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अर्जेंटीना द्वारा पेरिस समझौते से हटने पर विचार

Lokesh Pal November 26, 2024 02:05 8 0

संदर्भ

अर्जेंटीना की दक्षिणपंथी सरकार पेरिस समझौते से हटने पर विचार कर रही है, क्योंकि उसने अपने वार्ताकारों को चल रहे COP29 जलवायु शिखर सम्मेलन से हटने के लिए कहा है।

  • अर्जेंटीना ने वर्ष 2016 में पेरिस समझौते की पुष्टि की और उसे संधि से हटने के लिए संसद की मंजूरी की आवश्यकता होगी क्योंकि देश द्वारा अनुमोदित सभी अंतरराष्ट्रीय संधियाँ संवैधानिक दर्जा रखती हैं।

हटने का कारण

  • सुदूर दक्षिणपंथी दृष्टिकोण: समझौते पर अर्जेंटीना का हालिया रुख इसके जलवायु-संदेहवादी राष्ट्रपति जेवियर माइली के कारण है, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन को ‘समाजवादी झूठ’ (Socialist Lie) बताया है।
  • जलवायु परिवर्तन से इनकार: राष्ट्रपति ने पदभार ग्रहण करने के बाद से अर्जेंटीना के पर्यावरण मंत्रालय को उप-सचिवालय में बदल दिया है, वन संरक्षण के लिए एक कोष को हटा दिया है और एक कानून पारित किया है, जो तेल तथा गैस क्षेत्र को और बढ़ावा देगा।

अर्जेंटीना की वापसी का संभावित प्रभाव

  • डोमिनो प्रभाव (Domino Effect): अर्जेंटीना के बाहर निकलने से अन्य देश भी अपनी भागीदारी पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।
    • उदाहरण: नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी दूसरी बार संयुक्त राज्य अमेरिका को समझौते से बाहर निकालने पर विचार कर रहे हैं।
  • पेरिस लक्ष्यों को कमजोर करना: अर्जेंटीना दुनिया का 24वाँ सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक है और इसमें जीवाश्म ईंधन के महत्त्वपूर्ण संसाधन एवं निर्यात शामिल हैं, जिसमें शेल गैस का दूसरा सबसे बड़ा भंडार और दुनिया भर में शेल तेल का चौथा सबसे बड़ा भंडार है।
  • अर्जेंटीना का अलग-थलग होना: जलवायु परिवर्तन को नकारने वाला अर्जेंटीना अब व्यापारिक साझेदार के रूप में और भी कम आकर्षक हो जाएगा, क्योंकि अब यूरोपीय संघ जैसे विभिन्न देश जलवायु को नुकसान पहुँचाने वाले उत्पादों पर आयात शुल्क लगा रहे हैं।
  • सबसे गरीब लोगों पर प्रभाव: इस निर्णय से अर्जेंटीना को जलवायु कार्रवाई के लिए जरूरी काफी राशि खर्च करनी पड़ेगी और अंततः समाज के सबसे गरीब लोगों को नुकसान होगा क्योंकि कमजोर आबादी ही सबसे अधिक चरम जलवायु घटनाओं से पीड़ित होती है।

पेरिस समझौते के बारे में

  • अपनाया गया: पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन पर एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे जलवायु परिवर्तन और इसके प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए वर्ष 2015 में अपनाया गया था और यह UNFCCC के COP 21 का परिणाम था।
    • इसने जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने वाले प्रमुख नियामक साधन के रूप में क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान ले लिया।
  • हस्ताक्षरकर्ता: 194 राष्ट्रों और यूरोपीय संघ (EU) ने पेरिस समझौते की पुष्टि की है या उसमें शामिल हुए हैं, जो फरवरी 2023 तक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 98% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है।
    • हस्ताक्षरित लेकिन अनुसमर्थित नहीं: ईरान, लीबिया एवं यमन।
  • लक्ष्य: इसका लक्ष्य औसत वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे सीमित रखना है, साथ ही तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने का प्रयास करना है।
  • आवश्यकता: वैश्विक औसत तापमान 1800 के दशक की तुलना में पहले ही 1.1°C तक बढ़ चुका है और अनुमान है कि अगले दशक में यह 1.5°C के स्तर को पार कर जाएगा।
    • अनुमान के अनुसार, सामान्य स्थिति में, वर्ष 2100 तक विश्व का तापमान 4.4°C तक बढ़ सकता है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDCs): पेरिस समझौता महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के पाँच वर्षीय चक्र पर कार्य करता है, जिसमें हस्ताक्षरकर्ता देश वर्ष 2020 से स्वैच्छिक राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाएँ प्रस्तुत करेंगे, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के रूप में जाना जाता है। 
    • अपने NDCs में देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में बताते हैं।

पेरिस समझौते से बाहर निकलना 

  • कानूनी प्रावधान: पेरिस समझौते के अनुच्छेद-28 में किसी देश के संधि से हटने की प्रक्रिया और समयसीमा निर्धारित की गई है।
    • कोई भी देश इस समझौते के लागू होने की तिथि अर्थात् वर्ष 2016 से तीन वर्ष के बाद किसी भी समय डिपॉजिटरी को लिखित अधिसूचना देकर इस संधि से हट सकता है।
  • वापसी की अधिसूचना: सदस्य राष्ट्र को न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में स्थित संयुक्त राष्ट्र के कानूनी मामलों के कार्यालय को वापसी की अधिसूचना प्रस्तुत करनी चाहिए।
    • वापसी की अधिसूचना एक वर्ष के बाद ही प्रभावी होती है, तब तक सदस्य राज्य पेरिस समझौते में बना रहता है और उसे इसके अंतर्गत सभी गतिविधियों में पूर्ण रूप से भाग लेना होता है।

पेरिस जलवायु एवं भारत

  • अनुसमर्थन: भारत ने 2 अक्टूबर, 2016 को पेरिस समझौते का अनुसमर्थन किया एवं ऐसा करने वाला 62वाँ देश बन गया। 
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs): भारत ने वर्ष 2015 में अपना पहला राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution- NDC) प्रस्तुत किया, जिसमें दो मात्रात्मक लक्ष्य शामिल थे।
    • वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35 प्रतिशत तक कम करना।
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत संचयी विद्युत स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
  • अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान 
    • भारत ने अगस्त 2022 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) को अपना अद्यतन NDCs प्रस्तुत किया, जिसे ‘पंचामृत’ प्रतिबद्धताओं के रूप में जाना जाता है।
      • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता तक पहुँचना।
      • वर्ष 2030 तक 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करना।
      • अब से वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी लाना।
      • वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की प्रत्येक इकाई की कार्बन तीव्रता को 45% तक कम करना।
      • वर्ष 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करना।

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