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आर्कटिक बोरियल

Lokesh Pal January 25, 2025 02:07 101 0

संदर्भ

‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक बोरियल जोन का 40 प्रतिशत हिस्सा कार्बन स्रोत बन गया है, जो अपने द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में वायुमंडल में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है, जिससे सहस्राब्दियों तक कार्बन सिंक के रूप में इसकी भूमिका में परिवर्तन आया है।

संबंधित तथ्य

  • यह अध्ययन राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) के वर्ष 2024 आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड के निष्कर्षों के अनुरूप है, जिसमें बढ़ते तापमान और वनाग्नि संबंधी गतिविधियों के कारण आर्कटिक टुंड्रा के कार्बन सिंक से कार्बन स्रोत में परिवर्तन पर प्रकाश डाला गया है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

  • वर्ष 2001-2020 के दौरान आर्कटिक का 30% हिस्सा शुद्ध कार्बन डाइऑक्साइड का स्रोत था, और जब इसमें वनाग्नि संबंधी उत्सर्जन को शामिल किया गया तो यह 40% था।
  • आर्कटिक में आग से होने वाले उत्सर्जन ने इस क्षेत्र को कार्बन स्रोत में बदलने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • गैर-ग्रीष्म महीनों (सितंबर-मई) में होने वाला उत्सर्जन ग्रीष्म महीनों (जून-अगस्त) में अवशोषित कार्बन की तुलना में अधिक होता है, जो कार्बन स्रोत में योगदान देता है।
  • परिवर्तन में योगदान देने वाले कारक
    • लंबी अवधि वाले मौसम और सूक्ष्मजीवी गतिविधियों में वृद्धि ने धीरे-धीरे कार्बन प्रक्षेप पथ को बदल दिया है।
    • वनाग्नि की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया है।
    • पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से जमी हुई जमीन में ग्रीनहाउस गैसों के रूप में संगृहित कार्बन की विशाल मात्रा निकलती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में तेजी आती है।
  • हरित आवरण का प्रभाव: लंबे अवधि वाले मौसम एवं अधिक वनस्पति के कारण 49% क्षेत्र में हरियाली देखी जा रही है।
    • हालाँकि, इस क्षेत्र का केवल 12% हिस्सा वार्षिक रूप से शुद्ध कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है, क्योंकि हरियाली तापमान में वृद्धि और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से संतुलित होती है।
  • पर्माफ्रॉस्ट की भूमिका: पर्माफ्रॉस्ट जमे हुए कार्बनिक पदार्थ के रूप में बड़ी मात्रा में कार्बन संगृहित करता है।
    • बढ़ते तापमान के कारण जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, तो यह कार्बनिक पदार्थ सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटित हो जाता है, जिससे CO2 एवं मीथेन उत्सर्जित होते हैं।

आर्कटिक बोरियल जोन

  • आर्कटिक सर्कल के साथ स्थित आर्कटिक बोरियल जोन, विशाल उत्तरी पारिस्थितिकी तंत्र है जो 26 मिलियन वर्ग किलोमीटर में विस्तृत है, जिसमें शामिल हैं:
    • टुंड्रा (वृक्षविहीन क्षेत्र)
    • बोरियल वन (टैगा)
    • आद्रभूमि
  • यह मुख्य रूप से अलास्का, कनाडा, उत्तरी यूरोप और साइबेरिया जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • आर्कटिक बोरियल जोन में देशज समुदाय 
    • इनुइट (Inuit): आर्कटिक रूस से लेकर कनाडा और ग्रीनलैंड तक रहने वाले सबसे व्यापक आर्कटिक तटीय लोग है। इनुइट भाषा में ‘इनुइट’ शब्द का अर्थ ‘लोग’ है।
    • सामी (Saami): फिनलैंड, स्वीडन, नॉर्वे और उत्तर-पश्चिमी रूस के परिध्रुवीय क्षेत्रों में रहते हैं।
    • एल्यूट (Aleut): इसे उनांगन (Unangan) के नाम से भी जाना जाता है, यह अलास्का में निवास करते हैं।
    • युपिक (Yupik): युपिट के नाम से भी जाना जाता है, अलास्का में रहता है।
  • जलवायु विशेषताएँ
    • इस क्षेत्र में लंबी, कष्टकारी सर्दियाँ और छोटी अवधि वाली गर्मियाँ के साथ अत्यधिक ठंड होती है।
    • पर्माफ्रॉस्ट एक विशिष्ट विशेषता है, जो कम-से-कम दो लगातार वर्षों तक 0°C से नीचे रहती है।
    • वनस्पति वृद्धि के लिए सीमित सूर्य प्रकाश के साथ छोटा वृद्धि काल, विशेष रूप से टुंड्रा क्षेत्रों में।
    • बारहसिंगा, आर्कटिक लोमड़ी और विभिन्न प्रवासी पक्षी प्रजातियाँ जैसे ठंड के अनुकूल प्रजातियाँ इस क्षेत्र में निवास करती हैं।
  • कार्बन सिंक के रूप में भूमिका: ऐतिहासिक रूप से, आर्कटिक बोरियल जोन ने कार्बन सिंक के रूप में कार्य किया है, जिसका अर्थ है कि इसने जितना कार्बन उत्सर्जित किया, उससे ज्यादा अवशोषित किया।
    • यह मिट्टी के कार्बनिक कार्बन भंडार के रूप में जाना जाता है।
    • यह भूमिका निम्नलिखित कारणों से थी।
      • वनों एवं आर्द्रभूमि के विशाल क्षेत्रों की उपस्थिति जो वनस्पति एवं मृदा के माध्यम से कार्बन को अवशोषित कर लेती है।
      • पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost), जिसमें कार्बन और कार्बनिक पदार्थ की विशाल मात्रा जमा रहती है।

नासा का आर्कटिक बोरियल वल्नरेबिलिटी एक्सपेरीमेंट (ABoVE)

  • यह एक बड़े पैमाने का क्षेत्रीय अभियान है, जो अलास्का और पश्चिमी कनाडा में आर्कटिक और बोरियल पारिस्थितिकी तंत्र की जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता और लचीलेपन का अध्ययन करता है।
  • सामाजिक प्रभाव: पर्यावरण परिवर्तनों के सामाजिक प्रभावों की जाँच करता है और अनुकूलन संबंधी रणनीतियों का मार्गदर्शन करने के लिए डेटा प्रदान करता है।
  • उद्देश्य: यह समझना कि आर्कटिक एवं बोरियल क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित हो रहे हैं तथा उन क्षेत्रों के लोगों एवं पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।

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