100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारत में बंधुआ मजदूरी

Lokesh Pal May 02, 2025 12:32 23 0

संदर्भ

1 मई को, जब दुनिया कार्य की गरिमा और श्रमिकों के अधिकारों के सम्मान के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस मनाती है, साथ ही भारत में बंधुआ मजदूरी में फँसे लाखों लोगों की कहानियाँ एक अंधकारमय परिदृश्य प्रस्तुत करती हैं।

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस 2025 (मई दिवस)

  • प्रत्येक वर्ष 1 मई को मनाया जाता है।
  • उत्पत्ति एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
    • 19वीं सदी के वैश्विक श्रम आंदोलन से संबंधित है।
    • श्रमिकों ने उचित वेतन, सुरक्षित कार्य स्थितियों और कार्य के कम घंटों के लिए लड़ाई लड़ी।
    • पहली श्रम दिवस परेड वर्ष 1882 में सेंट्रल लेबर यूनियन द्वारा न्यूयॉर्क शहर में आयोजित की गई था, जो श्रमिकों के अधिकारों की वैश्विक मान्यता के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटना बन गई।
  • भारत में मजदूर दिवस
    • कामगार दिवस, कामगार दिन या अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में जाना जाता है।
    • पहली बार 1 मई, 1923 को चेन्नई में मलयापुरम सिंगरावेलु चेट्टियार के नेतृत्व में मनाया गया, जो एक प्रमुख कम्युनिस्ट नेता थे।
    • चेट्टियार ने सरकार से 1 मई को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मान्यता देने की याचिका दायर की।

बंधुआ मजदूरी के बारे में

  • बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: यह बंधुआ मजदूरी को ऋण, सामाजिक दायित्व या वंशानुगत ऋण के कारण ऋणी (या उनके परिवार) द्वारा ऋणदाता के लिए जबरन कार्य करने के रूप में परिभाषित करता है, जो अक्सर बिना मजदूरी या नाममात्र के वेतन पर, अथवा एक निश्चित या अनिश्चित अवधि के लिए किया जाता है।
  • राष्ट्रीय श्रम आयोग: ‘बंधुआ मजदूरी’ शब्द को ‘ऋण के लिए एक विशिष्ट अवधि के लिए बंधुआ मजदूरी में रहने वाले श्रम’ के रूप में परिभाषित किया गया है।

समस्या का पैमाना

  • वैश्विक गुलामी सूचकांक, 2023: G20 देशों में भारत सबसे ऊपर है, जहाँ 11 मिलियन लोग जबरन मजदूरी में फँसे हैं, उसके बाद चीन, रूस, इंडोनेशिया, तुर्किए और अमेरिका का स्थान आता है।
    • एक अनुमान के अनुसार, 50 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी की स्थिति में रह रहे हैं, जो पिछले पाँच वर्षों में 25% की वृद्धि दर्शाता है।
  • भारत का लक्ष्य SDG लक्ष्य 8.7 के अनुरूप वर्ष 2030 तक बंधुआ मजदूरी को समाप्त करना है।
    • बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के वर्ष 2030 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए, वर्ष 2021 से प्रत्येक वर्ष लगभग 11 लाख लोगों को इसमें संलग्न होने से बचाया जाना होगा।

