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‘बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन’ और भारत में महिला सशक्तीकरण

Lokesh Pal March 08, 2025 02:44 49 0

संदर्भ

जैसे-जैसे भारत लैंगिक समानता की दिशा में अपनी यात्रा जारी रख रहा है, ‘बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन’ एक मार्गदर्शक ढाँचा बना हुआ है।

‘बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन’ (BPfA)

  • ‘बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन’ (BPfA) को वर्ष 1995 में बीजिंग में महिलाओं पर चौथे विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था।
  • यह महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए सबसे व्यापक और परिवर्तनकारी वैश्विक ढाँचों में से एक है।

महिलाओं पर विश्व सम्मेलन

  • संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं पर चार विश्व सम्मेलन आयोजित किए हैं:
    1. मैक्सिको सिटी (वर्ष 1975)
    2. कोपेनहेगन (वर्ष 1980)
    3. नैरोबी (वर्ष 1985)
    4. बीजिंग (वर्ष 1995)

महिलाओं पर चौथा विश्व सम्मेलन, 1995

  • महिलाओं पर चौथा विश्व सम्मेलन 1995 में बीजिंग, चीन में आयोजित किया गया था।
  • इसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया था।
  • इस सम्मेलन का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम बीजिंग घोषणा-पत्र तथा कार्रवाई के लिए मंच को अपनाना था।
  • इस सम्मेलन ने महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव को चिह्नित किया, जिसमें सरकारों ने लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू करने के लिए प्रतिबद्धता जताई।

  • यह जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रणालीगत परिवर्तन, नीतिगत सुधारों और जमीनी स्तर पर कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है।
  • ‘बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन’ के अंतर्गत चिंता के क्षेत्रों में गरीबी में कमी, शिक्षा और प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा, महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण और निर्णय लेने में प्रभाव शामिल हैं।
    • पिछले तीन दशकों में, भारत ने नीतिगत प्रयासों, जमीनी स्तर के आंदोलनों और महिलाओं तथा लड़कियों के प्रयासों के कारण इनमें से कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।

प्रमुख क्षेत्रों में भारत की प्रगति

  • स्वास्थ्य एवं अन्य अधिकार: प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना जैसी पहलों ने संस्थागत प्रसवों को 95% तक बढ़ा दिया है और मातृ मृत्यु दर को 130 से घटाकर 97 प्रति 1,00,000 जन्मों पर कर दिया है।
  • शिक्षा और सशक्तीकरण: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) पहल ने बाल लैंगिक अनुपात में सुधार किया है और लड़कियों के लिए स्कूल नामांकन में वृद्धि की है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण: राष्ट्रीय ग्रामीण और शहरी आजीविका मिशनों के माध्यम से, लगभग 100 मिलियन महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से वित्तीय नेटवर्क से जोड़ा गया है।
  • लैंगिक-संवेदनशील बजट: भारत ने लैंगिक-संवेदनशील बजट के माध्यम से लैंगिक समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बढ़ाई है।
    • कुल राष्ट्रीय बजट में जेंडर बजट का हिस्सा वर्ष 2024- 2025 में 6.8% से बढ़कर वर्ष 2025-2026 में 8.8% हो गया है, जिसमें लैंगिक-विशिष्ट कार्यक्रमों के लिए 55.2 बिलियन डॉलर आवंटित किए गए हैं।
  • डिजिटल साक्षरता: प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान ने 35 मिलियन से अधिक ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल साक्षरता में प्रशिक्षित किया है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि वे डिजिटल क्रांति में पीछे न रहें।

भारत महिला अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय संधियों का हस्ताक्षरकर्ता है

  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (वर्ष 1948)
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय वाचा (International Covenant on Civil and Political Rights-ICCPR, 1966)
  • महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women-CEDAW, 1979)
  • बीजिंग घोषणा और कार्रवाई के लिए मंच (वर्ष 1995)
  • सतत् विकास के लिए एजेंडा (वर्ष 2030)

भारत में महिला अधिकारों के लिए कानूनी ढाँचा

  • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018: महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के लिए दंड में वृद्धि।
  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013
  • POCSO अधिनियम, 2012: बाल शोषण के विरुद्ध कानून को मजबूत बनाया गया।
  • तीन तलाक पर प्रतिबंध (वर्ष 2019): तत्काल तलाक की प्रथा को अपराध बनाना।
  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961: दहेज से संबंधित अपराधों को दंडित करता है।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006: नाबालिगों को जबरन विवाह से बचाता है।

