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भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध

Lokesh Pal February 08, 2025 02:51 28 0

संदर्भ

मध्य प्रदेश के भोपाल में सभी सार्वजनिक स्थानों पर भीख माँगने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है; यह निर्णय इंदौर के इसी तरह के आदेश के बाद लिया गया है।

प्रतिबंध से संबंधित मुख्य बिंदु

  • उद्देश्य: विस्थापित भिखारियों के लिए वैकल्पिक समाधान प्रदान करते हुए भिक्षावृत्ति की समस्या का समाधान करना।
  • निषिद्ध प्रथाएँ: सभी सार्वजनिक स्थानों पर भीख माँगना सख्त वर्जित है। भिखारियों को भीख देना या उनसे सामान खरीदना भी प्रतिबंधित है।
  • प्रवर्तन: सख्त प्रवर्तन उपाय लागू किए गए हैं, जिससे भिखारियों और उन्हें पैसे या सामान प्रदान करने वालों दोनों के विरुद्ध FIR दर्ज की जा सकती है।
    • हाल ही में इंदौर में एक अज्ञात व्यक्ति के विरुद्ध भिखारी को भीख देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी।

प्रतिबंध का कानूनी आधार

  • यह प्रतिबंध भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita-BNSS), 2023 की धारा 163 के तहत लागू किया गया है।
  • यह कानून जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट जैसे अधिकारियों को ‘उपद्रव या संभावित खतरे’ के तत्काल मामलों में आदेश जारी करने का अधिकार देता है।
  • यह आदेश किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष कार्य में शामिल होने से निषिद्ध कर सकता है।
  • क्रियान्वयन: यह कानून किसी विशेष स्थान के निवासियों, किसी विशिष्ट क्षेत्र में जाने वाले लोगों या कुछ स्थानों पर जाने वाले आम लोगों पर लागू होता है।
  • प्रतिबंध के तहत सजा: प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों को भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita-BNS), 2023 की धारा 223 के तहत दंडित किया जाएगा, जिसमें शामिल हैं:
    • छह महीने तक का कारावास या ₹2,500 का जुर्माना या दोनों।
    • अगर यह कृत्य सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न करता है, तो सजा एक वर्ष का कारावास और ₹5,000 के जुर्माने तक बढ़ जाती है।
  • आदेश की अवधि: यह आदेश शुरू में दो महीने के लिए वैध है।
    • इसे राज्य सरकार द्वारा छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है।

भिखारी कौन है?

  • भिखारी की परिभाषा (बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 के अनुसार): भिखारी वह व्यक्ति है जो:
    • किसी भी रूप में भिक्षा माँगता है।
    • प्रदर्शन करता है या बिक्री के लिए वस्तुएँ प्रस्तुत करता है।
    • दरिद्र दिखता है और उसके पास जीविका के प्रत्यक्ष साधन नहीं हैं।
  • औपनिवेशिक कानून: वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम ने खानाबदोश जनजातियों को अपराधी घोषित कर दिया, उन्हें स्‍वेच्‍छाचारिता और भीख माँगने से जोड़ दिया गया था।
  • संवैधानिक संदर्भ: भारत का संविधान संघ और राज्य दोनों सरकारों को समवर्ती सूची (सूची III, प्रविष्टि 15) के तहत स्‍वेच्‍छाचारिता, भीख माँगने और खानाबदोश/प्रवासी जनजातियों से संबंधित कानून बनाने की अनुमति देता है।
  • पूर्वता: भीख माँगने पर कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है। इसके बजाय, कई राज्य और केंद्रशासित प्रदेश बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 का पालन करते हैं।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय (2018): बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम के कई प्रावधानों को खारिज कर दिया, उन्हें ‘स्पष्ट रूप से मनमाना’ और अनुच्छेद-21 (सम्मान के साथ जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करने वाला बताया।
  • भारत का सर्वोच्च न्यायालय (2021)
    • सार्वजनिक स्थानों से भिखारियों को हटाने की माँग करने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भीख माँगना आपराधिक नहीं बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है।

