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बन्नी घास के मैदान

Lokesh Pal August 21, 2024 01:22 66 0

संदर्भ

एशिया के सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय घास के मैदान, पश्चिमी भारत में स्थायी घास के मैदान प्रबंधन के लिए पारिस्थितिकी मूल्य को अधिकतम करना और भूमि की उपयुक्तता का आकलन करना’ नामक एक नए अध्ययन में, स्थायी घास के मैदान के पुनर्स्थापन के लिए बन्नी घास के विभिन्न क्षेत्रों की उपयुक्तता का आकलन किया गया। 

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • यह अध्ययन बन्नी घास के मैदान क्षेत्र में किया गया था। 
  • नमूना: शोधकर्ताओं ने 45 स्थानों से मिट्टी के नमूने और भू-आकृति विज्ञान विश्लेषण के लिए डेटा एकत्र किया। 
    • अमेरिकी सेंटिनल 2 उपग्रह और एडवांस्ड स्पेसबोर्न थर्मल एमिशन एंड रिफ्लेक्शन रेडियोमीटर (Advanced Spaceborne Thermal Emission and Reflection Radiometer- ASTER) ने ढलान, भूमि उपयोग और भूमि आवरण पर डेटा प्रदान किया। 
  • पैरामीटर: इस अध्ययन के तहत 20 पैरामीटर का विश्लेषण किया गया, जिनमें निम्नलिखित विशेषताएँ शामिल थीं:- 
    • मृदा पोषक तत्त्वों की उपलब्धता, मृदा अम्लता, मृदा बनावट, मृदा कार्बनिक कार्बन, लवणता, जल धारण क्षमता, धनायन विनिमय क्षमता (Cation Exchange Capacity), स्थूल घनत्व और अंतःस्यंदन दर, भूमि उपयोग और भूमि आवरण, भू-आकृति विज्ञान और भूमि ढलान।  
  • प्रकाशित: इस अध्ययन के निष्कर्ष साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं। 
  • निष्कर्ष
    • पुनर्स्थापना के लिए उपयुक्तता: उन्होंने बन्नी घास के मैदान के संभावित पुनर्स्थापना क्षेत्रों को पाँच श्रेणियों में बाँटा, जो इस बात पर निर्भर था कि प्रत्येक क्षेत्र पुनर्स्थापना के लिए कितना उपयुक्त था? 
      • अत्यधिक उपयुक्त: मौजूदा घास के मैदान का 937 वर्ग किमी. (या 36%) क्षेत्र। 
      • उपयुक्त: 728 वर्ग किमी. (28%) उपयुक्त था।
      • मध्यम रूप से उपयुक्त: 714 वर्ग किमी. (27%)
      • सीमांत रूप से उपयुक्त: 182 वर्ग किमी. (7%)
      • उपयुक्त नहीं: 61 वर्ग किमी. (2%)।
    • आसान पुनर्स्थापन: ‘अत्यधिक उपयुक्त’ और ‘उपयुक्त’ क्षेत्र, जो संपूर्ण बन्नी घास के मैदानों के लगभग दो-तिहाई हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं, को सिंचाई या वर्षा जल संचयन के माध्यम से आसानी से पुनर्स्थापित किया जा सकता है। 
    • पुनर्स्थापन के लिए हस्तक्षेप (Interventions for Restoration): ‘सीमांत रूप से उपयुक्त’ और ‘अनुपयुक्त’ क्षेत्रों को भी उर्वरकों जैसे पूरक इनपुट के साथ सीढ़ीनुमा खेती जैसे हस्तक्षेपों के माध्यम से प्रबंधित किया जा सकता है और उच्च जल अपवाह एवं कटाव और लवणता में वृद्धि से सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। 
  • महत्त्व
    • संरक्षण प्रयासों के लिए कार्य योजना: यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में घास के मैदानों के संरक्षण के लिए कार्य योजना तैयार करने में मदद कर सकता है, क्योंकि वे कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए एक बड़ा स्रोत हैं। 
    • साक्ष्य आधारित पुनर्स्थापन: अध्ययन जैव विविधता संरक्षण और स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका में वृद्धि सहित सतत् चरागाह प्रबंधन के लिए साक्ष्य आधारित सिफारिशें तैयार करेगा। 
      • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और बंगाल फ्लोरिकन जैसी पक्षी प्रजातियाँ घास के मैदानों में प्रजनन करना पसंद करती हैं।
    • नीति निर्माताओं का मार्गदर्शन: यह अध्ययन राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) और नीति निर्माताओं के लिए क्षरित घास के मैदानों की सुरक्षा और पुनर्वास के उद्देश्य से नीतियाँ तैयार करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। 
    • सतत् भूमि उपयोग को प्रोत्साहित करना: यह अध्ययन भूमि की उपयुक्तता का विस्तृत मूल्यांकन है, जो सतत् भूमि उपयोग और संरक्षण प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए कानूनी और नियामक ढाँचे को सूचित करता है। 

