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BRICS का विस्तार

Lokesh Pal January 23, 2025 03:35 84 0

संदर्भ

हाल ही में चार नए सदस्यों के शामिल होने से ब्रिक्स (BRICS) (ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका) की सदस्य संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

नए ब्रिक्स (BRICS) सदस्य देश

  • मूल सदस्य: ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका।
  • नए सदस्य: मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यू.ए.ई और इंडोनेशिया।
  • इंडोनेशिया वर्ष 2025 में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का पहला सदस्य बन गया।
  • सऊदी अरब ने अपनी सदस्यता स्थगित कर दी है।
  • अर्जेंटीना ने उस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया, जिसे उसने पहले स्वीकार किया था।
  • तुर्किए, वियतनाम, थाईलैंड तथा मलेशिया सहित कई क्षेत्रीय शक्तियों ने समूह में शामिल होने में रुचि दिखाई है।

BRICS+ का विकास

उत्पत्ति 

  • BRIC (वर्ष 2001): BRICS की अवधारणा वर्ष 2001 में शुरू हुई, जब अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं (ब्राजील, रूस, भारत एवं चीन) की पहचान करने के लिए ‘BRIC’ शब्द गढ़ा।
    • यह विचार मुख्य रूप से आर्थिक सहयोग पर केंद्रित था, इसे वैश्विक बाजार में इन देशों के बढ़ते प्रभाव को पहचानते हुए प्रतिपादित किया गया था।
  • स्थापना: इस समूह को वर्ष 2006 में BRIC विदेश मंत्रियों की बैठक में औपचारिक रूप प्रदान किया गया था।
    • पहला BRIC शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रूस में हुआ था और इसमें वैश्विक वित्तीय ढाँचे में सुधार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
  • BRICS में पहला विस्तार (वर्ष 2010): वर्ष 2010 में, दक्षिण अफ्रीका को समूह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया, जिससे BRIC आधिकारिक रूप से BRICS में बदल गया।
  • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): वर्ष 2014 में स्थापित, NDB का उद्देश्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढाँचे और सतत् विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करना था।
  • आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (Contingent Reserve Arrangement- CRA): वर्ष 2015 में स्थापित, CRA को आर्थिक अस्थिरता के समय में BRICS देशों को आपातकालीन तरलता प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया था।
  • विस्तार तथा विविधीकरण (वर्ष 2024 से आगे): वर्ष 2024 में, BRICS ने मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को शामिल करने के लिए अपनी सदस्यता का विस्तार करके एक महत्त्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया।
  • प्रमुख सिद्धांत: गैर-हस्तक्षेप, समानता और पारस्परिक लाभ पर कार्य करता है।

वैश्विक व्यवस्था में BRICS+ का महत्त्व

  • ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व: BRICS+ स्वयं को G-7 के प्रतिकार के रूप में स्थापित करना चाहता है, जो ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों का प्रतिनिधित्व करता है।
    • BRICS+ एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिसका ध्यान समावेशी विकास और बहुध्रुवीयता पर केंद्रित है।
  • बढ़ता वैश्विक प्रभाव: रूस में कजान बैठक (जिसमें 36 राष्ट्राध्यक्षों और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भाग लिया) ने BRICS+ के लचीलेपन तथा प्रभाव को उजागर किया।
  • BRICS+ पहले से ही विश्व की 47% आबादी तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 41% का प्रतिनिधित्व करता है।
    • यदि तुर्किए तथा अधिकांश दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) सदस्य इसमें शामिल हो जाएँ, तो समूह दोनों संकेतकों में 50% की सीमा को आसानी से पार कर जाएगा।
  • इसमें वर्ष के दो सबसे बड़े तेल उत्पादक देश संयुक्त अरब अमीरात तथा ईरान भी शामिल हैं, जबकि सऊदी अरब की सदस्यता भी लंबित है।

