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आर्कटिक सागर में बर्फ का स्तर एवं भारत में मानसून पैटर्न में बदलाव

Lokesh Pal September 10, 2024 03:22 166 0

संदर्भ

एक हालिया अध्ययन में आर्कटिक समुद्री बर्फ के स्तर में मौसमी बदलावों से भारतीय मानसून पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। इससे पता चला है कि मध्य आर्कटिक में समुद्री बर्फ कम होने से पश्चिमी एवं प्रायद्वीपीय भारत में वर्षा कम होती है, लेकिन मध्य एवं उत्तरी भारत में अधिक वर्षा होती है।

अध्ययन के बारे में

  • प्रकाशन: यह अध्ययन ‘रिमोट सेंसिंग ऑफ एनवायरनमेंट’ (Remote Sensing of Environment) पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 
  • संचालन: यह शोध पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (भारत सरकार) के तहत भारत के राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (National Centre for Polar and Ocean Research- NCPOR) तथा दक्षिण कोरिया के कोरिया ध्रुवीय अनुसंधान संस्थान (Korea Polar Research Institute) के बीच एक सहयोग से किया गया है।
  • विषय: यह जाँचने के लिए कि आर्कटिक समुद्री बर्फ का स्तर वायुमंडलीय परिसंचरण को कैसे प्रभावित करता है, जो बदले में भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा को प्रभावित करता है?

  • डेटा स्रोत: वर्ष 1980 से 2020 की अवधि के अवलोकन डेटा का उपयोग जलवायु मॉडल [विशेष रूप से कपल्ड मॉडल इंटरकंपैरिजन प्रोजेक्ट (Coupled Model Intercomparison Project) चरण 5 एवं 6] के साथ किया गया था।
  • निष्कर्ष
    • जलवायु परिवर्तन की भूमिका: जलवायु परिवर्तन आर्कटिक समुद्री बर्फ की कमी को तेज करता है एवं ISMR की परिवर्तनशीलता तथा अप्रत्याशितता को बढ़ाता है।
      • निचली आर्कटिक समुद्री बर्फ पश्चिमी एवं प्रायद्वीपीय भारत क्षेत्रों में अधिक बार और गंभीर सूखे का कारण बन सकती है, जबकि मध्य एवं उत्तरी भारत में अत्यधिक वर्षा तथा बाढ़ का कारण बन सकती है।
    • ‘मानसून की शुरुआत’ को प्रभावित करना: ऊपरी अक्षांशों में [मुख्य रूप से हडसन की खाड़ी (Hudson Bay), सेंट लॉरेंस की खाड़ी (Gulf of St. Lawrence) एवं ओखोटस्क सागर (Sea of Okhotsk) को घेरने वाले बैरेंट्स-कारा सागर (Barents-Kara Sea) क्षेत्र में] समुद्री बर्फ का स्तर कम होने से मानसून की शुरुआत में देरी होती है, जिससे यह और अधिक अप्रत्याशित हो जाता है।
    • कई वायुमंडलीय प्रणालियों में परिवर्तन 
      • मध्य आर्कटिक में समुद्री बर्फ के स्तर में वृद्धि: इसके परिणामस्वरूप समुद्र से वायुमंडल में ऊष्मा का स्थानांतरण होता है, जिससे थोड़ा कम अक्षांशों (उत्तरी अटलांटिक) पर एक चक्रवाती परिसंचरण शुरू हो जाता है।
      • रॉस्बी तरंग: चक्रवाती परिसंचरण रॉस्बी तरंगों को मजबूत करता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्तर-पश्चिम भारत पर उच्च दबाव एवं भूमध्यसागरीय क्षेत्र पर कम दबाव होता है।
        • ये पृथ्वी के घूमने एवं तापमान तथा मौसम प्रणालियों में अंतर के कारण वायुमंडल में वायु की तेज प्रवाहित होने वाली धाराएँ हैं, जो पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ती हैं।
      • जेट स्ट्रीम को मजबूत करना: परिसंचरण कैस्पियन सागर के ऊपर एशियाई जेट स्ट्रीम को मजबूत करता है, जिससे उपोष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट (गर्मियों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप पर बहने वाली जेट स्ट्रीम उत्तर की ओर स्थानांतरित हो जाती है)।
      • मध्य एशिया में एक असामान्य उच्च दबाव क्षेत्र बनता है, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय भू-भाग पर वायुमंडलीय स्थिरता बाधित होती है एवं पश्चिमी तथा प्रायद्वीपीय भारत में अधिक वर्षा होती है।
    • बैरेंट्स-कारा सागर क्षेत्र के ऊपर कम समुद्री बर्फ
      • यह वायु धाराओं की एक शृंखला को ट्रिगर करता है, जो दक्षिण-पश्चिम चीन पर एक असामान्य उच्च दबाव उत्पन्न करता है।
      • बैरेंट्स-कारा सागर की ऊष्मा उत्तर-पश्चिमी यूरोप पर एक प्रतिचक्रवात परिसंचरण का निर्माण करती है, जो उपोष्णकटिबंधीय एशिया एवं भारत के ऊपरी वायुमंडलीय क्षेत्र को प्रभावित करती है।
      • अरब सागर की उच्च सतह के तापमान के साथ अस्थिरता पूर्वोत्तर भारत में उच्च वर्षा को बढ़ावा देती है, जबकि देश के मध्य एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में कम वर्षा होती है।

