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‘वायु प्रदूषण से जीवन के 3.4 वर्ष को खतरा

Lokesh Pal August 29, 2024 04:26 55 0

संदर्भ

शिकागो विश्वविद्यालय के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) के अनुसार, जारी वायु प्रदूषण के कारण भारतीयों की जीवन प्रत्याशा तीन वर्ष से अधिक कम हो सकती है।

वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) 

  • भारत में जीवन प्रत्याशा और वायु प्रदूषण
    • प्रदूषण के स्तर में कमी: भारत में पर्टिकुलर मैटर प्रदूषण के स्तर में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में 19.3% की कमी आई है। 
    • जीवन प्रत्याशा पर प्रभाव: इस कमी के बावजूद, यदि प्रदूषण का वर्तमान स्तर जारी रहता है, तो भारत में औसत व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा में अभी भी 3.4 वर्ष की कमी आ सकती है।
  • वैश्विक एवं क्षेत्रीय संदर्भ
    • बांग्लादेश कुल मिलाकर सार्वाधिक प्रदूषित देश है, लेकिन भारत को अपनी बड़ी आबादी के कारण वायु प्रदूषण से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है।
      • भारत का उत्तरी मैदान देश का सबसे प्रदूषित क्षेत्र है।
    • क्षेत्रीय जीवन प्रत्याशा प्रभाव
      • उत्तरी मैदानी इलाकों में, वर्ष 2022 में कण प्रदूषण में 17.2% की कमी के बावजूद, यदि प्रदूषण का स्तर जारी रहता है, तो निवासियों की जीवन प्रत्याशा में लगभग 5.4 वर्ष की कमी आ सकती है।

      • यदि प्रदूषण में कमी का मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो इस क्षेत्र के निवासियों की जीवन प्रत्याशा में 1.2 वर्ष की वृद्धि होने की संभावना है।
      • उत्तरी मैदानी इलाकों के अतिरिक्त, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्य भी भारत में प्रदूषण का उच्च प्रभाव है।

AQLI जीवन प्रत्याशा पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को किस प्रकार मापता है

  • प्रदूषण मापन: वायु प्रदूषण को मापने के लिए AQLI PM2.5 के स्तर को देखता है। PM2.5 फेफड़े और हृदय रोग जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित है। 
  • स्वच्छ वायु के लिए आधार रेखा: शोधकर्ता स्वच्छ वायु के लिए मानक के रूप में WHO के दिशा-निर्देशों का उपयोग करते हैं, जो तुलनात्मक बिंदु के रूप में कार्य करता है। 
  • एक्सपोजर में अंतर: AQLI यह गणना करता है कि स्वच्छ वायु मानक से PM2.5 का स्तर कितना भिन्न है। PM2.5 में 10 µg/m³ की वृद्धि से जीवन प्रत्याशा में गिरावट आ सकती है।
  • जीवन प्रत्याशा पर प्रभाव: भारत में, PM2.5 में प्रत्येक 10 µg/m³ की वृद्धि से जीवन प्रत्याशा लगभग 1.6 वर्ष कम हो सकती है।

वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के बारे में (AQLI)

  • AQLI मानव जीवन प्रत्याशा पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को मापता है। 
  • यह वायु प्रदूषण के स्तर, विशेष रूप से PM2.5 सांद्रता को एक मीट्रिक में परिवर्तित करता है, जो दर्शाता है कि प्रदूषण के कारण जीवन के कितने वर्षों में कमी या वृद्धि हई  हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए महत्त्व
    • वायु गुणवत्ता सूचकांक सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है।
    •  यह वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से की गई पहलों की प्रभावशीलता का आकलन करने में सहायक है।
  • सर्वाधिक सामान्य वायु प्रदूषक: कार्बन मोनोऑक्साइड, सीसा, भू-स्तरीय ओजोन, पर्टिकुलर मैटर, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड।

भारत में वायु गुणवत्ता के खराब होने के कारण

  • वाहन प्रदूषण: ट्रक, टेम्पो और डीजल वाहन वायु प्रदूषण में वृद्धि करते हैं, जो स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकियों के लाभों से कहीं अधिक है।
  • औद्योगिक दहन: पेट कोक, कोयला और बायोमास जैसे निम्न गुणवत्ता वाले ईंधन का उपयोग करने वाले विद्युत  संयंत्र और उद्योग हानिकारक प्रदूषक वायुमंडल में निष्काषित करते हैं।
  • अपशिष्ट दहन: उचित निपटान प्रणालियों के बिना लैंडफिल और अन्य क्षेत्रों में कचरे को जलाने से प्रदूषण बढ़ता है।
  • सड़क की धूल: सड़कों और निर्माण स्थलों से निकलने वाली धूल के कणों से प्रदूषण में वृद्धि होती है।
  • कृषि गतिविधियाँ: कीटनाशकों, पेस्टीसाइड्स और उर्वरकों के उपयोग से अमोनिया मुक्त होती है, जो एक प्रमुख वायु प्रदूषक है।
  • फसल अपशिष्ट को जलाना: पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फसल अपशिष्ट  को जलाने से दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में, विशेष रूप से सर्दियों के दौरान, वायु की गुणवत्ता काफी खराब हो जाती है।

पर्टिकुलर मैटर (PM) 

  • पर्टिकुलर मैटर वायु में विद्यमान धूल, कालिख और तरल बूँदों जैसे छोटे कणों से मिलकर बनता है। कुछ को आँखों से देखा जा सकता हैं, जबकि अन्य अत्यधिक सूक्ष्म होते हैं। 
  • स्रोत: पर्टिकुलर मैटर प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों स्रोतों से उत्पन्न होता है, या तो सीधे उत्सर्जित होता है अथवा वायुमंडलीय प्रतिक्रियाओं के माध्यम से उत्सर्जित होती है।
  • प्रकार
    • मोटे कण (PM10): 10 माइक्रोमीटर से कम आकार के कण; साँस के द्वारा शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और श्वसन तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं। 
    • महीन कण (PM2.5): 2.5 माइक्रोमीटर से कम आकार के कण; फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं और सर्वाधिक हानिकारक होते हैं।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव
    • अल्पकालिक: आँखों, नाक, गले और फेफड़ों में जलन उत्पन्न करता है, जिससे खाँसी और साँस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। 
    • दीर्घकालिक: क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी, फेफड़ों के कैंसर और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है।

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