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POSH का दायरा

Lokesh Pal December 15, 2025 03:38 23 0

संदर्भ 

सर्वोच्च न्यायालय ने POSH अधिनियम के दायरे को विस्तृत करते हुए महिलाओं के लिए कार्यस्थल सुरक्षा उपायों को अत्यधिक मजबूत किया है।

पृष्ठभूमि

  • शिकायत दायर करने का विवरण: वर्ष 2004 बैच की एक भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी ने आरोप लगाया कि उनके कार्यस्थल पर एक भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी ने उनका यौन उत्पीड़न किया।
    • इसके पश्चात, पीड़िता के विभाग में अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत गठित आंतरिक शिकायत समिति के समक्ष कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम के तहत शिकायत प्रस्तुत की गई।
  • क्षेत्राधिकार को लेकर चुनौती: आरोपी अधिकारी ने यह दावा करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष आंतरिक शिकायत समिति के क्षेत्राधिकार को चुनौती दी कि केवल उसके अपने विभाग की समिति ही मामले की जाँच कर सकती है।
    • केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण तथा दिल्ली उच्च न्यायालय दोनों ने उसकी याचिका खारिज कर दी।
    • इसके बाद, मामले की अपील सर्वोच्च न्यायालय में की गई।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रमुख विशेषताएँ

  • डॉ. सोहेल मलिक बनाम भारत संघ मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि एक विभाग में गठित आंतरिक शिकायत समिति, किसी अन्य विभाग के कर्मचारी के विरुद्ध भी यौन उत्पीड़न की शिकायत की सुनवाई कर सकती है।
  • धारा 11 की व्याख्या: अधिनियम की धारा 11 में प्रयुक्त वाक्यांश जहाँ प्रतिवादी कर्मचारी हो’ को प्रक्रियात्मक माना गया, न कि क्षेत्राधिकार से संबंधित।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जहाँ’ शब्द का तात्पर्य भौतिक स्थान से नहीं, बल्कि स्थिति या परिस्थिति से है। इसका अर्थ यह है कि समिति को प्रतिवादी पर लागू सेवा नियमों के अनुसार जाँच करनी होगी, अथवा जहाँ ऐसे नियम न हों, वहाँ निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा।
  • अधिनियम के उद्देश्य से संबंधित तर्क: यदि क्षेत्राधिकार को केवल आरोपी के विभाग तक सीमित किया जाए, तो इससे पीड़ित महिलाओं के लिए प्रक्रियात्मक और मानसिक बाधाएँ उत्पन्न होंगी।
    • इस तरह की व्याख्या से POSH अधिनियम का सामाजिक कल्याण उद्देश्य विफल हो जाएगा।
  • आंतरिक शिकायत समिति की भूमिका: समिति की भूमिका केवल तथ्यात्मक जाँच करने तक सीमित है।
  • धारा 13 के अंतर्गत नियोक्ता का दायित्व: जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद, प्रतिवादी का नियोक्ता, अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत आवश्यक कार्रवाई करने के लिए बाध्य है।
    • किसी अन्य विभाग में गठित समिति के निष्कर्ष भी बाध्यकारी बने रहते हैं।
  • अपील का अधिकार: यदि नियोक्ता समिति के निष्कर्षों की अनदेखी करता है, तो पीड़ित महिला को कानूनी अपील का अधिकार प्राप्त है।

कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 के बारे में

  • पृष्ठभूमि: यह अधिनियम सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1997 में दिए गए विशाखा दिशा-निर्देशों को वैधानिक आधार प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया।
  • उद्देश्य
    • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम करना।
    • शिकायत निवारण की प्रभावी व्यवस्था प्रदान करना।
    • महिलाओं के लिए सुरक्षित, सम्मानजनक और गैर-शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण सुनिश्चित करना।
  • दायरा: यह अधिनियम संगठित या असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाली सभी महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनकी आयु या रोजगार की स्थिति कुछ भी हो।
  • अधिनियम की प्रमुख धाराएँ
    • धारा 2(O): ‘कार्यस्थल’ की व्यापक परिभाषा प्रदान करती है।
      • इसमें वह प्रत्येक स्थान सम्मिलित है, जहाँ कर्मचारी अपने रोजगार के दौरान या उससे संबंधित किसी कारण से जाता है, जिसमें नियोक्ता द्वारा उपलब्ध कराया गया परिवहन भी शामिल है।
    • धारा 11: यह प्रावधान करती है कि जहाँ प्रतिवादी कर्मचारी हो, वहाँ जाँच प्रतिवादी पर लागू सेवा नियमों के अनुसार की जाएगी, या नियम न होने की स्थिति में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार।
    • धारा 13: आंतरिक या स्थानीय शिकायत समिति की रिपोर्ट पर की जाने वाली कार्रवाई से संबंधित है।
  • संस्थागत व्यवस्था
    • आंतरिक शिकायत समिति: दस या अधिक कर्मचारियों वाले संगठनों में इसका गठन अनिवार्य है। इसकी अध्यक्षता एक महिला द्वारा की जाती है तथा इसमें एक बाहरी सदस्य (गैर-सरकारी संगठन या कानूनी विशेषज्ञ) शामिल होता है।
    • स्थानीय शिकायत समिति: प्रत्येक राज्य पर यह दायित्व है कि वह प्रत्येक जिले में स्थानीय समितियों का गठन करे। यह उन मामलों की शिकायतें सुनती है जहाँ संगठन में दस से कम कर्मचारी हों या शिकायत स्वयं नियोक्ता के विरुद्ध हो।

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