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पक्षी प्रवास

Lokesh Pal December 23, 2025 03:43 8 0

संदर्भ

प्रत्येक शीत ऋतु में साइबेरिया, मध्य एशिया और उत्तरी यूरोप जैसे उत्तरी अक्षांशों से लाखों पक्षी कठिन जलवायु परिस्थितियों से बचने के लिए प्रवास करते हैं। भारत के आर्द्र क्षेत्र, घासभूमियाँ और वन इन प्रवासी प्रजातियों के लिए महत्त्वपूर्ण शीतकालीन आवास के रूप में कार्य करते हैं।

पक्षी प्रवासन क्या है?

  • पक्षी प्रवासन से आशय पक्षियों के उस मौसमी आवागमन से है, जिसमें वे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र की ओर, प्रायः लंबी दूरी तय करते हैं।
  • यह मुख्यतः भोजन की उपलब्धता, उपयुक्त प्रजनन स्थलों तथा अनुकूल जलवायु परिस्थितियों की आवश्यकता से प्रेरित होता है।
  • प्रवासन के मार्ग विकासक्रम में अनुकूलित और अत्यंत मार्ग-विशिष्ट होते हैं, जहाँ पक्षी प्रायः प्रत्येक वर्ष उन्हीं मार्गों पर लौटते हैं।

पक्षी प्रवासन के प्रकार

  • पूर्ण प्रवासन: पूर्ण आबादी प्रवास करती है।
  • आंशिक प्रवासन: आबादी का केवल एक भाग प्रवास करता है।
  • ऊँचाईगत प्रवासन: पर्वतीय क्षेत्रों में ऋतु के अनुसार ऊपर–नीचे की ओर गमन
  • खानाबदोश आवागमन: संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर अनियमित गमन।

शीतकालीन पक्षी प्रवासन में भारत का महत्त्व

  • रणनीतिक स्थिति: भारत सेंट्रल एशियन फ्लाईवे के अंतर्गत स्थित है, जो विश्व के सबसे महत्त्वपूर्ण प्रवासी पक्षी गलियारों में से एक है।
  • मौसमी आगमन: प्रत्येक वर्ष यूरोप, रूस, मध्य एशिया और आर्कटिक क्षेत्रों से लाखों पक्षी शीत ऋतु में भारत आते हैं।
  • विविध आवास: प्रवासी पक्षी भारत के आर्द्र क्षेत्रों, घासभूमियों, वनों और तटीय क्षेत्रों का उपयोग शीतकालीन निवास और विश्राम स्थलों के रूप में करते हैं।

भारत में प्रमुख विश्राम एवं शीतकालीन स्थल

  • चिलका झील (ओडिशा): एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की लैगून झील, जहाँ बड़ी संख्या में जलपक्षी और तटीय पक्षी पाए जाते हैं।
  • केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान): बत्तखों, हंसों और सारसों का प्रसिद्ध शीतकालीन आवास।
  • सुल्तानपुर एवं ओखला पक्षी अभयारण्य (दिल्ली–NCR): शहरी क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण आर्द्र स्थल।
  • पॉइंट कैलिमेरे (तमिलनाडु): तटीय पक्षियों और वाडरों के लिए महत्त्वपूर्ण स्थल।
  • लोकटक झील (मणिपुर): एक रामसर स्थल, जहाँ प्रवासी जलपक्षी निवास करते हैं।

भारत आने वाले प्रमुख प्रवासी पक्षी

  • बार-हेडेड गूज: 7,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर हिमालय को पार करने के लिए प्रसिद्ध।
  • डेमोइसेल क्रेन: मध्य एशिया से भारतीय प्रायद्वीप तक प्रवास करता है।
  • ब्लैक-टेल्ड गॉडविट एवं रफ: भारतीय आर्द्र क्षेत्रों में पाए जाने वाले प्रवासी तटीय पक्षी।
  • आर्कटिक टर्न: यह आर्कटिक और अंटार्कटिक के बीच यात्रा करते हुए, सबसे लंबी ज्ञात प्रवास यात्रा करता है।
  • अमूर फाल्कन (Amur falcons): चीन से भारत होते हुए अरुणाचल प्रदेश और गोवा जैसे स्थानों पर विश्राम कर अरब सागर पार करके पश्चिमी अफ्रीका तक जाते हैं।
  • अन्य प्रवासी: बत्तखें, सारस, पेलिकन और शिकारी पक्षी भारत की शीतकालीन जैव-विविधता को समृद्ध करते हैं।

पक्षी लंबी दूरी का मार्ग कैसे खोजते हैं?

