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बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन

Lokesh Pal August 06, 2025 03:09 7 0

संदर्भ

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और ऊर्जा भंडारण की बढ़ती माँग ने बैटरी अपशिष्ट के संबंध में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

संबंधित तथ्य

भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास से लीथियम बैटरी की माँग वर्ष 2023 में 4 GWh से बढ़कर वर्ष 2035 तक 139 GWh हो जाएगी।

बैटरी अपशिष्ट क्या है?

  • परिभाषा: बैटरी अपशिष्ट से तात्पर्य खराब या अनुपयोगी बैटरियों, विशेष रूप से लीथियम-आयन बैटरियों से है, जिनमें खतरनाक रसायन और लीथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे मूल्यवान खनिज होते हैं।
  • बैटरी अपशिष्ट के प्रमुख स्रोत
    • इलेक्ट्रिक वाहन (Electric vehicles-EV)
    • उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स (मोबाइल, लैपटॉप)
    • नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण (BESS)
    • लेड-एसिड बैटरियाँ (औद्योगिक और ऑटोमोटिव)।
  • अनुचित निपटान से मृदा और जल प्रदूषण होता है, जबकि कुशल पुनर्चक्रण से खनिज आयात में कमी आ सकती है और एक चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) को बढ़ावा मिल सकता है।
  • वर्ष 2022 में, भारत के 1.6 मिलियन मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट में लीथियम बैटरियों का योगदान 7,00,000 टन था।

भारत में बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन हेतु पहल

  • खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन एवं प्रहस्तन) संशोधन नियम, 2003: नियामक कवरेज के माध्यम से खतरनाक सामग्रियों को पहली बार ई-अपशिष्ट  संरचना में शामिल किया गया।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन एवं प्रहस्तन) नियम, 2011: औपचारिक नियमों के माध्यम से विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) की शुरुआत की गई।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016: कानूनी ढाँचे के माध्यम से उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) की अवधारणा को जोड़ा गया।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022: बैटरियों के संग्रहण, परिवहन और पुनर्चक्रण के लिए उत्पादकों के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) को अनिवार्य बनाता है।
    • वर्ष 2070 तक भारत के नेट जीरो लक्ष्य का समर्थन करने के लिए संसाधन पुनर्प्राप्ति और एक क्लोज-लूप वैल्यू चैन को बढ़ावा देता है।
    • बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए नियमों में नियमित रूप से संशोधन किया जाता है।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) द्वितीय संशोधन नियम, 2023: स्पष्ट प्रावधानों के माध्यम से खतरनाक पदार्थों में कमी हेतु स्पष्ट छूट।
    • निर्धारित पद्धति के माध्यम से EPR प्रमाणन निर्माण हेतु रूपांतरण कारकों का निर्धारण।
    • अनिवार्य दिशानिर्देशों के माध्यम से उत्पादकों द्वारा रेफ्रिजरेंट का प्रबंधन।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) संशोधन नियम, 2024: निर्माताओं, उत्पादकों, नवीनीकरणकर्ताओं या पुनर्चक्रणकर्ताओं के लिए संशोधन के माध्यम से रिटर्न/रिपोर्ट दाखिल करने की समय-सीमा में छूट (अधिकतम 9 महीने)।
    • EPR प्रमाण-पत्रों के विनिमय/हस्तांतरण के लिए केंद्र सरकार की अधिसूचना के माध्यम से प्लेटफॉर्म स्थापित किए जाएँगे।
    • EPR प्रमाण-पत्रों की कीमतें CPCB द्वारा निर्धारित उच्चतम और निम्नतम सीमाओं के माध्यम से विनियमित होंगी।
  • बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2025: उत्पादकों को बैटरी, उपकरण या पैकेजिंग पर बारकोड/QR कोड के माध्यम से EPR पंजीकरण प्रदर्शित करना होगा और इसे ब्रोशर में प्रिंट करना होगा, CPCB द्वारा त्रैमासिक रूप से अद्यतन सूची बनाए रखी जाएगी।
    • यदि धातु सांद्रता निर्दिष्ट सीमा से कम है [Pb के लिए 0.004% (40 ppm) से कम या उसके बराबर और Cd के लिए 0.002% (20 ppm) से कम या उसके बराबर] तो रासायनिक चिह्न ‘Cd’ (कैडमियम) या ‘Pb’ (लेड) के अंकन से छूट दी गई है।
  • EPR फ्लोर प्राइसिंग मैकेनिज्म: यह सुनिश्चित करता है कि ‘पुनर्चक्रणकर्ताओंको संग्रहण, प्रसंस्करण और सामग्री पुनर्प्राप्ति लागतों को शामिल करते हुए न्यूनतम मुआवजा मिले, जिससे सतत् बैटरी पुनर्चक्रण संभव हो सके।
    • यह भारत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा तय किया जाता है।
    • इसका उद्देश्य पुनर्चक्रण को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना और अनौपचारिक डंपिंग प्रथाओं को हतोत्साहित करना है।

