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जैविक हथियार अभिसमय

Lokesh Pal December 04, 2025 03:33 3 0

संदर्भ

भारत ने वर्ष 2025 में नई दिल्ली में आयोजित जैविक हथियार संधि (BWC) की 50वीं वर्षगाँठ के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में वैश्विक जैव-सुरक्षा को सुदृढ़ करने और अधिक सक्षम BWC की आवश्यकता को पुनः रेखांकित किया।

संबंधित तथ्य

  • विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चेतावनी दी कि वैश्विक समुदाय जैव-आतंकवाद का मुकाबला करने हेतु अभी भी अपर्याप्त रूप से तैयार है, विशेषकर गैर-राज्य अभिकर्ताओं से उत्पन्न खतरों के संदर्भ में।

  • जैव-आतंकवाद से अभिप्राय है—राजनीतिक या सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरकार अथवा सामान्य जनसंख्या को बाध्य करने के उद्देश्य से मनुष्यों, पशुओं या पौधों को हानि पहुँचाने अथवा मारने हेतु जैविक एजेंटों या विष का जानबूझकर प्रसार।
    • उदाहरण: वर्ष 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एन्थ्रैक्स पत्र हमले।

जैविक हथियार अभिसमय (BWC)

  • औपचारिक शीर्षक: जीवाणुजनित (जैविक) और विष हथियारों के विकास, उत्पादन और भंडारण के निषेध और उनके विनाश पर अभिसमय।
  • स्वरूप: जैविक हथियार अभिसमय (BWC) एक विधिक रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधि है, जो जैविक और विषैले हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है तथा उनके विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, भंडारण एवं स्थानांतरण पर रोक लगाती है।
  • उत्पत्ति: BWC हस्ताक्षर हेतु अप्रैल 1972 में उपलब्ध हुई और यह मार्च 1975 में प्रभावी हुई।
  • सदस्यता: BWC लगभग सार्वभौमिक सदस्यता वाली संधि है, जिसमें 189 राज्य-पक्ष शामिल हैं।
    • भारत प्रारंभिक राज्य-पक्षों में से एक है; भारत ने वर्ष 1973 में हस्ताक्षर किए और वर्ष 1974 में संधि का अनुमोदन किया।
  • प्रथम बहुपक्षीय निरस्त्रीकरण संधि: BWC जनसंहारक हथियारों (WMD) की एक पूरी श्रेणी पर प्रतिबंध लगाने वाली पहली बहुपक्षीय निरस्त्रीकरण संधि है।
  • यह वर्ष 1925 के जिनेवा प्रोटोकॉल (जो केवल जैविक हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित करता था) को संपूरक बनाती है, क्योंकि BWC विकास और स्वामित्व को भी प्रतिबंधित करती है।
  • मुख्य प्रावधान
    • पूर्ण निषेध: राज्य-पक्ष किसी भी परिस्थिति में जैविक या विषैले हथियारों का विकास, उत्पादन, भंडारण, अधिग्रहण या संरक्षण न करने की प्रतिज्ञा करते हैं।
    • विनाश का दायित्व: राज्यों को यह सुनिश्चित करना होता है कि सभी विद्यमान जैविक हथियार नष्ट किए जाएँ या स्थायी रूप से शांतिपूर्ण उद्देश्यों हेतु परिवर्तित कर दिए जाएँ।
    • स्थानांतरण और सहायता पर प्रतिबंध: राज्य आधारित पक्ष किसी भी रूप में जैविक हथियारों के निर्माण या अधिग्रहण में किसी को स्थानांतरण, सहायता, प्रोत्साहन या प्रेरित न करने का दायित्व लेते हैं।
  • अनुपालन और प्रवर्तन
    • सहयोग प्रावधान: संधि राज्यों को द्विपक्षीय या बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से अनुपालन से संबंधित चिंताओं और क्रियान्वयन से जुड़े मुद्दों के समाधान हेतु प्रोत्साहित करती है।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तंत्र: कोई भी राज्य-पक्ष संधि के कथित उल्लंघनों की जाँच हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अनुरोध कर सकता है और सभी राज्यों को UNSC द्वारा आरंभ की गई किसी भी जाँच में सहयोग करना अनिवार्य है।
    • सत्यापन निकाय का अभाव: BWC का अपना कोई क्रियान्वयन या सत्यापन तंत्र नहीं है, जिसके कारण सुदृढ़ निगरानी के बिना संभावित उल्लंघनों की आशंका बनी रहती है।
    • समीक्षा सम्मेलन: राज्य आधारित पक्ष लगभग प्रत्येक पाँच वर्ष में संधि के संचालन की समीक्षा और क्रियान्वयन को सुदृढ़ करने हेतु समीक्षा सम्मेलन आयोजित करते हैं।

भारत द्वारा जैविक हथियार अभिसमय (BWC) के क्रियान्वयन हेतु उठाए गए कदम

  • वर्ष 1989 के खतरनाक एवं आनुवंशिक रूप से परिवर्तित जीवों पर नियम: ये नियम सूक्ष्मजीवों और आनुवंशिक रूप से परिवर्तित सामग्री से संबंधित गतिविधियों को विनियमित करते हैं।
  • जनसंहारक हथियार अधिनियम, 2005: यह अधिनियम जैविक, रासायनिक या परमाणु हथियारों के निर्माण, परिवहन, अधिग्रहण या स्थानांतरण से संबंधित अवैध गतिविधियों को दंडनीय बनाता है।
  • SCOMET सूची: विशेष रसायन, जीव, सामग्री, उपकरण और प्रौद्योगिकियाँ (SCOMET) सूची द्वि-उपयोगी वस्तुओं के लिए भारत की राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था के रूप में कार्य करती है।
  • आनुवंशिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (GEAC): यह समिति आनुवंशिक रूप से परिवर्तित जीवों से संबंधित अनुसंधान की निगरानी करती है।

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