  • सूर्य और तारे: दिन में प्रवास करने वाले पक्षी सूर्य की स्थिति का उपयोग करते हैं, जबकि रात्रि में प्रवास करने वाले तारे और नक्षत्रों से दिशा निर्धारित करते हैं।
  • पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र: कई प्रजातियाँ विशेष संवेदकों के माध्यम से भू-चुंबकीय क्षेत्र को महसूस करती हैं।
  • ध्रुवीकृत प्रकाश: सुबह और संध्या के समय ध्रुवीकृत प्रकाश की पहचान दिशा निर्धारण में सहायक होती है।
  • स्थलचिह्न और घ्राण संकेत: नदियाँ, तटरेखाएँ, पर्वत और गंध प्रवासन मार्गदर्शन में सहायता करते हैं।

प्रमुख वैश्विक फ्लाईवे

  • प्रशांत अमेरिका फ्लाईवे: अलास्का और कनाडा से लेकर पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका होते हुए चिली और अर्जेंटीना तक, अमेरिका के पश्चिमी तट के साथ विस्तृत।
  • मध्य अमेरिका फ्लाईवे: कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के ग्रेट प्लेन्स से मध्य अमेरिका होते हुए दक्षिण अमेरिका के उत्तरी क्षेत्रों तक विस्तारित।
  • अटलांटिक अमेरिका फ्लाईवे: अमेरिका की पूर्वी तटरेखा के साथ, कनाडाई आर्कटिक को दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी भाग से जोड़ता है।
  • पूर्वी अटलांटिक फ्लाईवे: यह आर्कटिक, ग्रीनलैंड और उत्तरी यूरोप से लेकर पश्चिमी यूरोप और अफ्रीका से होते हुए दक्षिणी अफ्रीका तक विस्तृत है।
  • काला सागर–भूमध्यसागरीय फ्लाईवे: उत्तरी यूरेशिया से उद्गम होकर पूर्वी यूरोप, काला सागर और भूमध्य सागर से गुजरते हुए उत्तरी अफ्रीका में समाप्त होता है।
  • मध्य एशियाई फ्लाईवे: उत्तरी यूरेशिया को मध्य एशिया से जोड़ता है तथा मध्य पूर्व, भारतीय उपमहाद्वीप और पश्चिमी हिंद महासागर तक विस्तारित है।
  • पूर्वी एशियाई–ऑस्ट्रेलियाई फ्लाईवे: आर्कटिक, उत्तर-पूर्वी रूस और अलास्का से प्रारंभ होकर पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया होते हुए ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड तक विस्तृत है।
  • पश्चिमी प्रशांत फ्लाईवे: प्रशांत द्वीपों, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को पूर्वी एशिया और अलास्का से जोड़ता है तथा आंशिक रूप से पूर्वी एशियाई–ऑस्ट्रेलियाई फ्लाईवे से ओवरलैप करता है।

फ्लाईवे के साथ संरक्षण प्रयास

  • रामसर अभिसमय: अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के आर्द्र क्षेत्रों को संरक्षण प्रदान करता है, जो प्रवासी पक्षियों के लिए प्रमुख आवास होते हैं।
  • मध्य एशियाई फ्लाईवे कार्य योजना: यह प्रवासी पक्षी प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए बहुराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करती है।
  • भारत में संरक्षित क्षेत्र: कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य प्रवासी पक्षियों के लिए विश्राम, भोजन और शीतकालीन निवास के महत्त्वपूर्ण स्थल के रूप में कार्य करते हैं।
  • समुदाय की भागीदारी: आर्द्र क्षेत्र पुनर्स्थापन, पक्षी निगरानी और सतत् पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा देने के माध्यम से स्थानीय समुदाय संरक्षण परिणामों को सुदृढ़ करते हैं।

प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (CMS) / बॉन अभिसमय

  • प्रकृति: एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय समझौता, जिसका उद्देश्य प्रवासी प्रजातियों और उनके आवासों का उनके संपूर्ण वितरण क्षेत्र में संरक्षण करना है।
  • उद्गम: वर्ष 1979 में जर्मनी के बॉन में हस्ताक्षरित एवं वर्ष 1983 में प्रभाव में आया।
  • संयुक्त राष्ट्र संबद्धता: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्त्वावधान में संपन्न।
  • प्रवासी जीवों और संबद्ध पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण एवं सतत् उपयोग हेतु वैश्विक सहयोग का मंच प्रदान करता है।
  • भारत की भूमिका
    • भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्ता है।
    • गांधीनगर, गुजरात में CMS CoP-13 (वर्ष 2020) की मेजबानी की।
    • मध्य एशियाई फ्लाईवे के अंतर्गत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना का शुभारंभ किया।

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