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पंजाब में बेअदबी विरोधी विधेयक

Lokesh Pal July 22, 2025 03:00 12 0

संदर्भ

हाल ही में पंजाब मंत्रिमंडल ने पंजाब पवित्र धर्मग्रंथों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम विधेयक, 2025’ को मंजूरी दे दी है, जिसमें अपमानजनक आचरण से संबंधित कृत्यों के लिए कड़ी सजा का प्रस्ताव है।

पंजाब पवित्र धर्मग्रंथों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम विधेयक, 2025’  के बारे में

  • विधेयक का उद्देश्य: पवित्र धार्मिक ग्रंथों के विरुद्ध अपवित्र कृत्यों को अपराध घोषित करना और राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत करना।
  • विधेयक का दायरा: श्री गुरु ग्रंथ साहिब, भगवद् गीता, पवित्र बाइबिल, कुरान शरीफ और अन्य प्रतिष्ठित धर्मग्रंथों सहित पवित्र ग्रंथों को शामिल करता है।
  • प्रस्तावित दंड
    • अपवित्रीकरण (वास्तविक कृत्य): 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास
    • अपवित्रीकरण का प्रयास: 3 से 5 वर्ष का कारावास
    • अपवित्रीकरण के लिए उकसाना: मुख्य अपराध के समान दंड
  • कानूनी उद्देश्य: सभी धर्मों में अपवित्र कृत्यों को सीधे तौर पर आपराधिक घोषित करके मौजूदा कानूनी प्रावधानों की कमी को दूर करता है।
  • पूर्व प्रयास: IPC की धारा 295 और 295A धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने से संबंधित थीं, लेकिन उनमें विशिष्टता का अभाव था।
    • गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के लिए आजीवन कारावास की सजा देने संबंधी IPC की धारा 295AA को जोड़ने संबंधी वर्ष 2018 के पंजाब विधेयक को राष्ट्रपति ने धर्म-विशेष होने और एकरूपता के अभाव के कारण वापस कर दिया था।

अपवित्रीकरण क्या है?

  • अपवित्रीकरण से तात्पर्य पवित्र धार्मिक वस्तुओं, ग्रंथों या स्थानों के प्रति जानबूझकर उल्लंघन, अपवित्रीकरण या अनादर से है।
  • सामाजिक प्रभाव: यह हिंसा को भड़का सकता है, सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित कर सकता है तथा सांप्रदायिक विभाजन को और अधिक गहरा कर सकता है।
  • कानूनी परिणाम: भारतीय न्याय संहिता (BNS) अध्याय XVI में धारा 298 से 302 तक धर्म से संबंधित अपराधों का उल्लेख करती है।
    • अपवित्रीकरण: BNS की धारा 298 किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के उद्देश्य से पूजा स्थल को नुकसान पहुँचाने या अपवित्र करने से संबंधित है।
    • ईशनिंदा: BNS की धारा 299 धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों को शामिल करती है।

पहलू

अपवित्रीकरण

निंदा

दायरा अपवित्रीकरण में धार्मिक प्रतीकों, पवित्र वस्तुओं, पूजा स्थलों या पवित्र ग्रंथों का अपमान या उल्लंघन शामिल है। ईशनिंदा से तात्पर्य मौखिक या लिखित अभिव्यक्तियों से है, जो किसी धर्म या उसके विश्वासों, देवताओं या पैगंबरों का अपमान, उपहास या अवमानना दर्शाती हैं।
केंद्र अपवित्रीकरण का प्राथमिक ध्यान मूर्त कार्यों पर होता है, जैसे किसी पवित्र पुस्तक को नुकसान पहुँचाना, किसी मंदिर को अपवित्र करना या किसी धार्मिक प्रतीक का अपमान करना। ईशनिंदा अमूर्त अभिव्यक्तियों पर केंद्रित है, जिसमें बोले गए या लिखे गए शब्द शामिल हैं, जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाते हैं या धार्मिक हस्तियों का अपमान करते हैं।
संदर्भ अपवित्रीकरण कानून सभी धर्मों पर लागू हो सकते हैं और प्रायः पवित्र प्रतीकों और स्थानों से संबंधित व्यापक सांप्रदायिक संवेदनशीलता को संबोधित करते हैं। ईशनिंदा कानून आमतौर पर भाषण या प्रकाशन के लिए विशिष्ट होते हैं और प्रायः इनमें व्यक्तिगत अभिव्यक्तियाँ शामिल होती हैं, जो धार्मिक आक्रोश को भड़काती हैं।

अपवित्रीकरण से निपटने के लिए वैश्विक प्रथाएँ

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: प्रथम संशोधन के तहत संरक्षित, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जिसमें आपत्तिजनक धार्मिक भाषण भी शामिल है।
    • ईशनिंदा या अपवित्रीकरण के लिए कोई आपराधिक दंड नहीं है।
  • यूनाइटेड किंगडम: ईशनिंदा कानून वर्ष 2008 में समाप्त कर दिए गए।
    • हिंसा भड़काने के अलावा, अपवित्रीकरण को अपराध नहीं माना जाता।
  • पाकिस्तान: ईशनिंदा कानूनों में मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान है।
    • अल्पसंख्यकों के दुरुपयोग और दमन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना की गई।

लोकतंत्र में अपवित्रीकरण कानूनों की आलोचना

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन: अस्पष्ट परिभाषाएँ असहमति या व्यंग्य को आपराधिक बना सकती हैं, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लग सकता है।
  • दुरुपयोग की संभावना: कानूनों का प्रयोग व्यक्तिगत या राजनीतिक बदला लेने या भीड़ हिंसा भड़काने के लिए हथियार के रूप में किया जा सकता है।
  • धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के साथ टकराव: धार्मिक ग्रंथों को कानूनी रूप से विशेषाधिकार देना राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को कमजोर कर सकता है।
  • न्यायिक अतिक्रमण की चिंताएँ: अत्यधिक दंड (जैसे- आजीवन कारावास) को असंगत माना जा सकता है और संवैधानिक जाँच का विषय बन सकता है।

आगे की राह

  • स्पष्ट परिभाषाएँ: मनमाने ढंग से लागू होने से बचने के लिए अपवित्रीकरणजैसे कानूनी शब्दों को सटीक रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।
  • एकसमान कानून: यदि आवश्यक हो, तो केंद्रीय कानून का अधिनियमन धर्म-तटस्थ और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप होना चाहिए।
  • दुरुपयोग के विरुद्ध सुरक्षा: गिरफ्तारी से पहले अनिवार्य न्यायिक निगरानी, झूठी प्राथमिकी से सुरक्षा।
  • अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देना: आपराधिक दंड की तुलना में शिक्षा और संवाद के माध्यम से सामाजिक सद्भाव को बेहतर ढंग से बढ़ावा दिया जा सकता है।

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