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बैड बैंक वित्त वर्ष 2026 तक ₹2 ट्रिलियन का अधिग्रहण करेगा

Lokesh Pal August 09, 2024 03:07 92 0

संदर्भ

नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (National Asset Reconstruction Company Ltd- NARCL) का लक्ष्य वित्त वर्ष 2026 तक बैंकों की 2 ट्रिलियन रुपये मूल्य की तनावग्रस्त या गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का अधिग्रहण करना है। 

  • वित्त वर्ष 2024 तक, NARCL ने पहले ही NPA अधिग्रहण में ₹1 ट्रिलियन का आँकड़ा हासिल कर लिया था। 

बैड बैंक (BAD Bank) के बारे में 

  • बैड बैंक एक ‘एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी’ (ARC) या ‘एसेट मैनेजमेंट कंपनी(AMC) है। 
  • ऋण प्रबंधन: यह वाणिज्यिक बैंकों से खराब ऋणों को अपने अधीन लेता है, उनका प्रबंधन करता है तथा समय के साथ उनकी वसूली करता है। 
  • बैलेंस शीट क्लीनअप (Balance Sheet Cleanup): वाणिज्यिक बैंकों को अपनी बैलेंस शीट को सही करने और खराब ऋणों का समाधान करने में मदद करता है। 
  • परिचालन एवं वित्तीय
    • कोई ऋण या जमा नहीं: बैड बैंक ऋण देने या जमा लेने में संलग्न नहीं होता है। 
    • ऋण अधिग्रहण: यह आमतौर पर उनके बही मूल्य से कम मूल्य के खराब ऋणों को अपने अधीन ले लेता है। 
    • वसूली के प्रयास: इसका उद्देश्य ऋण मूल्य का यथासंभव अधिकतम हिस्सा वसूलना है।

नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL)

  • NARCL भारत में एक बैड बैंक के रूप में कार्य करता है। 
  • केंद्रीय बजट 2021-22 में 500 करोड़ रुपये से अधिक के बड़े ऋणों को सँभालने के लिए बैड बैंक बनाने की योजना की घोषणा की गई थी। 
  • नई संरचना
    • NARCL की भूमिका: बैंकों से खराब ऋण खातों को प्राप्त करना और उनका एकत्रीकरण करना। 
    • IDRCL की भूमिका: इंडिया डेब्ट रेजॉल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL), NARCLके साथ एक विशेष व्यवस्था के तहत समाधान प्रक्रिया को सँभालेगी।

तनावग्रस्त परिसंपत्तियाँ (Stressed Assets)

  • इसमें गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets- NPA), पुनर्गठित ऋण और बट्टे खाते में डाली गई परिसंपत्तियाँ शामिल हैं।
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ + पुनर्गठित ऋण + बट्टे खाते में डाली गई परिसंपत्तियाँ = तनावग्रस्त परिसंपत्तियाँ

(NPAs + Restructured Loans + Written-off Assets = Stressed Assets)

 

  • तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का स्तर बैंकिंग क्षेत्र के समग्र स्वास्थ्य को दर्शाता है। 

 गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) के बारे में

  • RBI के अनुसार, किसी परिसंपत्ति को तब गैर-निष्पादित माना जाता है जब वह बैंक के लिए आय उत्पन्न करना बंद कर देती है। 
    • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ ऐसे ऋण या अग्रिम होते हैं, जिनमें मूलधन या ब्याज का भुगतान 90 दिन या उससे अधिक समय से बकाया होता है। 
    • वर्गीकरण: बैंकों द्वारा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ को अवमानक, संदिग्ध और हानि वाली परिसंपत्तियों में वर्गीकृत किया जाता है। 

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बैड बैंकों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • जटिल मूल्यांकन: गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का उचित मूल्य निर्धारित करना जटिल है और अक्सर विवादित होता है। 
  • वित्तीय जोखिम: अधिक मूल्यांकन से हानि हो सकती है, जबकि कम मूल्यांकन से अपर्याप्त वसूली हो सकती है। 
  • कठिन वसूली: खराब ऋणों से मूल्य निकालना चुनौतीपूर्ण और लंबा कार्य है।
  • पूँजी की आवश्यकता: बैंकों से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है। 
  • बाजार में अस्थिरता: उतार-चढ़ाव से परिसंपत्ति की बिक्री और वसूली के प्रयास प्रभावित हो सकते हैं। 
  • विशिष्ट कौशल: संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के प्रबंधन के लिए विशेषज्ञता और विशिष्ट कौशल की आवश्यकता होती है। 

बैड बैंक के पक्ष एवं विपक्ष

पक्ष

विवरण

समेकन  सभी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को एक इकाई के अंतर्गत एकत्रित करना, जिससे परिसंपत्ति पुनर्निर्माण में दक्षता में सुधार होगा।
पूँजी मुक्त करना  यह बैंकों को ऋण-योग्य ग्राहकों को ऋण देने के लिए प्रावधानों का उपयोग करने की अनुमति देता है। 
बेहतर पूँजी बफर  सरकारी समर्थन से बैंकों में ऋण देने के प्रति विश्वास बढ़ता है।
विपक्ष विवरण
अंतर-सरकारी हस्तांतरण  मूल समस्या का समाधान किए बिना गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का दायित्व एक सरकारी संस्था से दूसरी सरकारी संस्था पर स्थानांतरित कर दिया जाता है। 
प्रोत्साहन का अभाव  कम लाभ के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों में खराब ऋण के मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने की प्रेरणा की कमी हो सकती है। 
नैतिक जोखिम सरकारी राहत पैकेज बैंकों को सावधानीपूर्वक ऋण देने की प्रथाओं से हतोत्साहित कर सकता है।

स्विस चैलेंज (Swiss Challenge) विधि

  • यह एक बोली पद्धति है, जिसका उपयोग सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए किया जाता है।
  • यह पद्धति निजी हितधारकों और राज्य समर्थित कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से सरकारी अनुबंध स्वीकार करने की अनुमति देती है। 
  • यह बुनियादी ढाँचा डेवलपर्स को स्वतंत्र रूप से नई परियोजनाएँ प्रस्तावित करने की अनुमति देता है,
    • यह सरकारी बोलियों की प्रतीक्षा किए बिना नवाचार को बढ़ावा देता है।
  • उपयोग: कई भारतीय राज्यों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब और गुजरात द्वारा सड़कों और आवास परियोजनाओं के लिए उपयोग किया जाता है।

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