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‘ब्लू NDC चैलेंज’ संबंधी चुनौती

Lokesh Pal June 13, 2025 02:54 72 0

संदर्भ

फ्राँस और ब्राजील ने फ्राँस के नीस में आयोजित तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में ‘ब्लू NDC चैलेंज’ का शुभारंभ किया।

राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के बारे में

  • NDC राष्ट्रीय जलवायु योजनाएँ हैं जो पेरिस, फ्राँस में UNFCCC COP-21 में 195 दलों द्वारा अपनाए गए पेरिस समझौते के तहत उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए देश के प्रयासों की रूपरेखा तैयार करती हैं।
  • उद्देश्य: वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाना।

ब्लू NDC चैलेंज के बारे में

  • ‘ब्लू NDC चैलेंज’ एक वैश्विक पहल है, जो देशों से ब्राजील के बेलेम में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के 30वें सम्मेलन (COP-30) से पहले अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में महासागर-केंद्रित जलवायु उपायों को एकीकृत करने का आग्रह करती है।
  • समर्थन: इसे ‘ओशन कंजर्वेंसी’ द्वारा समर्थित किया जाता है, 
    • महासागर और जलवायु मंच तथा महासागर लचीलापन एवं जलवायु गठबंधन (Ocean Resilience and Climate Alliance- ORCA) के माध्यम से विश्व संसाधन संस्थान द्वारा समर्थित है और WWF-ब्राजील द्वारा इसका समर्थन किया गया है।
  • प्रतिभागी देश: ऑस्ट्रेलिया, फिजी, केन्या, मैक्सिको, पलाऊ और सेशेल्स गणराज्य जैसे छह अन्य देश इस पहल में शामिल हुए हैं और अपने अद्यतन NDC में महासागर-केंद्रित जलवायु कार्रवाई को शामिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  • कार्यान्वयन समर्थन: इस चैलेंज में शामिल होने वाली सरकारों को वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए मराकेश साझेदारी के नेतृत्व में समर्थन प्राप्त होगा।
    • संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय जलवायु चैंपियंस, और
  • विश्व संसाधन संस्थान द्वारा आयोजित NDC भागीदारी से समर्थन प्राप्त होगा।

वैश्विक जलवायु रणनीति में ब्लू NDC चुनौती का महत्त्व

  • महासागरों को जलवायु कार्रवाई में एकीकृत करना: ‘ब्लू NDC चैलेंज’ देशों को तटीय पारिस्थितिकी तंत्र बहाली और सतत् मत्स्य पालन जैसे महासागर आधारित जलवायु समाधानों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिए प्रेरित करता है।
    • यह चुनौती कार्बन पृथक्करण और जलवायु लचीलेपन में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (जैसे, मैंग्रोव, समुद्री घास) की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानती है।
  • निवेश और नवाचार: यह पहल समुद्री नवीकरणीय ऊर्जा, सतत् जलीय कृषि और निम्न-कार्बन शिपिंग जैसे क्षेत्रों में ‘ब्लू फाइनेंस’ और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देती है।
  • वैश्विक रूपरेखाओं के साथ संरेखित: यह पेरिस समझौते के लक्ष्यों का समर्थन करता है और संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SDG), विशेष रूप से SDG-13 (जलवायु कार्रवाई) और SDG-14 (जल  के नीचे जीवन) का पूरक है।
  • SIDS  और LDC: यह चुनौती समावेशी, स्थानीय स्तर पर संचालित महासागर कार्रवाई पर जोर देती है, विशेष रूप से लघु द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) और तटीय कम विकसित देशों (LDC) के लिए, जो महासागर क्षरण और जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं।

जलवायु संकट से निपटने में महासागरों की भूमिका

  • कार्बन सिंक: महासागर वैश्विक CO2 उत्सर्जन का लगभग 30% अवशोषित करते हैं, जिससे वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों में कमी आती है।
  • हीट बफर: वे ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाली अतिरिक्त गर्मी का 90% से अधिक अवशोषित करते हैं, जो पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जलवायु विनियमन: महासागरीय धाराएँ वैश्विक मौसम और जलवायु पैटर्न को प्रभावित करती हैं, जिससे महासागर जलवायु विनियमन के लिए केंद्रीय बन जाते हैं।
  • प्राकृतिक आपदा बफर: तटीय पारिस्थितिकी तंत्र समुद्र के स्तर में वृद्धि, तूफानी लहरों और चरम मौसम की घटनाओं के खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

