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भारत में एनीमिया

Lokesh Pal January 20, 2025 05:24 15 0

संदर्भ

हालिया शोध ने इस पारंपरिक समझ को चुनौती दी है कि भारत में एनीमिया का प्राथमिक कारण आयरन की कमी है तथा इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए विविध नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता का सुझाव दिया है।

एनीमिया

  • एनीमिया एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है, जिसमें रक्त में लाल रुधिर कोशिकाओं (Red Blood Cells-RBC) या हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य से कम होता है, जिससे शरीर के ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है।
  • एनीमिया के मुख्य लक्षण: थकान, कमजोरी, पीली त्वचा और साँस लेने में समस्या।
  • एनीमिया के प्रकार
    • लौह-अल्पताजन्य एनीमिया (Iron-Deficiency Anaemia): हीमोग्लोबिन के उत्पादन के लिए आवश्यक आयरन के अपर्याप्त स्तर के कारण होता है।
      • आमतौर पर यह खराब आहार, रक्त की कमी या अवशोषण संबंधी समस्याओं के कारण होता है।
    • विटामिन-12 की कमी से होने वाला एनीमिया: विटामिन B12 या फोलेट की कमी के कारण होता है, जो RBC उत्पादन के लिए आवश्यक है।
    • अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anaemia): तब होता है, जब अस्थि मज्जा पर्याप्त RBC का उत्पादन करने में विफल हो जाती है।
    • सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia): एक आनुवंशिक स्थिति, जिसमें RBC असामान्य रूप से आकार की होती हैं, जिससे अवरोध एवं ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है।
    • हेमोलिटिक एनीमिया (Hemolytic Anaemia): RBC के समय से पहले नष्ट होने के परिणामस्वरूप होता है।
    • थैलेसीमिया (Thalassemia): एक आनुवंशिक विकार, जो असामान्य हीमोग्लोबिन उत्पादन का कारण बनता है।
    • क्रोनिक डिजीज का एनीमिया (Anaemia of Chronic Disease): कैंसर या किडनी रोग जैसी दीर्घकालिक बीमारियों से जुड़ा हुआ है।

भारत में एनीमिया की स्थिति

  • प्रचलित रुझान 
    • प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया का प्रसार 53.2% (NFHS-4) से बढ़कर 57.2% (NFHS-5) हो गया।
    • बच्चों में, इसी अवधि के दौरान प्रसार 58.6% से बढ़कर 67.1% हो गया।
    • हाल के अध्ययन के निष्कर्ष NFHS डेटा की तुलना में एनीमिया के प्रसार को कम दर्शाते हैं:
      • महिलाएँ (15-49 वर्ष): 41.1% (अध्ययन) बनाम 60.8% (NFHS-5)।
      • किशोर लड़कियाँ (15-19 वर्ष): 44.3% बनाम 62.6%।
      • किशोर लड़के: 24.3% बनाम 31.8%।
  • आयरन की कमी: एनीमिया के केवल 9% मामले आयरन की कमी के कारण थे, जबकि 22% अज्ञात कारणों से थे। 
  • भौगोलिक भिन्नता: असम जैसे राज्यों में एनीमिया का प्रचलन अधिक (50%-60%) है, लेकिन आयरन की कमी कम (18%) है।

एनीमिया वृद्धि में योगदान देने वाले कारक

  • पोषण संबंधी कमियाँ: विटामिन B12, फोलेट और अन्य एरिथ्रोपोएटिक पोषक तत्त्वों की कमी।
    • एरिथ्रोपोएटिक पोषक तत्त्व आवश्यक पोषक तत्त्व हैं, जो हीमोग्लोबिन संश्लेषण और एरिथ्रोपोएसिस में सहायता करके लाल रुधिर कोशिका उत्पादन का समर्थन करते हैं।
  • पर्यावरणीय कारक: वायु प्रदूषण और अस्वच्छ वातावरण एनीमिया के प्रसार को बढ़ाते हैं।
  • रक्त संग्रह विधियाँ: केशिका रक्त के नमूने (NFHS में उपयोग किए जाते हैं) शरीर के तरल पदार्थों के साथ संदूषण के कारण एनीमिया के प्रसार को बढ़ा-चढ़ाकर बता सकते हैं।
  • आहार पैटर्न: अपर्याप्त आहार विविधता पोषक तत्त्वों के अवशोषण को सीमित करती है।

