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बाईपोलर डिसऑर्डर

Lokesh Pal April 02, 2025 03:36 54 0

संदर्भ

30 मार्च को विश्व भर में ‘वर्ल्ड बाईपोलर डे’ (World Bipolar Day) के रूप में मनाया जाता है।

बाईपोलर डिसऑर्डर के बारे में

  • बाईपोलर डिसऑर्डर (उन्मत्त अवसाद) एक मनोवैज्ञानिक विकार है, जो व्यक्ति की मनोदशा, ऊर्जा और गतिविधियों के स्तर में असामान्य परिवर्तन के कारण होता है।
    • ये मनोदशा परिवर्तन क्षणिक नहीं होती बल्कि कई सप्ताह, महीनों या उससे अधिक समय तक संचालित होती है तथा व्यक्ति की सामाजिक-व्यावसायिक कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है।

  • प्रकार: यहाँ, नकारात्मक जीवन की घटनाएँ अवसादग्रस्तता के पुनरावर्तन से संबंधित हैं, जबकि लक्ष्य प्राप्ति की जीवन की घटनाएँ उन्मत्तता के पुनरावर्तन से संबंधित हैं।
    • प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार: इसकी विशेषता है- मन की निरंतर एवं व्यापक उदासी, एन्हेडोनिया (Anhedonia) (बीमारी की शुरुआत से पहले जो गतिविधियाँ सुखद थीं, उनमें अरुचि उत्पन्न होना), शीघ्र थकावट, संज्ञानात्मक कठिनाइयाँ, निराशा, व्यर्थता, अनुचित अपराध बोध और रोना आदि।
      • अधिक गंभीर रूप: इनमें आत्महत्या के विचार, शारीरिक गतिविधियों और सोच की प्रक्रिया निष्क्रिय होना तथा मतिभ्रम शामिल हैं।
    • उन्माद (Mania): इसकी विशेषता है:-
      • चिड़चिड़ी मनोदशा, उच्च ऊर्जा स्तर, आत्म-सम्मान में वृद्धि, नींद की कमी, दबावपूर्ण वाक्, व्यक्तिपरक अनुभव कि विचार तीव्र हो रहे हैं (‘विचारों की विचलन’), आसानी से विचलित होना, लक्ष्य-निर्देशित गतिविधियों में वृद्धि।
  • नैदानिक ​​शुरुआत: बाईपोलर डिसऑर्डर की नैदानिक ​​शुरुआत आमतौर पर 15 से 30 वर्ष की आयु के मध्य होती है।
  • लक्षण: अवसाद की कई संक्षिप्त अवधियों का शीघ्र प्रारंभ होना; बाईपोलर डिसऑर्डर का पारिवारिक इतिहास; ध्यान अभाव और अति सक्रियता विकार; मादक द्रव्यों का दुरुपयोग; अवसाद का अचानक प्रारंभ और समाप्ति; अवसाद रोधी दवाओं के प्रति कोई प्रतिक्रिया न होना।
  • कारण: मनोरोग संबंधी विकार स्वाभाविक रूप से जटिल, बहुजीनी वंशगत और बहुक्रियाशील होते हैं।
    • आनुवंशिक रूप से प्राप्त: लगभग 60-85% रोग आनुवंशिक कारकों के कारण होते हैं, तथापि, मनोरोग विकारों के कारण के रूप में किसी एक संभावित जीन की पहचान नहीं की जा सकी है।
    • मस्तिष्क संबंधी रसायन: न्यूरोट्रांसमीटर्स, जैसे कि नोरेपिनेफ्राइन और सेरोटोनिन में असंतुलन, बाईपोलर डिसऑर्डर के विकास में भूमिका निभा सकता है।
    • सर्कैडियन कार्यप्रणाली (Circadian Functioning): इसमें शरीर के तापमान और मेलाटोनिन स्राव सहित सर्कैडियन दोलन में उल्लेखनीय विचलन होता है।
    • नींद में विकृति: अनिद्रा या अनियमित नींद पैटर्न जैसी नींद की गड़बड़ी, बाईपोलर लक्षणों को उत्प्रेरित या खराब कर सकती है।
    • पर्यावरणीय कारक: किसी व्यक्ति के बचपन के शुरुआती अनुभव, विकासात्मक इतिहास, तनाव और जीवन की घटनाएँ विकास के दौरान महत्त्वपूर्ण चरण हैं, जो मनोदशा संबंधी विकारों को उत्प्रेरित करने और बनाए रखने वाले कारकों के रूप में कार्य करती हैं।
    • स्ट्रेसर्स
      • प्राॅक्सिमल स्ट्रेसर्स (Proximal stressors): इसमें बचपन में दुर्व्यवहार, हानि, उपेक्षा और घरेलू हिंसा जैसे प्रतिकूल अनुभव शामिल हैं।
      • डिस्टल स्ट्रेसर्स (Distal Stressors): वयस्कता में देखा जाता है कि इसमें जीवन के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली बीमारी, वित्तीय कठिनाइयाँ, बेरोजगारी, शोक, हिंसा और आघात शामिल हैं।
    • क्रोनिक तनाव: यह हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-एड्रेनल (Hypothalamic Pituitary Adrenal-HPA) अक्ष के विनियमन से जुड़ा है, जो नकारात्मक प्रतिक्रिया लूप को बाधित करता है, जिससे मस्तिष्क और शरीर में दीर्घकालिक निम्न-श्रेणी की सूजन की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • बचपन में दुर्व्यवहार: अध्ययनों से बचपन में दुर्व्यवहार के शिकार लोगों के शुक्राणुओं में असामान्यताएँ भी देखी गई हैं।
  • निदान: लक्षणों की शुरुआत से लेकर बाईपोलर डिसऑर्डर के पहले निदान तक का औसत समय 6 से 10 वर्ष तक होता है।
    • यह हाइपोमेनिक या मेनिक एपिसोड की शुरुआत से पहले अवसाद की अवधि से शुरू होता है।
  • उपचार: इसमें दवा और मनोचिकित्सा का संयोजन शामिल है।
    • मूड स्टेबलाइजर्स (Mood Stabilizers): लीथियम, वैल्प्रोइक एसिड और कार्बामाजेपिन जैसी दवाएँ मेनिक या हाइपोमेनिक अवधि को नियंत्रित करने में मदद करती हैं और अवसादग्रस्त अवधि में भी मदद कर सकती हैं।
    • एंटीडिप्रेसेंट: हालाँकि इसे कभी-कभी उपयोग किया जाता है, लेकिन आम तौर पर उन्माद या तीव्र साइकिलिंग को ट्रिगर करने के जोखिम के कारण बाईपोलर डिसऑर्डर के संदर्भ में केवल एंटीडिप्रेसेंट का उपयोग नहीं किया जाता है।
    • संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (Cognitive Behavioral Therapy-CBT): CBT व्यक्तियों को अस्वस्थ विचार पैटर्न और व्यवहारों की पहचान करने, उन्हें बदलने तथा उनसे निपटने की रणनीति विकसित करने में मदद करता है।
    • इंटरपर्सनल एंड सोशल रिदम थेरेपी (Interpersonal and Social Rhythm Therapy-IPSRT): यह थेरेपी नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद जैसी नियमित दैनिक दिनचर्या स्थापित करने पर केंद्रित है, जो मूड को स्थिर करने में मदद कर सकती है।
    • इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ECT): ECT, मस्तिष्क की एक संक्षिप्त विद्युत उत्तेजना से जुड़ी एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसे गंभीर मामलों में प्रयोग किया जा सकता है जहाँ अन्य उपचार प्रभावी नहीं रहे हैं।

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