भारत और NDC

  • भारत की प्रतिबद्धता: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) और पेरिस समझौते के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, भारत ने वर्ष 2015 में अपना पहला NDC और वर्ष 2022 में अद्यतन NDC प्रस्तुत किया।
  • पंचामृत: COP-26 (ग्लासगो, यूके) में भारत ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी कार्रवाई को तेज करने के लिए पाँच प्रमुख तत्वों, पंचामृत की घोषणा की। ये भारत के अद्यतन NDC का आधार हैं।
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करना।
    • वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से कुल ऊर्जा आवश्यकताओं की 50% की पूर्ति करना ।
    • वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी (वर्ष 2005 के स्तर से)।
    • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी।
    • वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन।

भारत का NDC उसे किसी क्षेत्र-विशिष्ट शमन दायित्व या कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं करता है।

ओशन ब्रेकथ्रूज (Ocean Breakthroughs) के बारे में

  • ओशन ब्रेकथ्रू ने पाँच महत्त्वपूर्ण माध्यमों की पहचान की है, जिन्हें वर्ष 2030 तक महासागर क्षेत्रों को प्राप्त करना होगा, ताकि वर्ष 2050 तक एक स्वस्थ और उत्पादक महासागर प्राप्त किया जा सके।
  • ओशन ब्रेकथ्रू जिन पाँच क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, वे हैं: समुद्री संरक्षण, महासागर नवीकरणीय ऊर्जा, शिपिंग, जलीय भोजन और तटीय पर्यटन।

वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए माराकेस साझेदारी के बारे में

  • इसे वर्ष 2016 में COP-22 में लॉन्च किया गया था, ताकि उत्सर्जन में कटौती करने और जलवायु लचीलापन बनाने के लिए सरकारों और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
  • यह सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा के अनुरूप पेरिस समझौते के कार्यान्वयन का समर्थन करता है।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन उच्च स्तरीय चैंपियंस (HLC) के बारे में

  • वे पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सरकारों को समर्थन देने के लिए व्यवसायों, शहरों, क्षेत्रों और वित्तीय संस्थानों से महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई को संगठित करने के लिए काम करते हैं।

NDC साझेदारी के बारे में:

  • NDC भागीदारी एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्य देशों को उनकी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद करना तथा यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय और तकनीकी सहायता यथासंभव कुशलतापूर्वक प्रदान की जाए।

महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए वैश्विक पहल

  • सतत् विकास के लिए महासागर विज्ञान का संयुक्त राष्ट्र दशक (वर्ष 2021-2030): सतत् विकास के लिए महासागर अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
  • वैश्विक महासागर गठबंधन: यह विश्व के महासागरों की रक्षा के लिए कार्यरत देशों का एक अंतरराष्ट्रीय समूह है। इस गठबंधन की स्थापना वर्ष 2019 में ग्रेट ब्रिटेन द्वारा की गई थी और इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक विश्व के 30% महासागरों की रक्षा करना है।
  • वैश्विक महासागर अवलोकन प्रणाली (GOOS): यह सतत् महासागर अवलोकन के लिए एक व्यापक ढाँचा है, जो ग्लोबल अर्थ ऑब्जर्विंग सिस्टम ऑफ सिस्टम्स (GEOSS) का हिस्सा है।
    • यह UNESCO, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा सह-प्रायोजित है।
  • ब्लू कार्बन पहल: UNEP की ब्लू कार्बन पहल का उद्देश्य तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों के सुदृढ़ प्रबंधन को आगे बढ़ाने के लिए एक वैश्विक साझेदारी विकसित करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके कार्बन पृथक्करण और भंडारण कार्यों को बनाए रखा जाए और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से बचा जाए।

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