भारत में बंधुआ मजदूरी के प्रकार

  • ऋण-आधारित बंधुआ मजदूरी (ऋण बंधन): जब कोई व्यक्ति या उसका परिवार नियोक्ता अथवा मकान मालिक द्वारा दिए गए ऋण या अग्रिम राशि को चुकाने के लिए कार्य करता है, अक्सर अनिश्चित अवधि के लिए।
  • जाति-आधारित या प्रथागत बंधुआ मजदूरी: जब किसी व्यक्ति को उसकी जाति या सामाजिक स्थिति के कारण, ऋण की परवाह किए बिना कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है।
    • ज्ञात प्रणालियाँ/रीति-रिवाज: आदियामार, बारामासिया, भगेला, चेरुमार, गरुगालू, आदि।
  • वंशानुगत बंधुआ मजदूरी: जब पैतृक ऋणों का भुगतान न करने के कारण बंधुआ मजदूरी माता-पिता से बच्चे को हस्तांतरित हो जाती है।
  • ऋण के बिना जबरन मजदूरी (जबरदस्ती आधारित बंधन): ऋण या अग्रिम राशि के बिना, शारीरिक बल, धमकियों या आवाजाही पर प्रतिबंध का उपयोग करके निकाला गया श्रम।
  • यौन शोषण से जुड़ा बंधन: बंधुआ परिस्थितियों में वेश्यावृत्ति या यौन कार्य करने के लिए मजबूर की गई महिलाएँ एवं बच्चे।
  • बाल बंधुआ मजदूरी: परिवार के कर्ज या तस्करी के कारण बंधुआ परिस्थितियों में फँसे बच्चे बाल बंधुआ मजदूरी के अंतर्गत आते हैं।
    • संबंधित क्षेत्र: ईंट भट्टे, कालीन बुनाई, जरी का कार्य, घरेलू कार्य, भीख माँगने का कार्य।

बंधुआ मजदूरी से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • मौलिक अधिकार
    • अनुच्छेद-21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
      • सम्मान के साथ जीने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
      • बंधुआ मजदूरी जैसी कोई भी व्यवस्था जो किसी व्यक्ति को सम्मान से वंचित करती है, अनुच्छेद-21 का उल्लंघन करती है।
    • अनुच्छेद-23: मानव तस्करी और बलात् श्रम का प्रतिषेध
      • मानव तस्करी, बेगार (जबरन अवैतनिक श्रम) और बंधुआ मजदूरी सहित अन्य प्रकार के जबरन श्रम पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध है।
      • उल्लंघन कानून के तहत दंडनीय अपराध है।
    • अनुच्छेद-24: संकटमय रोजगार में बच्चों पर प्रतिबंध
      • कारखानों, खदानों या खतरनाक व्यवसायों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
      • बंधुआ बाल श्रम से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
    • अनुच्छेद-39: राज्य को सभी नागरिकों के लिए आजीविका के पर्याप्त साधनों के अधिकार को सुरक्षित करने का निर्देश देता है।
      • अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक मजबूरी को रोकने से जुड़ा है, जो बंधुआ मजदूरी की ओर ले जाती है।
    • अनुच्छेद-42: कार्य की न्यायपूर्ण और मानवीय स्थिति तथा मातृत्व राहत सुनिश्चित करता है।
      • राज्य से ऐसी श्रम स्थितियाँ बनाने का आह्वान करता है, जो शोषणकारी प्रथाओं को समाप्त करती हैं।
    • अनुच्छेद-43: राज्य को श्रमिकों के लिए जीवन निर्वाह मजदूरी, सभ्य जीवन स्तर और सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर सुनिश्चित करने का निर्देश देता है।
    • अनुच्छेद-46: अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs) और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देता है।
      • हाशिए पर पड़े समूहों के मध्य बंधुआ मजदूरी के सामाजिक आधारों को संबोधित करने में मदद करता है।

