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सरकार की कृषि और खाद्य नीतियों का विश्लेषण (An Analysis of Government’s Farm and Food Policies)

Samsul Ansari January 03, 2024 06:25 213 0

संदर्भ 

वर्ष 2014 से भारत सरकार ने कृषि विकास और किसान कल्याण पर जोर देते हुए, उत्पादक समर्थक नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया। हालाँकि, हाल के वर्षों में एक नीतिगत बदलाव आया है जिसने उपभोक्ता समर्थक उपायों के दृष्टिकोण को बदल दिया है।

संबंधित तथ्य

  • पिछले वर्षो में, भारत में अधिशेष कृषि उत्पादन हुआ, जिससे कमोडिटी की कीमतें कम हो गईं एवं चावल, गेहूँ तथा चीनी का सरकारी भंडार रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया। 
  • इसे संबोधित करने के लिए निर्यात को बढ़ावा देने, कृषि वस्तुओं के वैकल्पिक उपयोग को बढ़ावा देने और आयात निर्भरता को कम करने की पहल की गई। 
  • हालाँकि, भारत सरकार ने उत्पादकों पर उपभोक्ता हितों को प्राथमिकता देकर बदलती आर्थिक गतिशीलता के साथ संतुलन बिठाया।
    • वर्ष 2022 में रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद , बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति ने खाद्य उत्पादन में बदलाव के लिए मजबूर किया। 
    • कोविड-प्रेरित लॉकडाउन के दौरान, भारत सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मासिक खाद्यान्न आवंटन दोगुना कर दिया।

भारत में सरकारी नीतियों और मुद्रास्फीति के बीच संबंध

  • मुद्रास्फीति: यह एक विशेष अर्थव्यवस्था के भीतर वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में सामान्य वृद्धि है, जिसमें उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कम हो जाती है और नकदी होल्डिंग्स (Cash Holdings) का मूल्य कम हो जाता है।
  • वर्ष 2014 से 2019 तक भारत सरकार की नीतियों को कम मुद्रास्फीति द्वारा चिह्नित किया गया था । 
    • इस अवधि के दौरान, सामान्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) प्रति वर्ष औसतन 4.3% की दर से बढ़ा। 
    • इन वर्षो में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index- CFPI) 3.3% था।
  • केंद्र सरकार की नीतियों के अनुसार, वर्ष  2019- 2023 तक, सामान्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक  मुद्रास्फीति औसत 5.8% तथा उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 6.4% देखी गई।

खाद्य अधिशेष एवं कम कीमतों के दौरान नीतिगत प्रतिक्रिया

  • अधिशेष उत्पादन एवं कम कीमतें: भारत ने कृषि उत्पादन में एक महत्त्वपूर्ण अधिशेष का अनुभव किया, जिससे अतिरिक्त आपूर्ति हुई। इस अधिशेष ने, अपर्याप्त भंडारण और वितरण बुनियादी ढाँचे के साथ मिलकर, विभिन्न कृषि वस्तुओं की कम कीमतों में योगदान दिया।

मुद्रास्फीति के बारे में

  • मुद्रास्फीति माप : भारत में, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) मुद्रास्फीति को मापता है।
    • भारत में, मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मुख्य सूचकांकों अर्थात् थोक मूल्य सूचकांक (WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)  द्वारा मापा जाता है , जो क्रमशः थोक और खुदरा स्तर के मूल्य परिवर्तन को मापते हैं।
    • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI): यह भोजन, मेडिकल केयर, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि जैसी वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिन्हें भारतीय उपभोक्ता उपयोग के लिए खरीदते हैं।
    • थोक मूल्य सूचकांक (WPI): बड़े व्यवसायों द्वारा थोक तरीके से बेची जाने वाली वस्तुएँ या सेवाओं जिन्हें छोटे व्यवसायों द्वारा फुटकर तरीके से बेचा जाता है उनकी गणना WPI द्वारा की जाती है।
  • मुद्रास्फीति को जन्म देने वाले कुछ कारण हैं : माँग में वृद्धि, आपूर्ति में कमी, माँग-आपूर्ति में अंतर, धन का अतिरिक्त संचलन, इनपुट लागत में वृद्धि, मुद्रा का अवमूल्यन, मजदूरी में वृद्धि आदि।