महिला उत्थान के लिए सरकारी योजनाएँ

  • शिक्षा: भारत ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई पहल की हैं कि लड़कियों को प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच मिले।
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP): बाल लैंगिक अनुपात में सुधार और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • वर्ष 2017-18 से महिला सकल नामांकन अनुपात (GER) ने पुरुष GER को पीछे छोड़ दिया है।
    • उच्च शिक्षा में महिला नामांकन: 2.07 करोड़ (वर्ष 2021- 2022), जो कुल संख्या 4.33 करोड़ का लगभग 50% है।
    • निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 यह सुनिश्चित करता है कि सभी बच्चों के लिए स्कूल पहुँच में हों।
    • महिला और 100 पुरुष शिक्षकों का अनुपात भी वर्ष 2014-2015 के 63 से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 77 हो गया है।
  • STEM में महिलाएँ: STEM में कुल नामांकन में महिलाओं की संख्या 42.57% (41.9 लाख) है।
    • STEM पहल: विज्ञान ज्योति (वर्ष 2020) कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों में लड़कियों के लिए STEM शिक्षा को बढ़ावा देती है।
    • ओवरसीज फेलोशिप योजना वैश्विक शोध अवसरों में महिला वैज्ञानिकों का समर्थन करती है।
    • राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी, स्वयं (SWAYAM) और स्वयं प्रभा (SWAYAM PRABHA) ऑनलाइन शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करते हैं।
    • STEM क्षेत्रों के लिए विभिन्न छात्रवृत्तियों के तहत 10 लाख से अधिक छात्राएँ लाभान्वित हुईं।
  • स्वास्थ्य और पोषण: महिलाओं के कल्याण और लैंगिक आधारित स्वास्थ्य असमानताओं को कम करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है, जनवरी 2025 तक 3.81 करोड़ महिलाओं को 17,362 करोड़ रुपये वितरित किए जाएँगे।
  • बेहतर मातृ स्वास्थ्य
    • मातृ मृत्यु दर (MMR) 130 (वर्ष 2014-2016) से घटकर 97 (वर्ष 2018-2020) प्रति लाख जीवित जन्में बच्चों की संख्या की हो गई।
    • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (U5MR) 43 (वर्ष 2015) से घटकर 32 (वर्ष 2020) हो गई।
    • महिलाओं की जीवन प्रत्याशा बढ़कर 71.4 (वर्ष 2016-2020) हो गई, जिसके वर्ष 2031-36 तक 74.7 वर्ष तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • पोषण एवं स्वच्छता
    • जल जीवन मिशन ने 15.4 करोड़ घरों को पीने योग्य नल का जल उपलब्ध कराया, जिससे स्वास्थ्य जोखिम कम हुआ।
    • स्वच्छ भारत मिशन के तहत 11.8 करोड़ शौचालयों का निर्माण हुआ, जिससे स्वच्छता एवं स्वास्थ्य में सुधार हुआ।
    • पोषण अभियान: मातृ एवं शिशु पोषण कार्यक्रमों को मजबूत करता है।
    • उज्ज्वला योजना के तहत 10.3 करोड़ से अधिक स्वच्छ रसोई गैस कनेक्शन वितरित किए गए।
  • आर्थिक सशक्तीकरण और वित्तीय समावेशन: कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक है।
    • प्रमुख घरेलू निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी: 84% (वर्ष 2015) से बढ़कर 88.7% (वर्ष 2020) हो गई।
  • वित्तीय समावेशन
    • प्रधानमंत्री जन धन योजना: 30.46 करोड़ से अधिक खाते (55% महिलाओं के) खोले गए।
    • स्टैंड-अप इंडिया योजना: ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक के 84% ऋण महिला उद्यमियों को दिए गए।
    • मुद्रा योजना: महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों को दिए गए 69% माइक्रोलोन।
    • NRLM के तहत स्वयं सहायता समूह: 10 करोड़ (100 मिलियन) महिलाएँ 9 मिलियन SHG से जुड़ीं।
    • बैंक सखी मॉडल: वर्ष 2020 में 6,094 महिला बैंकिंग संवाददाताओं ने $40 मिलियन मूल्य के लेन-देन संसाधित किए।
  • रोजगार एवं नेतृत्व
    • सशस्त्र बलों में महिलाएँ: NDA, लड़ाकू भूमिकाओं और सैनिक स्कूलों में प्रवेश।
    • नागरिक उड्डयन: भारत में 15% से अधिक महिला पायलट हैं, जो वैश्विक औसत 5% से अधिक है।
    • कामकाजी महिला छात्रावास (सखी निवास): 523 छात्रावासों से 26,306 महिलाएँ लाभान्वित हो रही हैं।
  • स्टार्टअप में महिला उद्यमी: भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक में 10% निधि महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप के लिए आरक्षित है।

