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हिमालयी राज्यों में हिमस्खलन

Lokesh Pal March 19, 2025 03:20 82 0

संदर्भ

हाल ही में उत्तराखंड के चमोली जिले में माना दर्रे के पास सीमा सड़क संगठन (BRO) परियोजना स्थल पर हिमस्खलन हुआ।

माना दर्रा (Mana Pass)

  • माना दर्रा, जिसे माना ला के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया के सबसे ऊँचे (लगभग 5,543 मीटर की ऊँचाई) परिवहन अनुकूल दर्रों में से एक है। 
  • हिमालयी स्थान: भारत के उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास, ग्रेटर हिमालय में स्थित है।
  • सीमा पार: तिब्बत और उत्तराखंड के बीच मुख्य संपर्क तथा तिब्बती सीमा से पहले अंतिम भारतीय गाँव है।
    • भारत तथा तिब्बत के बीच सदियों से महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग के रूप में अवस्थित है।
  • माना दर्रे तक जाने वाली सड़क का निर्माण सीमा सड़क संगठन (BRO) ने भारतीय सेना के लिए वर्ष 2005 से वर्ष 2010 के मध्य किया था।

हिमस्खलन (Avalanche) के बारे में

  • हिमस्खलन एक पहाड़ी ढलान से बर्फ, हिम और मलबे का तेजी की ओर नीचे सरकना है। यह प्राकृतिक या मानव-प्रेरित कारकों के कारण होता है।
  • यह व्यापक विनाश का कारण बन सकता है, जनहानि, बुनियादी संरचनाओं और परिवहन मार्गों को अवरुद्ध कर सकता है।

हिमस्खलन के प्रकार 

  • शिथिल बर्फ हिमस्खलन (Loose Snow Avalanche): यह खड़ी ढलानों (>40°) पर शिथिल बर्फ के साथ उत्पन्न होता है।
    • यह हिमस्खलन कम घातक लेकिन विध्वंसकारी होता है।
  • फलक हिमस्खलन (Slab Avalanche): यह बड़ी, संसक्त बर्फ परत की दरारें एवं फिसलन के रूप में होता है।
    • यह 100 किमी./घंटा तक की गति के साथ सबसे खतरनाक होता है।

  • ग्लाइडिंग हिमस्खलन (Gliding Avalanche): संपूर्ण हिमखंड चिकनी सतहों (जैसे- चट्टान) पर फिसलता है।
    • 15° से अधिक ढलानों पर यह घटना आम है।
  • कणीय हिमस्खलन (Powder Avalanche): यह हवा में निलंबित बर्फ के कणों के साथ उच्च गति वाला हिमस्खलन होता है।
    • 300 किमी./घंटा की गति तक पहुँच सकता है, जिससे गंभीर शॉकवेव (Severe Shockwaves) उत्पन्न हो सकती हैं।
  • नम बर्फ हिमस्खलन (Wet Snow Avalanche): इसे तापमान वृद्धि या वर्षा के कारण बर्फ पिघलने से होने वाला हिमस्खलन कहा जाता है।
    • यह धीमी गति से होता है, लेकिन उच्च घनत्व के कारण अधिक विनाशकारी होता है।

हिमस्खलन क्षेत्र

  • रेड जोन: सबसे खतरनाक क्षेत्र, जहाँ हिमस्खलन सबसे अधिक होता है और जहाँ प्रति वर्ग मीटर 3 टन से अधिक का संघट्ट दाब होता है।
  • ब्लू जोन: इस क्षेत्र में हिमस्खलन बल 3 टन प्रति वर्ग मीटर से कम है और जहाँ सुरक्षित डिजाइन के साथ रहने एवं अन्य गतिविधियों की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन ऐसे क्षेत्रों को चेतावनी जारी करने पर खाली करना पड़ सकता है।
  • येलो जोन: इस क्षेत्र में हिमस्खलन कभी-कभार ही होता है।

