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भारत में पशु कल्याण ढाँचा

Lokesh Pal January 02, 2025 03:21 50 0

संदर्भ

हाल ही में विश्व चिड़ियाघर एवं एक्वेरियम एसोसिएशन (World Association of Zoos and Aquariums-WAZA) ने दिल्ली चिड़ियाघर (राष्ट्रीय प्राणी उद्यान) को उसके एकमात्र अफ्रीकी हाथी (African Elephant) की अपर्याप्त आवासीय स्थिति के बारे में चिंताओं के कारण सदस्यता से निलंबित कर दिया है। 

संबंधित तथ्य

  • इस निलंबन से चिड़ियाघर को WAZA के प्रमुख लाभों तक पहुँच से वंचित कर दिया गया है, जिसमें इसके वार्षिक सम्मेलनों में भागीदारी और यात्रा अनुदान तक पहुँच शामिल है।
  • कारण
    • दिल्ली चिड़ियाघर की सदस्यता को निलंबित करने का WAZA का निर्णय मुख्य रूप से उन खराब परिस्थितियों के कारण लिया गया है, जिनमें शंकर नाम के अफ्रीकी हाथी को रखा जाता है।
    • हाथी को एकांत कारावास में रखना और उसे जंजीरों में बाँधना WAZA के नैतिक मानकों का उल्लंघन करता है, जो जानवरों के साथ सम्मानजनक एवं गरिमापूर्ण व्यवहार पर जोर देते हैं।
    • ये दिशा-निर्देश विशेषकर हाथियों जैसे सामाजिक जानवरों के लिए, उचित देखभाल और सामाजिक संपर्क के महत्त्व पर जोर देते हैं।
  • सदस्यता पुनः प्राप्त करना
    • अपनी सदस्यता पुनः प्राप्त करने के लिए, दिल्ली चिड़ियाघर को 7 अप्रैल, 2025 तक एक छह महीने की कार्ययोजना प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें शंकर हाथी को अधिक उपयुक्त सुविधा में स्थानांतरित करने या उसकी वर्तमान आवासीय स्थिति में महत्त्वपूर्ण सुधार संबंधी रूपरेखा होगी।

पशु कल्याण

  • पशु कल्याण से तात्पर्य, उस शारीरिक और भावनात्मक स्थिति से है, जो उस वातावरण से प्रभावित होती है, जिसमें पशु रहता है और उसेक संबंध में क्या मानवीय दृष्टिकोण, व्यवहार तथा उपलब्ध संसाधन कार्य करते हैं?
  • पाँच स्वतंत्रताएँ मानव नियंत्रण के तहत पशु कल्याण के पाँच पहलुओं को रेखांकित करती हैं।
    • इन्हें पशुधन पालन पर वर्ष 1965 की यू.के. सरकार की रिपोर्ट के जवाब में तैयार किया गया था।
    • इन्हें ‘यू.के. फार्म एनिमल वेलफेयर काउंसिल’ द्वारा वर्ष 1979 में एक प्रेस वक्तव्य में औपचारिक रूप दिया गया था।

भारतीय कानूनी प्रणाली में पशु संरक्षण के आयाम

  • पहला प्रकार कृषि को बेहतर बनाने के लिए पशुओं की सुरक्षा पर केंद्रित है, जिससे कृषि पशुओं पर जोर देते हुए पशुपालन का विकास होता है। राज्य के पास कानून/दंड संहिता के माध्यम से इन जानवरों की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है।
    • उदाहरण के रूप: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-48 या पशु संरक्षण आदि जैसे कानूनों का अधिनियमन।
  • पशु संरक्षण का दूसरा प्रकार वर्ष 1940 या अधिक मान्य रूप से 1970 के दशक के दौरान अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों या संधियों के तहत पर्यावरणीय उपयोगिता पर आधारित गैर-मानव प्राणियों पर संरक्षण/अवलोकन का हिस्सा है।
    • उदाहरण के रूप: भारतीय संविधान में अनुच्छेद-48A, 51A (g) और अनुसूची VII की समवर्ती सूची में 17B का प्रवेश।
  • तीसरे प्रकार का पशु संरक्षण पूरी तरह से कल्याणकारी नीतिशास्त्र और नैतिकता पर आधारित है और यह पशु अधिकारों का सबसे पुराना रूप है। यहाँ जानवरों की सुरक्षा केवल उनके कल्याण के लिए की जाती है न कि मानव संसाधन या पर्यावरणीय जैव विविधता के लिए।
    • उदाहरण के रूप: भारतीय संविधान की अनुसूची VII की समवर्ती सूची में प्रविष्टि 17

