हाल ही में नल्लामाला वन में स्थित अहोबिलम मंदिर जाने वाले तीर्थयात्रियों पर प्रतिबंध लगाया गया है।
संबंधित तथ्य
वन विभाग और अहोबिलम में श्री लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी देवस्थानम् ने मंदिर में आने वाले आगंतुकों पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं, यह मंदिर नल्लामाला जंगल के भीतर स्थित नौ अलग-अलग मंदिरों का एक समूह है।
यह मंदिर नागार्जुनसागर-श्रीशैलम् टाइगर रिजर्व (NSTR) के क्षेत्र में स्थित है, जिसे वर्ष 1983 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था, यह कोर और बफर क्षेत्रों सहित 3,727.82 वर्ग किमी. तक विस्तृत है।
नागार्जुनसागर-श्रीशैलम् टाइगर रिजर्व
अवस्थिति: यह आंध्र प्रदेश के नल्लामाला पर्वत शृंखला (पूर्वी घाट की एक शाखा) में स्थित है और गुंटूर, प्रकाशम् और कुरनूल के अविभाजित जिलों में फैला हुआ है।
इसे वर्ष 1983 में टाइगर रिजर्व का दर्जा प्राप्त हुआ।
क्षेत्रफल: कोर और बफर सहित रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 3,727.82 वर्ग किलोमीटर है और यह भारत का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है।
नाम: इसका नाम क्षेत्र के दो प्रमुख बाँधों, नागार्जुनसागर बाँध और श्रीशैलम बाँध के नाम पर रखा गया है।
दो वन्यजीव अभयारण्य, अर्थात् राजीव गांधी वन्यजीव अभयारण्य और गुंडला ब्रह्मेश्वरम् वन्यजीव अभयारण्य (GBM), टाइगर रिजर्व का गठन करते हैं।
कृष्णा नदी इस अभयारण्य से लगभग 270 किलोमीटर की रैखिक दूरी तय करती है।
स्थलाकृति: इसमें पठार, कटक, घाटियाँ और गहरी घाटियाँ शामिल हैं।
वनस्पति: उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, जिनमें बाँस और घास की बाहुल्यता होती है।
शीर्ष पशु प्रजातियों में बाघ, तेंदुआ, भेड़िया, जंगली कुत्ता और सियार शामिल हैं।
शिकारी प्रजातियों का प्रतिनिधित्व साँभर, चीतल, चौसिंघा, चिंकारा, माउस डीयर, जंगली सूअर और साही द्वारा किया जाता है।
वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार गठित अहोबिलम राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) इस क्षेत्र के लिए विशिष्ट दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों का संरक्षण करता है।
पावना नरसिम्हा मंदिर के आसपास का वन क्षेत्र लाल चंदन, तेंदुओं और हिरणों का आवास स्थल है।
इस क्षेत्र में पाँच बाघ भी निवास करते हैं।
प्रतिबंध आरोपित करने के कारण
ये प्रतिबंध भीषण गर्मी के मद्देनजर आरोपित किए गए हैं, जो जंगली जानवरों की आवाजाही को प्रभावित कर सकते हैं।
जानवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, विभाग ने पहले ही सभी प्रकार के प्लास्टिक जैसे पाउच, पानी और चाय के कप और बोतलों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिन्हें ‘चीथल बेस कैंप’ में जमा करना होगा।
रात्रिचर जानवरों की आवाजाही के कारण मानव-पशु संघर्ष की संभावना को देखते हुए इस क्षेत्र में रात भर रुकने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
यह मंदिर पशु बलि के लिए जाना जाता है, इसलिए विभाग ने घोषणा की है कि ऐसी प्रथाएँ स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित हैं।
अहोबिलम मंदिर
अहोबिलम दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध मंदिर है।
यह आंध्र प्रदेश राज्य के नंदयाल रेलवे स्टेशन के पास नल्लामलाई पर्वतमाला पर स्थित है। नल्लामलाई पर्वतमाला कृष्णा नदी के दक्षिण में, तिरूपति तक विस्तृत है और इसे ‘शेष पर्वत’ भी कहा जाता है।
शेष, नागों के राजा का नाम है।
शेष का सिर तिरुपति क्षेत्र में, पूँछ श्रीशैलम में और मध्य अहोबिलम में स्थित है। पूँछ पर स्थित नल्लामलाई के भाग को शृंगिरि कहा जाता है, इसके मध्य भाग को ‘वेदगिरि’ कहा जाता है।
संरचना
अहोबिलम मंदिर का जो भाग, शृंखला के शीर्ष पर स्थित है और इसे ऊपरी अहोबिलम कहा जाता है और नीचे के भाग को निचला अहोबिलम कहा जाता है।
यहाँ भगवान नरसिम्हा की मूर्ति को जटा या उलझे बालों के साथ बैठी हुई मुद्रा में दिखाया गया है। यह विष्णु की अनोखी मुद्रा है, जिसे केवल यहीं देखा जा सकता है।
ऊपरी अहोबिलम में कई इमारतों से घिरा एक विशाल मंदिर देखा जा सकता है। ऊपरी अहोबिलम में मुख्य मंदिर या “पवित्र गर्भगृह” को मंडपम् के साथ एक अंडाकार चट्टान से बनाया गया था।
यहाँ एक तालाब है, जो ऊपरी अहोबिलम मंदिर के निवासियों को जल की आपूर्ति करता है।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्त्व
अहोबिलम मंदिर में उपलब्ध शिलालेखों से पता चलता है कि कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य वंश के राजा विक्रमादित्य VI ने इस मंदिर में नरसिम्हा की पूजा की थी।
मंदिर की ‘उत्सव मूर्ति’ सोने से बनी है और कहा जाता है कि इसे प्रसिद्ध काकतीय राजा प्रतापरुद्र ने स्थापित किया था।
अहोबिलम मठ के महान आध्यात्मिक जियार इसकी पूजा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि श्रीशैलम् से लौटते समय, प्रतापरुद्र अहोबिलम में रुके और मूर्ति को गाँव के पास रुद्रवरम् नामक स्थान पर रख दिया था।
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय ने भी कलिंग की विजय से लौटने पर इस अहोबिलम मंदिर का दौरा किया था।
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