हिमस्खलन के कारण

  • भारी बर्फबारी एवं हवा: बर्फ का तेजी से जमा होना बर्फ के ढेर पर भार एवं दाब को बढ़ाता है।
    • हवा बर्फ को हवा के विपरीत ढलानों पर ले जाती है, जिससे अस्थिर हिमपात की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे हिमस्खलन होने का खतरा बना रहता है।
    • माना गाँव हिमस्खलन (फरवरी, 2025): यहाँ घटना से दो दिन पहले भारी बर्फबारी के कारण बर्फ के ढेर पर भार बढ़ गया, जिससे हिमस्खलन हुआ।
  • खड़ी ढलानें (30° से 45° ढलान कोण): हिमस्खलन की संभावना सबसे अधिक 30° से 45° के कोण वाली ढलानों पर होती है।
    • चमोली हिमस्खलन (वर्ष 2021): एक विशाल हिमस्खलन, जो एक खड़ी ढलान से ग्लेशियर के एक टुकड़े के गिरने के कारण हुआ, जिसके कारण अचानक बाढ़ आई थी।
  • तापमान में उतार-चढ़ाव तथा बर्फ का पिघलना: बढ़ते तापमान या सौर विकिरण के कारण बर्फ पिघल जाती है और तापमान के कम होने पर पुनः जम जाती है, जिससे बर्फ की संरचनात्मक स्थिरता प्रभावित होती है।
    • रोहतांग दर्रा हिमस्खलन (मार्च 2019): बर्फ पिघलने से हिमस्खलन हुआ, जिससे सड़क का बुनियादी ढाँचा प्रभावित हुआ।
  • भूकंप एवं कंपन: भूकंपीय गतिविधियों या कंपन बर्फ के ढेर को अस्त-व्यस्त कर देते हैं, जिससे अस्थिर परतें प्रभावित होती हैं।
    • सिक्किम भूकंप (वर्ष 2011): उत्तरी सिक्किम क्षेत्र में भूस्खलन एवं हिमस्खलन का कारण भूकंप या कंपन था।
  • बर्फ की कमजोर परतें (फलक गठन): बर्फ की एक ठोस परत के नीचे लचीले तौर पर स्थिर बर्फ की परतें ढह सकती हैं, जिसके कारण हिमस्खलन हो सकता है।
    • फलक (स्लैब) हिमस्खलन सबसे घातक होते हैं, इस हिमस्खलन की गति 100 किमी./घंटा होती है।
    • गुलमर्ग में हिमस्खलन (वर्ष 2010): बर्फ की कमजोर परतों के कारण स्लैब हिमस्खलन में भारतीय सेना के 17 जवानों की मृत्यु हो गई
  • वनों की कटाई और निर्माण गतिविधियाँ: वनों की कटाई और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं जैसी मानवीय गतिविधियाँ ढलानों को अस्थिर करती हैं और हिमस्खलन के जोखिम को बढ़ाती हैं।
    • चार धाम परियोजना, उत्तराखंड: संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निर्माण ने हिमस्खलन एवं भूस्खलन की आवृत्ति बढ़ा दी है।
  • मानव गतिविधियाँ: स्कीइंग, स्नोबोर्डिंग और सैन्य अभ्यास बर्फ की परतों को अस्थिर करते हैं, जिससे अस्थिरता बढ़ती है।
    • सियाचिन हिमस्खलन (फरवरी 2016): सियाचिन क्षेत्र के ऊँचे-ऊँचे इलाकों में सैन्य अभियानों के कारण कई हिमस्खलन हुआ।

भारत में हिमस्खलन संभावित क्षेत्र

  • हिमालय क्षेत्र हिमस्खलन की घटनाओं के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से पश्चिमी हिमालय, अर्थात् जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बर्फीले क्षेत्र।
    • जम्मू और कश्मीर: कश्मीर और गुरेज घाटियों, कारगिल और लद्दाख के ऊँचे इलाके।
    • हिमाचल प्रदेश: चंबा, कुल्लू-स्पीति और किन्नौर संवेदनशील क्षेत्र।
    • उत्तराखंड: टिहरी गढ़वाल और चमोली जिलों के कुछ हिस्से संवेदनशील क्षेत्र हैं।

हिमालयी क्षेत्र हिमस्खलन के प्रति संवेदनशील क्यों हैं?