भारत में बंधुआ मजदूरी के कारण

  • आर्थिक कारण
    • गरीबी: भारत सहित दक्षिण एशिया में लाखों बंधुआ मजदूर सबसे गरीब वर्ग (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, धार्मिक अल्पसंख्यक और प्रवासी) से आते हैं।
    • ऋणग्रस्तता: ऋण आमतौर पर चिकित्सा, शादी या धार्मिक समारोहों के लिए छोटे ऋण या वेतन अग्रिम से शुरू होता है, जो बड़े ऋण एवं आजीवन बंधन में बदल जाता है।
      • जमींदारों या श्रम ठेकेदारों से लिए गए अग्रिम समय के साथ पूरे परिवार को बाँध देते हैं।
    • बेरोजगारी एवं अल्परोजगार: स्थानीय रोजगार की कमी श्रमिकों को शोषणकारी व्यवस्थाओं में धकेलती है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों जैसे- ईंट भट्टों, पत्थर की खदानों और खनन में।
      • ILO इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 में कहा गया है कि लगभग 90 प्रतिशत श्रमिक अनौपचारिक रूप से कार्यरत हैं और उनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है।
    • औपचारिक ऋण तक पहुँच की कमी: ऋण एवं श्रम बाजारों के आपस में जुड़ने से गरीबों को अनौपचारिक ऋणदाताओं पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे अति-ऋणग्रस्तता एवं शोषण की स्थिति और खराब हो जाती है।
  • सामाजिक कारण
    • जाति व्यवस्था और सामाजिक पदानुक्रम: बंधुआ मजदूरी निम्न जातियों एवं हाशिए पर पड़े समूहों में केंद्रित है, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से जबरन कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है (जैसे- कृषि, पत्थर की खदानों में दलित एवं आदिवासी)।
      • बचाए गए बंधुआ मजदूरों में से 80% SC/ST हैं।
    • प्रथागत दायित्व और सामाजिक परंपराएँ: आदियामार, जेठा, कामिया आदि जैसी प्रथाएँ वंशानुगत बंधन को लागू करती हैं, जो अक्सर पीढ़ियों से चली आ रही हैं।
    • अशिक्षा और जागरूकता की कमी: न्यूनतम मजदूरी, श्रम अधिकारों और उन्मूलन कानूनों (1976 अधिनियम) के बारे में कम जागरूकता नियोक्ताओं को श्रमिकों का शोषण करने की अनुमति देती है।
  • प्रणालीगत और संरचनात्मक कारण
    • कानूनों का अप्रभावी क्रियान्वयन: बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के बावजूद, जमीनी स्तर पर खराब क्रियान्वयन एवं सक्रिय राज्य स्तरीय कार्रवाई की कमी को उजागर करता है।
      • अनुमानित 1.84 करोड़ में से केवल 12,760 बंधुआ मजदूरों को बचाया गया है (वर्ष 2016-2021)।
    • भ्रष्टाचार एवं जवाबदेही की कमी: NHRC की रिपोर्ट बताती है कि स्थानीय प्रवर्तन अधिकारी अक्सर मामलों की उपेक्षा करते हैं या उन्हें दबा देते हैं; सतर्कता समितियाँ कमजोर या गैर-कार्यात्मक हैं।
    • प्रवास एवं सामाजिक सुरक्षा की कमी: प्रवासी श्रमिक अत्यधिक असुरक्षित हैं, जिन्हें अक्सर भ्रामक वादों के साथ ठेकेदारों के माध्यम से भर्ती किया जाता है, विशेषकर ईंट भट्टों एवं निर्माण क्षेत्रों में।
  • नियोक्ता-संचालित कारण
    • श्रम की कमी और सस्ते श्रम की माँग: खनन, ईंट भट्टों और कृषि क्षेत्र में नियोक्ता सस्ते और विश्वसनीय श्रम आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बंधुआ श्रमिकों की भर्ती करते हैं।
    • भूमि और संसाधनों पर नियंत्रण: संकट के समय जमींदार ऋण देते हैं, जिससे पूरे परिवार को बिना किसी स्पष्ट पुनर्भुगतान शर्तों के कृषि कार्य में बाँध दिया जाता है।
    • अधिकतम लाभ: ठेकेदार श्रमिकों को शोषणकारी अनुबंधों में बाँधने और न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ कमाने के लिए छोटे ऋण या वेतन अग्रिम देते हैं।
  • राजनीतिक और प्रशासनिक विफलताएँ
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: हालाँकि कानून मौजूद हैं, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) और ILO ने बार-बार खराब पहचान, कमजोर पुनर्वास प्रयासों और धीमी गति से धन वितरण की रिपोर्ट की है।
    • प्रभावी पुनर्वास योजनाओं का अभाव: हालाँकि केंद्रीय क्षेत्र की योजना पुनर्वास के लिए 1-3 लाख रुपये प्रदान करती है, लेकिन प्रशासनिक खामियों के कारण कई पीड़ित समय पर सहायता पाने में विफल रहते हैं।
  • विशेष कमजोरियाँ
    • बच्चे एवं महिलाएँ: बच्चों की प्रायः तस्करी की जाती है या उन्हें बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर किया जाता है; महिलाओं और ट्रांसजेंडरों को अत्यधिक अभाव का सामना करना पड़ता है, जो कभी-कभी यौन शोषण (जैसे- वेश्यालय, मसाज पार्लर) से जुड़ा होता है।
    • हाशिए पर पड़े समुदाय: नेपाल में ‘कामिया’ जैसी बंधुआ मजदूरी प्रणाली और भारत में इसी तरह की व्यवस्थाएँ आदिवासियों, दलितों एवं अल्पसंख्यकों को असमान रूप से प्रभावित करती हैं।

