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ब्रिक्स पे: SWIFT का एक विकल्प

Lokesh Pal November 07, 2025 02:15 23 0

संदर्भ

ब्रिक्स देशों ने ‘ब्रिक्स पे’ (BRICS Pay) को संचालित करने की योजना को आगे बढ़ाया है, जो एक सीमा-पार भुगतान प्रणाली है, जिसका उद्देश्य अमेरिका-नियंत्रित SWIFT नेटवर्क पर निर्भरता को कम करना है।

ब्रिक्स (BRICS)

  • ‘ब्रिक्स’ शब्द की अवधारणा वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ’नील द्वारा दी गई थी, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत और चीन जैसे तीव्र गति से उभरती अर्थव्यवस्थाओं को सम्मिलित किया गया था।
    • वर्ष 2006: G-8 आउटरीच शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक ने औपचारिक रूप से कार्य करना प्रारंभ किया।
    • वर्ष 2009: पहला BRIC शिखर सम्मेलन रूस में आयोजित हुआ।
    • वर्ष 2010: दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने से यह समूह ‘BRICS’ बन गया।
    • नए सदस्य (वर्ष 2024 से): मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और सऊदी अरब।
      • 10 अन्य ब्रिक्स भागीदार देश: बेलारूस, बोलिविया, कजाखस्तान, नाइजीरिया, मलेशिया, थाईलैंड, क्यूबा, वियतनाम, युगांडा और उज्बेकिस्तान।

मुख्य पहल

  • न्यू डवलपमेंट बैंक (NDB): 100 अरब अमेरिकी डॉलर की प्रारंभिक पूँजी के साथ स्थापित, NDB का उद्देश्य ब्रिक्स और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में अवसंरचना एवं सतत् विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करना है।
    • इसकी शुरुआत वर्ष 2014 में ब्राजील के फोर्टालेजा में आयोजित 6वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में की गई थी।
  • आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था (CRA): 100 अरब अमेरिकी डॉलर का एक आपातकालीन आरक्षित कोष, जिसका उद्देश्य सदस्य देशों को भुगतान संतुलन संकट की स्थिति में वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
    • यह व्यवस्था भी वर्ष 2014 में फोर्टालिजा, ब्राजील में आयोजित 6वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में स्थापित की गई थी।

ब्रिक्स वित्तीय सहयोग का विकास

  • प्रारंभिक दृष्टि (वर्ष 2014 का फोर्टालिजा शिखर सम्मेलन): इस शिखर सम्मेलन ने पश्चिमी-प्रधान वित्तीय प्रणालियों पर निर्भरता कम करने के लिए ब्रिक्स के प्रयासों की शुरुआत को चिह्नित किया।
    • अवसंरचना एवं विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु न्यू डवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना की गई।
    • सदस्य देशों को तरलता सहायता प्रदान करने के लिए आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था (CRA) का गठन किया गया।
  • वर्ष 2014 के बाद का परिवर्तन: रूस पर (क्रीमिया संकट के दौरान) पश्चिमी प्रतिबंधों ने वित्तीय स्वायत्तता की आवश्यकता को और तीव्र किया।
  • वर्ष 2017 से आगे: स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन, मुद्रा विनिमय (करेंसी स्वैप) और प्रत्यक्ष निवेश को प्रोत्साहित करने की पहलें प्रारंभ हुईं।
  • 2020 का दशक: सीमा-पार भुगतान प्रणालियों की खोज हेतु ब्रिक्स पेमेंट्स टास्क फोर्स (BPTF) का गठन किया गया, जिसने ‘ब्रिक्स पे’ की नींव रखी।
  • 16वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (कजान, 2024): ब्रिक्स नेताओं ने ‘ब्रिक्स के अंतर्गत संवाददाता बैंकिंग नेटवर्क को सुदृढ़ करने तथा स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन को सक्षम बनाने’ के महत्त्व पर बल दिया, जो ‘ब्रिक्स क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट्स इनिशिएटिव’ या ‘ब्रिक्स पे’ के अनुरूप है।
    • यह कदम अमेरिका-नियंत्रित SWIFT प्रणाली पर निर्भरता घटाने के उद्देश्य को दर्शाता है।
    • साथ ही यह मौद्रिक बहुध्रुवीयता, डिजिटल संप्रभुता, और डॉलर पर निर्भरता में कमी की सामूहिक दिशा को भी रेखांकित करता है।

सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT)

  • यह एक संदेश प्रेषण नेटवर्क है, जिसका उपयोग बैंक और वित्तीय संस्थान विश्वभर में वित्तीय लेन-देन से संबंधित सूचनाओं के तीव्र एवं त्रुटिहीन आदान-प्रदान हेतु करते हैं।
  • स्वरूप: यह एक वैश्विक संदेश प्रेषण नेटवर्क है, न कि कोई वित्तीय संस्था। यह न तो धन को रखता है और न ही स्थानांतरित करता है, बल्कि बैंकों के बीच सुरक्षित वित्तीय संचार की सुविधा प्रदान करता है।
  • स्थापना: वर्ष 1973 में 15 देशों के 239 बैंकों द्वारा सीमा-पार वित्तीय संचार को मानकीकृत और सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया।
  • मुख्यालय: बेल्जियम।
  • इस प्लेटफॉर्म पर प्रत्येक प्रतिभागी को एक विशिष्ट 8 से 11 अक्षरों वाला SWIFT कोड या बैंक पहचान कोड (BIC) प्रदान किया जाता है, जो किसी भी अंतर-बैंक हस्तांतरण के लिए आवश्यक होता है।
  • शासन व्यवस्था: इसका पर्यवेक्षण G-10 केंद्रीय बैंकों, यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ECB) और बेल्जियम के राष्ट्रीय बैंक द्वारा किया जाता है।

G10 के बारे में 

  • ग्रुप ऑफ 10’ में कुल 11 औद्योगिक देश (बेल्जियम, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) शामिल हैं।

ब्रिक्स पे पहल के बारे में

  • उद्देश्य: सीमा-पार भुगतान प्रणाली का विकास करना, ताकि G-10 केंद्रीय बैंकों द्वारा नियंत्रित SWIFT नेटवर्क पर निर्भरता को कम किया जा सके।
  • स्वरूप: यह ‘ब्रिक्स क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट्स इनिशिएटिव’ का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन को सक्षम बनाना है।
  • यह रूस की ‘सिस्टम फॉर ट्रांसफर ऑफ फाइनेंशियल मैसेजेस’ (SPFS), चीन की ‘क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम’ (CIPS), भारत की ‘यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस’ (UPI) और ब्राजील की ‘पिक्स प्रणाली’ (Pix System) जैसी राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों को जोड़ता है, जिससे पारस्परिक संगतता तथा विस्तार क्षमता सुनिश्चित होती है।
  • विकेंद्रीकृत संदेश प्रणाली (DCMS): यह SWIFT की केंद्रीकृत संदेश प्रणाली का एक सुरक्षित विकल्प प्रदान करती है, जिससे नेटवर्क की कमजोरियों और एकल-बिंदु विफलताओं को न्यूनतम किया जा सके।

तुलनात्मक विश्लेषण: SWIFT बनाम ब्रिक्स पे

दृष्टिकोण स्विफ्ट (SWIFT) ब्रिक्स सीमा-पार भुगतान सहयोग
नियंत्रण G-10 केंद्रीय बैंकों द्वारा नियंत्रित (पश्चिम-प्रधान)। ब्रिक्स देशों (विकासशील राष्ट्रों) द्वारा संचालित।
मुद्रा का आधार अमेरिकी डॉलर पर आधारित सदस्य देशों की स्थानीय मुद्राओं पर केंद्रित।
संरचना केंद्रीकृत विकेंद्रीकृत
पहुँच 11,000 से अधिक वित्तीय संस्थान विश्वभर में विकसित हो रही प्रणाली; इंटर-ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ कवरेज का लक्ष्य है।
उद्देश्य बैंक हस्तांतरण हेतु सुरक्षित वैश्विक संदेश प्रणाली वित्तीय संप्रभुता और प्रतिबंध-प्रतिरोधी एकीकृत भुगतान प्रणाली सुनिश्चित करना।