भारत में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ

  • लैंगिक आधारित हिंसा: भारत में महिलाओं को घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, भारत में लगभग एक-तिहाई महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा का सामना किया है।
  • आर्थिक असमानता: महिलाओं के पास समान आर्थिक अवसरों, उचित वेतन और नेतृत्व की भूमिकाओं तक सीमित पहुँच है। लैंगिक वेतन अंतराल और व्यावसायिक अलगाव, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्रों में बना हुआ है।
    • विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2024 में भारत को 146 देशों में से 129वें स्थान पर रखा गया है।
    • भारत आर्थिक समानता के सबसे कम स्तर (39.8%) वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
  • सीमित राजनीतिक प्रतिनिधित्व: हालाँकि महिला आरक्षण विधेयक विधायिकाओं में 33% प्रतिनिधित्व का वादा करता है, लेकिन सभी स्तरों पर राजनीतिक निर्णय लेने में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है।
    • वर्ष 2024 में नई लोकसभा में महिलाओं की संख्या 13.6% थी, जो वैश्विक औसत 26.5% से बहुत कम है।
  • स्वास्थ्य सेवा असमानताएँ: महिलाएँ, विशेषतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, मातृ एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं सहित गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करती हैं।
    • भारत का मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) 1,00,000 जीवित जन्में बच्चों पर 97 है, जबकि SDG लक्ष्य वैश्विक मातृ मृत्यु अनुपात को 1,00,000 जीवित जन्में बच्चों पर 70 से कम करना है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड: गहरी जड़ें जमाए हुए पितृसत्तात्मक मानदंड महिलाओं की स्वायत्तता को प्रतिबंधित करते हैं, उनकी गतिशीलता को सीमित करते हैं और बाल विवाह एवं दहेज जैसी प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं।
    • NFHS-5 के अनुसार, 20-24 वर्ष की आयु की 23% महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले हो गई थी।
    • NCRB के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 में दहेज से संबंधित मौतों के 7,000 मामले थे।
  • डिजिटल डिवाइड: महिलाओं, विशेषतौर पर ग्रामीण इलाकों में, डिजिटल उपकरणों और साक्षरता तक सीमित पहुँच है, जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी और ऑनलाइन संसाधनों तक उनकी पहुँच बाधित होती है।
    • भारत में केवल 33% महिलाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है, जबकि पुरुषों में यह आँकड़ा 57% से अधिक है।
    • ग्रामीण भारत में और भी अधिक विभाजन है, जहाँ पुरुषों द्वारा इंटरनेट का इस्तेमाल करने की संभावना महिलाओं की तुलना में दोगुनी  (49% बनाम 25%) है।

आगे की राह

  • युवा महिलाओं में निवेश: उनका नेतृत्व मजबूत करना और प्रणालीगत बाधाओं को दूर करना प्रगति को गति देने के लिए महत्त्वपूर्ण होगा।
  • कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: लैंगिक आधारित हिंसा से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (PWDVA) और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम जैसे कानूनों का सख्त प्रवर्तन सुनिश्चित करना।
    • दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) ने स्वयं सहायता समूहों (SHG) के माध्यम से 100 मिलियन से अधिक ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाया है।
    • वर्ष 2012 के दिल्ली सामूहिक दुश्कर्म के बाद स्थापित निर्भया कोष ने महिलाओं की सुरक्षा पहलों के लिए 10,000 करोड़ रुपये से अधिक आवंटित किए हैं, लेकिन कार्यान्वयन में कमी है।
  • आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना: समान वेतन नीतियों को लागू करना, कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करना और लैंगिक वेतन अंतर को पाटने और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए ऋण और डिजिटल वित्तीय उपकरणों तक पहुँच का विस्तार करना।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाना: विधानसभाओं में 33% प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए महिला आरक्षण विधेयक को तेजी से लागू करना तथा शासन के सभी स्तरों पर महिला नेताओं को प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करना।
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार करना: ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना, मातृ और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना तथा पोषण अभियान जैसी पहलों के माध्यम से कुपोषण को दूर करना।
    • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, लेकिन अभी भी कार्यान्वयन में खामियाँ हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देना: पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देने, बाल विवाह और दहेज के खिलाफ कानूनों को लागू करने और घरों में महिलाओं की स्वायत्तता और निर्णय लेने को बढ़ावा देने के लिए मीडिया और सामुदायिक कार्यक्रमों का उपयोग करना।
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBP) अभियान ने हरियाणा जैसे राज्यों में बाल लैंगिक अनुपात में सुधार किया है।
  • डिजिटल डिवाइड को पाटना: प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जैसे डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों का विस्तार करना, सस्ती इंटरनेट पहुँच प्रदान करना और महिलाओं को डिजिटल अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में शिक्षित करना।
    • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान ने 35 मिलियन से अधिक ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल साक्षरता में प्रशिक्षित किया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वे डिजिटल अर्थव्यवस्था में भाग ले सकता है।
  • कार्यस्थल समानता सुनिश्चित करना: मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017 के अनुपालन को लागू करना, उत्पीड़न से मुक्त सुरक्षित कार्य वातावरण बनाना और कामकाजी माताओं का समर्थन करने के लिए कम लागत वाली चाइल्डकेअर सुविधाएँ स्थापित करना।
  • शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना: उचित स्वच्छता सुविधाओं वाले स्कूल बनाना, हाशिए के समुदायों की लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करना और ड्रॉपआउट दरों को कम करने के लिए मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों तक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्कूलों में मासिक धर्म स्वच्छता सुविधाओं की कमी के कारण 20% लड़कियाँ 18 वर्ष के बाद स्कूल छोड़ देती हैं।