भारत में भीख माँगने के कारण

  • आर्थिक कारक: गरीबी, बेरोजगारी, अल्परोजगार और ग्रामीण-शहरी प्रवास अवसरों की कमी के कारण व्यक्तियों को भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर करते हैं।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, सूखे या अकाल के कारण होने वाले विस्थापन के मद्देनजर लोग बेघर हो जाते हैं और जीवित रहने के लिए भीख माँगने पर निर्भर हो जाते हैं।
  • सामाजिक मुद्दे: पारिवारिक विघटन, पैतृक व्यवसाय भीख माँगने के प्रचलन में योगदान करते हैं।
  • शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियाँ: दिव्यांग व्यक्तियों के लिए पुनर्वास की कमी और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ लोगों को भीख माँगने के लिए मजबूर करती हैं।
  • संगठित भीख माँगने वाले गिरोह: भीख माँगने को अक्सर सिंडिकेट द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो कमजोर व्यक्तियों का शोषण करते हैं, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में।

आजीविका और उद्यम के लिए हाशिए पर पड़े व्यक्तियों के लिए सहायता (Support for Marginalized Individuals for Livelihood and Enterprise-SMILE) योजना

  • इस योजना को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2022 में लॉन्च किया गया था।
  • उद्देश्य: चिकित्सा देखभाल, शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करके भिखारियों का पुनर्वास करना।
    • इसका उद्देश्य वर्ष 2026 तक ‘भिखारी मुक्त’ भारत बनाना है।
  • संबंधित आँकड़े (जनगणना 2011 के अनुसार)
    • भारत में लगभग 4,13,670 भिखारी एवं आवारा लोग हैं।
    • पश्चिम बंगाल में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है, उसके बाद उत्तर प्रदेश और बिहार का स्थान है।

भिक्षावृत्ति के निहितार्थ 

  • भेदभाव एवं शोषण: भिखारियों, विशेष रूप से दिव्यांग लोगों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है और संगठित भिक्षावृत्ति वाले गिरोहों और तस्करों द्वारा दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता जोखिम: भिक्षावृत्ति वाले हॉटस्पॉट में अक्सर स्वच्छता की कमी होती है, जिससे बीमारी फैलती है, कुपोषण होता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
  • अपराध और मानव तस्करी: संगठित नेटवर्क बच्चों एवं कमजोर व्यक्तियों को भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर करते हैं, कभी-कभी उन्हें नियंत्रित करने के लिए नशीली दवाओं की लत और शारीरिक शोषण का जैसे निकृष्ट उपायों का प्रयोग करते हैं।
  • शहरी स्थानों और पर्यटन पर प्रभाव: आक्रामक भिक्षावृत्ति से सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, पर्यटन हतोत्साहित होता है और भारत के शहरों के बारे में नकारात्मक धारणाएँ मजबूत होती हैं।

भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध के पक्ष और विपक्ष

पक्ष

विपक्ष

  • भिक्षावृत्ति वाले कार्टेल द्वारा शोषण को कम करता है।
  • पुनर्वास कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता है।
  • शहरी सौंदर्य और पर्यटन में सुधार करता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को संबोधित करता है।
  • विश्वसनीय दान को बढ़ावा देता है।
  • गरीबी को अपराध बनाना, कमजोर समूहों को निशाना बनाना।
  • पुनर्वास के लिए पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का अभाव।
  • गरिमा और आजीविका के अधिकार का उल्लंघन।
  • भिखारियों को अवैध गतिविधियों में धकेल सकता है।
  • प्रवर्तन चुनौतियाँ और कानूनों का दुरुपयोग।

आगे की राह

  • शोषण के विरुद्ध सख्त प्रवर्तन: पुलिस-NGO सहयोग के माध्यम से तस्करी विरोधी कानूनों को मजबूत करना और भीख माँगने वाले गिरोहों को समाप्त करना, दंड के बजाय पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करना।
  • सार्वजनिक जागरूकता और सामुदायिक समर्थन: संगठित शोषण को रोकने के लिए प्रत्यक्ष भिक्षा देने के बजाय विश्वसनीय धर्मार्थ संस्थाओं को दान को बढ़ावा देना।
  • पुनर्वास और रोजगार: सरकारी आश्रयों का विस्तार करना, कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना, और दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए भिखारियों को कार्यबल में एकीकृत करना।
  • नीति सुधार और स्थानीय भागीदारी: बेरोजगारी और बेघर होने को संबोधित करने वाली समग्र नीतियों का विकास करना, स्थायी आजीविका बनाने के लिए व्यवसायों को शामिल करना।

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