  • खड़ी ढलान तथा संवेदनशील भूविज्ञान: हिमालय की विशेषता खड़ी ढलान (30° से 45°) है, जो हिमस्खलन के लिए अनुकूल है।
    • भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के अभिसरण से निर्मित यह क्षेत्र अधिक अस्थिर है और भूस्खलन और हिमस्खलन के लिए प्रवण बनाता है।
  • भारी बर्फबारी और बर्फ का जमाव: हिमालय में सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी होती है, विशेषकर ऊँचाई वाले इलाकों में जहाँ बर्फ तेजी से जमती है।
  • तापमान में उतार-चढ़ाव और जमने-पिघलने का चक्र: हिमालय क्षेत्र में तापमान में तेजी से उतार-चढ़ाव होता है, विशेषकर दिन एवं रात के बीच।
  • उच्च भूकंपीय गतिविधि एवं भूकंप: हिमालय क्षेत्र भूकंपीय जोन IV और V में स्थित है, जो इसे भूकंप के लिए प्रवण बनाता है।
  • जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग: बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण हिमालय में हिमनद तेजी से सिकुड़ रहे हैं और बर्फ पिघल रही है।
  • अनियोजित निर्माण और वनों की कटाई: संवेदनशील हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में अनियमित निर्माण और वनों की कटाई ढलान की स्थिरता को कमजोर करती है।

हिमस्खलन के परिणाम तथा प्रभाव

  • जनधन की हानि: हिमस्खलन के कारण दम घुटने, आघात और हाइपोथर्मिया होता है।
  • बुनियादी ढाँचे और संपत्ति का विनाश: हिमस्खलन से सड़कें, रेलवे, इमारतें और पुल दब सकते हैं, जिससे आवश्यक संचार और परिवहन संपर्क प्रभावित हो सकता है।
  • संचार एवं उपयोगिताओं में व्यवधान: हिमस्खलन से विद्युत लाइनें, संचार नेटवर्क और जल आपूर्ति प्रणाली को नुकसान पहुँचता है।
  • पर्यावरणीय खतरे: हिमस्खलन से बर्फ पिघलने से जल प्रवाह बढ़ता है, जिससे निचले इलाकों में भूस्खलन और अचानक बाढ़ आती है।
  • आर्थिक प्रभाव: हिमस्खलन से पर्यटन बाधित होता है, बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुँचता है और स्थानीय समुदायों की आजीविका प्रभावित होती है।

