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बायोस्टिमुलेंट्स: सतत् भारतीय कृषि के लिए हरित समाधान

Lokesh Pal December 11, 2025 02:51 17 0

संदर्भ 

बायोस्टिमुलेंट्स (Biostimulants) भारतीय कृषि के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए रासायनिक उर्वरकों के एक आशाजनक, सतत् विकल्प प्रदान करते हैं।

बायोस्टिमुलेंट्स क्या हैं?

  • बायोस्टिमुलेंट्स पर्यावरण-अनुकूल पदार्थ या सूक्ष्मजीव होते हैं, जो अपने पोषक तत्वों की मात्रा से परे जाकर पौधों की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को सक्रिय करते हैं।
  • मुख्य भूमिका: पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाना, तनाव सहनशीलता को बढ़ाना, फसल की गुणवत्ता में सुधार करना और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन विकसित करना।

बायोस्टिमुलेंट्स के प्रकार

  • वनस्पति अर्क: समुद्री शैवाल, केल्प या ऐसे पौधों से प्राप्त, जो हार्मोन और उनके विकास को बढ़ावा देने वाले तत्वों से भरपूर होते हैं।
  • सूक्ष्मजीवी उत्पाद: लाभकारी बैक्टीरिया (PGPRs) या कवक, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण, खनिजों का घुलनीकरण या हार्मोन उत्पादन करते हैं।
  • अमीनो अम्ल एवं प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट्स: पौधों के प्रोटीन और एंजाइमों के निर्माण खंड प्रदान करते है।
  • ह्यूमिक एवं फुल्विक अम्ल: मृदा संरचना, पोषक तत्व जटिलीकरण और अवशोषण में सुधार करते है।
  • अकार्बनिक यौगिक: सिलिकॉन, कोबाल्ट, सेलेनियम जैसे लाभकारी तत्व।
  • चिटोसन (Chitosan): तनाव प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने वाले बायोपॉलिमर है।

बायोस्टिमुलेंट्स के प्रमुख लाभ (पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ)

  • दक्षता: पोषक तत्व उपयोग दक्षता (NUE) में सुधार करता है।
  • मृदा स्वास्थ्य: मृदा कार्बन संचयन और संरचना में सुधार करता है।
  • लचीलापन: सूखा, लवणता और चरम तापमान से निपटने की क्षमता को बढ़ाता है।
  • जैव विविधता: मृदा सूक्ष्मजीव जीवन और पारिस्थितिकी संतुलन को समर्थन करता है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था: कृषि/खाद्य अपशिष्ट से निर्मित होने के कारण अपशिष्ट को मूल्य में बदलना।
  • इनका संयोजन संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (जीरो हंगर, जलवायु कार्यवाही आदि) के साथ उन्हें हरित कृषि का आधार बनाता है।

रासायनिक उर्वरक संकट

  • भारत की हरित क्रांति और खाद्य सुरक्षा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की केंद्रीय भूमिका रही है, परंतु इनका अत्यधिक उपयोग अब गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहा है।
  • अतिप्रयोग: राष्ट्रीय औसत खपत 139.81 किग्रा./हेक्टेयर (2023-24), जिसमें पंजाब जैसे राज्य 247.61 किलोग्राम/हेक्टेयर का प्रयोग कर रहे हैं।
  • परिणाम
    • मृदा उर्वरता में गिरावट और पर्यावरण प्रदूषण।
    • इनपुट लागत में वृद्धि होना और इस पर किसानों की निर्भरता बढ़ना।
    • ग्रामीण समुदायों के लिए स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होना।
    • कृषि-संबधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 19% का योगदान देता है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि करता है।

बायोस्टिमुलेंट्स के व्यापक उपयोग में चुनौतियाँ

  • किसानों में संदेह: पारंपरिक इनपुट्स की तुलना में प्रभावशीलता को लेकर सावधानी बरती जाती है।
  • वैज्ञानिक अनिश्चितता: पादप-जीव-क्रियात्मक अभिक्रियाओं की सीमित वैज्ञानिक समझ।
  • परिणामों में विविधता: विभिन्न मृदा और कृषि-जलवायु क्षेत्रों में अलग-अलग प्रदर्शन।
  • बाजार संबंधी समस्याएँ: अविनियमित या निम्न-गुणवत्ता वाले उत्पादों की अधिकता से किसान विश्वास में कमी।

भारत में बायोस्टिमुलेंट्स का विनियमन

  • भारत सरकार ने फरवरी 2021 में बायोस्टिमुलेंट्स को उर्वरक नियंत्रण आदेश (FCO), 1985 के अंतर्गत शामिल किया।
  • वर्तमान में इन्हें 9 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें वनस्पतिक अर्क, ह्यूमिक एवं फुल्विक अम्ल, प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट्स, विटामिन, एँटीऑक्सिडेंट और जीवित सूक्ष्मजीव शामिल हैं।

आगे की राह

  • कृषक सशक्तिकरण: जागरूकता अभियान, खेत प्रदर्शन, डिजिटल विस्तार प्लेटफॉर्म।
  • अनुसंधान एवं विकास: जैवउत्तेजक क्रियाओं, फसल-विशिष्ट फॉर्मूलेशन और जैवउर्वरकों के साथ सामंजस्य के आणविक स्तर के अध्ययनों में निवेश करना।
  • नीति एवं विनियमन: अनुमोदन प्रक्रियाओं को सरल करना, गुणवत्ता निगरानी को सख्त बनाना, R&D/स्टार्टअप प्रोत्साहन।
  • अवसंरचना सहायता: कच्चे माल (सिवार, फसल अवशेष, कृषि-अपशिष्ट) के प्रसंस्करण हेतु सुविधाओं का विकास।
  • वित्तीय पहुँच: किसानों को ऋण, सब्सिडी या कर लाभ उपलब्ध कराना।
  • सहयोगात्मक मॉडल: सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना, स्टार्टअप/सहकारी संस्थाओं का समर्थन, अंतरराष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ सहयोग।

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