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अटलांटिक महासागर में हरिकेन का पूर्वानुमान और भारत के लिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान

Lokesh Pal October 22, 2024 05:03 64 0

संदर्भ 

वर्ष 2024 के शुरुआत में एक प्रभावी ला नीना (La Niña) के कारण हरिकेन के मौसम की भविष्यवाणी की गई थी। हालाँकि, गर्मियों के दौरान कोई खतरनाक हरिकेन नहीं आया है।

  • ला नीना (La Niña) अपेक्षा के अनुसार, उतना प्रबल रूप से विकसित नहीं हुआ तथा पूर्वानुमानों को कम कर दिया गया है।

वर्ष 2023 का हरिकेन का मौसम और गर्मी में तापमान का बढ़ना 

  • वर्ष 2023 का मौसम: मजबूत अल नीनो (El Niño) के बावजूद, वर्ष 2023 का हरिकेन का मौसम इतिहास में चौथा सबसे सक्रिय मौसम था। आमतौर पर, अल नीनो (El Niño) हरिकेन की आवृत्ति को कम करता है, जबकि ला नीना उनकी आवृत्ति को बढ़ा देता है। 
  • अनिश्चितता: मौसम विज्ञानी अनिश्चित हैं कि क्या ग्लोबल वार्मिंग ने हरिकेन और अल नीनो/ला नीना के बीच संबंध को प्रभावित किया है।

‘चक्रवात पूर्वानुमान मॉडल’ के बारे में

  • ये कंप्यूटर प्रोग्राम हैं, जो उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की भविष्य की स्थिति का पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी डेटा का उपयोग करते हैं।
  • चक्रवात पूर्वानुमान मॉडल के प्रकार
    • सांख्यिकी मॉडल: यह चक्रवातों की भविष्य की स्थिति का पूर्वानुमान लगाने के लिए ऐतिहासिक डेटा का उपयोग करता है।
    • डायनामिकल मॉडल: यह चक्रवात के व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितीय समीकरणों और मौसम संबंधी डेटा का उपयोग करता है।
    • संयुक्त सांख्यिकी-डायनामिकल मॉडल: यह मॉडल चक्रवात के व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने के लिए सांख्यिकी और डायनामिकल दोनों दृष्टिकोणों को जोड़ता है।

चक्रवात पूर्वानुमान की चुनौतियाँ

  • सटीकता: चक्रवात के तटीय क्षेत्र से टकराने की भविष्यवाणी करने में चक्रवात के पूर्वानुमान में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी चक्रवात की तीव्रता का पूर्वानुमान लगाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
  • तटीय क्षेत्र से टकराने के बाद: पूर्वानुमान लगाने वालों को तटीय क्षेत्र से टकराने के बाद चक्रवातों से होने वाले नुकसान की भविष्यवाणी करने में कठिनाई होती है, जैसे वर्षा और तीव्र हवाएँ, जो महत्त्वपूर्ण विनाश का कारण बनती हैं।
  • चक्रवात और जलवायु परिवर्तन
    • चक्रवातों की संख्या: वैसे तो वैश्विक स्तर पर चक्रवातों की कुल संख्या में वृद्धि नहीं हुई है, लेकिन शक्तिशाली चक्रवातों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • महासागरों का बढ़ता तापमान: चक्रवातों को अपनी ऊर्जा गर्म समुद्री जल से मिलती है और समुद्र का बढ़ता तापमान चक्रवातों को तेजी से तीव्र बना रहा है, यह एक ऐसी घटना है, जिसका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल हो रहा है।
  • उत्तरी हिंद महासागर के चक्रवात
    • प्रवृत्ति: उत्तरी हिंद महासागर, विशेषकर अरब सागर में चक्रवातों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उनकी मौसमी गतिविधियों के बारे में पूर्वानुमान लगाना कठिन बना हुआ है।

भारत की प्रगति और कमजोरियाँ 

पूर्वानुमान में सुधार

  • पूर्वानुमान में प्रगति: भारत ने अपने चक्रवात पूर्वानुमानों में सुधार किया है और इसके आपदा प्रबंधन ने चक्रवातों के दौरान जानमाल के नुकसान को कम करने में मदद की है।
  • चक्रवात का आकार: उत्तरी हिंद महासागर में, विशेष रूप से अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में, चक्रवात अन्य क्षेत्रों की तुलना में छोटे तथा कम तीव्र होते हैं।
  • जलवायु तनाव 
    • दीर्घकालिक तनाव: समुद्र का बढ़ता स्तर, तापमान में वृद्धि और अत्यधिक वर्षा पैटर्न जैसे दीर्घकालिक जलवायु मुद्दे बढ़ रहे हैं।
    • तीव्र तनाव: चक्रवात, हीट वेव और अचानक सूखा जैसी घटनाएँ अधिक गंभीर होती जा रही हैं, जिससे दीर्घकालिक तनावों का प्रभाव और भी बदतर हो रहा है।
      • उदाहरण के लिए, समुद्र का स्तर बढ़ने से चक्रवातों से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
  • उदाहरण के रूप में तमिलनाडु राज्य में आपदाएँ 
    • भारी वर्षा और बाढ़: समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण तमिलनाडु में प्रत्येक वर्ष भारी वर्षा एवं बाढ़ आती है, जिससे मानसून का मौसम लंबा हो जाता है।