ब्रिक्स पे द्वारा सृजित अवसर

  • वित्तीय संप्रभुता: ब्रिक्स पे सदस्य देशों को अमेरिकी डॉलर से स्वतंत्र रूप से लेन-देन करने का अवसर प्रदान करता है, जो वर्तमान में वैश्विक व्यापार और वित्त प्रणाली में प्रमुख भूमिका निभाता है।
    • स्थानीय मुद्राओं में व्यापार निपटान से देशों को अधिक मौद्रिक स्वायत्तता प्राप्त होती है तथा वे डॉलर में उतार-चढ़ाव या अमेरिकी मौद्रिक नीतियों के निर्णयों से कम प्रभावित होते हैं।
    • इससे विदेशी मुद्रा भंडार के बोझ में भी कमी आ सकती है, क्योंकि व्यापार निपटान के लिए डॉलर की आवश्यकता घटेगी।
  • प्रतिबंधों से प्रतिरक्षा: ब्रिक्स पे का एक प्रमुख उद्देश्य पश्चिम-नियंत्रित वित्तीय प्रणालियों (जैसे- SWIFT) को दरकिनार करना है, जिन्हें प्रायः प्रतिबंधों के उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है।
    • अमेरिकी-नेतृत्व वाले वित्तीय प्रतिबंधों का सामना करने वाले देशों के लिए ब्रिक्स पे एक सुरक्षित और वैकल्पिक भुगतान मार्ग प्रदान करता है, जो उन्हें बहिष्कार संबंधी नीतियों से संरक्षित रखता है।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: यह पहल विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपनी या क्षेत्रीय मुद्राओं में व्यापार करने हेतु प्रोत्साहित करती है, जिससे दक्षिण-दक्षिण आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है।
    • यह ‘ग्लोबल साउथ’ के भीतर व्यापार और निवेश प्रवाह को सशक्त करता है तथा पश्चिमी बाजारों और मुद्राओं पर निर्भरता को घटाता है।
  • नवाचार एवं वित्तीय समावेशन: ब्रिक्स पे भारत के UPI, चीन के CIPS, रूस के SPFS तथा ब्राजील के Pix जैसे मौजूदा प्रणालियों के तकनीकी ढाँचे का लाभ उठा सकता है।
    • इन प्रणालियों को जोड़कर ब्रिक्स पे तत्काल, कम लागत वाले और सुरक्षित लेन-देन को सक्षम बना सकता है, जिससे विकासशील देशों में वित्तीय समावेशन तथा डिजिटल नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
  • सुदृढ़ बहुपक्षवाद: ‘ब्रिक्स पे’ पश्चिम-प्रधान मौद्रिक व्यवस्था से वित्तीय स्वतंत्रता की सामूहिक अभिव्यक्ति है।
    • यह बहुपक्षवाद और वित्तीय बहुध्रुवीयता को सुदृढ़ करता है, जो एक संतुलित वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की दिशा में परिवर्तन को दर्शाता है, जहाँ उभरती अर्थव्यवस्थाओं की भूमिका अधिक प्रभावशाली होगी।