महिला अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र महिला की रिपोर्ट

  • अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, 2025 से पहले जारी की गई यूएन वूमेन की नई रिपोर्ट से पता चलता है कि कुछ प्रगति के बावजूद, वैश्विक स्तर पर महिलाओं और लड़कियों के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।
  • लैंगिक भेदभाव अर्थव्यवस्थाओं और समाजों में गहराई से समाया हुआ है।
  • पिछले वर्ष विश्व की लगभग 25% सरकारों ने महिलाओं के अधिकारों के प्रति प्रतिकूल प्रतिक्रिया की सूचना दी।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में महिलाओं के लिए प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया

  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा: प्रत्येक 10 मिनट में एक महिला या लड़की की हत्या उसके साथी या परिवार के सदस्य द्वारा की जाती है।
  • सशस्त्र संघर्षों में महिलाएँ: वर्ष 2023 में, लगभग 612 मिलियन महिलाएँ और लड़कियाँ 170 सशस्त्र संघर्षों में से कम-से-कम एक के 50 किलोमीटर के दायरे में रहती हैं, जो वर्ष 2010 से 54% की वृद्धि है।

  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: केवल 87 देशों का नेतृत्व कभी किसी महिला ने किया है।
    • विधायी अंतर: हालाँकि वर्ष 1995 के बाद से महिला सांसदों का अनुपात दोगुना से भी अधिक हो गया है, लेकिन वैश्विक स्तर पर 75% सांसद अभी भी पुरुष हैं।
  • कानूनी असमानता: वर्ष 1995 से वर्ष 2024 के बीच, विश्व में 1,531 कानूनी सुधारों ने लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन महिलाओं के पास अभी भी पुरुषों के कानूनी अधिकारों का केवल 64% ही है।
  • आर्थिक असमानता: विश्व स्तर पर 772 मिलियन महिलाएँ अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में असुरक्षित नौकरियों में कार्य करती हैं, जिनमें सामाजिक सुरक्षा का अभाव होता है।
    • 10% महिलाएँ और लड़कियाँ अत्यंत गरीब घरों में रहती हैं। 18-34 वर्ष की आयु की महिलाओं में यह हिस्सा बढ़कर 24% हो जाता है, जिनके छोटे बच्चे होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
  • कार्य में लैंगिक अंतर: कार्य में लैंगिक अंतर दशकों से स्थिर है। वैश्विक स्तर पर, 25-54 वर्ष की आयु के लोगों में, 92% पुरुषों की तुलना में 63% महिलाएँ श्रम बल में हैं। महिलाएँ अभी भी पुरुषों की तुलना में 2.5 गुना अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं।
  • प्रजनन अधिकार और स्वास्थ्य: आधुनिक परिवार नियोजन तक पहुँच के मामले में 15 से 24 वर्ष की आयु की महिलाएँ अन्य आयु समूहों से पीछे हैं।
    • वर्ष 2000 से वर्ष 2015 तक वैश्विक स्तर पर एक-तिहाई की गिरावट के बावजूद, मातृ मृत्यु दर में तब से लगभग कोई बदलाव नहीं आया है।
  • महिलाओं के अधिकारों के विरुद्ध प्रतिक्रिया: लगभग 25% देशों ने लैंगिक समानता के प्रति प्रतिक्रिया की सूचना दी, जिससे महिलाओं के अधिकारों पर प्रगति कमजोर हुई।
    • अधिकार विरोधी कार्यकर्ता कई क्षेत्रों में कानूनी और नीतिगत लाभों को सक्रिय रूप से अवरुद्ध या धीमा कर रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: सबसे खराब जलवायु परिदृश्य में, वर्ष 2050 तक 236 मिलियन अतिरिक्त महिलाओं एवं लड़कियों के समक्ष खाद्य असुरक्षा का संकट उत्पन्न हो सकता है।

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