    • इस अवधि में न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices- MSP) पर चावल और गेहूँ की रिकॉर्ड खरीद देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप 1 जुलाई, 2021 को सरकारी गोदामों में उनका स्टॉक 109.5 मिलियन टन (MT) तक पहुँच गया। 
  • निर्यात में वृद्धि: अधिशेष उत्पादन ने कृषि निर्यात में वृद्धि का अवसर पैदा किया क्योंकि कम कीमतों ने भारतीय कृषि उत्पादों को वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप निर्यात में वृद्धि हुई।
    • भारत सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भी पहल की। उदाहरण के लिए चीनी मिलों को अपने अतिरिक्त स्टॉक को समाप्त करने में सक्षम बनाने के लिए, निर्यात पर 10,448 रुपये प्रति टन तक का प्रोत्साहन दिया गया और भारत ने वर्ष 2019-20, वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 सीजन के दौरान क्रमशः 5.9 मिलियन टन, 7.2 मिलियन टन और 11 मिलियन टन की अभूतपूर्व मात्रा में निर्यात किया।
  • वैकल्पिक उपयोग को बढ़ावा देना: जैव ईंधन, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals) जैसे उद्योगों ने विविधीकरण को बढ़ावा देते हुए अधिशेष फसलों का लाभ उठाना शुरू कर दिया। सरकारी पहलों ने गैर-पारंपरिक उद्देश्यों के लिए कृषि उपज के उपयोग में नवाचार को भी प्रोत्साहित किया।
    • उदाहरण के लिए मिलों को अपने गन्ने से कम चीनी और पेट्रोल के साथ मिश्रण के लिए अधिक एथेनॉल का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। सरकार ने तेल कंपनियों पर अंतिम अवशिष्ट (C-heavy) गुड़ के मुकाबले सीधे गन्ने के रस या मध्यवर्ती चरण (B-heavy) गुड़ से बने एथेनॉल के लिए अधिक भुगतान करने के लिए दबाव डालकर इसे प्रोत्साहित किया।
  • आयात निर्भरता को कम करना : कमोडिटी की कम कीमतों ने भारतीय कृषि उत्पादों को आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्द्धी बना दिया, जिससे बाहरी स्रोतों पर निर्भरता कम हो गई, जिससे आत्मनिर्भरता में वृद्धि की संभावना प्रबल हो गई है।
    • इसके अलावा, सरकार ने कम आय से जूझ रहे घरेलू उत्पादकों को बचाने के लिए दालों और खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया।
    • उदाहरण के लिए 30 जून, 2017 से पहले, दालों के आयात पर शून्य शुल्क लगता था और वर्ष 2017 के अंत तक, मसूर और चना पर 30% शुल्क, पीली/सफेद मटर पर 50% शुल्क था साथ ही अरहर की मात्रा पर 0.2 मिलियन टन और उड़द/मूंग (काला/हरा चना) पर 0.3 मिलियन टन का वार्षिक आयात प्रतिबंध भी लगाया गया था।
    • खाद्य तेलों में, सितंबर 2016 और जून 2018 के बीच आयातित कच्चे सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल पर मूल सीमा शुल्क 12.5% से बढ़ाकर 35% और कच्चे पाम तेल पर 7.5% से बढ़ाकर 44% कर दिया गया था।
  • वर्ष 2020 में कृषि सुधार कानूनों का परिचय: इस अवधि के अधिशेष के कारण सरकार ने जून 2020 में अपने तीन कृषि सुधार कानूनों को लागू किया, जिसने कृषि उपज के व्यापार को आसान या मुक्त कर दिया। 
    • उदाहरण के लिए निजी कृषि-व्यवसाय सरकार-विनियमित बाजारों को दरकिनार कर सकते हैं और सीधे किसानों से खरीद सकते हैं, जिसमें आवाजाही में कोई बाधा नहीं होगी या वे कितनी उपज खरीद सकते हैं और स्टॉक कर सकते हैं इसकी कोई सीमा नहीं है।

