हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र के वाशिम में पोहरादेवी में बंजारा विरासत संग्रहालय का उद्घाटन किया।
संबंधित तथ्य
प्रधानमंत्री ने बंजारा नेता संत सेवालाल महाराज और संत रामराव महाराज की स्मारकों पर पुष्पांजलि भी अर्पित की।
उन्होंने बंजारा संस्कृति का प्रमुख संगीत वाद्ययंत्र नगाडा भी बजाया।
बंजारा विरासत संग्रहालय के बारे में
संग्रहालय में प्रदर्शन: संग्रहालय में 13 दीर्घाएँ हैं, जो बंजारा नेताओं, ऐतिहासिक आंदोलनों और कलाकृतियों के चित्रों के माध्यम से समुदाय की विरासत को प्रदर्शित करती हैं, जो उनके जीवन के तरीके को दर्शाती हैं।
उद्देश्य
बंजारा समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना।
पोहरादेवी को एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित करना।
बंजारा समुदाय (Banjara Community)
बंजारा समुदाय, जिसे अक्सर जिप्सी (Gypsies) कहा जाता है, का खानाबदोश परंपराओं में निहित एक समृद्ध और जीवंत इतिहास है।
‘वनज (Vanaj)’ (व्यापार करना) तथा ‘जरा (Jara)’ (यात्रा करना) शब्दों से व्युत्पन्न उनकी खानाबदोश जीवनशैली ने गाँवों को जोड़ने और आवश्यक आपूर्ति प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भौगोलिक विस्तार: बंजारा समुदाय की राजस्थान में गहरी जड़ें हैं तथा अब यह विभिन्न राज्यों में फैला हुआ है, जिन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि आंध्र प्रदेश में लंबाडा या लंबाडी, कर्नाटक में लंबानी, राजस्थान में ग्वार या ग्वारैया आदि।
भाषा: उनकी विशिष्ट भाषा, ‘गोरबोली’ या ‘गोर माटी बोली’, इंडो-आर्यन भाषा श्रेणी में आती है।
नगाडा (Nangara)
नगाडा एक अनोखा और आवश्यक संगीत वाद्ययंत्र है, जो बंजारा समुदाय से निकटता से जुड़ा हुआ है।
सामग्री: नगाडा को विभिन्न सामग्रियों से बनाया जा सकता है, जिसमें लकड़ी, धातु या यहाँ तक कि बकरी या भैंस की खाल भी शामिल है।
सांस्कृतिक महत्त्व: इसे अक्सर बंजारा समुदाय के उत्सवों, अनुष्ठानों और सामाजिक समारोहों के दौरान बजाया जाता है।
संगत: नगाडा का उपयोग अक्सर गायन, नृत्य और कहानी सुनाने के लिए किया जाता है।
पहचान का प्रतीक: नगाडा बंजारा पहचान और विरासत का प्रतीक है। यह उनकी घुमंतू जीवनशैली और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं की याद दिलाता है।
ऐतिहासिक महत्त्व
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिरोध: बंजारा समुदाय ने उनकी भूमि पर आधिपत्य करने तथा उन्हें जबरन श्रम करने के ब्रिटिश प्रयासों का विरोध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कानूनी चुनौतियाँ: उनके प्रतिरोध के बावजूद, बंजारा समुदाय को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, वर्ष 1871 में आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत सूचीबद्ध किया गया, अंततः 1950 के दशक में उन्हें गैर-अधिसूचित कर दिया गया।
लेकिन बाद में उन्हें वर्ष 1952 में आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत सूचीबद्ध कर दिया गया।
संत सेवालाल महाराज (Sant Sevalal Maharaj)
जन्म: 15 फरवरी, 1739 को कर्नाटक के सुरगोंडनकोप्पा में जन्मे संत सेवालाल महाराज बंजारा समुदाय में एक प्रमुख व्यक्ति थे।
समाज सुधारक तथा आध्यात्मिक शिक्षक: उन्हें एक समाज सुधारक तथा आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में सम्मानित किया जाता है, जिन्होंने बंजारा समुदाय के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
व्यापक प्रभाव: पूरे भारत में लगभग 10-12 करोड़ बंजारा लोगों के अनुयायी होने के कारण, उनकी शिक्षाएँ और प्रभाव दूर-दूर तक फैला हुआ था।
घुमंतू जनजातियों की सेवा: संत सेवालाल महाराज ने वनवासियों और खानाबदोश जनजातियों की सेवा के लिए अपने लादेनिया दल के साथ बड़े पैमाने पर यात्रा की थी।
आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञता: आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा के उनके ज्ञान ने मिथकों और अंधविश्वासों को दूर करने में मदद की, जिससे जनजाति जीवन शैली में सुधार हुआ।
बंजारा समुदाय पर प्रभाव: बंजारा समुदाय, जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से बसे थे, ने अपनी घुमंतू जीवन शैली को त्याग दिया और संत सेवालाल महाराज की शिक्षाओं से प्रभावित होकर टांडा नामक स्थायी बस्तियाँ स्थापित की थीं।
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