हिमस्खलन से बचाव के उपाय

  • बर्फ अवरोधक एवं बाड़ लगाना: हवा की गति को कम करने तथा बर्फ के जमाव को नियंत्रित करने के लिए हिमस्खलन-प्रवण ढलानों पर बर्फ अवरोधक और बाड़ लगाए जाते हैं।
    • ये अवरोध बर्फ की परतों को स्थिर रखते हैं, जिससे उनका अचानक ढहना रुक जाता है।
    • प्रकार
      • कठोर बर्फ बाड़ (Rigid Snow Fence): हवा की गति को कम करना तथा बर्फ को धीरे-धीरे जमा होने देना।
      • लचीले अवरोध (Flexible Barriers): इसके द्वारा हिमस्खलन की ऊर्जा को अवशोषित तथा नष्ट करने का प्रयास किया जाता है, जिससे प्रभाव कम से कम हो जाता है।
  • विक्षेपक संरचनाएँ (हिमस्खलन विक्षेपक और पथांतरित बांध): विक्षेपक और पथांतरित बांध हिमस्खलन के प्रवाह को आबादी वाले क्षेत्रों तथा महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे से दूर पुनर्निर्देशित करते हैं।
    • ये संरचनाएँ बर्फ को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाती हैं, जिससे संवेदनशील क्षेत्रों पर प्रभाव कम होता है।
    • प्रकार
      • V-आकार के विक्षेपक: यह हिमस्खलन के प्रवाह को विभाजित करता है तथा इसे दोनों तरफ मोड़ देता है।
      • पथांतरित बांध (Diversion Dam): हिमस्खलन को रोकने तथा उसे पूर्व निर्धारित मार्गों की ओर ले जाता है।
  • नियंत्रित विस्फोट और कृत्रिम हिमस्खलन को ट्रिगर करना: नियंत्रित विस्फोटों से बड़े, अनियंत्रित हिमस्खलन होने से पहले छोटे, प्रबंधनीय हिमस्खलन उत्पन्न होते हैं।
    • नियंत्रित परिस्थितियों में पूर्व-निवारक हिमस्खलन को प्रेरित करके बर्फ़ के संचय को कम किया जाता है।
    • विधि
      • गैस विस्फोटक: दूर से विस्फोटित किए जाने वाले उपकरण जो हिमस्खलन को सक्रिय करते हैं।
      • हिमस्खलन मोर्टार: बर्फ को ढीला या अस्थिर करने के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में गोले दागे जाते हैं।
  • हिमस्खलन सुरक्षा सुरंगें और सँकरे रास्ते: हिमस्खलन सुरंगें तथा सँकरे रास्ते वाहनों और पैदल यात्रियों के लिए हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों से सुरक्षित मार्ग प्रदान करती हैं।
    • ये संरचनाएँ प्रबलित कंक्रीट से बनी हैं तथा बर्फ एवं मलबे के प्रभाव को झेलने के लिए डिजाइन की गई हैं।
    • उदाहरण: रोहतांग सुरंग (अटल सुरंग), हिमाचल प्रदेश: वर्षभर संपर्क सुनिश्चित करने और यात्रियों को हिमस्खलन से बचाने के लिए बनाई गई है।
  • ढलान परिवर्तन एवं स्थिरीकरण तकनीकें: ढलानों के कोण में परिवर्तन करके हिमस्खलन का जोखिम कम किया जा सकता है।
    • ढलान परिवर्तन में सीढ़ीनुमा कृषि, वनस्पति रोपण, तथा ढलान सुदृढ़ीकरण शामिल है।
    • तकनीकें
      • सीढ़ीदार (Terracing): ढलान के कोण और बर्फ के जमाव को कम करता है।
      • स्नो रेक (Snow Rakes): बर्फ के बड़े स्लैब के निर्माण को रोकता है।
  • जोनिंग तथा भूमि उपयोग योजना: उचित जोनिंग और भूमि-उपयोग विनियमन हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण को रोकते हैं।
    • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों को हिमस्खलन खतरे के मानचित्रों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है तथा निर्माण कार्य को तदनुसार प्रतिबंधित किया जाता है।
    • जोनिंग श्रेणियाँ
      • रेड जोन: उच्च जोखिम वाला क्षेत्र; निर्माण गतिविधियों को निषिद्ध किया जाता है।
      • ब्लू जोन: मध्यम जोखिम वाला क्षेत्र; सुरक्षा उपायों के साथ प्रतिबंधित विकास को बढ़ावा दिया जाता है।
      • यलो जोन: कम जोखिम वाला क्षेत्र; हिमस्खलन की घटनाएँ कभी-कभी होती हैं।
  • सामुदायिक प्रशिक्षण और तैयारी कार्यक्रम: स्थानीय समुदायों को हिमस्खलन के जोखिम और बचने की तकनीकों के बारे में शिक्षित करने से आपदा से निपटने की क्षमता में सुधार होता है।
    • आपात स्थिति के दौरान समुदाय के सदस्यों को चेतावनी के संकेतों को पहचानने तथा मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOPs) का पालन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

