हाल ही में कंबोडियन सरकार ने अंगकोरवाट मंदिर (Angkor Wat Temple) परिसर के आसपास रहने वाले लोगों को बेदखल कर दिया।
अंगकोरवाट मंदिर (Angkor Wat Temple) के बारे में
इतिहास: इसका निर्माण 12वीं शताब्दी मेंराजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने करवाया था।
सूर्यवर्मन द्वितीय खमेर (Cambodian) साम्राज्य के राजा थे, जो धर्म सुधारक एवं मंदिर निर्माण में योगदान देने संबंधी कार्यों हेतु प्रसिद्ध थे।
स्थान: अंगकोर वाट, अंगकोर में मंदिर परिसर (कंबोडिया)।
धार्मिक स्थल: यह पहले विष्णु को समर्पित एकहिंदू मंदिर था लेकिन बाद में इसे बौद्ध मंदिर में बदल दिया गया।
इसकी दीवारों पर जटिल नक्काशी हिंदू एवं बौद्ध मिथकों की कहानियाँ बताती है।
यह मंदिर एक सक्रिय धार्मिक स्थल बना हुआ है, जो बौद्ध भिक्षुओं एवं भक्तों को आकर्षित करता है, ये श्रद्धालु प्रार्थना तथा ध्यान में संलग्न होने के लिए यहाँ आते हैं।
दुनिया का आठवाँ अजूबा: कंबोडिया के मध्य में स्थित अंगकोरवाट, इटली के पोम्पेई (Pompeii) को पछाड़कर दुनिया का आठवाँ अजूबा बन गया है।
ऐतिहासिक महत्त्व
बौद्ध धर्म: मंदिर में नक्काशी, जो बौद्ध एवं हिंदू पौराणिक कथाओं दोनों के दृश्य दिखाती है, हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करती है।
अन्य संरचनाएँ: अंगकोरवाट एक बड़े परिसर का एक घटक है, जिसमें अंगकोर थॉम (Angkor Thom) में मूर्तिकला से सजाया गया बेयोन मंदिर (Bayon Temple) भी शामिल है।
पुरातात्त्विक महत्त्व: 400 वर्ग किलोमीटर में फैले इस स्थल में नौवीं से पंद्रहवीं शताब्दी तक कई खमेर साम्राज्य (Khmer Empire) की राजधानियों के खंडहर मौजूद हैं, जो इसे दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थलों में से एक बनाता है।
महत्वपूर्ण विशेषताएँ
वास्तुकला: अंगकोरवाट का बलुआ पत्थर ब्लॉक निर्माण (15 फुट ऊँची दीवार) और सुरक्षा प्रदान करने वाली एक चौड़ी खाई मंदिर की वास्तुकला की भव्यता के उदाहरण हैं।
नक्काशी: मंदिर की दीवारें कई प्रकार की नक्काशियों से सुसज्जित हैं जो हिंदू एवं बौद्ध देवताओं की कहानियों को दर्शाती हैं।
प्रतीकवाद: मंदिर परिसर के केंद्र में कमल के आकार की पाँच मीनारें माउंट मेरु का प्रतीक हैं, जो बौद्ध एवं हिंदू पौराणिक कथाओं में देवताओं का पौराणिक घर है। इन टॉवरों की समरूपता तथा सटीकता अद्भुत है।
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