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बिहार बाढ़

Lokesh Pal October 04, 2024 02:56 20 0

संदर्भ

 बिहार में प्रत्येक वर्ष की तरह एक बार फिर उत्तरी बिहार में बाढ़ आ गई है।

संबंधित तथ्य 

  • बिहार में बाढ़ से कुल 11.84 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, जो अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।

प्रभावित क्षेत्र

  • बाढ़ग्रस्त जिले: उत्तरी बिहार के 16 जिलों के 9.9 लाख से अधिक लोग गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं, जिनमें पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा शामिल हैं।
  • विशिष्ट घटनाएँ: कोसी नदी के तटबंध टूटने के बाद दरभंगा में बाढ़ ने भीषण स्वरूप ले लिया है।

बिहार में बाढ़ की स्थिति

  • बिहार, भारत का सबसे अधिक बाढ़ संभावित राज्य है। 
  • उत्तर बिहार की लगभग 76% जनसंख्या भीषण बाढ़ का सामना करती है।
  • राज्य में भारत के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% एवं बाढ़ प्रभावित आबादी का 22.1% हिस्सा है।

बिहार में बाढ़ के कारण

  • भौगोलिक कारक
    • अवस्थिति: बिहार नेपाल की तलहटी में  अवस्थित है, जहाँ कोसी एवं गंडक जैसी प्रमुख नदियाँ प्रवाहित होती हैं। 
      • नवीन हिमालय पर्वतों के कारण ये नदियाँ बहुत अधिक मात्रा में अवसाद लाती हैं।
    • अवसाद: नदी तल में अवसाद जमा हो जाती है, जिससे वे ऊपर उठती हैं। जब भारी वर्षा होती है, तो इससे नदियाँ उफान पर आ सकती हैं।
    • नदी नेटवर्क: बिहार में कई नदियाँ हैं, जो हिम एवं मानसून पर निर्भर करती  हैं, जिससे ये विभिन्न प्रकार की बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
      • उत्तर बिहार को मानसून के मौसम के दौरान पाँच प्रमुख नदियों से बाढ़ का सर्वाधिक खतरा है:
        • महानंदा
        • कोसी
        • बागमती
        • बूढ़ी गंडक
        • गंडक
  • निचले क्षेत्र: बिहार की समतल भूमि के कारण यहाँ विशेष रूप से भारी वर्षा के दौरान जलभराव की संभावना बनी रहती है।
  • स्थायी जलजमाव
    • अवसादयुक्त नदियाँ: नदियों में गाद जमा होने से जल की निकासी कठिन हो जाती है, जिससे जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
    • जल निकासी चैनलों पर अतिक्रमण: जल निकासी चैनलों पर निर्माण या उन्हें अवरुद्ध करने से जल का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है, जिससे बाढ़ की स्थिति बिगड़ती है।
    • नदी के मार्ग में परिवर्तन: जब नदियाँ अपना मार्ग बदलती हैं, तो वे चौर नामक तश्तरी के आकार के गड्ढे बना सकती हैं, जो जल को रोक सकते हैं एवं स्थायी जल-जमाव का कारण बन सकते हैं।

बाढ़ का वर्गीकरण 

  • बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बाढ़ को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करता है
    • आकस्मिक बाढ़: त्वरित शुरुआत (8 घंटे का समय), तेजी से घटने वाली बाढ़।
    • नदी में बाढ़: 24 घंटे का समय, एक सप्ताह में बाढ़ घटती है।
    • जल निकासी का जमाव: पूरे मानसून के मौसम में रहता है, जल स्तर कम होने में 3 माह लगते हैं।
    • स्थायी जलजमाव: नदियों में गाद एवं जल निकासी संबंधी समस्याओं के कारण लंबे समय तक जलजमाव।

बाढ़ का प्रभाव

  • जीवन और संपत्ति की हानि: बाढ़ के परिणामस्वरूप जीवन की हानि, लोगों का विस्थापन एवं बुनियादी ढाँचे को नुकसान हो सकता है।
  • आर्थिक प्रभाव: बाढ़ से फसलों, पशुधन एवं आजीविका को काफी हानि हो सकती है।
  • कष्टकारी प्रवासन: लोग अपने घरों एवं आजीविका के नुकसान के कारण दूसरे क्षेत्रों में पलायन करने के लिए मजबूर हो सकते हैं।

सिफारिशें

  • एकीकृत बाढ़ प्रबंधन: व्यापक बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना, जो संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक दोनों पहलुओं को संबोधित करती है।
    • संरचना समाधानों में तटबंध, बाँध आदि जैसी प्रणालियाँ शामिल हैं।
    • गैर-संरचनात्मक समाधानों में नीति, कानून, जोखिम शमन रणनीतियाँ आदि शामिल हैं। 
  • बुनियादी ढाँचे में सुधार: बाढ़ से निपटने के लिए लचीलापन बढ़ाने हेतु तटबंधों एवं अन्य बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: समय पर अलर्ट प्रदान करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास एवं सुधार करना।
  • समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन: बाढ़ की तैयारी एवं प्रतिक्रिया में भाग लेने के लिए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना।
  • क्षेत्रीय सहयोग: साझा नदी प्रणालियों के प्रबंधन एवं बाढ़ के खतरों को कम करने के लिए नेपाल के साथ सहयोग को मजबूत करना।
  • सतत् भूमि उपयोग योजना: भूमि उपयोग नीतियों को लागू करना, जो बाढ़ के जोखिम को कम करती है एवं सतत् विकास को बढ़ावा देती है।
  • दीर्घकालिक समाधान: नदी के प्रवाह को विनियमित करने के लिए बाँध या जलाशयों का निर्माण जैसे दीर्घकालिक समाधान तलाशना।

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