हिमस्खलन प्रबंधन के लिए वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास: भारत के लिए सबक

स्विट्जरलैंड: उन्नत हिमस्खलन पूर्वानुमान एवं निगरानी

  • स्विट्जरलैंड में ‘स्विस फेडरल इंस्टिट्यूट फॉर स्नो एंड एवलांच रिसर्च’ (SLF) द्वारा संचालित एक अत्यधिक उन्नत हिमस्खलन पूर्वानुमान प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
  • यह निम्नलिखित से डेटा एकीकृत करता है:-
    • बर्फ की स्थिरता पर नजर रखने के लिए ‘डॉपलर रडार और ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन’ (AWS)।
    • हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की पहचान के लिए रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट इमेजरी
    • रियल टाइम अपडेट के लिए स्की रिसॉर्ट तथा पर्वतारोहियों से क्राउडसोर्स्ड डेटा

नॉर्वे: नियंत्रित हिमस्खलन ट्रिगरिंग और जोखिम न्यूनीकरण

  • नॉर्वे बड़े, अनियंत्रित हिमस्खलन को रोकने के लिए नियंत्रित हिमस्खलन ट्रिगरिंग का उपयोग करता है।
  • विधि
    • गैस विस्फोटक: रणनीतिक स्थानों पर गैस विस्फोट जारी करके छोटे हिमस्खलन को ट्रिगर करना।
    • हेलीकॉप्टर बमबारी: बर्फ के निर्माण को कम करने के लिए अस्थिर ढलानों पर विस्फोटक गिराना।

संयुक्त राज्य अमेरिका: समुदाय-आधारित हिमस्खलन शिक्षा एवं जागरूकता

  • अमेरिकी वन सेवा हिमस्खलन केंद्र (U.S. Forest Service Avalanche Center- USFSAC) उच्च जोखिम वाले राज्यों में व्यापक समुदाय-आधारित हिमस्खलन शिक्षा कार्यक्रम चलाता है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • जाने से पहले जानें (Know Before You Go- KBYG) कार्यक्रम: बाहरी गतिविधियों के शौकीनों को हिमस्खलन से सुरक्षा के बारे में आवश्यक जानकारी देता है।
    • हिमस्खलन सुरक्षा ऐप: वास्तविक समय में अपडेट, सुरक्षा सुझाव और आपातकालीन संपर्क प्रदान करता है।

जापान: जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचा और हिमस्खलन अवरोधक

  • जापान बस्तियों और परिवहन नेटवर्क की सुरक्षा के लिए जलवायु-लचीले बुनियादी ढाँचे तथा हिमस्खलन विक्षेपकों का उपयोग करता है।
  • मुख्य संरचनाएँ
    • हिमस्खलन अवरोधक: बर्फ को आबादी वाले क्षेत्रों से दूसरी तरफ मोड़ना।
    • बर्फ धारण संरचनाएँ (Snow Retention Structures): बर्फ के जमाव को नियंत्रित करना और अचानक बर्फ गिरने से रोकना।

