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भारतीय बैंकों की ऐसेट गुणवत्ता (asset quality of indian banks)

Samsul Ansari December 30, 2023 10:55 287 0

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति’ के अनुसार, बैंकों की ऐसेट-गुणवत्ता दशक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

  • सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (GNPA):भारतीय अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों’ (SCBs) का GNPA अनुपात बेहतर होता गया और एक दशक के निचले स्तर पर आ गया।
    • SCBs का GNPA अनुपात मार्च 2023 के अंत में गिरकर दशक के निचले स्तर 3.9% पर और सितंबर 2023 के अंत में 3.2% पर आ गया।
    • SCBs के GNPA में लगभग 45% की कमी में पुनर्प्राप्तियों का योगदान था।
  • वित्त वर्ष 2022-23 में अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) की समेकित बैलेंस शीट में 12.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
    • यह खुदरा और सेवा क्षेत्रों को ऋण प्रदान करता है।
    • जमा-राशि में भी वृद्धि हुई, हालाँकि यह दिए गए ऋण की राशि से कम रही।
  • पूँजी और जोखिम युक्त ऐसेट का अनुपात (CRAR): सितंबर 2023 के अंत में यह अनुपात SCBs का 16.8 प्रतिशत था, जिसमें सभी बैंक समूहों को नियंत्रित न्यूनतम आवश्यकता और सामान्य इक्विटी टियर 1 (CET1) के अनुपात की जरूरत होती है।
    • ब्याज से प्राप्त उच्च शुद्ध आय और लचीले प्रावधान के कारण वित्त वर्ष 2022-23 में शुद्ध ब्याज मार्जिन (NIM) और लाभ में वृद्धि हुई है।
  • शहरी सहकारी बैंक (UCBs): वित्त वर्ष 2022-2023 में ऋण और अग्रिम द्वारा संचालित UCBs की संयुक्त बैलेंस शीट में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
    • वित्त वर्ष 2022-23 और 2023-24 की प्रथम तिमाही के दौरान उनके पूँजी बफर और लाभप्रदता में सुधार हुआ है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs): वित्त वर्ष 2022-23 में NBFCs की बैलेंस शीट में 14.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
    • दोहरे अंकों में बढ़े ऋण का इसमें योगदान है।
    • वित्त वर्ष 2022-23 में क्षेत्र की लाभप्रदता और संपत्ति की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ।
    • निर्धारित आवश्यकता से अधिक CRAR के साथ इस क्षेत्र ने प्रगति की।

महत्त्वपूर्ण अवधारणाएँ 

NPAs का परिचय

  • NPAs या ‘गैर-निष्पादित (निष्क्रिय) परिसंपत्तियाँ’ उस प्रकार के ऋण या अग्रिम हैं, जो डिफॉल्ट या बकाया हैं।
    • यदि ग्राहक एक निश्चित अवधि तक मूलधन और ब्याज नहीं चुकाते हैं तो ऐसे लोन को ‘नॉन-परफॉर्मिंग एसेट’ या NPA माना जाता है।
  • भारत में संपत्ति को NPA के रूप में घोषित करने के लिए 180 दिन की समय सीमा है।
    • अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार यह समय सीमा 45 से 90 दिनों की है।
  • संपत्तियों (Assets) को 4 भागों में वर्गीकृत किया गया है-
    • मानक संपत्ति: यह एक क्रियाशील संपत्ति है, जो निरंतर आय और भुगतान प्रक्रिया में रहती हैं। इन परिसंपत्तियों में सामान्य जोखिम होता है और ये वास्तविक अर्थों में NPA नहीं हैं इसलिए मानक संपत्तियों के लिए किसी विशेष प्रावधान की आवश्यकता नहीं है।
    • उप-मानक संपत्ति: ऐसे ऋण और अग्रिम जो 12 महीने की अवधि के लिए निष्क्रिय संपत्ति हैं, उप-मानक संपत्ति की श्रेणी में आते हैं।
    • संदिग्ध संपत्ति: 12 महीने से अधिक की अवधि वाली निष्क्रिय संपत्तियों को संदिग्ध संपत्ति के रूप में जाना जाता है।
    • घाटे वाली परिसंपत्तियाँ: वे सभी परिसंपत्तियाँ जिनकी वसूली नहीं की जा सकती, ‘घाटे वाली परिसंपत्तियाँ’ कहलाती हैं।

सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (GNPA)

  • यह एक पूर्ण राशि (Absolute Amount) है।
  • यह किसी विशेष तिमाही या वित्तीय वर्ष में सकल निष्क्रिय परिसंपत्तियों का कुल मूल्य बताता है।

पूँजी और जोखिम-युक्त संपत्ति का अनुपात (CRAR)

  • CRAR को ‘पूँजी पर्याप्तता अनुपात’ (CAR) के रूप में भी जाना जाता है।
    • यह किसी बैंक की पूँजी और उसके जोखिम का अनुपात है।
    • बैंक की पूँजी को क्रेडिट जोखिम, बाजार जोखिम और संचालन जोखिम की समग्र जोखिम-युक्त परिसंपत्तियों से विभाजित करके इसे निकाला जाता है।
  • CRAR का निर्णय केंद्रीय बैंकों और बैंक नियामकों द्वारा किया जाता है।
  • बेसल III मानदंडों ने जोखिम-युक्त परिसंपत्तियों तथा पूँजी का अनुपात 8% निर्धारित किया है।
  • भारत में अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों को 9% CAR बनाए रखना आवश्यक है।
    • भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 12% CAR बनाए रखना आवश्यक है।
  • किसी बैंक का CRAR जितना अधिक होगा उसका पूँजीकरण उतना ही बेहतर होगा।

आगे की राह 

  • बैंकों को ऋण घाटे से बचना चाहिए।
    • उच्च पूँजी बफर्स और ‘प्रोविसन कवरेज रेसिओ’ (PCR) की सहायता से घाटे को कम किया जा सकता है।
  • नियामक पूँजी के अलावा महत्त्वपूर्ण प्रावधान, मजबूत आचार संहिता और स्पष्ट प्रशासनिक संरचना जैसे सुधार वित्तीय स्थिरता में योगदान दे सकते हैं।
  • बैंकों और NBFCs के बीच बढ़ते अंतर्संबंध को देखते हुए, NBFCs को अपने फंडिंग स्रोतों को व्यापक बनाने तथा बैंक फंडिंग पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना चाहिए।
  • बैंकों और गैर-बैंकिंग संस्थाओं को बेहतर ग्राहक सेवा देना चाहिए।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़े लक्ष्य को पूरा करने के लिए बैंकों और NBFCs को मजबूत प्रशासन और जोखिम प्रबंधन प्रक्रियाओं के माध्यम से अपनी बैलेंस शीट को और मजबूत करना चाहिए।
  • बैंकिंग प्रणाली और भुगतान प्रणाली को साइबर खतरों और डेटा उल्लंघनों के जोखिमों से बचाना चाहिए ताकि हितधारकों के हितों की रक्षा की जा सके।

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