खतरनाक अपशिष्ट और ई-अपशिष्ट  पर अंतरराष्ट्रीय समझौते

  • बेसल कन्वेंशन (वर्ष 1989): ई-अपशिष्ट सहित खतरनाक अपशिष्ट की सीमा पार आवाजाही और निपटान को नियंत्रित करता है।
    • अपशिष्ट के वर्गीकरण और आवाजाही पर दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
    • पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित ई-अपशिष्ट  प्रबंधन के लिए कार्यक्रम/कार्यशालाएँ आयोजित करता है।
  • प्रतिबंध संशोधन (वर्ष 2019): आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) देशों, यूरोपीय संघ (EU) देशों और लिकटेंस्टीन से अन्य बेसल कन्वेंशन पक्षों को खतरनाक अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट सहित) की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाता है।
  • क्षेत्रीय कन्वेंशन
    • बमाको कन्वेंशन: अफ्रीकी देशों में खतरनाक अपशिष्ट की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाता है।
    • वैगानी कन्वेंशन: दक्षिण प्रशांत देशों में खतरनाक अपशिष्ट की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाता है।

भारत में बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त EPR न्यूनतम मूल्य: वर्तमान प्रस्ताव पुनर्चक्रण लागत को कम आँकते हैं, जिससे वैधपुनर्चक्रणकर्ताओंके लिए संचालन अस्थिर हो जाता है।
    • अनौपचारिक ‘पुनर्चक्रणकर्ताओं’ झूठे प्रमाण-पत्र जारी कर या खतरनाक अपशिष्ट को अवैध तरीके से डंप कर विकसित हो रहे हैं, जो प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की विफलताओं को उजागर करता है।
  • पर्यावरणीय और आर्थिक जोखिम: अनुचित पुनर्चक्रण से विषाक्त पदार्थों के रिसाव के माध्यम से पर्यावरणीय क्षरण का खतरा होता है।
    • वर्ष 2030 तक, खनिज आयात पर निर्भरता के कारण अपर्याप्त पुनर्चक्रण से भारत को 1 बिलियन डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा का नुकसान हो सकता है।
  • कमजोर अनुपालन और प्रवर्तन: बड़े निर्माता अक्सर अनुपालन का विरोध करते हैं और विकासशील बाजारों में निम्न मानकों को लागू करते हैं।
    • मजबूत ऑडिट और डिजिटल ट्रैकिंग का अभाव धोखाधड़ी और गैर-अनुपालन को बढ़ावा देता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्ताओं के पास उचित प्रशिक्षण और बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जिसके कारण असुरक्षित व्यवहार और मूल्यवान संसाधनों की हानि होती है।

आगे की राह

  • EPR न्यूनतम मूल्य को पुनः निर्धारित करना: कीमतों को वैश्विक मानकों (जैसे- यू.के. में ₹600/किग्रा) के अनुरूप बनाना, ताकि समय के साथ बाजार-संचालित रहते हुए पूरी पुनर्चक्रण लागत को कवर किया जा सके।
    • सुनिश्चित करना कि मूल उपकरण निर्माता (Original Equipment Manufacturers-OEM) लागत को उपभोक्ताओं पर डाले बिना उसे वहन करना, जिससे वैश्विक धातु कीमतों में गिरावट से बचा जा सके।
  • प्रवर्तन को मजबूत करना: EPR प्रमाण-पत्र जारी करने और उसकी ट्रैकिंग को डिजिटल बनाना, तृतीय-पक्ष ऑडिट लागू करना और अनुपालन न करने पर कठोर दंड आरोपित करना।
  • अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्ताओं को एकीकृत करना: अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक पारिस्थितिकी तंत्र में लाने के लिए प्रशिक्षण, नियामक सहायता और प्रोत्साहन प्रदान करना, जिससे पुनर्चक्रण क्षमता का सुरक्षित रूप से विस्तार हो सके।
  • उद्योग सहयोग को बढ़ावा देना: हरित विकास और भारत के चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) संबंधी लक्ष्यों का समर्थन करने वाले एक लचीले पुनर्चक्रण ढाँचे के निर्माण हेतु नीति निर्माताओं, उत्पादकों तथा पुनर्चक्रणकर्ताओं के बीच प्रभावी संवाद को बढ़ावा देना आवश्यक है।

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