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बायोमैन्युफैक्चरिंग और बायोफाउंड्री

Lokesh Pal February 03, 2024 04:38 289 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट 2024-25 में बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री की एक नई योजना का प्रस्ताव रखा है।

संबंधित तथ्य

  • विनिर्माण प्रतिमान को बदलना: यह योजना समकालीन उपभोग्य विनिर्माण प्रतिमान को पुनर्योजी सिद्धांतों पर आधारित प्रतिमान में बदलने में मदद करेगी।
  • जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र: भारतीय जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है और बायो-मैन्युफैक्चरिंग तथा बायो-फाउंड्री के एकीकरण में फार्मास्यूटिकल्स से लेकर सतत् ऊर्जा तक की अपार संभावनाएँ हैं।

जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) के बारे में

  • जैव प्रौद्योगिकी: यह एक बहु-विषयक क्षेत्र है, जिसमें उत्पादों एवं सेवाओं के लिए जीवों, कोशिकाओं और अणुओं के अनुप्रयोग को प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक विज्ञान और इंजीनियरिंग का एकीकरण शामिल है।
  • बायो मैन्युफैक्चरिंग और बायो फाउंड्री के साथ एकीकरण: बायोटेक्नोलॉजी, जेनेटिक मैनिपुलेशन को एकीकृत करती है, बायो-मैन्युफैक्चरिंग बायोमटेरियल का उत्पादन करती है और बायो-फाउंड्री नवाचार एवं टिकाऊ समाधानों को आगे बढ़ाने वाले क्षेत्रों को जोड़ने वाली स्वचालित प्रक्रियाओं को नियोजित करती है।

भारत में जैव प्रौद्योगिकी उद्योग की स्थिति

  • वैश्विक हिस्सेदारी: भारत के जैव-अर्थव्यवस्था उद्योग की वैश्विक जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग में लगभग 3% हिस्सेदारी है।
  • सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी: वर्ष 2021-22 में, भारतीय जैव-अर्थव्यवस्था क्षेत्र ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 2.6% हिस्सेदारी का योगदान दिया।
  • बायोटेक स्टार्टअप: पिछले दस वर्षों में भारत में बायोटेक स्टार्ट-अप की संख्या 50 से बढ़कर 5,300 से अधिक हो गई है। एक प्रभावी प्रतिभा समूह से उभरने वाले बायोटेक स्टार्ट-अप की संख्या वर्ष 2025 तक दोगुनी होकर 10,000 से अधिक होने का अनुमान है।

Bio­ Manufacturing

बायोमैन्युफैक्चरिंग और बायोफाउंड्री के बारे में

बायोमैन्युफैक्चरिंग

  • बायोमैन्युफैक्चरिंग: यह उन जैविक प्रणालियों का उपयोग है, जिन्हें किसी उत्पाद का उत्पादन करने के लिए डिजाइन किया गया है या जो उनके प्राकृतिक परिदृश्य के बाहर उपयोग किया जाता है।

Bio­ Manufacturing

    • यह व्यावसायिक पैमाने पर अणुओं एवं सामग्रियों का उत्पादन करने के लिए जीवित प्रणालियों, विशेष रूप से सूक्ष्मजीवों एवं कोशिका नेटवर्क का उपयोग करता है।
  • प्रमुख पहलू: इसमें ‘होस्ट ऑर्गानिज्म इंजीनियरिंग’, विकास स्थितियों का अनुकूलन, बढ़ी हुई उत्पादकता के लिए आनुवंशिक संशोधन एवं वांछित उत्पाद को निकालने एवं शुद्ध करने के लिए डाउनस्ट्रीम प्रसंस्करण शामिल है।
  • संभावना: इसमें वैश्विक औद्योगिक प्रणाली को बदलने की क्षमता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60% तक भौतिक इनपुट इस तकनीक का उपयोग करके उत्पादित होने की उम्मीद है।
  • उपयोग: फार्मास्यूटिकल्स, जैव ईंधन, एंजाइम और अन्य रसायनों सहित विभिन्न उत्पादों के उत्पादन में जैव-विनिर्माण का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
  • सिंथेटिक जीव विज्ञान का अनुप्रयोग: सिंथेटिक जीव विज्ञान में नए जीनोम, बायोलॉजिकल पाथवे या प्रकृति में नहीं पाए जाने वाले जीवों का निर्माण और मौजूदा जीन, कोशिकाओं या जीवों का नया स्वरूप शामिल है।
    • ये क्षमताएँ नए उत्पादों के निर्माण की अनुमति देती हैं और स्वास्थ्य देखभाल में जीन थेरेपी जैसे मौजूदा विषयों के लिए नए दृष्टिकोण भी प्रदान करती हैं।