भारतीय मानसून

  • मानसून किसी क्षेत्र की प्रचलित या सबसे तेज हवाओं की दिशा में एक मौसमी परिवर्तन है। 
  • भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा: भारत में गर्मियों में दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाएँ चलती हैं, तिब्बती पठार पर अलग-अलग ताप के कारण तीव्र निम्न दबाव प्रणाली यानी ITCZ ​​का निर्माण होता है।  
    • कोरिओलिस बल (Coriolis Force): कोरिओलिस बल भूमध्य रेखा को पार करने के बाद व्यापारिक हवाओं को भारतीय भू-भाग की ओर विक्षेपित कर देता है। 
    • अरब सागर के ऊपर चलने वाली हवाएँ नमी ग्रहण करती हैं और ये हवाएँ भारत में वर्षा करती हैं।
    • मानसून की विभिन्न शाखाएँ: दक्षिण-पश्चिम मानसून दो शाखाओं में विभाजित हो जाता है। भू-भाग पर अरब सागर की शाखा (पश्चिमी तट पर वर्षा करती है) एवं बंगाल की खाड़ी शाखा (भारत के पूर्वी तथा उत्तर-पूर्वी भागों में वर्षा करती है)। 
      • अभिसरण: जैसे-जैसे अरब सागर की शाखा अंदर की ओर बढ़ती है एवं बंगाल की खाड़ी की शाखा हिमालय के साथ-साथ आगे बढ़ती है, इन शाखाओं का अंततः पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश के पास क्षेत्र में अभिसरण हो जाता हैं।
  • भारत शीतकालीन मानसून वर्षा: यह उत्तर-पूर्वी मानसून सर्दियों के दौरान साइबेरियाई एवं तिब्बती पठारों पर बनने वाले उच्च दबाव क्षेत्र के कारण मानसून का परिवर्तित चरण है।

मानसून की शुरुआत को प्रभावित करने वाले कारक

  • ग्रीष्मकाल के दौरान भू-भाग के अत्यधिक गर्म होने के कारण तिब्बती पठार पर तीव्र निम्न दबाव का निर्माण होता है

  • मेडागास्कर के पास हिंद महासागर के दक्षिण में स्थायी उच्च दबाव क्षेत्र का निर्माण होता है।
  • उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम।
  • अफ्रीकी पूर्वी जेट (उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट)।
  • निम्न दबाव प्रणाली (या मानसून अवदाब), ITCZ (इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस जोन) की उपस्थिति।
  • वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण: भारतीय, अटलांटिक एवं प्रशांत महासागरों का सतही तापमान ISMR को प्रभावित करता है।
  • सर्कम-ग्लोबल टेलीकनेक्शन (Circum-Global Teleconnection- CGT): यह मध्य अक्षांशों पर प्रवाहित होने वाली एक बड़े पैमाने की वायुमंडलीय तरंग है, जो मानसून को भी महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।

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