बन्नी घास का मैदान

  • उत्पत्ति: ‘बन्नी’ शब्द हिंदी शब्द ‘बनई‘ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘बनाया हुआ’। 
    • यहाँ की भूमि हजारों वर्षों में सिंधु और अन्य नदियों द्वारा जमा किए गए तलछट से बनी है।
  • स्थान: यह गुजरात राज्य के कच्छ जिले की उत्तरी सीमा पर अवस्थित है। 
    • यह भारत में सन्निहित घास के मैदानों के सबसे बड़े दो हिस्सों में से एक है।
  • क्षेत्रफल: ये घास के मैदान 2618 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले हुए हैं तथा राज्य के कुल चरागाहों का लगभग 45% हिस्सा हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र: बन्नी में दो पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं, अर्थात् आर्द्रभूमि और घास के मैदान, जो डाइचान्थियम-सेंचरस-लासियुरस (Dichanthium-Cenchrus-Lasiurus) प्रकार के घास आवरण के अंतर्गत आते हैं। 
  • संरक्षण स्थिति: वर्तमान में इन्हें भारत में संरक्षित या आरक्षित वन के रूप में कानूनी रूप से संरक्षित किया गया है। 
  • जनजातियाँ: इस चरागाह में लगभग चालीस सिंधी भाषी मालधारी (पशुपालक) बस्तियाँ हैं, जो हलायपोत्रा (Halaypotra), हिंगोरा (Hingora), हिंगोरजा (Hingorja), जाट (Jat) और मुटवा (Mutwa) जनजातियों का आवास स्थल हैं।
  • वनस्पतियाँ: प्रमुख प्रजातियों में क्रेसा क्रेटिका (Cressa Cretica), साइपरस SPP (Cyperus spp), स्पोरोबोलस (Sporobolus), डिकैंथियम (Dichanthium) और अरिस्टिडा (Aristida) प्रजाति की घास शामिल हैं। 
  • जीव-जंतु: घास के मैदान नीलगाय, चिंकारा, काला हिरण, जंगली सूअर, सुनहरा सियार, भारतीय खरगोश, भारतीय भेड़िया, कैराकल, एशियाई जंगली बिल्ली, रेगिस्तानी लोमड़ी और भारतीय जंगली गधा जैसे स्तनधारियों का आवास स्थल है। 
  • खतरे
    • अतिक्रमण: घास का मैदान कभी लगभग 3,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था, लेकिन अब यह घटकर लगभग 2,600 वर्ग किलोमीटर रह गया है। 
    • पारंपरिक प्रबंधन प्रथाओं का विघटन अर्थात् बन्नी घास के मैदानों का प्रबंधन चक्रीय चराई की प्रणाली के अनुसार किया जाता था, जिसके परिणामस्वरूप पशुधन चराई का अत्यधिक दबाव होता था। 
    • मिट्टी की लवणता में वृद्धि से प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का अतिक्रमण बढ़ रहा है। 
    • जल की कमी, जलवायु परिवर्तन और मरुस्थलीकरण। 

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