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भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) का पेयजल संबंधी अध्ययन

Lokesh Pal July 20, 2024 02:50 106 0

संदर्भ

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में निष्कर्ष निकाला है कि पेयजल में 60 माइक्रोग्राम प्रति लीटर (प्रति लीटर एक ग्राम का दस लाखवाँ भाग या µg/l) तक रेडियोधर्मी पदार्थ यूरेनियम की सांद्रता पूरी तरह से सुरक्षित है।

संबंधित तथ्य

  • इस अध्ययन से हाल ही में तैयार किया गया कठोर राष्ट्रीय मानक 30 µg/l का प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।

मानकों की पृष्ठभूमि

  • परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB): वर्षों से भारत के पेयजल में यूरेनियम सांद्रता का स्वीकार्य स्तर 60 µg/l था – जिसे देश के परमाणु सुरक्षा प्रहरी, परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) द्वारा निर्धारित किया गया था। 
  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS): हालाँकि वर्ष 2021 में, भारत में मानकों और गुणवत्ता के संरक्षक, भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सिफारिशों के अनुरूप 30 µg/l की नई सीमा की घोषणा की। 
    • पेयजल के लिए BIS सुरक्षा मानकों के पुराने संस्करण, जिन्हें आखिरी बार वर्ष 2012 में अद्यतित किया गया था, में विशेष रूप से यूरेनियम संदूषण का उल्लेख नहीं किया गया था। 
    • इसमें सभी रेडियोलॉजिकल पदार्थों के लिए सुरक्षित सीमाएँ थीं और सीमाएँ उनकी सांद्रता के संदर्भ में नहीं बल्कि प्रति लीटर जल में पदार्थों द्वारा प्रति सेकंड होने वाले रेडियोधर्मी क्षय के संदर्भ में परिभाषित की गई थीं। 
    • यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी पदार्थों का उत्सर्जन करने वाले सभी अल्फा-कणों के लिए यह सीमा 0.1 निर्धारित की गई थी।

अध्ययन के निष्कर्ष

  • अतार्किक मानक 
    • अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान’ में प्रकाशित BARC अध्ययन ने तर्क दिया है कि नए BIS मानकों का अनुपालन करने से शुद्धिकरण में अतिरिक्त लागत आएगी, जबकि इससे कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं होगा। 
  • यूरेनियम की कम सांद्रता से कोई खतरा नहीं
    • अत्यधिक यूरेनियम सामग्री गुर्दे से संबंधित बीमारियों और यहाँ तक ​​कि कैंसर से भी जुड़ी है। 
    • BARC अध्ययन ने WHO द्वारा किए गए कई चिकित्सा शोधों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि पेयजल में यूरेनियम की कम सांद्रता से कोई खतरा नहीं है। 
    • अध्ययन में कहा गया है उच्च-विशिष्ट गतिविधियों (तेजी से क्षय होने वाले) से संबंधित घुलनशील यूरेनियम यौगिकों को इंजेक्शन या साँस के माध्यम से संपर्क में आना प्रायोगिक जानवरों में हड्डी के कैंसर को प्रेरित करता है, अघुलनशील या घुलनशील यूरेनियम यौगिकों का सेवन करने वाले जानवरों में कैंसर का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
    • WHO ने हाल ही में निष्कर्ष निकाला है कि पेयजल में यूरेनियम के प्राकृतिक स्तर और कैंसरकारी प्रभाव के बीच संबंध का कोई साक्ष्य नहीं है।

यूरेनियम

  • यूरेनियम (रासायनिक प्रतीक U) प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक रेडियोधर्मी तत्त्व है। 
  • अपनी प्राकृतिक अवस्था में यूरेनियम के तीन समस्थानिक (U-234 (0.0057%), U-235 (0.72%) और U-238 (99.28%) होते हैं। 
  • U-232, U-233, U-236 और U-237 इसके अन्य ऐसे समस्थानिक हैं, जो प्राकृतिक यूरेनियम में नहीं मिलते हैं। 

