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अरुणाचल प्रदेश में पिछले 32 वर्षों में 110 ग्लेशियर विलुप्त

Lokesh Pal February 06, 2025 02:58 88 0

संदर्भ

एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी हिमालय में पिछले 32 वर्षों (1988-2020) की अवधि में 110 ग्लेशियर विलुप्त हो गए हैं।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • नागालैंड विश्वविद्यालय और कॉटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में ग्लेशियर की सीमाओं को ट्रैक करने के लिए रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीक का उपयोग किया गया।
  • इस अवधि के दौरान अरुणाचल प्रदेश में ग्लेशियरों की संख्या 756 से घटकर 646 हो गई।
  • कुल ग्लेशियल आवरण 585.23 वर्ग किलोमीटर से घटकर 309.85 वर्ग किलोमीटर रह गया, जो 47% से अधिक की कमी को दर्शाता है।
  • अधिकांश ग्लेशियर 4,500-4,800 मीटर की ऊँचाई पर उत्तर की ओर हैं और 15°-35° की ढलान पर स्थित हैं।
  • इस तीव्र ग्लेशियर क्षति ने आधार संस्तर को उजागर कर दिया है और हिमनद झीलों का निर्माण किया है, जिससे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Floods-GLOF) का खतरा बढ़ गया है।

पूर्वी हिमालय

  • पूर्वी हिमालय पश्चिम में तीस्ता नदी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के बीच लगभग 720 किलोमीटर तक फैला हुआ है।
  • इस क्षेत्र को असम हिमालय के नाम से भी जाना जाता है और इसमें मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश और भूटान के क्षेत्र शामिल हैं।

ग्लेशियल रिट्रीट क्या है?

  • ग्लेशियल रिट्रीट से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसमें ग्लेशियर सिकुड़ते हैं क्योंकि उनकी बर्फ नई बर्फ के जमा होने की तुलना में तेजी से पिघलती है।
  • यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख संकेतक है और यह दुनिया भर में, विशेष रूप से हिमालय जैसे उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में, खतरनाक दर से हो रहा है।

हिमनदों के सिकुड़ने के कारण

  • जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण बर्फ पिघलने की दर बढ़ रही है, जो बर्फ के संचय से भी अधिक है।
  • वर्षा पैटर्न में परिवर्तन: अनियमित बर्फबारी और सर्दियों में कम वर्षा के कारण ग्लेशियरों की वृद्धि धीमी हो जाती है।
  • ब्लैक कार्बन जमाव: मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न प्रदूषक ग्लेशियरों पर जम जाते हैं, अधिक गर्मी को अवशोषित करते हैं और पिघलने की गति को बढ़ा देते हैं।
  • भू-वैज्ञानिक कारक: ढलान, तुंगता और चट्टान का प्रकार ग्लेशियर के सिकुड़ने तथा विस्तार करने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।

ग्लेशियर क्या हैं?

  • ग्लेशियर बर्फ के बड़े, मंद गति से गतिशील पिंड हैं, जो उन क्षेत्रों में बनते हैं, जहाँ तापमान कम एवं बर्फबारी लंबे समय तक होती है।
  • वे प्राकृतिक मीठे जल के भंडार के रूप में कार्य करते हैं और पृथ्वी की जलवायु एवं जल चक्र को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ग्लेशियरों का निर्माण

  • ग्लेशियर का गठन तब होता है जब समय के साथ बर्फ के क्रिस्टल एक हिम आवरण में बदल जाते है, तथा अपने वजन के दबाव में बाहर एवं नीचे की ओर संचलित होने लगती है।
    • संचयन: बर्फबारी उच्च-ऊँचाई वाले या ध्रुवीय क्षेत्रों में होती है।
    • संघनन: समय के साथ, बर्फ की परतें अपने वजन के कारण संकुचित हो जाती हैं, जिससे घनी बर्फ का निर्माण होता है।
    • ग्लेशियरों की गति (हिमनदीय गति): गुरुत्वाकर्षण के कारण हिमनद ढलान से नीचे की ओर बढ़ता है, और आगे बढ़ने पर भूदृश्य को आकार देता है।
    • अपक्षय: तापमान में परिवर्तन के कारण बर्फ पिघलती है, जिससे हिमनद पीछे हटते हैं।

भारत के प्रमुख ग्लेशियर

हिमालय क्षेत्र में भारत के अधिकांश ग्लेशियर स्थित हैं, जो गंगा एवं यमुना जैसी प्रमुख नदियों का स्रोत हैं।

  • सियाचिन ग्लेशियर (लद्दाख): भारत का सबसे लंबा ग्लेशियर (76 किमी.)।
  • गंगोत्री ग्लेशियर (उत्तराखंड): गंगा नदी का स्रोत।
  • यमुनोत्री ग्लेशियर (उत्तराखंड): यमुना नदी का उद्गम।
  • जेमू ग्लेशियर (सिक्किम): पूर्वी हिमालय का सबसे बड़ा ग्लेशियर।
  • राथोंग ग्लेशियर (सिक्किम): तीस्ता नदी को जल की आपूर्ति करता है।
  • मिलाम ग्लेशियर (उत्तराखंड): गोरीगंगा नदी का एक प्रमुख स्रोत।
  • पिंडारी ग्लेशियर (उत्तराखंड): एक लोकप्रिय ट्रैकिंग गंतव्य।

हिमालय खतरे में

  • हिमालय, जिसे अक्सर ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है, ध्रुवीय क्षेत्रों के अतिरिक्त यहाँ पर ग्लेशियरों का सबसे बड़ी मात्रा उपस्थित है। 
    • ये ग्लेशियर निचले क्षेत्रों में रहने वाले 1.3 बिलियन से अधिक आबादी के लिए मीठे जल का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। 
  • जलवायु अध्ययनों से पता चलता है कि हिमालय में पिछली सदी में तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई है। 
  • पूर्वी हिमालय, विशेष रूप से, वैश्विक औसत से अधिक दर पर गर्म हो रहा है, जहाँ तापमान में प्रत्येक दशक में 0.1 डिग्री से 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है। 
  • सदी के अंत तक, इस क्षेत्र में तापमान में 5-6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि और 20-30% अधिक वर्षा हो सकती है।

ग्लासियर्स  के सिकुड़ने का प्रभाव

  • मीठे जल का संकट: सिकुड़ते ग्लेशियर जल की उपलब्धता और वितरण को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे कृषि और पेयजल की आपूर्ति प्रभावित होगी।
  • GLOF जोखिम में वृद्धि: ग्लेशियल झीलों के निर्माण से विनाशकारी बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है, जैसा कि वर्ष 2023 में सिक्किम में आई आपदा में देखा गया था, जिसमें कम-से-कम 55 लोग मारे गए थे और 1,200 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना नष्ट हो गई थी।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: तापमान और वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर सकते हैं और जैव विविधता को प्रभावित कर सकते हैं।

ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)

  • ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) से तात्पर्य ग्लेशियल झीलों से जल और तलछट के अचानक निकलने से है, जो प्राकृतिक रूप से हिमोढ़ (बर्फ, रेत और कंकड़ का मलबा) या ग्लेशियर बर्फ जैसी बाधाओं से अवरुद्ध हो जाती हैं।

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