हाल ही में ईरान के तेहरान में हवाई हमले में हमास नेता इस्माइल हानिया की मौत हो गई।
यद्यपि इजरायल ने आधिकारिक तौर पर हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन हमास और ईरान दोनों ने इस हमले के लिए इजरायल को दोषी ठहराया है और गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है।
प्रतिरोध की धुरी (Axis of Resistance)
प्रतिरोध की धुरी ईरान, सीरिया और विभिन्न संबद्ध समूहों को शामिल करने वाले एक अनौपचारिक सैन्य गठबंधन को संदर्भित करती है।
ईरान के नेतृत्व वाली ‘प्रतिरोध की धुरी’ में प्रमुख समूह।
हिज्बुल्लाह
उत्पत्ति: 1980 के दशक की शुरुआत में ईरान के ‘रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स’ द्वारा स्थापित।
पृष्ठभूमि: लेबनान में इजरायली सेना से लड़ने के लिए गठित शिया उग्रवादी समूह।
शक्ति: अनुमानित 30,000 से 45,000 सदस्य।
संघर्ष: इजरायल के साथ लगातार संघर्ष, जिसमें वर्ष 2006 में एक महत्त्वपूर्ण युद्ध भी शामिल है।
हमास
उत्पत्ति: वर्ष 1987 में प्रथम इंतिफादा के दौरान स्थापित फिलिस्तीनी सुन्नी आतंकवादी समूह।
नियंत्रण: वर्ष 2007 से गाजा पट्टी पर शासन करता है।
विपक्ष: जायोनीवाद के विरुद्ध है और ईरान से समर्थन प्राप्त करता है।
फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद(PIJ)
उत्पत्ति: सुन्नी इस्लामवादी आतंकवादी समूह की स्थापना वर्ष 1979 में ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ की एक शाखा के रूप में हुई।
उद्देश्य: फिलिस्तीन में एक इस्लामी राज्य की स्थापना करना।
उपस्थिति: गाजा पट्टी और पश्चिमी तट में दूसरा सबसे बड़ा आतंकवादी समूह।
हौती
उत्पत्ति: यमन के गृहयुद्ध में शामिल जायदी शिया उग्रवादी समूह।
नियंत्रण: वर्ष2014 से उत्तरी यमन पर अधिकार कर लिया और उस पर नियंत्रण कर लिया।
हाल की कार्रवाइयाँ: गाजा में इजरायल की कार्रवाइयों के जवाब में लाल सागर में जहाजों पर हमला किया।
उद्देश्य और विचार
यह गठबंधन नाटो, इजरायल और सऊदी अरब के विरोध के लिए जाना जाता है।
यह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध से संबंधित संघर्षों में शामिल है।
उद्देश्य और गतिविधियाँ
गठबंधन का उद्देश्य इजरायल की कार्रवाइयों को जटिल बनाना और इजरायल का समर्थन करने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए लागत बढ़ाना है।
यह अल-कायदा और ISIS जैसे सुन्नी सलाफी सशस्त्र समूहों का भी विरोध करता है।
प्रमुख विशेषता
इस गठबंधन को इसके साझा पश्चिम-विरोधी और इजरायल-विरोधी रुख तथा इसके व्यापक क्षेत्रीय लक्ष्यों द्वारा परिभाषित किया जाता है।
‘प्रतिरोध की धुरी’ का गठन
उत्पत्ति
इस गठबंधन की जड़ें वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति से जुड़ी हैं, जिसने कट्टरपंथी शिया मौलवियों को सत्ता में ला खड़ा किया।
सऊदी अरब जैसे सुन्नी बहुल देशों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ईरान ने गैर-सरकारी तत्त्वों का समर्थन करना शुरू कर दिया।
वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति
इस क्रांति को इस्लामी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
इसने शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन को समाप्त कर दिया, जिससे पहलवी राजवंश का पतन हो गया।
इस क्रांति के परिणामस्वरूप इस्लामी गणतंत्र ईरान की स्थापना हुई।
इस गठबंधन का निर्माण इजरायल और अमेरिका से संभावित खतरों का मुकाबला करने के लिए भी किया गया था, क्योंकि इजरायल के निर्माण को क्षेत्र में पश्चिमी प्रभाव के लिए एक उपकरण के रूप में देखा गया था।
नामकरण
‘प्रतिरोध की धुरी’ शब्द पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के ‘बुराई की धुरी’ (Axis of Evil) से प्रेरित है, जिसका उपयोग उन्होंने वर्ष 2002 में अपने ‘स्टेट ऑफ द यूनियन’ संबोधन में ईरान, इराक और उत्तर कोरिया का वर्णन करने के लिए किया था।
भारत की अर्थव्यवस्था पर ‘प्रतिरोध की धुरी’ का प्रभाव
मध्य पूर्व के साथ व्यापारिक और आर्थिक संबंध
नकारात्मक प्रभाव
भू-राजनीतिक तनाव: प्रतिरोध की धुरी, विशेषकर ईरान और उसके सहयोगियों की गतिविधियाँ क्षेत्र में अस्थिरता पैदा कर सकती हैं।
इससे व्यापार मार्ग बाधित हो सकते हैं और भारतीय व्यवसायों के लिए सुरक्षा जोखिम पैदा हो सकता है, जिससे निवेश में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
प्रतिबंध संबंधी मुद्दे: ईरान और उसके सहयोगियों के विरुद्ध पश्चिमी प्रतिबंध तथा संभावित जवाबी उपाय, भारतीय कंपनियों के लिए व्यापारिक लेनदेन को और अधिक जटिल बना सकते हैं।
इसके परिणामस्वरूप लागत बढ़ सकती है और नौकरशाही संबंधी बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
संसाधन प्रतिस्पर्द्धा: प्रतिरोध की धुरी के बढ़ते प्रभाव से ऊर्जा जैसे प्रमुख संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्द्धा बढ़ सकती है।