बायोफाउंड्री

  • बायोफाउंड्री: बायोफाउंड्री एक ऐसी जगह है, जहाँ बायोमैन्युफैक्चरिंग आटोमेशन से संबद्ध होती है। बायो-फाउंड्री एक विशेष सुविधा या प्रयोगशाला है, जो जैविक प्रणालियों के हाई-थ्रूपुट डिजाइन, निर्माण और परीक्षण के लिए स्वचालित उपकरणों एवं प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित है।

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    • हाई-थ्रूपुट (HT) जैविक गतिविधि के लिए बड़ी संख्या में नमूनों का त्वरित परीक्षण करने के लिए स्वचालित उपकरणों के उपयोग को संदर्भित करता है।
  • DBTL चक्र: बायोफाउंड्रीज के मूल में डिजाइन-बिल्ड-टेस्ट-लर्न (Design-Build-Test-Learn, DBTL) चक्र है, जिसमें शामिल है:
    • DNA आनुवंशिक खंडों का कंप्यूटेशनल डिजाइन।
    • डिजाइन किए गए DNA खंडों का भौतिक संयोजन।
    • जीवित कोशिकाओं में डिजाइन का प्रोटोटाइप एवं परीक्षण प्रदर्शन।
    • डिजाइन प्रक्रिया को सूचित करने के लिए मॉडलिंग एवं कंप्यूटेशनल शिक्षण उपकरण लागू करना।
  • बायो-फाउंड्रीज के लक्ष्य: जैविक प्रणालियों की अभियांत्रिकी/डिजाइन में तेजी लाना, पुनरुत्पादन में सुधार करना और डिजाइन एवं निर्माण प्रक्रियाओं का मानकीकरण करना शामिल है।

भारत में बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्रीज का महत्त्व

    • आर्थिक विकास: वे पारंपरिक विनिर्माण विधियों के लिए स्थायी विकल्प प्रदान करके आर्थिक विकास को उत्प्रेरित कर सकते हैं। भारत को जैव नवाचार और बायो-मैन्युफैक्चरिंग के लिए अग्रणी स्थलों में से एक माना जाता है और इस प्रकार इसे एक उभरते हुए क्षेत्र और वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के भारत के मिशन का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना जाता है।
      • विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री के अनुसार, भारत वर्ष 2025 तक शीर्ष 5 वैश्विक बायो-मैन्युफैक्चरिंग केंद्रों में से एक बनने की ओर अग्रसर है। 
      • वर्ष 2014 में, भारत की जैव अर्थव्यवस्था लगभग 10 बिलियन डॉलर थी और वर्ष 2023 में 80 बिलियन डॉलर तक पहुँच गई और वर्ष 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • भारत वैश्विक बायोमैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में: अपने बुनियादी ढाँचे, फार्मास्युटिकल विनिर्माण विशेषज्ञता एवं उपलब्ध कार्यबल के साथ, भारत का लक्ष्य अगले तीन से पाँच वर्षों में किण्वन (Fermentation) क्षमता को दस गुना बढ़ाकर 10 मिलियन लीटर तक बढ़ाने की योजना के साथ एक अग्रणी बायो-मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बनना है।

जैव अर्थव्यवस्था 

इसमें अर्थव्यवस्था के वे हिस्से शामिल हैं जो भूमि एवं समुद्र से नवीकरणीय जैविक संसाधनों जैसे- भोजन, कपड़ा और ऊर्जा आदि का उत्पादन करने के लिए फसलों, वनों, मछली, जानवर एवं सूक्ष्म जीवों का उपयोग करते हैं। 

  • ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट के अनुसार, भारत बायोमैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में अनुसंधान आउटपुट की गुणवत्ता एवं अनुसंधान प्रकाशनों के बीच हिस्सेदारी दोनों में शीर्ष प्रदर्शन करने वालों में से एक है।
  • लागत प्रभावी उत्पादन: फार्मास्युटिकल उद्योग के लिए बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री महत्त्वपूर्ण हैं, जो बायोफार्मास्यूटिकल्स और टीकों के लागत प्रभावी उत्पादन को सक्षम बनाते हैं, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ती है।
    • भारत में कम लागत वाले बायो-मैन्युफैक्चरिंग (विशेष रूप से एंजाइमों, अभिकर्मकों, अनुसंधान सामग्रियों एवं उपकरणों के उत्पादन में) की महत्त्वपूर्ण क्षमता मौजूद है और अमेरिका की तुलना में भारत में विनिर्माण की लागत लगभग 33% कम है।
  • सतत् अभ्यास: बायो-मैन्युफैक्चरिंग नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग पर जोर देता है, जो टिकाऊ एवं पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन विधियों में योगदान देता है। 
    • यह कदम वर्ष 2070 तक नेट जीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत के सतत् मिशन को आगे बढ़ाने के लिए बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर, बायो-प्लास्टिक, बायो-फार्मास्यूटिकल्स और बायो-एग्री-इनपुट जैसे पर्यावरण-अनुकूल विकल्प विकसित करने में मदद करेगा।
  • उद्योगों का विविधीकरण: बायो-फाउंड्रीज के माध्यम से बायो-मैन्युफैक्चरिंग के विविधीकरण से नए उद्योगों की स्थापना एवं रोजगार सृजन हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, बायो-फाउंड्रीज जैविक प्रणालियों के तेजी से प्रोटोटाइप एवं परीक्षण के लिए एक मंच प्रदान करती है, जिससे उद्योगों में नवाचार की सुविधा मिलती है, जिससे कृषि, ऊर्जा आदि जैसे अन्य उद्योगों में दक्षता एवं उनके अनुप्रयोगों में वृद्धि हो सकती है।

Bio­ Manufacturing

भारत में बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्रीज से जुड़ी चुनौतियाँ

  • तकनीकी बाधाएँ: भारत में बायो-मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ाने के लिए सीमित स्वचालन बुनियादी ढाँचे, अपर्याप्त बायोप्रोसेसिंग प्रौद्योगिकियों, अपर्याप्त डेटा एकीकरण और विश्लेषण, सीमित सिंथेटिक जीव विज्ञान उपकरण आदि के साथ अत्याधुनिक तकनीक तक पहुँच का अभाव है।

  • नियामक ढाँचा: सिंथेटिक जीव विज्ञान में वैज्ञानिक विकास के लिए अनुकूलित नियामक दिशा-निर्देशों की अनुपस्थिति के कारण, अनुसंधान प्रथाएँ बड़े पैमाने पर कम सरकारी निरीक्षण के साथ विकसित हुई हैं, जो उत्पाद सुरक्षा एवं अनुपालन से संबंधित समस्याएँ पैदा कर सकती हैं।

  • इसके अलावा, इन प्रौद्योगिकियों को विनियमित करना एक जटिल प्रयास है, जिसमें वैज्ञानिक प्रगति के संभावित लाभों एवं जैव आतंकवाद या जैव युद्ध के लिए इसके संभावित अनुप्रयोग को संतुलित करना शामिल है।

  • नैतिक प्रतिपूर्ति: नीतियों एवं विनियमों को आकार देने के लिए नैतिक विचार एवं सार्वजनिक सहभागिता महत्त्वपूर्ण है। आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) और सिंथेटिक जीव विज्ञान के बारे में सार्वजनिक धारणा जैव-निर्मित उत्पादों की स्वीकृति को प्रभावित कर सकती है।

  • चीन के संभावित प्रभुत्व संबंधी चिंताएँ: चीन ने इस बाजार पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास किया है, जिससे इस क्षेत्र में उसके प्रभुत्व को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

भारत में बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्रीज को बढ़ावा देने हेतु पहलें