बंधुआ मजदूरी और अनौपचारिक क्षेत्र के बीच संबंध

  • अनौपचारिक कार्यस्थलों में बंधुआ मजदूरी का प्रभुत्व: बंधुआ मजदूरी मुख्य रूप से अनौपचारिक, असंगठित क्षेत्र में मौजूद है, जहाँ श्रम संबंध अलिखित एवं अनियमित हैं।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कुल रोजगार लगभग 47 करोड़ है, जिसमें संगठित क्षेत्र में 8 करोड़ और असंगठित क्षेत्र में 39 करोड़ हैं।
  • कानूनी अनुबंधों और सामाजिक सुरक्षा का अभाव: अनौपचारिक श्रमिकों के पास आम तौर पर कोई लिखित अनुबंध नहीं होता है, कोई नौकरी की सुरक्षा नहीं होती है, कोई न्यूनतम मजदूरी सुरक्षा नहीं होती है और कोई सामाजिक लाभ नहीं होता है।
    • NHRC के अनुसार, बंधुआ मजदूर अक्सर बिना मजदूरी के या न्यूनतम मजदूरी के स्तर से कम, नाममात्र मजदूरी पर कार्य करते हैं।
  • प्रवासी और हाशिए पर पड़े मजदूरों की व्यापकता: अनौपचारिक क्षेत्र प्रवासी, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक मजदूरों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जो विशेष रूप से बंधुआ मजदूरी के लिए कमजोर हैं।
    • ILO की रिपोर्ट बताती है कि प्रवासी मजदूरों को अक्सर बिचौलियों या ठेकेदारों के माध्यम से भर्ती किया जाता है, उन्हें मजदूरी में अग्रिम राशि दी जाती है और फिर उन्हें जबरन मजदूरी व्यवस्था में फँसा दिया जाता है।
  • श्रम एवं ऋण बाजारों का आपस में जुड़ना: अनौपचारिक परिस्थितियों में, नियोक्ता और साहूकार अक्सर एक ही होते हैं, जिसका अर्थ है कि संकट के दौरान उधार लेने वाले श्रमिकों को अपने श्रम के माध्यम से चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    • ILO के अनुसार, औपचारिक ऋण पहुँच की कमी से वेतन अग्रिम, ऋण और नियोक्ता-नियंत्रित ऋण पर अत्यधिक निर्भरता होती है, जिससे बंधन गहरा होता है।