कुछ देशों में पशु कल्याण कानून

  • ऑस्ट्रिया: पशु और मानव जीवन को समान महत्त्व देता है।
  • स्विट्जरलैंड: पशु गरिमा की रक्षा करने वाला पहला देश।
  • यू.के.: पशुओं के प्रति क्रूरता और लापरवाही के लिए कठोर दंड।
  • जर्मनी: पशुओं को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करता है।
  • नीदरलैंड: पशुओं पर प्रयोग और सौंदर्य प्रसाधनों के परीक्षण के लिए वानरों के उपयोग पर प्रतिबंध।
  • डेनमार्क: पशुओं के जीवित वध पर प्रतिबंध।

पशु कल्याण के दृष्टिकोण

  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण
    • पशु कल्याण वैज्ञानिक पशु की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति और उसके पर्यावरण दोनों की जाँच करके पशु कल्याण का मूल्यांकन करने के लिए वैज्ञानिक, साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं।
  • पशु अधिकार संबंधी दृष्टिकोण
    • यह एक दार्शनिक और कानूनी रुख का समर्थन करता है, जिसमें तर्क दिया गया है कि जानवरों का मनुष्यों के लिए उनकी उपयोगिता से स्वतंत्र आंतरिक मूल्य है।
    • यह न केवल बेहतर रहने की स्थिति और बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति का समर्थन करता है, बल्कि भोजन, कपड़े, अनुसंधान या मनोरंजन सहित जानवरों के किसी भी मानवीय उपयोग के विरुद्ध भी है।
    • संक्षेप में, पशु कल्याण वैज्ञानिक अवलोकन पर आधारित है, जबकि पशु अधिकार नैतिक सिद्धांतों और कानूनी तर्कों में निहित है।

न्यायिक निर्णय (Judicial Verdicts)

  • ‘एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया’ बनाम ए. नागराजा: ‘एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया बनाम ए. नागराजा’ में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जानवरों को गरिमा, आंतरिक मूल्य और अनावश्यक दर्द एवं पीड़ा के बिना जीने का अधिकार है।
  • ‘एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया’ बनाम ‘पीपल फॉर एलिमिनेशन ऑफ स्ट्रे ट्रबल्स’ एवं अन्य (2009): इस मामले में केरल में आवारा कुत्तों को मारने के मुद्दे को संबोधित किया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि आवारा कुत्तों को मारना अमानवीय है और उनकी आबादी को नियंत्रित करने में अप्रभावी है।
  • गौरी मौलेखी बनाम भारत संघ और अन्य (2014): इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने जानवरों पर परीक्षण किए गए कॉस्मेटिक उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • ‘पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया’ बनाम ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ (2016): इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने पूरे भारत में बैलगाड़ी दौड़ जैसे प्रदर्शनों में बैलों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-48A: यह राज्य को ‘पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा वनों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करने’ का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद-51A(g): यह प्रत्येक नागरिक को ‘वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने’ का आदेश देता है।
  • अनुच्छेद-21: न्यायालयों द्वारा जीवन के अधिकार की व्याख्या स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को शामिल करने के लिए की गई है, जो अप्रत्यक्ष रूप से पशु कल्याण का समर्थन करता है।
  • अनुच्छेद-243G: संविधान में प्रावधान है कि पंचायत (स्थानीय स्वशासन) निम्नलिखित पर कानून बना सकती है: ‘पशुपालन, डेयरी और मुर्गीपालन और मत्स्यपालन’।

कानूनी प्रावधान

  • पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (PCA Act)
    • यह भारत में पशु कल्याण के लिए प्राथमिक कानून है।
    • यह ‘पशु’ शब्द को परिभाषित करता है, क्रूरता के विभिन्न रूपों को रेखांकित करता है और दंड का प्रावधान करता है।
    • यह भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) जैसे संगठनों की स्थापना की भी अनुमति देता है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम मुख्य रूप से जंगली जानवरों और उनके आवासों के संरक्षण, शिकार, व्यापार और अवैध शिकार को विनियमित करने पर केंद्रित है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC): IPC की कई धाराएँ, जैसे धारा 428 और धारा 429, जानवरों को मारने, अपंग करने या घायल करने से संबंधित अपराधों से निपटती हैं।

पशु कल्याण में चुनौतियाँ

  • पशु प्रयोग: पशु प्रयोग एक विवादास्पद मुद्दा है, जहाँ प्रयोगशालाओं में मानव के अलावा अन्य जानवरों का उपयोग विभिन्न जैविक समस्याओं के लिए परीक्षण, प्रयोग और अनुसंधान करने के लिए किया जाता है।
  • पशु लड़ाई: कुत्तों की लड़ाई, मुर्गों की लड़ाई और बैलों की लड़ाई जैसी पशु लड़ाइयाँ भारत में अवैध है, लेकिन विशेष तौर पर ग्रामीण इलाकों में यह अभी भी प्रचलित हैं।
    • इन क्रूर प्रथाओं में दर्शकों के मनोरंजन और वित्तीय लाभ के लिए जानवरों को लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः जानवर गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं या उनकी मृत्यु हो जाती है।

