हाल ही में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई गई है।
हालाँकि, संवैधानिक छूट पुलिस को राज्यपाल को संदिग्ध के रूप में पहचानने या मामले की जाँच करने से रोकती है।
संबंधित तथ्य
संवैधानिक छूट: अनुच्छेद-361 के तहत, संविधान राज्यपाल पर मुकदमा चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
पुलिस केवल राज्यपाल के पद से हटने के बाद ही कार्रवाई कर सकती है, यानी जब या तो राज्यपाल इस्तीफा दे देता है या उसे राष्ट्रपति का विश्वास प्राप्त नहीं होता है।
संविधान का अनुच्छेद-361
इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति एवं राज्यपाल अपने कार्यालय की शक्तियों तथा कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन के लिए या उन शक्तियों एवं कर्तव्यों के प्रयोग तथा प्रदर्शन में उनके द्वारा किए गए किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे।
राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी।
राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी अथवा कारावास की कोई प्रक्रिया उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी न्यायालय से शुरू नहीं की जाएगी।
संवैधानिक प्रतिरक्षा से संबंधित न्यायिक प्रावधान
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ, 2006 मामले में: इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत दुर्भावना के आरोपों पर भी राज्यपाल को प्राप्त छूट को रेखांकित किया है।
वह अपने आधिकारिक कर्तव्यों के पालन के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं है।
यह निर्णय आपराधिक शिकायतों के लिए नहीं बल्कि विवेकाधीन संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने के लिए है।
ऐसे उदाहरण जब राज्यपाल के कार्यकाल पूरा होने तक आपराधिक कार्यवाही निलंबित कर दी गई:
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला: वर्ष 2017 में, उच्चतम न्यायालय ने 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह केखिलाफ आपराधिक साजिश के नए आरोपों की अनुमति दी।
हालाँकि, मुकदमा नहीं चला क्योंकि वह उस समय राजस्थान के राज्यपाल थे।
न्यायालय द्वारा फैसला: न्यायालय ने माना कि, राजस्थान के राज्यपाल होने के कारण, वह संविधान के अनुच्छेद-361 के तहत तब तक छूट के हकदार हैं, जब तक वह राजस्थान के राज्यपाल बने रहेंगे।
जैसे ही वह राज्यपाल नहीं रहेंगे, सत्र न्यायालय उनके खिलाफ आरोप तय करेगा एवं कार्रवाई करेगा।
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