बंधुआ मजदूरी पर अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

  • अंतरराष्ट्रीय कानून में बंधुआ मजदूरी की परिभाषा
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) बंधुआ मजदूरी (ऋण बंधन) को जबरन मजदूरी के रूप में परिभाषित करता है, जहाँ किसी व्यक्ति को ऋण या अग्रिम राशि चुकाने के लिए कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है और वह अक्सर अनिश्चित काल के लिए रोजगार की स्थितियों पर नियंत्रण खो देता है।
    • बंधुआ मजदूरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आधुनिक समय की गुलामी के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • प्रमुख ILO अभिसमय
    • ILO जबरन श्रम अभिसमय, 1930 (सं. 29): सभी प्रकार के जबरन या अनिवार्य श्रम के दमन का आह्वान करता है।
    • ILO जबरन श्रम उन्मूलन सम्मेलन, 1957 (सं. 105): सदस्य देशों से किसी भी प्रकार के जबरन या अनिवार्य श्रम का दमन करने और उसका उपयोग न करने की अपेक्षा करता है।
    • ILO बाल श्रम के जघन्य प्रकारों पर अभिसमय, 1999 (सं. 182): बंधुआ बाल श्रम को बाल शोषण के सबसे बुरे रूपों में से एक मानता है और इसके तत्काल उन्मूलन का आह्वान करता है।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDGs)
    • SDG लक्ष्य 8.7: ‘जबरन श्रम को समाप्त करने, आधुनिक दासता और मानव तस्करी को समाप्त करने तथा वर्ष 2025 तक बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें समाप्त करने के लिए तत्काल एवं प्रभावी उपाय करना।’
  • अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ
    • भारत, नेपाल और पाकिस्तान में क्रियान्वित ILO की PEBLISA (दक्षिण एशिया में प्रभावी बंधुआ मजदूरी हस्तक्षेप को बढ़ावा देना) परियोजना (2006-2008) में इस बात पर जोर दिया गया है:
      • लचीली बचत, ऋण पहुँच और बीमा प्रदान करना।
      • माइक्रोफाइनेंस, परिसंपत्ति हस्तांतरण और स्थायी आजीविका को बढ़ावा देना।
      • कानूनी प्रवर्तन और सामुदायिक सशक्तीकरण को मजबूत करना।
  • अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार ढाँचा
    • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948), अनुच्छेद-4: दासता (slavery) पर रोक लगाता है।
    • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय वाचा (International Covenant on Civil and Political Rights-ICCPR), अनुच्छेद-8: दासता, दास व्यापार और जबरन श्रम पर रोक लगाता है।

भारत में बंधुआ मजदूरी की समस्या से निपटने के लिए सरकार के प्रयास

  • विधायी ढाँचा
    • बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: बंधुआ मजदूरी प्रणाली को समाप्त करता है।
      • दंड का प्रावधान: बंधुआ मजदूरी करवाने पर 3 वर्ष तक कारावास + ₹2,000 जुर्माना।
  • पुनर्वास और राहत योजनाएँ
    • बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना, 2021: रिहा किए गए बंधुआ मजदूरों को ₹3 लाख तक की वित्तीय सहायता मिलती है, साथ ही उनकी आजीविका को बनाए रखने के लिए गैर-मौद्रिक सहायता भी मिलती है।
    • अन्य कल्याणकारी योजनाओं (आवास, भूमि, शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका) से संबद्ध करना।
  • संस्थागत तंत्र
    • सतर्कता समितियाँ (1976 अधिनियम के तहत): प्रत्येक जिले और उप-विभाग में स्थापित की गई हैं।
      • कार्य
        • अधिनियम के क्रियान्वयन पर सलाह देना।
        • आर्थिक एवं सामाजिक पुनर्वास की देखरेख करना।
        • ऋण पहुँच के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों का समन्वय करना।
        • सर्वेक्षण करना और मुक्त बंधुआ मजदूरों की रक्षा करना।
  • अन्य कानून
    • भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023, धारा 143, 143 (2) और 374: मानव तस्करी, गुलामी और जबरन मजदूरी को दंडित करना।
    • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948: शोषण को रोकने के लिए उचित मजदूरी सुनिश्चित करता है।
    • अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970: अनुबंध श्रमिकों के रोजगार को विनियमित करता है।
    • अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979: प्रवासी श्रमिकों की रक्षा करता है, जो बंधुआ मजदूरी के लिए अत्यधिक संवेदनशील हैं।
    • बाल और किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986: बंधुआ बाल श्रम को प्रतिबंधित करता है।
    • SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: हाशिए पर पड़े समुदायों की रक्षा करता है, जो अक्सर बंधुआ मजदूरी के शिकार होते हैं।