BRICS के विस्तार के कारण

  • रणनीतिक वैश्विक प्रभाव: इसका मुख्य कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाओं में पश्चिमी प्रभुत्व के संदर्भ में प्रतिसंतुलित करना है।
    • इसमें ग्लोबल साउथ के लिए एक नया शक्ति केंद्र बनने की क्षमता है, जो स्वयं को G7 के प्रतिसंतुलन के रूप में स्थापित कर रहा है।
  • आर्थिक क्षमता: BRICS के विस्तार से इसकी आर्थिक क्षमता मजबूत होगी। इसके लिए, इसमें चीन और भारत जैसे उच्च आर्थिक क्षमता वाले देश शामिल हैं।
    • यह संस्था अपने सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश के अवसरों को बढ़ावा देती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: व्यापार तथा निवेश के अलावा, ईरान और सऊदी अरब (लंबित) जैसे देशों को शामिल करने का इसका निर्णय ऊर्जा भंडार तक पहुँच द्वारा समर्थित है।
    • यह BRICS को पारंपरिक ऊर्जा बाजारों पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद करेगा, जिससे समूह के भीतर सुरक्षा बढ़ेगी।
  • भू-राजनीतिक महत्त्व: मिस्र तथा इथियोपिया जैसे देशों को शामिल करने से समुद्री व्यापार मार्गों तक पहुँचने में मदद मिलती है।
    • यह सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं में सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देता है।

वैश्विक संस्थाओं पर BRICS+ विस्तार का प्रभाव

  • अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर सुधार का दबाव: इससे संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक तथा IMF जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर सुधार करने तथा विकासशील एवं उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान करने का दबाव बढ़ेगा।
  • यूरोपीय संघ और बाल्कन विस्तार: यूरोपीय संघ पर भी दबाव पड़ सकता है क्योंकि कुछ पश्चिमी बाल्कन देश, यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए अभी भी प्रयासरत हैं, जो BRICS+ में शामिल होने पर विचार कर सकते हैं।

BRICS की प्रमुख उपलब्धियाँ

  • वैश्विक मुद्दों पर रुख: BRICS ने निम्नलिखित मुद्दों पर एकीकृत रुख प्रदर्शित किया है:-
    • जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताएँ: विकासशील देशों के लिए समान जिम्मेदारियों और वित्तीय सहायता की वकालत करना।
    • संयुक्त राष्ट्र सुधार: उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अधिक प्रतिनिधित्व के लिए दबाव डालना।
    • एकतरफा प्रतिबंधों का विरोध: ईरान, रूस तथा वेनेजुएला जैसे देशों पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की निंदा करना।
  • संस्थागत ढाँचे और वित्तीय उपकरण: BRICS ने सतत् विकास और वित्तीय स्थिरता का समर्थन करने के लिए तंत्र विकसित किए हैं:-
    • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा और सामाजिक विकास जैसे क्षेत्रों में लगभग 100 परियोजनाओं को वित्तपोषित किया।
    • आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (CRA): सदस्य देशों के बीच तरलता दबाव को दूर करने के लिए एक वित्तीय सुरक्षा जाल।

भारत, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका (India, Brazil and South Africa- IBSA) फोरम

  • IBSA फोरम का उद्घाटन जून 2003 में भारत, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका के बीच एक विकास पहल के रूप में किया गया था।
  • इसके तहत तीन लोकतंत्रों ने एक ही मंच साझा किया, जो वैश्विक दक्षिण की क्षेत्रीय शक्तियों के गठबंधन का प्रतिनिधित्व करते हैं।

BRICS+ तथा IBSA के बीच मुख्य अंतर

पहलू

IBSA

BRICS+

आकार और सदस्यता IBSA छोटा समूह है तथा  लोकतांत्रिक राष्ट्रों पर केंद्रित है। BRICS+ बड़ा है तथा राजनीतिक इसकी व्यवस्था में अधिक विविधता है।
फोकस क्षेत्र IBSA ने लोकतांत्रिक मूल्यों और विकास सहयोग पर जोर दिया BRICS आर्थिक और वित्तीय सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
शक्ति संतुलन IBSA के सदस्यों के बीच अधिक समान भागीदारी है। BRICS में चीन एक प्रमुख आर्थिक शक्ति है।
चुनौतियाँ सीमित वैश्विक पहुँच, वैश्विक चर्चाओं में BRICS का प्रभाव अधिक है। आंतरिक विभाजन, विभिन्न आर्थिक हितों में संतुलन, विस्तारित सदस्यता के साथ सामंजस्य बनाए रखना।

क्या BRICS+ का विस्तार इसे मजबूत करेगा या कमजोर करेगा?