    • DBT की स्थापना: देश ने इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का समर्थन करने के लिए वर्ष 1986 में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) की स्थापना की।
  • उच्च निष्पादित बायो-मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय पहल: हरित, स्वच्छ और समृद्ध भारत के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की दिशा में एक एकीकृत दृष्टिकोण, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (भारत सरकार) द्वारा प्रस्तावित किया गया है।
  • नीतिगत पहल: अंतरिम बजट 2024-25 में बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री की प्रस्तावित योजना के बारे में बताया गया है। 
  • भारत की राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति वर्ष 2025 तक भारत को ‘वैश्विक बायो-मैन्युफैक्चरिंग हब’ बनने की कल्पना करती है और इसके लिए $ 100 बिलियन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वर्ष 2021 में, क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) ने इस क्षेत्र में सहयोग को सुविधाजनक बनाने, आँकड़ों की निगरानी करने और उभरती प्रौद्योगिकियों में विकास से संबंधित अवसरों की तलाश करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी कार्य समूह की स्थापना की, जिसमें जैव प्रौद्योगिकी भी शामिल थी।

आगे की राह

  • भारत में क्वाड के नेतृत्व वाले बायो-मैन्युफैक्चरिंग हब की स्थापना: क्वाड को अमेरिका की फंडिंग, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की उन्नत जैव प्रौद्योगिकी और भारत की कुशल जनशक्ति तथा किफायती पैमाने प्रदान करने की क्षमता के साथ भारत में बायो-मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित करना चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी अवसंरचना में निवेश: भारत को सिंथेटिक जीव विज्ञान में क्षेत्रीय एवं वैश्विक विज्ञान, अनुप्रयोगों और पर्यावरण एवं जैव सुरक्षा चुनौतियों को समझने के लिए वैश्विक स्तर (क्वाड, ब्रिक्स, आसियान, एशिया प्रशांत) पर विस्तृत प्रौद्योगिकी परिदृश्य का अध्ययन शुरू करने की आवश्यकता है।
    • स्टार्ट-अप के विस्तार एवं अनुसंधान की प्रगति को बायोटेक इनक्यूबेटरों की संख्या में वृद्धि से सहायता मिलेगी, जो भारतीय बायोटेक उद्योग की सफलता के लिए आवश्यक है।
  • भौतिक बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: किण्वन क्षमता बढ़ाने और विनिर्माण सुविधाओं में सुधार सहित बायो-मैन्युफैक्चरिंग के लिए भारत के भौतिक बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने में निवेश करना चाहिए।
  • नैतिक चिंताओं को हल करना: नैतिक चिंताओं को सक्रिय रूप से संबोधित करना और निर्णय लेने में जनमानस को शामिल करना चाहिए, जो इसके प्रति विश्वास का निर्माण कर सकता है, प्रतिरोध को कम कर सकता है और सामाजिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करने वाली नीतियों को आकार दे सकता है।
  • नियामक दिशा-निर्देशों की स्थापना: सिंथेटिक जीव विज्ञान में प्रगति के अनुरूप व्यापक नियामक दिशा-निर्देश विकसित करना जो उत्पाद सुरक्षा, अनुपालन सुनिश्चित करेंगे और उद्योग के विकास को बढ़ावा देते हुए जिम्मेदार वैज्ञानिक प्रथाओं की सुविधा प्रदान करेंगे।
    • देश की वैज्ञानिक और आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिए बायो-मैन्युफैक्चरिंग उन्नति के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति विकसित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं प्रशिक्षण सुनिश्चित करना: विश्वविद्यालयों में स्थायी प्रशिक्षण सुविधाएँ स्थापित की जा सकती हैं, जिसमें अन्य देशों के विशेषज्ञ प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। भारत में हाल के नीतिगत बदलाव विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना की अनुमति देते हैं।

निष्कर्ष

भारत में बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्रीज का एकीकरण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, नवाचार को बढ़ावा देने और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने की अपार संभावनाएँ रखता है। रणनीतिक निवेश, नियामक सुधार और क्षमता निर्माण के साथ, भारत स्वयं को बायो-मैन्युफैक्चरिंग में अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है, जो एक टिकाऊ एवं जैव-आधारित भविष्य में योगदान दे सकता है।

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