    • शोधकर्ताओं के अनुसार, पेयजल में यूरेनियम सांद्रता के लिए WHO के मानक – 30 µg/l – केवल दिशा-निर्देश थे, न कि अनुशंसित सुरक्षा सीमा।
  • विभिन्न देशों में अलग-अलग राष्ट्रीय मानक
    • यूरेनियम की काफी मात्रा में खपत करने वाले देश फिनलैंड और स्लोवाकिया ने क्रमशः 100 और 350 µg/l की सुरक्षा सीमा निर्धारित की है; एक अन्य यूरेनियम समृद्ध देश, दक्षिण अफ्रीका में यह सीमा 70 µg/l है।
    • हालाँकि, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में, जहाँ यूरेनियम का सबसे बड़ा भंडार है, सीमा क्रमशः 20 और 15 µg/l है। जर्मनी जिसके पास यूरेनियम नहीं है, में सीमा और भी कम है।
    • BARC अध्ययन के अनुसार, इतनी कम सांद्रता पर प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों के किसी भी सुबूत के अभाव में, यूरेनियम संदूषण पर राष्ट्रीय मानकों पर निर्णय लेते समय भू-वैज्ञानिक (यूरेनियम की व्यापकता) और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों तथा जनसंख्या गतिशीलता जैसे विचारों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
    • कुछ मामलों में, राष्ट्रीय नियामक एजेंसियाँ ​​स्थानीय कारकों और स्थितियों को ध्यान में रखते हुए पेयजल में यूरेनियम के लिए अपनी सीमाएँ निर्धारित करती हैं। 
    • यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण देश-विशिष्ट मानकों की आवश्यकता को स्वीकार करता है तथा आर्थिक स्थितियों, भू-वैज्ञानिक विशेषताओं और विभिन्न जनसंख्या समूहों की संवेदनशीलता जैसे कारकों के प्रभाव को पहचानता है।
  • स्वास्थ्य प्रभाव अध्ययन की कमी
    • BARC वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि BIS ने 30 µg/l की सीमा को अपनाने से पहले स्वास्थ्य प्रभाव अध्ययन नहीं किया था, जबकि US पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) जैसी कई अन्य एजेंसियों ने सख्त मानक अपनाने का लागत लाभ विश्लेषण किया था।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC)

  • BARC महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित भारत का प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र है।
  • यह एक बहु-अनुशासनात्मक अनुसंधान केंद्र है, जिसमें उन्नत अनुसंधान और विकास के लिए व्यापक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है।
  • इसका उद्देश्य मुख्य रूप से परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों के तहत विद्युत उत्पादन करना है।

    • USEPA ने पेयजल में यूरेनियम के लिए देश-विशिष्ट अधिकतम संदूषण स्तर (MCL) मान निर्धारित करते समय इन विचारों को संबोधित किया।
      • BARC वैज्ञानिकों ने कहा कि BIS को भी इसी तरह के प्रभाव संबंधी अध्ययन करने चाहिए थे।
      • अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया है, “चूँकि पेयजल में यूरेनियम की सीमा को कई कारक प्रभावित करते हैं, इसलिए AERB को 60 µg/l की सीमा को जारी रखना उचित होगा।
  • वैधानिक प्रतिक्रियाएँ
    • पिछले पाँच वर्षों में, संसद में कई प्रश्नों में यूरेनियम संदूषण का मुद्दा उठाया गया था। 
    • सरकार ने स्पष्ट किया कि पेयजल में यूरेनियम की सांद्रता यूरेनियम खनन गतिविधियों के कारण नहीं थी। 
      • यूरेनियम की उपस्थिति प्राकृतिक है, जिसकी पुष्टि जाँच से हुई है।
    • वर्ष 2021 में, BIS मानकों के अधिसूचित होने के तुरंत बाद, कुछ BARC शोधकर्ताओं ने पूरे भारत में पेयजल के स्रोतों में यूरेनियम सामग्री के मापन के लिए एक व्यापक अभ्यास के निष्कर्ष प्रकाशित किए थे, जिसे वे देश भर में 50 से अधिक संस्थानों के सहयोग से लगभग तीन वर्षों से कर रहे थे। 
    • इस अभ्यास से पता चला था कि सतही जल में यूरेनियम की सांद्रता भूजल स्रोतों की तुलना में काफी कम थी। 
    • विश्लेषण किए गए 55,554 नमूनों में से लगभग 94 प्रतिशत में यूरेनियम की मात्रा नए अधिसूचित BIS मानक 30 µg/l से कम पाई गई, जबकि लगभग 98 प्रतिशत नमूनों में यूरेनियम की मात्रा AERB मानक 60 µg/l से कम पाई गई।

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