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अंटार्कटिक ओजोन छिद्र

Lokesh Pal December 06, 2025 04:33 5 0

संदर्भ

अंटार्कटिक ओजोन छिद्र वर्ष 2025 में सामान्य अवधि से पहले भर गया, जिससे लगातार दूसरे वर्ष ओजोन छिद्र के संकुचित होने का अनुभव किया गया। इस परिघटना से ओजोन परत में दीर्घकालिक सुधार की संभावनाएँ बढ़ गई हैं।

संबंधित तथ्य 

  • यूरोपीय पृथ्वी अवलोकन एजेंसी कोपरनिकस के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2025 में ओजोन छिद्र पिछले पाँच वर्षों की तुलना में सबसे छोटा रहा, और ओजोन की सांद्रता अधिक बनी रही, जो ओजोन परत में त्वरित सुधार का स्पष्ट संकेत देती है।

ओजोन छिद्र/ओजोन परत का क्षरण क्या है?

  • ओजोन छिद्र पृथ्वी के समताप मंडल में वह क्षेत्र है, जहाँ ओजोन की परत अत्यधिक क्षीण हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप ओजोन अणुओं की सांद्रता काफी कम हो जाती है।
  • मौसमी घटना: ओजोन परत में क्षय की प्रक्रिया मुख्यतः दक्षिणी गोलार्द्ध के वसंत के महीनों (अगस्त से दिसंबर) के दौरान होती है, हालाँकि वैश्विक वायुमंडलीय कारक भी इस प्रक्रिया की तीव्रता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • अवस्थिति: ओजोन के क्षय के कारण एक ऐसे क्षेत्र का निर्माण होता है, जहाँ ओजोन का सांद्रता स्तर अत्यंत कम (220 डॉबसन इकाई या उससे कम) होता है, जो आमतौर पर अंटार्कटिका के ऊपर दर्ज किया जाता है।
    • सतह से वायुमंडल के शीर्ष तक वायु के एक स्तंभ में ओजोन की मात्रा को डॉबसन यूनिट (DU) में व्यक्त किया जाता है।

ओजोन की परत

  • ओजोन की परत, पृथ्वी की सतह से 15 से 35 किलोमीटर ऊपर समताप मंडल में उच्च ओजोन सांद्रता वाला क्षेत्र है।
  • भूमिका: ओजोन परत एक अदृश्य सुरक्षात्मक ढाल के रूप में कार्य करती है और हमें सूर्य से आने वाले हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों (UV-B और UV-C) से बचाती है तथा पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है।

ओजोन परत क्षरण के कारण

  • ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODS) का उत्सर्जन
    • ओजोन का विनाश मुख्यतः मानव निर्मित रसायनों जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हैलोन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, मिथाइल क्लोरोफॉर्म और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) द्वारा होता है।
    • ये पदार्थ समताप मंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु का उत्सर्जन करते हैं, जो ओजोन अणुओं को विघटित करते हैं।
  •  दीर्घ वायुमंडलीय अवधि: ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ODS) वायुमंडल में दशकों तक स्थायी रहते हैं, और धीमी परिवहन प्रक्रियाओं के माध्यम से ऊपर की ओर संचरित होकर समताप मंडल तक पहुँचते हैं।
  • ध्रुवीय समताप मंडलीय मेघ (Polar Stratospheric Clouds): अंटार्कटिका के ऊपर अत्यधिक ठंडे तापमान के कारण ध्रुवीय समताप मंडलीय मेघ का निर्माण होता है, जो रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए सतह के रूप में कार्य करते हैं। इससे क्लोरीन का उत्सर्जन होता है।
  • ज्वालामुखी विस्फोट: वृहद ज्वालामुखी विस्फोट समताप मंडल में सूक्ष्म कणों  (समताप मंडलीय एरोसोल) का उत्सर्जन करते हैं, जिससे रासायनिक अभिक्रियाओं में वृद्धि होती है, जो ओजोन के विघटन को तीव्र करती हैं।

ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (Ozone-Depleting Substances- ODS)