भारत में हिमस्खलन प्रबंधन और शमन के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) दिशा-निर्देश (2009)
    • NDMA ने आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए ‘भूस्खलन तथा हिमस्खलन प्रबंधन’ दिशा-निर्देश (2009) तैयार किए।
    • ये दिशा-निर्देश हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों के लिए जोखिम मूल्यांकन, खतरनाक क्षेत्रीकरण और क्षमता निर्माण पर केंद्रित हैं।
    • प्रमुख प्रावधान
      • खतरा क्षेत्र मानचित्रण: उच्च जोखिम वाले हिमस्खलन क्षेत्रों की पहचान।
      • पूर्व चेतावनी प्रणाली: डॉपलर रडार तथा रिमोट सेंसिंग का उपयोग करके वास्तविक समय की निगरानी प्रणाली की स्थापना।
      • प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण: समुदायों तथा आपदा प्रतिक्रिया टीमों के लिए जागरूकता कार्यक्रम और मॉक ड्रिल आयोजित करना।
  • सीमा सड़क संगठन (BRO): बुनियादी ढाँचे की लचीलापन
    • BRO प्रत्येक वर्ष संपर्क सुनिश्चित करने के लिए हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में रणनीतिक सड़कों तथा सुरंगों का निर्माण एवं रखरखाव करता है।
    • यह परिवहन नेटवर्क की सुरक्षा के लिए उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में हिमस्खलन सुरक्षा संरचनाओं को शामिल करता है।
    • प्रमुख परियोजनाएँ
      • अटल सुरंग (रोहतांग सुरंग), हिमाचल प्रदेश: सभी मौसम में संपर्क सुनिश्चित करने और यात्रियों को हिमस्खलन से बचाने के लिए बनाया गया है।
      • जोजिला सुरंग, जम्मू और कश्मीर: भारी हिमपात और हिमस्खलन की स्थिति का सामना करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो लद्दाख से संपर्क सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC): उपग्रह आधारित निगरानी
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अंतर्गत NRSC उपग्रह इमेजरी और रिमोट सेंसिंग डेटा का उपयोग करके हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की निगरानी करता है।
    • यह वास्तविक समय में बर्फ आवरण विश्लेषण एवं हिमस्खलन का पूर्वानुमान के लिए कार्टोसैट, सेंटिनल-2 तथा लैंडसैट इमेजरी का उपयोग करता है।
    • प्रमुख गतिविधियाँ
      • हिमस्खलन खतरा मानचित्रण: उच्च हिमस्खलन क्षमता वाले बर्फ से ढके क्षेत्रों की पहचान करना।
      • रियल टाइम निगरानी: निरंतर निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रसार के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग करना।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMAs): राज्य स्तरीय तैयारी
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित SDMA हिमस्खलन के जोखिम को कम करने के लिए राज्य-स्तरीय आपदा प्रबंधन योजनाओं को लागू करते हैं।
    • वे स्थानीय पूर्वानुमान और सामुदायिक प्रशिक्षण के लिए IMD, SASE, तथा SDMA के साथ समन्वय करते हैं।
  • राष्ट्रीय भूस्खलन और हिमस्खलन जोखिम न्यूनीकरण परियोजना (National Landslide and Avalanche Risk Mitigation Project- NLARMP)
    • केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत शुरू की गई NLARMP का लक्ष्य वैज्ञानिक अनुसंधान, क्षमता निर्माण और बुनियादी ढाँचे की मजबूती के माध्यम से भूस्खलन तथा हिमस्खलन के जोखिम को कम करना है।
    • मुख्य घटक
      • जोखिम मानचित्रण और भेद्यता आकलन: NRSC तथा SASE के सहयोग से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना।
      • पूर्व चेतावनी प्रणालियों का विकास: हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों के लिए वास्तविक समय निगरानी प्रणालियों की स्थापना।
  • हिमस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS)
    • भारतीय मौसम विभाग (IMD) हिमस्खलन पूर्वानुमान प्रणाली: IMD बर्फबारी, ढलान की स्थिरता, तापमान में उतार-चढ़ाव और हवा के पैटर्न की निगरानी करके हिमस्खलन की निगरानी एवं पूर्वानुमान करता है।
      • यह हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की भविष्यवाणी करने के लिए संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान (Numerical Weather Prediction- NWP) मॉडल और ऐतिहासिक डेटा का उपयोग करता है।
    • हिमपात और हिमस्खलन अध्ययन प्रतिष्ठान (Snow and Avalanche Study Establishment- SASE): DRDO की पहल
      • DRDO के अंतर्गत SASE निम्नलिखित का उपयोग करके हिमस्खलन अनुसंधान और पूर्वानुमान करता है:-
        • स्वचालित मौसम स्टेशन (AWS): तापमान, हवा की गति और बर्फ की गहनता पर नजर रखता है।
        • रिमोट सेंसिंग डेटा: हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों के मानचित्रण में सहायता करता है।
      • उच्च ऊँचाई वाले सैन्य क्षेत्रों और नागरिक क्षेत्रों के लिए हिमस्खलन की चेतावनी प्रदान करता है।
    • रिमोट सेंसिंग और AI-आधारित पूर्वानुमान मॉडल: रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट (जैसे, कार्टोसैट, सेंटिनल-2 और लैंडसैट) बर्फ के जमाव और हिमस्खलन के जोखिम की पहचान करने के लिए वास्तविक समय का डाटा प्रदान करते हैं।
    • डॉपलर रडार और इन्फ्रारेड सैटेलाइट सेंसिंग (DrISS): डॉपलर रडार और इन्फ्रारेड सैटेलाइट इमेजिंग वास्तविक समय में बर्फ के घनत्व, वेग और गति का पता लगाते हैं।

