कृषि वानिकी उत्पादों (जैसे- लकड़ी, बांस, NTFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसा आश्वासन या मूल्य स्थिरीकरण तंत्र प्रदान करना।
    • औपचारिक चैनलों के माध्यम से उपज को एकत्र करने, संसाधित करने और बाजार में बेचने के लिए किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को मजबूत बनाना।
  • ऋण और बीमा नवाचार: अनुकूलित, कम ब्याज वाले ऋण के साथ कृषि वानिकी को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के तहत वर्गीकृत करना।
    • विशेषतः लघु और सीमांत किसानों के लिए ऐसी बीमा योजनाएँ विकसित करना जो वृक्ष आधारित फसल के जोखिमों को शामिल करती हैं।
  • अनुसंधान, नवाचार और डिजिटल विस्तार: एग्रोकनेक्ट, जलटोल और रिमोट सेंसिंग जैसे डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके पेड़-फसल-पशुधन के बीच संबंधों पर क्षेत्र-विशिष्ट अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना।
    • कृषि विज्ञान केंद्रों (Krishi Vigyan Kendras- KVK) और विस्तार सेवाओं में कृषि वानिकी को मुख्यधारा में लाने के लिए ICAR, CAFRI, ICRAF और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
  • समावेशी और लैंगिक-संवेदनशील दृष्टिकोण: महिलाओं के लिए भूमि और वृक्ष स्वामित्व सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • महिलाओं के नेतृत्व वाली कृषि वानिकी सहकारी समितियों का निर्माण करना और लक्षित नीतियों और सब्सिडी के माध्यम से प्रशिक्षण, विपणन और स्वामित्व में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • देशज विविधता के माध्यम से पारिस्थितिक स्थिरता: एकल फसलों की तुलना में देशज प्रजातियों का उपयोग करके बहु-प्रजाति, जलवायु-लचीले कृषि वानिकी मॉडल को बढ़ावा देना।
    • मृदा स्वास्थ्य, जल संरक्षण और कार्बन पृथक्करण के साथ आय सृजन को संतुलित करने के लिए जैव विविधता-आधारित योजना को प्रोत्साहित करना।
  • संस्थागत समन्वय और राज्य नीतियों को मजबूत बनाना: सभी राज्यों को समर्पित नीतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (NAP) 2014 को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करना। 
    • नरेगा, नाबार्ड, ग्रीन इंडिया मिशन और आदिवासी विकास योजनाओं के तहत नियोजन और वित्त पोषण के समन्वय के लिए अंतर-मंत्रालयी कार्यबल का निर्माण करना।

निष्कर्ष 

भारत में कृषि वानिकी में किसानों की आजीविका को बढ़ाने, कार्बन को पृथक करने और पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने की अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन इसे बढ़ाने के लिए मजबूत नीतिगत सुधारों और समावेशी रणनीतियों के माध्यम से कानूनी, आर्थिक और तकनीकी बाधाओं को दूर करना होगा। राष्ट्रीय और वैश्विक स्थिरता के साथ सामंजस्य स्थापित कर, कृषि वानिकी जलवायु अनुकूल कृषि और ग्रामीण विकास को आगे बढ़ा सकती है।

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