पक्ष में तर्क

  • रणनीतिक पूरकता: अपने मतभेदों के बावजूद, BRICS+ सदस्य समान हितों को साझा करते हैं, जैसे वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार, अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना तथा ग्लोबल साउथ के मुद्दों को बढ़ाना।
  • आर्थिक क्षमता: विस्तारित सदस्यता के साथ, BRICS+ वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद तथा जनसंख्या के बड़े हिस्से को नियंत्रित कर सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय वार्ता और संस्थानों में इसका प्रभाव बढ़ सकता है।
  • वैश्विक संदर्भ से प्रेरणा: यह विस्तार BRICS+ सदस्यों के लिए पश्चिमी प्रभुत्व के प्रति संतुलन के रूप में सहयोग करने के लिए एक मजबूत प्रोत्साहन प्रदान करता है।

विपक्ष में तर्क

  • अलग-अलग राजनीतिक प्रणालियाँ तथा आर्थिक लक्ष्य: ईरान, मिस्र तथा UAE जैसे ब्लॉक के सदस्यों की राजनीतिक विचारधाराएँ, शासन मॉडल और आर्थिक प्राथमिकताएँ अलग-अलग हैं।
  • चीन-भारत प्रतिद्वंद्विता: इन दो प्रमुख सदस्यों के बीच ऐतिहासिक और वर्तमान विवाद सामान्य सहमति और सहयोग में बाधा डाल सकते हैं।
  • सदस्यता में वृद्धि संबंधी जटिलता: नए सदस्यों के शामिल होने से विशेषकर संवेदनशील वैश्विक मुद्दों पर हितों को संरेखित करना और नीतियाँ बनाना कठिन हो जाता है।
  • सामान्य सहमति संबंधी चुनौतियाँ: विविध सदस्यता के साथ व्यापार, सुरक्षा और अन्य महत्त्वपूर्ण मामलों पर समझौते तक पहुँचना बहुत जटिल हो जाता है।
  • विविध आर्थिक क्षमताएँ: सदस्यों के बीच आर्थिक क्षमता एवं विकास के चरणों में अंतर असमान लाभ एवं कम सहयोग का कारण बन सकता है।
    • चीन की प्रमुख आर्थिक भूमिका अन्य सदस्यों पर प्रभावी हो सकती है, जिससे प्रभाव में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
  • पश्चिमी शक्तियों के साथ संतुलन: BRICS+ को प्रायः पश्चिमी-प्रभुत्व वाली वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के लिए एक चुनौती के रूप में देखा जाता है, जिससे विशेषकर G-7 और नाटो सहयोगियों के साथ भू-राजनीतिक तनाव बढ़ता है।
  • पारंपरिक गठबंधन: सऊदी अरब और यू.ए.ई. जैसे देशों को शामिल करना, जो पारंपरिक रूप से अमेरिका के साथ गठबंधन करते हैं, BRICS+ की स्वतंत्र ब्लॉक के रूप में स्थिति को जटिल बना सकते हैं।
  • भू-राजनीतिक संघर्ष: संघर्षों पर अलग-अलग रुख (जैसे, मध्य पूर्व तनाव, रूस-यूक्रेन संघर्ष) सामूहिक प्रयासों को कमजोर कर सकते हैं।