भारत में मौसम पूर्वानुमान का महत्त्व

  • कृषि एवं खाद्य सुरक्षा
    • भारत की कृषि काफी हद तक मानसून पर निर्भर है, जो वार्षिक वर्षा का 70-80% प्रदान करता है।
      • सटीक मौसम पूर्वानुमान किसानों को बुवाई, सिंचाई, कटाई, फसलों का प्रबंधन और कीटों एवं बीमारियों पर नियंत्रण जैसी गतिविधियों की योजना बनाने में मदद करता है।
  • आपदा प्रबंधन
    • भारत चक्रवात, बाढ़, लू और सूखे जैसी आपदाओं के प्रति संवेदनशील है।
      • मौसम पूर्वानुमान बेहतर आपदा नियोजन और प्रतिक्रिया को सक्षम करके इन घटनाओं से होने वाली क्षति को कम करने में मदद करता है।
  • आर्थिक घाटे को कम करना
    • कृषि: सूखे और खराब मानसून जैसी मौसमी घटनाएँ फसलों को नुकसान पहुँचा सकती हैं और किसानों को वित्तीय नुकसान पहुँचा सकती हैं। सटीक पूर्वानुमान इन नुकसानों को कम करने में मदद करते हैं।
    • ऊर्जा क्षेत्र: मौसम जलविद्युत और सौर ऊर्जा जैसे ऊर्जा स्रोतों को प्रभावित करता है। पूर्वानुमान कुशल प्रबंधन में मदद करते हैं, स्थिर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं और वित्तीय नुकसान को कम करते हैं।
  • निर्माण और शहरी नियोजन
    • निर्माण परियोजनाओं की समय-सारणी बनाने के लिए मौसम पूर्वानुमान महत्त्वपूर्ण हैं, विशेषकर मानसून एवं सर्दियों के दौरान। वे देरी से बचने, श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और लागत कम करने में मदद करते हैं।
  • परिवहन और रसद
    • सड़क, रेल तथा समुद्र द्वारा सुरक्षित एवं कुशल परिवहन के लिए सटीक मौसम पूर्वानुमान महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, सर्दियों में कोहरे के पूर्वानुमान से उड़ान के शेड्यूल को प्रबंधित करने और दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिलती है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा
    • मौसम पूर्वानुमान से लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार होता है। उदाहरण के लिए, अत्यधिक तापमान की चेतावनी से हीट स्ट्रोक जैसी गर्मी से संबंधित बीमारियों को रोकने में मदद मिलती है।
  • जल संसाधन प्रबंधन
    • जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए पूर्वानुमान महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे सिंचाई की योजना बनाना और जलाशयों में जल स्तर को नियंत्रित करना।

आगे की राह

  • हाइपरलोकल रिस्क मैपिंग (Hyperlocal Risk Mapping)
    • बेहतर पूर्वानुमान की आवश्यकता: भारत को चक्रवात की तीव्रता, भूस्खलन और भूस्खलन के बाद के प्रभावों के लिए बेहतर पूर्वानुमान की आवश्यकता है।
    • हाइपर लोकल प्लानिंग (Hyperlocal Planning): विशिष्ट क्षेत्रों के लिए विस्तृत जोखिम मानचित्र बनाने से भारत को बेहतर तैयारी करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि चक्रवात जोखिमों के लिए सभी क्षेत्रों को कवर करना महँगा है।
  • आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा
    • जलवायु और राष्ट्रीय सुरक्षा: भारत की जलवायु संबंधी कमजोरियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दे भी हैं।
      • भारत की जलवायु संबंधी कमजोरियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों से आंतरिक रूप से जुड़ी हुई हैं, क्योंकि वे सामाजिक अशांति, संसाधन संघर्ष और आर्थिक अस्थिरता का कारण बन सकती हैं।
  • समाधान
    • क्षेत्रीय जलवायु नेटवर्क: भारत को मौसम और जलवायु नेटवर्क का निर्माण करना चाहिए, जिसमें उसके पड़ोसी देश भी शामिल हों, ताकि क्षेत्र में पूर्वानुमानों में सुधार हो और जलवायु जोखिमों का प्रबंधन किया जा सके।

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