बंधुआ मजदूरी पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

  • बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ (1984): बंधुआ मुक्ति मोर्चा नामक संगठन ने हरियाणा में पत्थर की खदानों में कार्य करने वाले बंधुआ मजदूरों से संबंधित याचिका दायर की।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जबरन मजदूरी में न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी पर कार्य करना शामिल है।
      • अनुच्छेद-21 के तहत सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन तब होता है, जब लोगों को बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जाता है।
  • नीरजा चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1984): यह मामला राज्य द्वारा बंधुआ मजदूरों को रिहा किए जाने के बाद भी पुनर्वासित करने में विफल रहने से संबंधित था।
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, यह संवैधानिक आवश्यकता है कि बंधुआ मजदूरों को रिहा किए जाने के बाद उचित तरीके से पुनर्वासित किया जाना चाहिए।
      • पुनर्वास को लागू करने में राज्य द्वारा विफलता अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद-23 का उल्लंघन करती है।
      • पुनर्वास एक दान नहीं बल्कि एक दायित्व है।
  • ‘पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ बनाम ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ (1982): दिल्ली में एशियाई खेलों के दौरान निर्माण कार्य में नियोजित मजदूरों से संबंधित है।
    • इस निर्णय में इस बात पर जोर दिया गया कि जब कोई व्यक्ति निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम पारिश्रमिक पर कार्य करता है, तो यह अनुच्छेद-23 के तहत जबरन श्रम के बराबर होता है।
    • भले ही कोई कर्मचारी सहमति दे, लेकिन न्यूनतम मजदूरी से कम पर कार्य करना असंवैधानिक है।

बंधुआ मजदूरी में नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन

  • मानवीय गरिमा: प्रत्येक व्यक्ति में निहित मूल्य होता है और वह सम्मान, स्वतंत्रता और स्वायत्तता का हकदार होता है।
    • बंधुआ मजदूरी लोगों को श्रम के साधन तक सीमित करके, उनकी पसंद, आवाज और आत्म-सम्मान का हनन करके उनकी गरिमा का उल्लंघन करती है।
  • न्याय एवं निष्पक्षता: न्याय के लिए निष्पक्ष व्यवहार, उचित मजदूरी और कानून के समक्ष समानता की आवश्यकता होती है।
    • बंधुआ मजदूरी लोगों को अन्यायपूर्ण, शोषणकारी परिस्थितियों में फँसाती है, उन्हें मजदूरी, अवसर और न्याय तक पहुँच से वंचित करती है।
  • समानता: नैतिक शासन जाति, वर्ग या लिंग के बावजूद सभी के लिए समान सम्मान पर आधारित है।
    • बंधुआ मजदूरी दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, बच्चों और प्रवासियों को असमान रूप से प्रभावित करती है, जिससे संरचनात्मक असमानता बढ़ती है।
  • स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता: अपने कार्य को चुनने की स्वतंत्रता और अपने जीवन पर स्वायत्तता मौलिक नैतिक सिद्धांत हैं।
    • बंधुआ मजदूर इस स्वतंत्रता को खो देते हैं, अक्सर धमकी, कर्ज या प्रथा के तहत कार्य करने तक ही सीमित रहते हैं।
  • करुणा एवं सहानुभूति: नैतिक शासन और नेतृत्व के लिए कमजोर समूहों की पीड़ा के प्रति करुणा की आवश्यकता होती है।
    • नियोक्ता, समाज और कभी-कभी राज्य द्वारा उदासीनता सहानुभूति की गंभीर विफलता को दर्शाती है।
  • ईमानदारी एवं जिम्मेदारी: नियोक्ता, सरकारी अधिकारी और समाज की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे कमजोर लोगों की रक्षा करें।
    • बंधुआ मजदूरी के मामलों में मिलीभगत, लापरवाही या भ्रष्टाचार शुचिता के हनन को दर्शाता है।
  • सामाजिक जिम्मेदारी और सामान्य कल्याण: नैतिक समाज व्यक्तिगत हितों को सामूहिक कल्याण के साथ संतुलित करते हैं।
    • बंधुआ मजदूरी गरीबी, शोषण और सामाजिक अस्थिरता को बनाए रखकर सामान्य कल्याण का उल्लंघन करती है।