आगे की राह

  • अलग-अलग हितों को संबोधित करना: BRICS+ को अपने सदस्यों की विविध राजनीतिक प्रणालियों, आर्थिक प्राथमिकताओं तथा विकास चरणों को स्वीकार करना चाहिए और उनमें सामंजस्य स्थापित करना चाहिए।
    • ब्लॉक की एकता को कम किए बिना सामूहिक प्रगति सुनिश्चित करने के लिए भारत और चीन की प्रतिद्वंद्विता को प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
  • व्यापार में स्थानीय मुद्राओं को बढ़ावा देना: ब्लॉक को बहु-मुद्रा व्यापार ढाँचा स्थापित करने पर कार्य करना चाहिए, संभवतः BRICS+ डिजिटल मुद्रा के साथ।
  • बाजार पहुँच को सुगम बनाना: BRICS+ को व्यापार बाधाओं को कम करने, निवेश प्रवाह को बढ़ाने और सदस्य देशों के बीच अधिक विविध आपूर्ति शृंखलाएँ स्थापित करने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
    • इसमें प्रौद्योगिकी और हरित ऊर्जा जैसे नए क्षेत्र भी शामिल हो सकते हैं, जो भविष्य के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) को परिष्कृत करना: NDB को विकासशील देशों में अधिक सतत् विकास परियोजनाओं और सामाजिक बुनियादी ढाँचे को शामिल करने के लिए अपना ध्यान बढ़ाना चाहिए।
  • वैश्विक प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना: BRICS+ को G20, WTO आदि जैसे प्लेटफॉर्म में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए।
    • इससे जलवायु परिवर्तन वार्ता से लेकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों तक, प्रमुख वैश्विक नीति निर्णयों में इसकी प्रभावशीलता बढ़ेगी।
  • संघर्ष मध्यस्थता पर सहयोग करना: BRICS+ वैश्विक संघर्ष समाधान में एक महत्त्वपूर्ण मध्यस्थ बन सकता है, जो अफ्रीका, मध्य पूर्व, रूस-यूक्रेन में क्षेत्रीय तनावों पर वार्ता के लिए एक मंच प्रदान करता है।
    • शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के प्रयास BRICS+ को वैश्विक शांति मध्यस्थ के रूप में उभारेंगे।
  • वैश्विक दक्षिण का समर्थन करना: BRICS+ को विकासशील देशों में निष्पक्ष व्यापार, ऋण राहत और बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन करते हुए ग्लोबल साउथ के हितों का समर्थन करना जारी रखना चाहिए।

भारत के लिए BRICS का महत्त्व

  • प्रमुख बहुपक्षीय समूह: BRICS भारत के दृष्टिकोण से G-20, क्वाड, बिम्सटेक, G-7 तथा SCO के साथ शीर्ष छह बहुपक्षीय समूहों में से एक है।
  • रूस के साथ संबंधों को मजबूत करना: इस समूह के माध्यम से, भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है, पश्चिमी शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित किया है और अपने भू-राजनीतिक लाभ को बढ़ाया है।
  • ग्लोबल साउथ का समर्थन करना: भारत, ग्लोबल साउथ के हितों की रक्षा के लिए BRICS का उपयोग करता है, समान वैश्विक शासन और विकास पर जोर देता है।
  • भारत-चीन कूटनीतिक सफलता: कजान में वर्ष 2024 के BRICS शिखर सम्मेलन ने भारतीय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पाँच वर्षों में पहली बैठक की सुविधा प्रदान की।
    • इस द्विपक्षीय वार्ता से सीमा पर गश्त और सैनिकों की वापसी पर सहमति बनी, जिससे भारत-चीन संबंधों में सुधार का संकेत मिला।
  • पूर्व और पश्चिम के बीच सेतु: BRICS भारत को पश्चिम और पूर्व के साथ-साथ उत्तर और दक्षिण के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने का अवसर देता है।
    • यह रणनीतिक स्थिति भारत की भू-राजनीतिक प्रासंगिकता को बढ़ाती है और उसे वैश्विक संवाद और नीति-निर्माण को प्रभावित करने के लिए एक अद्वितीय मंच प्रदान करती है।

निष्कर्ष

BRICS+ तेजी से एक प्रमुख भू-राजनीतिक इकाई के रूप में विकसित हो रहा है, जिसमें वैश्विक शक्ति गतिशीलता को नया आकार देने की क्षमता है। BRICS+ का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि यह अपनी विविधता का प्रबंधन किस प्रकार करता है, अपने रणनीतिक हितों को कैसे आगे बढ़ाता है और बदलती वैश्विक व्यवस्था को कैसे संबोधित करता है। ब्राजील में होने वाला आगामी शिखर सम्मेलन संभवतः समूह की दिशा निर्धारित करने में एक महत्त्वपूर्ण क्षण होगा।

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