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प्रमुख भारतीय शहरों का वायु गुणवत्ता मूल्यांकन

Lokesh Pal December 02, 2025 04:20 3 0

संदर्भ 

‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ द्वारा प्रकाशित प्रमुख भारतीय शहरों का वायु गुणवत्ता मूल्यांकन (वर्ष 2015–2025) शीर्षक वाली नई विश्लेषण रिपोर्ट में पाया गया है कि पिछले दशक में किसी भी प्रमुख भारतीय शहर में  सुरक्षित वायु गुणवत्ता स्तर नहीं है।

विश्लेषण के प्रमुख निष्कर्ष

  • सबसे प्रदूषित शहर:  दिल्ली ने विश्लेषित 11 प्रमुख शहरों में सबसे खराब वायु गुणवत्ता दर्ज की। इसका वार्षिक औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) वर्ष 2016 में 250 से अधिक रहा तथा वर्ष 2025 में भी 180 पर अस्वस्थ स्तर पर बना हुआ है, यद्यपि वर्ष 2019 के बाद कुछ सुधार दिखाई देता है।
    • लखनऊ एवं वाराणसी जैसे उत्तरी शहरों में AQI प्रारंभ से ही 200 से अधिक रहा, जिसमें सुधार तो हुआ, परंतु यह अब भी सुरक्षित सीमा से अधिक है।
  • क्षेत्रीय असमानता: चेन्नई, चंडीगढ़, विशाखापत्तनम और मुंबई में AQI अपेक्षाकृत कम (80–140) रहा, परंतु यह भी सुरक्षित मानकों से ऊपर है।
    • बंगलूरू में सबसे कम प्रदूषण स्तर (AQI 65–90) दर्ज किया गया, परंतु यह भी सुरक्षित श्रेणी (AQI 0–50) में नहीं आता।

भारत के उत्तरी शहर अधिक प्रदूषित क्यों हैं

  • अवस्थिति संबंधी कारक
    • स्थलरुद्ध बेसिन: उत्तरी शहर स्थलरुद्ध सिंधु-गंगा के मैदान में स्थित हैं, जो उत्तर में हिमालय से घिरा है, जिससे प्रदूषकों का प्रसार रुक जाता है।
    • वायु प्रवाह अवरोध: इसके कारण, प्रदूषक आसानी से प्रसारित नहीं हो पाते और लंबे समय तक शहरों में स्थिर रहते हैं।
  • शीतकालीन तापमान उत्क्रमण
    • शीतकालीन उत्क्रमण परत: दिसंबर–फरवरी के दौरान सतह के निकट स्थित ठंडी, भारी वायु ऊपर स्थित गर्म परत के नीचे बनी रहती है, जिससे एक वायुमंडलीय आवरण का निर्माण हो जाता है।
    • ऊर्ध्वाधर मिश्रण में कमी: प्रदूषक पृथ्वी की पतली सीमा परत के भीतर ही सीमित रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली, लखनऊ, वाराणसी जैसे शहरों में गंभीर रूप से प्रभाव देखा जा सकता है।
  • मौसमी हवा और वर्षा पैटर्न
    • ग्रीष्म और मानसून में राहत: मानसून के दौरान पश्चिमी पवनें और वर्षा पूरे भारत में प्रदूषकों को प्रसारित करने में मदद करती हैं।
    • शीत ऋतु में ठहराव: वर्षा की कमी, कम पवन की गति और शुष्क वायु मिलकर उत्तरी शहरों में प्रदूषण की घटनाओं को बढ़ा देते हैं।
  • शहरी संरचना एवं पवन प्रतिरोध
    • सतही घर्षण: उत्तरी महानगरों में सघन शहरी निर्माण कार्य धूल उत्पन्न करता है, जिससे वायु की गति धीमी हो जाती है और प्रदूषकों का प्रसार सीमित हो जाता है।
    • उच्च निर्माण घनत्व: ऊँची इमारतों के समूह तथा संकीर्ण शहरी घाटियाँ, कणिका पदार्थों को अवशोषित कर लेती हैं।
  • क्षेत्रीय प्रदूषण का अतिरिक्त भार
    • उत्तरी भारत में फसल अवशेष जलाने (पंजाब-हरियाणा क्षेत्र), NCR में औद्योगिक क्लस्टर, वाहनों की अधिक संख्या, निर्माण और खनन से उत्पन्न धूल के कारण प्रदूषण की अधिक समस्या है।

शीतकालीन तापमान उत्क्रमण

  • शीतकालीन व्युत्क्रमण एक प्रकार का तापमान व्युत्क्रमण है, जो सर्दियों के महीनों के दौरान होता है, जब ठंडी, सघन वायु सतह के पास स्थित रहती है और गर्म वायु इसके ऊपर रहती है, जो वायुमंडल के ऊर्ध्वाधर मिश्रण को रोकती है।
  • विशेषताएँ
    • अत्यंत स्थिर वायुमंडलीय दशाएँ, ऊर्ध्वाधर वायु संचलन लगभग नगण्य।
    • नीचे स्पष्ट ठंडी परत और ऊपर गर्म परत।
    • रात्रि और सुबह के समय सबसे अधिक तीव्रता होती है तथा प्रायः कई दिनों तक बनी रहती है।

  • प्रभाव
    • वायु प्रदूषण ट्रैपिंग: प्रदूषक (PM2.5, NOx, SO₂, ओजोन) सतह के निकट स्थित होते हैं।
      • सूक्ष्म कण पदार्थ लंबे समय तक निलंबित रहते हैं तथा व्युत्क्रमण के दौरान आसानी से प्रग्रहित हो जाते हैं, जिससे सर्दियों में प्रदूषण और अधिक बढ़ जाता है।
    • धूम्र-कोहरा निर्माण: शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में ‘धूम्र-कोहरा’ लगातार निर्मित होता है।
    • कोहरा एवं दृष्टि-क्षीणता: सघन कोहरा और कम दृश्यता।
    • स्वास्थ्य जोखिम: श्वसन एवं हृदय संबंधी रोगों में वृद्धि।

दक्षिणी और पश्चिमी भारतीय शहर बेहतर स्थिति में क्यों हैं?

  • सागरीय प्रभाव: समुद्री पवनें चेन्नई, मुंबई और विशाखापत्तनम जैसे तटीय शहरों में, प्रदूषण के प्रसार में मदद करती हैं।
  • अधिक पवन गति: तेज पवनों के कारण प्रदूषक स्थिर नहीं रह पाते और वायुमंडलीय स्थिरता कम हो जाती है।
  • कोई पर्वत अवरोध नहीं: इन क्षेत्रों में हिमालय जैसे अवरोध उपलब्ध नहीं हैं, जिससे वायु का प्रवाह अधिक मुक्त रहता है और प्रदूषक बाहर निकल जाते हैं।
  • मानसून प्रभाव: दक्षिण-पश्चिम मानसून की तीव्र पवनें और प्रचुर वर्षा वायुमंडल में उपस्थित प्रदूषकों के पुनर्वितरण के माध्यम से वायु को प्रभावी रूप से स्वच्छ करती हैं।

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