नीतिगत गतिशीलता में बदलाव के कारण

  • मुद्रास्फीति के रुझान में बदलाव: खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई, विशेष रूप से फरवरी 2022 में यूक्रेन-रूस संघर्ष के बाद, उत्पादकों के मुकाबले उपभोक्ताओं के हितों को विशेषाधिकार देने के लिए सरकार के नीतिगत दृष्टिकोण में बदलाव को बढ़ावा मिला।
  • कोविड-प्रेरित लॉकडाउन: कोविड-प्रेरित आर्थिक झटके के बीच, कृषि अधिशेष ने सरकार को अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खाद्यान्न के मासिक आवंटन को दोगुना कर 10 किलोग्राम प्रति व्यक्ति कर दिया, जिसमें अतिरिक्त 5 किलोग्राम बिना किसी मूल्य के दिया गया। 
  • आयात का उदारीकरण: नवंबर 2020 के आसपास, कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर सीमा शुल्क को चरणों में घटाकर शून्य कर दिया गया, रिफाइंड तेलों पर भी इसे घटाकर 12.5% ​​कर दिया गया। 
    • दालों में, अरहर और उड़द के आयात पर मात्रा प्रतिबंध हटा दिया गया और मसूर सहित उनके आयात को शुल्क मुक्त कर दिया गया है । 
  • निर्यात प्रतिबंध: भारत से कृषि निर्यात को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा, जिसमें निर्यात शुल्क, न्यूनतम निर्यात मूल्य और यहाँ तक ​​कि पूर्ण प्रतिबंध भी शामिल हैं।  
    • उदाहरण के लिए , सरकार ने क्रमशः मई 2022 और मई 2023 से गेहूँ और चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। चावल में केवल बासमती और उबले हुए गैर-बासमती शिपमेंट की अनुमति है, जो क्रमशः $950/टन न्यूनतम निर्यात मूल्य शर्त और 20% शुल्क के अधीन है।
  • आवश्यक उपयोग को प्राथमिकता देना: हाल ही में, चीनी मिलों को एथेनॉल बनाने के लिए गन्ने के रस और B-गुड़ का उपयोग करने की अनुमति केवल उस सीमा तक दी गई है, जिससे वर्ष 2023-24 सीजन के दौरान 1.7 मिलियन टन चीनी का स्थानांतरण हो जाता है, जो वर्ष 2022-23 में 4.5 मिलियन टन से कम है। इस प्रकार, सरकार यह सुनिश्चित करने को प्राथमिकता दे रही है कि ईंधन (एथेनॉल) की तुलना में अधिक गन्ना चीनी के लिए उपयोग किया जाए।

बदलती नीतिगत गतिशीलता और वर्तमान चुनौतियाँ

  • आपूर्ति की स्थिति: 1 दिसंबर, 2023 तक सार्वजनिक गोदामों में केवल 62.8 मिलियन टन चावल और गेहूँ होने से आपूर्ति की स्थिति अधिशेष से कम हो गई, जबकि चीनी मिलों ने 2022-23 सीजन को 5.7 मिलियन टन के छह साल के निचले स्टॉक के साथ समाप्त किया।
  • मुद्रास्फीति एक चुनौती बनी हुई है: नवंबर 2023 के लिए नवीनतम वार्षिक खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति संख्या 8.7% थी, जो अनाज के लिए 10.3% और दालों के लिए 20.2% से भी अधिक है । इस प्रकार, उपरोक्त प्रतिबंध बने रहने की संभावना है।
  • कृषि-निर्यात का बाधित होना: प्रतिबंधात्मक निर्यात नीति भारत के कृषि निर्यात को दोगुना करने के लक्ष्य को बाधित करती है, जो सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य है। इसके अलावा, इन प्रतिबंधों का विस्तार गेहूँ निर्यात प्रतिबंध, प्याज पर 40% का निर्यात शुल्क आदि तक हो गया है।

आगे की राह

  • मुद्रास्फीति का शमन: भारतीय कृषि उस स्तर पर पहुँच गई है, जहाँ घरेलू कीमतों को बनाए रखने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए अधिशेष उत्पादन और निर्यात का प्रबंधन आवश्यक है।
    • इसके अलावा, मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के उपायों को लागू करें, जैसे आपूर्ति शृंखला की बाधाओं को विवेकपूर्ण ढंग से संबोधित करना और मौद्रिक साधनों का उपयोग करना।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: वैश्विक बाजार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता, बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण आदि पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक दीर्घकालिक रणनीति है। भारत सरकार ने इस दिशा में कदम उठाए हैं, लेकिन तत्काल लाभ के लिए APEDA जैसी एजेंसियों द्वारा बाजारों एवं उत्पादों को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
  • डिजिटल युग में कृषि और खाद्य नीति पर पुनर्विचार: निर्णायक डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ संभावित रूप से खाद्य मूल्य शृंखलाओं में उत्पादकों, उपभोक्ताओं एवं पर्यावरण के लिए  महत्त्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।
    • इसके अलावा, आपूर्ति शृंखलाओं को प्रबंधित करने और स्रोत का पता लगाने के लिए डिजिटल तकनीक लागू की जानी चाहिए।
  • उपभोक्ता कल्याण कार्यक्रमों को पुनर्भाषित करना: उत्पादकता और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली सब्सिडी को पुनर्भाषित किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए- प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefits Transfer- DBT) कार्यक्रमों को संसाधन-उपयोग दक्षता में सुधार, लागत को किफायती बनाने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए जोड़ा जाना चाहिए।

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