6x6x6 रणनीति AMB के अंतर्गत

  • छह लाभार्थी समूह:
    • बच्चे (6-59 महीने)
    • बच्चे (5-10 वर्ष)
    • किशोरावस्था (10-19 वर्ष)
    • गर्भवती महिलाएँ
    • स्तनपान कराने वाली माताएँ
    • प्रजनन आयु वर्ग की महिलाएँ (20-49 वर्ष)।
  • हस्तक्षेप वाले छह कारक 
    • रोगनिरोधी आयरन और फोलिक एसिड अनुपूरण
    • अर्द्ध-वार्षिक कृमि मुक्ति
    • व्यवहार परिवर्तन संचार अभियान
    • एनीमिया के लिए परीक्षण और उपचार
    • आयरन-रिच खाद्य पदार्थों का प्रावधान
    • एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों का समाधान।
  • छह संस्थागत तंत्र
    • विभागों का अभिसरण
    • आपूर्ति शृंखला प्रबंधन
    • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का प्रशिक्षण
    • निगरानी और मूल्यांकन रूपरेखाएँ
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान
    • समुदाय की सहभागिता और अपनाना।

एनीमिया से निपटने के लिए सरकारी पहल

  • एनीमिया मुक्त भारत (Anaemia Mukt Bharat-AMB) रणनीति (2018): 6x6x6 रणनीति के माध्यम से छह आयु समूहों में एनीमिया की व्यापकता को कम करना, जिसमें छह हस्तक्षेप, छह लाभार्थी समूह और छह संस्थागत तंत्र शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (National Deworming Day-NDD) (2015): बच्चों और किशोरों (1-19 वर्ष) के लिए द्विवार्षिक सामूहिक कृमि मुक्ति अभियान, जिससे कृमि संक्रमण को कम किया जा सके, जो एनीमिया में योगदान देता है।
  • राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (2023): जनजातीय क्षेत्रों में स्क्रीनिंग, निदान और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्ष 2047 तक सिकल सेल रोग को सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त करना।
  • IFA सप्लीमेंट्स के लिए आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करना: स्वास्थ्य केंद्रों में आयरन और फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स की निर्बाध उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • राष्ट्रीय उत्कृष्टता और एनीमिया नियंत्रण पर उन्नत अनुसंधान केंद्र (National Centre of Excellence and Advanced Research on Anaemia Control- NCEAR-A) (2018): स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए क्षमता निर्माण को बढ़ाना और प्रशिक्षण टूलकिट विकसित करना।

एनीमिया से निपटने में चुनौतियाँ

  • एकल-केंद्रित हस्तक्षेप: मुख्य रूप से लौह पूरकता पर केंद्रित नीतियाँ बहुक्रियात्मक एनीमिया को संबोधित करने के लिए अपर्याप्त हैं।
  • आहार की सुलभता: उच्च गुणवत्ता वाले, पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ, आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के लिए अप्राप्य बने हुए हैं।
  • नीति कार्यान्वयन: पोषण-केंद्रित हस्तक्षेपों और व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों के बीच एकीकरण का अभाव।
  • डेटा संग्रह: कम सटीक रक्त संग्रह विधियों (केशिका नमूने) पर निर्भरता व्यापकता अनुमानों को प्रभावित करती है।

आगे की राह

  • विविध पोषण हस्तक्षेप: पोषक तत्त्वों के अवशोषण में सुधार के लिए फलों, दूध और सब्जियों के साथ संतुलित आहार को बढ़ावा देना।
  • बेहतर डेटा संग्रह: सटीक एनीमिया अनुमान के लिए WHO द्वारा अनुशंसित शिरापरक रक्त के नमूने में संक्रमण।
  • उन्नत सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल: आहार विविधता और व्यवहार परिवर्तन संचार पर ध्यान केंद्रित करते हुए एनीमिया मुक्त भारत का विस्तार करना।
  • आर्थिक पहुँच: व्यापक जनसंख्या पहुँच सुनिश्चित करने के लिए पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी देना।
  • समग्र हस्तक्षेप: आयरन सप्लीमेंटेशन को अन्य उपायों जैसेकि- डीवर्मिंग, स्टेपल फोर्टिफिकेशन और ‘पॉइंट-ऑफ-केयर’ उपचार के साथ मिश्रित करना।

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