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अखिल भारतीय रचनात्मक अर्थव्यवस्था पहल (AIICE)

Lokesh Pal August 27, 2024 01:12 40 0

संदर्भ

हाल ही में ‘इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स’ (ICC) ने दिल्ली में अखिल भारतीय रचनात्मक अर्थव्यवस्था पहल (AIICE) का शुभारंभ किया।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2023 की ‘ग्लोबल इनोवेशन रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था 30 बिलियन डॉलर की है। 
    • एशियाई विकास बैंक के अनुसार, भारत के कुल कार्यबल का 8% रचनात्मक व्यवसायों में कार्यरत है।
  • अखिल भारतीय रचनात्मक अर्थव्यवस्था पहल (AIICE)
    • संबंधित संस्थान:  इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC)
    • उद्देश्य: 
      • भारत के रचनात्मक उद्योगों की विशाल क्षमता का दोहन करना।
      • स्थानीय कारीगरों और हथकरघा तथा हस्तशिल्प श्रमिकों के लिए समर्थन विकसित करना, साथ ही सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) पर भी ध्यान केंद्रित करना।

रचनात्मक अर्थव्यवस्था (Creative Economy)

  • रचनात्मक अर्थव्यवस्था आर्थिक गतिविधियों का एक समूह हैं, जो मूल कल्पनाओं पर आधारित होते हैं। इनमें ऐसे व्यवसाय शामिल हैं, जो रचनात्मकता पर केंद्रित हैं, जैसे:
    • डिजाइन, संगीत, प्रकाशन, वास्तुकला, फ़िल्म एवं वीडियो, शिल्प या क्राफ्ट, दृश्य कला (Visual arts), फैशन, टीवी एवं रेडियो, योग (Yoga), साहित्य, कंप्यूटर गेम, आदि।
  • रचनात्मक उद्योगों को सांस्कृतिक उद्योग (cultural industries) या रचनात्मक अर्थव्यवस्था (creative economy) के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसे ‘ऑरेंज इकोनॉमी’ (Orange Economy) भी कहा जाता है।
  • रचनात्मक अर्थव्यवस्था का महत्त्व
    • रचनात्मक उद्योग भारत में वाणिज्यिक और सांस्कृतिक मूल्य का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
    • वे वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 3.1% का योगदान करते हैं और अनुमान है कि वे भारत के रोजगार में लगभग 8% का योगदान करते हैं।
    • अनुमान बताते हैं कि भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था का कुल बाजार आकार लगभग 36.2 बिलियन डॉलर का है।
    • प्री-कोविड अवधि में, भारत के रचनात्मक उद्योग भारत की GDP में 2.5% का योगदान कर रहे थे।
    • भारत रचनात्मक वस्तुओं एवं सेवाओं में वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहित करने वाले शीर्ष 10 देशों में भी शामिल है और यह विश्व का सबसे बड़ा फिल्म निर्माता देश है (वर्ष 2022 की स्थिति के अनुसार)।
  • रचनात्मक उद्योग निम्नलिखित क्षेत्रों में सहायता कर सकते हैं:
    • रोजगार सृजन
    • आर्थिक विकास
    • पर्यटन
    • निर्यात
    • समग्र सामाजिक विकास
    • सतत मानव विकास

रचनात्मक उद्योग के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ

  • नीतिगत उपेक्षा: रचनात्मक उद्योग प्रायः राष्ट्रीय और राज्य की नीतियों के हाशिए पर बने रहे हैं, जहाँ उन पर प्राथमिकता से ध्यान नहीं दिया गया है। संबंधित मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय के अभाव से समस्या और भी गंभीर हो गई है।
  • अवसंरचना की कमी: परिवहन, डिजिटल नेटवर्क और बुनियादी सुविधाओं सहित अवसंरचना की अपर्याप्तता रचनात्मक वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण और कामगारों एवं उपभोक्ताओं के लिए गतिशीलता को बाधित करती है।
  • डेटा की कमी: भारत के रचनात्मक उद्योगों के आकार, प्रभाव और योगदान के संबंध में विश्वसनीय डेटा की कमी इस क्षेत्र के विकास, नीति-निर्माण तथा मान्यता में बाधा उत्पन्न करती है।
  • वित्तपोषण संबंधी संघर्ष: सीमित, अनियमित सार्वजनिक वित्तपोषण और जोखिम-प्रतिकूल निजी निवेश के साथ, रचनात्मक उद्योगों के लिए वित्तीय सहायता सुरक्षित करना चुनौतीपूर्ण है। ‘क्राउडफंडिंग’ और उद्यम पूँजी जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र का कम उपयोग किया गया है।
  • बौद्धिक संपदा संबंधी भेद्यता: रचनात्मक क्षेत्र को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों में पाइरेसी, जालसाजी और IP अधिकारों के उल्लंघन के खतरों का सामना करना पड़ता है। पुराने पड़ चुके कानूनी ढाँचे और जागरूकता की कमी रचनात्मक अधिकारों की सुरक्षा एवं कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं।

रचनात्मक अर्थव्यवस्था के संवर्द्धन के लिए कुछ प्रमुख पहलें

  • राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (NFDC) सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है, जो भारतीय फिल्म उद्योग के एकीकृत एवं कुशल विकास हेतु योजना निर्माण, प्रोत्साहन एवं आयोजन पर लक्षित है।
  • राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (NID) वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है, जो डिजाइन के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा, अनुसंधान, परामर्श और आउटरीच सेवाएँ प्रदान करता है।
  • विज्ञान की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु योजना (Scheme for Promotion of Culture of Science- SpoCS) संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत क्रियान्वित एक योजना है, जिसका उद्देश्य विज्ञान उत्सव, प्रदर्शनी, प्रतिस्पर्द्धा, कार्यशाला और कैंप आयोजन जैसी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से आम लोगों, विशेषकर युवाओं, के बीच विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना है।
  • स्पिक मैके (SPIC MACAY) एक स्वैच्छिक आंदोलन है, जो देश भर के स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में औपचारिक शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने तथा भारत की समृद्ध एवं विविध सांस्कृतिक विरासत के बारे में जागरूकता का प्रसार करने के उद्देश्य से शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य, लोक कला, शिल्प, योग, ध्यान व सिनेमा संबंधी कार्यक्रमों का आयोजन करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग (IC) योजना सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत क्रियान्वित एक योजना है जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों, व्यापार मेलों, क्रेता-विक्रेता बैठकों और अन्य प्रमोशनल आयोजनों में भाग लेने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर MSMEs की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना है।
  • यूनेस्को का ‘क्रिएटिव सिटी नेटवर्क’ एक कार्यक्रम है, जो शहरों को सांस्कृतिक गतिविधियों के सृजन, उत्पादन और वितरण को सुदृढ़ करने के लिए सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के साथ-साथ नागरिक समाज को संलग्न करने के रूप में सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी करने तथा भागीदारियाँ विकसित करने में मदद देता है।
    • इस कार्यक्रम के तहत मुंबई को ‘क्रिएटिव सिटी ऑफ फिल्म्स’ और हैदराबाद को ‘क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी’ के रूप में नामित किया गया।
    • इससे पूर्व, चेन्नई एवं वाराणसी जैसे भारतीय शहरों को यूनेस्को के ‘सिटी ऑफ म्यूजिक’ जबकि जयपुर को ‘सिटी ऑफ क्राफ्ट्स एंड फोक आर्ट्स’ में शामिल किया गया।

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