आगे की राह

  • हिमस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS) को मजबूत करना: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) को मौजूदा पूर्वानुमान मॉडल के साथ एकीकृत करके वास्तविक समय में पता लगाने और पूर्वानुमान लगाने की क्षमताओं को बढ़ाना।
    • निरंतर निगरानी के लिए हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में डॉपलर रडार और स्वचालित मौसम स्टेशनों (AWS) के नेटवर्क का विस्तार करना।
  • जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचा विकसित करना: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में कठोर मौसम की स्थिति का सामना करने के लिए हिमस्खलन-लचीला बुनियादी ढाँचा डिजाइन और निर्माण करना।
    • कमजोर क्षेत्रों में विक्षेपण संरचनाएँ, बर्फ अवरोध और हिमस्खलन सुरक्षा सुरंगें शामिल करना।
  • समुदाय आधारित आपदा तैयारी एवं जागरूकता: क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों, मॉक ड्रिल और जागरूकता अभियानों के माध्यम से हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना।
    • निवासियों, पर्यटकों और श्रमिकों को हिमस्खलन चेतावनी संकेतों को पहचानने तथा सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने के बारे में शिक्षित करना।
  • रिमोट सेंसिंग और एआई आधारित निगरानी को एकीकृत करना: वास्तविक समय में स्नोपैक निगरानी और खतरे के मानचित्रण के लिए उपग्रह-आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक तथा AI एल्गोरिदम का उपयोग करना।
    • उपग्रह इमेजरी का विश्लेषण करने और ढलान अस्थिरता के शुरुआती संकेतों का पता लगाने के लिए हिमस्खलन जोखिम शमन केंद्र स्थापित करना।
  • कठोर जोनिंग और भूमि उपयोग विनियमन लागू करना: हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण को रोकने के लिए कठोर भूमि-उपयोग नीतियों और जोखिम जोनिंग को लागू करना।
    • मध्यम-जोखिम वाले क्षेत्रों में पर्यावरण-संवेदनशील निर्माण को बढ़ावा देते हुए उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों में विकास को प्रतिबंधित करना।
  • अंतर-एजेंसी समन्वय तथा प्रतिक्रिया तंत्र को मजबूत करना: हिमस्खलन प्रबंधन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के लिए NDMA, IMD, SASE, BRO, SDMA और भारतीय सेना के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा देना।
    • आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों को कारगर बनाने के लिए एकीकृत हिमस्खलन प्रतिक्रिया तंत्र (UARM) की स्थापना करना।

निष्कर्ष

भारत में प्रभावी हिमस्खलन प्रबंधन के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें उन्नत पूर्वानुमान, जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचा, सामुदायिक जागरूकता तथा कठोर जोनिंग विनियमन शामिल हों। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाकर तथा अंतर-एजेंसी समन्वय को मजबूत करके, भारत हिमस्खलन से संबंधित जोखिमों को काफी हद तक कम कर सकता है तथा हिमालयी क्षेत्र में संवेदनशील समुदायों की रक्षा कर सकता है।

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