बंधुआ मजदूरी उन्मूलन की दिशा में आगे की राह

  • पहचान एवं बचाव तंत्र को मजबूत करना: जिला सतर्कता समितियों को सक्रिय एवं सशक्त बनाना ताकि नियमित सर्वेक्षणों के माध्यम से बंधुआ मजदूरों की पहचान की जा सके, विशेषकर ईंट भट्टों, खदानों और कृषि जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में।
    • बचाए गए श्रमिकों की निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी (जैसे- डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम) का उपयोग करना।
  • प्रभावी कानून प्रवर्तन एवं जवाबदेही सुनिश्चित करना: बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 को सख्ती से लागू करना, अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाना सुनिश्चित करना और विशेष अदालतों में मामलों को तेजी से निपटाना।
    • बंधुआ मजदूरी से निपटने में देरी या लापरवाही के लिए जिला अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना।
  • पुनर्वास एवं आजीविका सहायता में सुधार करना: केंद्रीय क्षेत्र योजना पुनर्वास निधि (₹1-3 लाख) का तुरंत वितरण करना और आवास, भूमि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कौशल विकास तक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • बंधुआ मजदूरी में वापसी को रोकने के लिए बचाए गए श्रमिकों को रोजगार योग्य कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • संस्थागत ऋण और सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच का विस्तार करना: कमजोर समूहों के लिए औपचारिक ऋण, बीमा और माइक्रोफाइनेंस तक पहुँच में सुधार करना, अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता कम करना।
    • बंधुआ मजदूरों को PDS, मनरेगा और स्वास्थ्य बीमा जैसी सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में शामिल करना।
  • जाति एवं सामाजिक भेदभाव को संबोधित करना: जाति-आधारित बंधुआ मजदूरी प्रणालियों (जैसे- होल्या, जेठा, पडियाल) की स्वीकार्यता को तोड़ने के लिए लक्षित सामाजिक जागरूकता अभियान शुरू करना।
    • शिक्षा और सामुदायिक आयोजन के माध्यम से दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और बच्चों को सशक्त बनाना।
  • प्रवास और तस्करी पर अंतरराज्यीय समन्वय को मजबूत करना: प्रवासी श्रमिकों को ट्रैक करने और उनकी सुरक्षा के लिए भेजने और प्राप्त करने वाले राज्यों के मध्य संयुक्त कार्य बल और डेटा-साझाकरण प्रणाली बनाना।
    • श्रम ठेकेदारों की निगरानी करना और भर्ती प्रथाओं को विनियमित करना।
  • नागरिक समाज एवं सामुदायिक संगठनों को शामिल करना: जागरूकता बढ़ाने, बंधुआ मजदूरी की निगरानी करने और पीड़ितों का समर्थन करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों, श्रमिक संघों और जमीनी स्तर के समूहों के साथ भागीदारी करना।
    • शोषणकारी प्रथाओं को चुनौती देने के लिए स्थानीय नेतृत्व और सामुदायिक सतर्कता का निर्माण करना।

निष्कर्ष

बंधुआ मजदूरी मानवीय गरिमा और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो भारत के अनौपचारिक क्षेत्र में व्यवस्थित शोषण को जारी रखती है। इसे समाप्त करने के लिए सख्त प्रवर्तन, प्रभावी पुनर्वास और सभी श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता तथा न्याय सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.