इससे कीमतें बढ़ सकती हैं और भारत में आपूर्ति शृंखला संबंधी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
सुरक्षा जोखिम: प्रतिरोध की धुरी के कुछ समूह आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त हैं, जो इस क्षेत्र में भारतीय व्यवसायों और नागरिकों के लिए सुरक्षा खतरा पैदा कर सकते हैं।
सकारात्मक प्रभाव
विविध व्यापार भागीदार: ईरान और प्रतिरोध की धुरी के अन्य देशों के साथ जुड़कर, भारत अपने व्यापार संबंधों को व्यापक बना सकता है, जिससे पारंपरिक खाड़ी भागीदारों पर निर्भरता कम हो सकती है।
नए बाजार के अवसर: इन देशों के साथ व्यापार का विस्तार करने से भारतीय उत्पादों और सेवाओं के लिए नए बाजार बन सकते हैं, खासकर फार्मास्यूटिकल्स, कृषि और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में।
ऊर्जा आपूर्ति: ईरान के साथ निरंतर व्यापार भारत के लिए तेल और गैस के किफायती और विश्वसनीय स्रोतों को सुरक्षित करने में मदद कर सकता है, जिससे इसकी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।
भारत के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए रणनीतियाँ
व्यापार संबंधों को व्यापक बनाना: अन्य खाड़ी देशों के साथ व्यापार संबंधों को मजबूत करना तथा इराक, जॉर्डन और लेबनान जैसे देशों में अवसरों का पता लगाना।
जोखिमों का प्रबंधन करना: क्षेत्र में व्यावसायिक निर्णय लेने से पहले जोखिमों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना। आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाना और संभावित नुकसान से बचाव के लिए बीमा पर विचार करना।
राजनयिक संबंध बनाए रखना: तनाव को सँभालने और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए ईरान सहित सभी क्षेत्रीय देशों के साथ मजबूत राजनयिक संबंध बनाए रखना।
स्थिरता प्रयासों का समर्थन करना: व्यापार और निवेश के लिए बेहतर माहौल बनाने के लिए मध्य पूर्व में शांति और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाली पहलों में शामिल हों।
अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करना: सुनिश्चित करना कि भारतीय व्यवसाय सभी प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय विनियमों और प्रतिबंधों का अनुपालन करते हैं।
व्यावसायिक कौशल विकसित करना: मध्य-पूर्व में संचालित भारतीय व्यवसायों के कौशल और विशेषज्ञता को बढ़ाने में निवेश करना।
हिज्बुल्लाह और हौती: भारत के आतंकवाद-रोधी और क्षेत्रीय सुरक्षा पर प्रभाव
आतंकवाद विरोधी रणनीतियों पर प्रभाव
विस्तारित खतरे: हिज्बुल्लाह और हौतियों को कई देशों द्वारा आतंकवादी संगठन करार दिया गया है। उनकी गतिविधियों से भारत के सामने बम विस्फोट और अपहरण जैसे खतरे बढ़ गए हैं।
वैश्विक संबंध: इन समूहों के पास अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क हैं, जो भारत सहित अन्य आतंकवादी संगठनों को कौशल, प्रौद्योगिकी और धन हस्तांतरित कर सकते हैं।
यह भारत के लिए वैश्विक आतंकवाद के खतरे को और अधिक महत्त्वपूर्ण बनाता है।
क्षेत्रीय अस्थिरता: हिज्बुल्लाह और हौतियों की कार्रवाइयाँ उनके क्षेत्रों में अस्थिरता में योगदान करती हैं।
यह अस्थिरता एक ऐसा माहौल बना सकती है, जहाँ आतंकवाद पनप सकता है, जिससे भारत के आतंकवाद विरोधी प्रयास प्रभावित हो सकते हैं।
खुफिया कठिनाइयाँ: हिज्बुल्लाह और हौतियों पर नजर रखना उनके गुप्त संचालन और वैश्विक संबंधों के कारण चुनौतीपूर्ण है। यह भारतीय खुफिया एजेंसियों के काम को जटिल बनाता है।
क्षेत्रीय सुरक्षा नीतियों पर प्रभाव
जटिल कूटनीतिक संबंध: प्रतिरोध की धुरी से जुड़े देशों के साथ भारत के संबंध जटिल हैं। भारत को सुरक्षा चिंताओं के साथ आर्थिक हितों को संतुलित करने के लिए अपने कूटनीतिक संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना चाहिए।
समुद्री सुरक्षा जोखिम: हिंद महासागर भारत के व्यापार और सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है। हिज्बुल्लाह और हौतियों की मौजूदगी समुद्री आतंकवाद और समुद्री डकैती के जोखिम को बढ़ाती है।
ऊर्जा सुरक्षा मुद्दे: भारत मध्य पूर्व से तेल आयात पर निर्भर करता है। इन समूहों के कारण होने वाली अस्थिरता तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकती है और ऊर्जा की कीमतों को बढ़ा सकती है, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित होती है।
कूटनीतिक चुनौतियाँ: क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों में इन समूहों की गतिविधियों के कारण बाधा आती है।
हिज्बुल्लाह और हौतियों द्वारा उत्पन्न खतरों को संबोधित करते हुए क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संबंधों को प्रबंधित करने के लिए सावधानीपूर्वक कूटनीति की आवश्यकता होती है।
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