  • क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC): शीतलन प्रणालियों में उनकी प्रभावशीलता के कारण, CFC का 1980 के दशक तक व्यापक रूप से प्रशीतक (रेफ्रिजरेंट) के रूप में उपयोग किया जाता था। इनका उपयोग प्लास्टिक फोम एवं एयर कंडीशनर के उत्पादन में किया जाता है।
  • हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC): ये रसायन ओजोन को नष्ट करते हैं, लेकिन CFC की तुलना में कम हानिकारक होते हैं।
  • हाइड्रोब्रोमोफ्लोरोकार्बन (HBFC): इन पदार्थों में ब्रोमीन होता है और ये ओजोन क्षरण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • हैलोन: अग्नि-शमन क्षमता के कारण हैलोन गैसों का उपयोग मुख्य रूप से अग्निशामक यंत्रों में किया जाता था।
  • मेथिल ब्रोमाइड: इस रसायन का उपयोग धूमक (Fumigant) के रूप में जहरीली गैसों के माध्यम से कीट नियंत्रण के लिए किया जाता था।
  • कार्बन टेट्राक्लोराइड: इस यौगिक का उपयोग आमतौर पर अग्निशामक यंत्रों और प्रशीतन प्रणालियों के अतिरिक्त सफाई अभिकर्मक एवं धूमक (Fumigant) के रूप में भी किया जाता था।
  • मिथाइल क्लोरोफॉर्म: यह पदार्थ कार्बनिक यौगिकों के लिए विलायक के रूप में कार्य करता था और धात्विक पुर्जों और सर्किट बोर्डों की सफाई के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था।

ओजोन क्षरण को रोकने के लिए वैश्विक पहल

  • वियना कन्वेंशन (वर्ष 1985): ओजोन परत के संरक्षण हेतु वियना कन्वेंशन वर्ष 1985 में अपनाया गया था, जहाँ संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने ओजोन परत को होने वाले नुकसान को रोकने की आवश्यकता को स्वीकार किया और वैज्ञानिक एवं नीतिगत उपायों पर सहयोग हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (वर्ष 1987): ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODS) पर नियंत्रण हेतु वर्ष 1987 में 197 पक्षकारों द्वारा स्वीकार किया गया मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक वैश्विक, बाध्यकारी पर्यावरणीय समझौता है, जिसने मुख्यतः क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) को लक्षित करते हुए ODS के उत्पादन और उपभोग पर कड़े नियंत्रण स्थापित किए। इस प्रोटोकॉल ने आगे चलकर हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC) और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) जैसे तुलनात्मक रूप से सुरक्षित विकल्पों के विकास तथा प्रसार को महत्त्वपूर्ण बढ़ावा दिया, जिससे वैश्विक ओजोन परत संरक्षण प्रयासों को संस्थागत मजबूत आधार मिला।
  • किगाली संशोधन (वर्ष 2016): मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन, 2016 का उद्देश्य चुनिंदा HFCs को चरणबद्ध तरीके से कम करना है, जिससे उनकी अनुमानित वृद्धि कम हो और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सके।

ओजोन परत क्षरण को नियंत्रित करने के लिए भारत के प्रयास

  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत ने वर्ष 1991 में वियना कन्वेंशन और वर्ष 1992 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए।
  • ओजोन क्षयकारी पदार्थ (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000: भारत ODS नियम, 2000 के माध्यम से सख्त नियंत्रण लागू करता है, जो देश भर में ओजोन क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन, आयात, निर्यात, बिक्री और उपयोग को नियंत्रित करता है।
  • ODS का चरणबद्ध उन्मूलन: भारत ने वर्ष 2010 में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हैलोन, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म को चरणबद्ध तरीके से पूर्णतः समाप्त कर दिया और वर्ष 2030 तक HCFCs को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की दिशा में अग्रसर है, जो वैश्विक पर्यावरणीय शासन के प्रति भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता दर्शाता है।
  • हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) चरणबद्ध उन्मूलन प्रबंधन योजना (HPMP): भारत HCFCs को धीरे-धीरे समाप्त करने के लिए कई चरणों में HCFCs चरणबद्ध उन्मूलन प्रबंधन योजना का क्रियान्वयन करता है।
  • किगाली संशोधन: भारत ने उच्च-वैश्विक तापन वाले हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) से न्यायोचित संक्रमण को समर्थन देने के लिए वर्ष 2021 में किगाली संशोधन के अनुसमर्थन को मंजूरी दी।
  • संस्थागत तंत्र: भारत केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत एक समर्पित ओजोन प्रकोष्ठ संचालित करता है, जो ओजोन संरक्षण उपायों को लागू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के साथ सहयोग करता है।

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