बिहार में प्रत्येक वर्ष की तरह एक बार फिर उत्तरी बिहार में बाढ़ आ गई है।
संबंधित तथ्य
बिहार में बाढ़ से कुल 11.84 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, जो अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।
प्रभावित क्षेत्र
बाढ़ग्रस्त जिले: उत्तरी बिहार के 16 जिलों के 9.9 लाख से अधिक लोग गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं, जिनमें पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा शामिल हैं।
विशिष्ट घटनाएँ: कोसी नदी के तटबंध टूटने के बाद दरभंगा में बाढ़ ने भीषण स्वरूप ले लिया है।
बिहार में बाढ़ की स्थिति
बिहार, भारत का सबसे अधिक बाढ़ संभावित राज्य है।
उत्तर बिहार की लगभग 76% जनसंख्या भीषण बाढ़ का सामना करती है।
राज्य में भारत के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% एवं बाढ़ प्रभावित आबादी का 22.1% हिस्सा है।
बिहार में बाढ़ के कारण
भौगोलिक कारक
अवस्थिति: बिहार नेपाल की तलहटी में अवस्थित है, जहाँ कोसी एवं गंडक जैसी प्रमुख नदियाँ प्रवाहित होती हैं।
नवीन हिमालय पर्वतों के कारण ये नदियाँ बहुत अधिक मात्रा में अवसाद लाती हैं।
अवसाद: नदी तल में अवसाद जमा हो जाती है, जिससे वे ऊपर उठती हैं। जब भारी वर्षा होती है, तो इससे नदियाँ उफान पर आ सकती हैं।
नदी नेटवर्क: बिहार में कई नदियाँ हैं, जो हिम एवं मानसून पर निर्भर करती हैं, जिससे ये विभिन्न प्रकार की बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
उत्तर बिहार को मानसून के मौसम के दौरान पाँच प्रमुख नदियों से बाढ़ का सर्वाधिक खतरा है:
महानंदा
कोसी
बागमती
बूढ़ी गंडक
गंडक
निचले क्षेत्र: बिहार की समतल भूमि के कारण यहाँ विशेष रूप से भारी वर्षा के दौरान जलभराव की संभावना बनी रहती है।
स्थायी जलजमाव
अवसादयुक्त नदियाँ: नदियों में गाद जमा होने से जल की निकासी कठिन हो जाती है, जिससे जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
जल निकासी चैनलों पर अतिक्रमण: जल निकासी चैनलों पर निर्माण या उन्हें अवरुद्ध करने से जल का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है, जिससे बाढ़ की स्थिति बिगड़ती है।
नदी के मार्ग में परिवर्तन: जब नदियाँ अपना मार्ग बदलती हैं, तो वे चौर नामक तश्तरी के आकार के गड्ढे बना सकती हैं, जो जल को रोक सकते हैं एवं स्थायी जल-जमाव का कारण बन सकते हैं।
बाढ़ का वर्गीकरण
बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बाढ़ को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करता है
आकस्मिक बाढ़: त्वरित शुरुआत (8 घंटे का समय), तेजी से घटने वाली बाढ़।
नदी में बाढ़: 24 घंटे का समय, एक सप्ताह में बाढ़ घटती है।
जल निकासी का जमाव: पूरे मानसून के मौसम में रहता है, जल स्तर कम होने में 3 माह लगते हैं।
स्थायी जलजमाव: नदियों में गाद एवं जल निकासी संबंधी समस्याओं के कारण लंबे समय तक जलजमाव।
बाढ़ का प्रभाव
जीवन और संपत्ति की हानि: बाढ़ के परिणामस्वरूप जीवन की हानि, लोगों का विस्थापन एवं बुनियादी ढाँचे को नुकसान हो सकता है।
आर्थिक प्रभाव: बाढ़ से फसलों, पशुधन एवं आजीविका को काफी हानि हो सकती है।
कष्टकारी प्रवासन: लोग अपने घरों एवं आजीविका के नुकसान के कारण दूसरे क्षेत्रों में पलायन करने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
सिफारिशें
एकीकृत बाढ़ प्रबंधन: व्यापक बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना, जो संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक दोनों पहलुओं को संबोधित करती है।
संरचना समाधानों में तटबंध, बाँध आदि जैसी प्रणालियाँ शामिल हैं।
गैर-संरचनात्मक समाधानों में नीति, कानून, जोखिम शमन रणनीतियाँ आदि शामिल हैं।
बुनियादी ढाँचे में सुधार: बाढ़ से निपटने के लिए लचीलापन बढ़ाने हेतु तटबंधों एवं अन्य बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना।
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: समय पर अलर्ट प्रदान करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास एवं सुधार करना।
समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन: बाढ़ की तैयारी एवं प्रतिक्रिया में भाग लेने के लिए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना।
क्षेत्रीय सहयोग: साझा नदी प्रणालियों के प्रबंधन एवं बाढ़ के खतरों को कम करने के लिए नेपाल के साथ सहयोग को मजबूत करना।
सतत् भूमि उपयोग योजना: भूमि उपयोग नीतियों को लागू करना, जो बाढ़ के जोखिम को कम करती है एवं सतत् विकास को बढ़ावा देती है।
दीर्घकालिक समाधान: नदी के प्रवाह को विनियमित करने के लिए बाँध या जलाशयों का निर्माण जैसे दीर्घकालिक समाधान तलाशना।
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