  • आनुवंशिक बदलाव: उच्च उत्पादकता या विशिष्ट लक्षणों के लिए बनाए गए ट्रांसजेनिक जानवर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं।
    • भारत में, यद्यपि आनुवंशिक संशोधन से संबंधित पशु क्रूरता से निपटने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है, फिर भी पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत नियम, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उनके उत्पादों को नियंत्रित करते हैं।
  • सर्कस: प्रायः मनोरंजन के तौर पर प्रचारित किए जाने वाले सर्कस का एक अंधेरा पक्ष भी है, जहाँ जानवरों को पर्दे के पीछे दुर्व्यवहार और यातनाएँ सहनी पड़ती हैं।
  • पशुओं का अवैध व्यापार/तस्करी: पशुओं का अवैध व्यापार और तस्करी वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के लिए महत्त्वपूर्ण खतरा उत्पन्न करते हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: अवैध वन्यजीव व्यापार के माध्यम से जंगली जानवरों के परिवहन जैसी खराब पशु कल्याण प्रथाएँ, बीमारियों के प्रसार में योगदान कर सकती हैं, जो जानवरों और मनुष्यों दोनों को प्रभावित कर सकती हैं।

पशु कल्याण में प्रौद्योगिकी की भूमिका

  • निगरानी और निरीक्षण
    • पहनने योग्य सेंसर (Wearable Sensors) 
      • GPS ट्रैकर, एक्सेलेरोमीटर और फिजियोलॉजिकल सेंसर वाले स्मार्ट कॉलर और ईयर टैग जैसे उपकरण किसी जानवर के स्थान, गतिविधि के स्तर, हृदय गति, शरीर के तापमान और अन्य महत्त्वपूर्ण संकेतों की निगरानी कर सकते हैं।
      • इससे बीमारी, चोट या परेशानी का जल्दी पता लगाया जा सकता है।
      • उदाहरण: डेयरी किसान, गायों के व्यवहार में होने वाले बदलावों का पता लगाने के लिए गतिविधि ट्रैकर का उपयोग करते हैं, जो एस्ट्रस (गर्मी) या लंगड़ापन जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकता है।
    • कैमरा सिस्टम
      • वीडियो निगरानी और थर्मल इमेजिंग से खेतों से लेकर चिड़ियाघरों तक विभिन्न वातावरणों में जानवरों के व्यवहार, क्रियाओं और सामाजिक संपर्कों की निगरानी की जा सकती है।
      • उदाहरण: पोल्ट्री फार्मों में कैमरे, भण्डारण घनत्व और पक्षियों के व्यवहार की निगरानी कर सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पक्षियों के पास पर्याप्त स्थान है और उनमें पंखों को चोंच मारने जैसे तनाव के लक्षण नहीं दिखा रहे हैं।

आगे की राह

  • जन जागरूकता और शिक्षा में वृद्धि: विद्यालय और विश्वविद्यालय पशु कल्याण पाठ्यक्रम को शामिल कर सकते हैं, जिससे भावी पीढ़ियों में सहानुभूति और करुणा को बढ़ावा मिलेगा।
  • मानव-पशु संबंधों के लिए नैतिक प्रथाओं को बढ़ावा देना: जिम्मेदार पालतू स्वामित्व को बढ़ावा देकर, जानवरों को खरीदने के बजाय गोद लेने को प्रोत्साहित करके और जानवरों की लड़ाई जैसी प्रथाओं को हतोत्साहित करके, समाज मनुष्यों तथा जानवरों के बीच अधिक सामंजस्यपूर्ण संबंध विकसित कर सकता है।
  • विधायी ढाँचे को मजबूत करना: पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 जैसे पुराने कानूनों में संशोधन करना। इसके अलावा, पशु क्रूरता अपराधों के लिए कठोर दंड की शुरुआत।
  • सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना: गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी बढ़ाकर, पशु कल्याण में वृद्धि की जा सकती है।

निष्कर्ष

  • पशु कल्याण की दिशा में भारत एक ऐसे बिंदु पर खड़ा है, जहाँ परंपरा एवं प्रगति एक-दूसरे से मिलती है। सभी जीवित प्राणियों के आंतरिक मूल्य को पहचानना और उनके साथ मानवीय व्यवहार करने का प्रयास करना एक राष्ट्र के चरित्र को परिभाषित करता है।
  • जैसा कि भारतीय दार्शनिक महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, ‘किसी राष्ट्र की महानता और उसकी नैतिक प्रगति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके पशुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।’

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