डॉलर पर निर्भरता कम करने के प्रमुख कारण

  • प्रतिबंधों के प्रति संवेदनशीलता: रूस (वर्ष 2014 क्रीमिया प्रतिबंध, 2022 यूक्रेन युद्ध) और ईरान जैसे देशों को SWIFT नेटवर्क से अलग कर दिया गया, जिससे उनकी डॉलर आधारित परिसंपत्तियाँ कर दी गईं।
    • ऐसी घटनाएँ दर्शाती हैं कि डॉलर प्रणाली को राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है, जिसके चलते देश अपनी वित्तीय संप्रभुता की रक्षा हेतु वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों की ओर अग्रसर हैं।
  • विनिमय दर अस्थिरता: डॉलर के मूल्य में वृद्धि या गिरावट सीधे तौर पर आयात लागत, ऋण भुगतान और मुद्रास्फीति पर प्रभाव डालती है, विशेष रूप से विकासशील देशों में।
    • स्थानीय मुद्राओं में व्यापार से देश विनिमय दर जोखिमों को स्थिर कर सकते हैं और अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को बाह्य तनावों से सुरक्षित रख सकते हैं।
  • लेन-देन की लागत: डॉलर आधारित निपटान में कई बार मुद्रा रूपांतरण और मध्यवर्ती बैंकों की आवश्यकता होती है, जिससे लेन-देन एवं रूपांतरण लागत बढ़ जाती है।
    • ‘ब्रिक्स पे’ या द्विपक्षीय रुपया आधारित व्यापार जैसी व्यवस्थाओं के अंतर्गत स्थानीय मुद्राओं में निपटान से अमेरिकी बैंकिंग नेटवर्क पर निर्भरता घटती है और लेन-देन अधिक कुशल बनते हैं।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: डॉलर के उपयोग में कमी से किसी देश की स्वतंत्र मौद्रिक और विदेश नीति अपनाने की क्षमता सुदृढ़ होती है।
    • यह अमेरिकी ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव से उत्पन्न जोखिमों को कम करता है और विशेषकर वैश्विक संकटों के दौरान आर्थिक संप्रभुता को बनाए रखने में सहायक होता है।
  • बहुध्रुवीयता का उदय: एकध्रुवीय से बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की ओर परिवर्तन में वित्तीय पुनर्संरेखण भी शामिल है।
    • उभरती अर्थव्यवस्थाएँ एक संतुलित अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संरचना का निर्माण करना चाहती हैं, जिसमें क्षेत्रीय मुद्राएँ और संस्थान-जैसे ब्रिक्स पे और न्यू डवलपमेंट बैंक (NDB) अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँ।

ब्रिक्स पे को साकार करने में चुनौतियाँ

  • विविध राष्ट्रीय हित: ब्रिक्स समूह के प्रत्येक सदस्य देश की अपनी अलग महत्त्वाकांक्षा है कि उसका भुगतान तंत्र वैश्विक स्तर पर विस्तारित हो —
    • भारत का उद्देश्य यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को एक वैश्विक डिजिटल भुगतान मॉडल के रूप में बढ़ावा देना है।
    • चीन अपने क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम (CIPS) को प्रोत्साहित कर रहा है, जो रेन्मिन्बी (RMB) मुद्रा की बढ़ती हुई स्वीकार्यता से जुड़ा है।
    • ब्राजील अपने पिक्स इंस्टेंट पेमेंट सिस्टम (Pix Instant Payment System) को लैटिन अमेरिका में विस्तारित कर रहा है, जबकि
    • रूस अपने सिस्टम फॉर ट्रांसफर ऑफ फाइनेंशियल मैसेजेज (SPFS) को आगे बढ़ा रहा है।
    • इन समानांतर महत्त्वाकांक्षाओं के कारण एकीकृत ब्रिक्स पे प्लेटफॉर्म की सामूहिक प्रगति धीमी पड़ सकती है।
  • अंतरसंचालनीयता की समस्याएँ: प्रत्येक देश की भुगतान प्रणाली अलग-अलग तकनीकों, विनियमों और मुद्राओं पर आधारित है।
    • इन पाँच विविध अर्थव्यवस्थाओं में तकनीकी संगतता और नियामकीय समन्वय सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।
  • भू-राजनैतिक दबाव: अमेरिका ब्रिक्स की इस पहल को डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के प्रयास के रूप में देखता है।
    • व्यापारिक प्रतिशोध या प्रतिबंधों (जैसे- ट्रंप का 100% शुल्क लगाने की चेतावनी) की आशंका के कारण कुछ सदस्य देश इस दिशा में अत्यधिक तेजी से बढ़ने से संकोच कर सकते हैं।
  • विश्वास की कमी: सहयोग के बावजूद ब्रिक्स देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक मतभेद बने हुए हैं, उदाहरण के लिए चीन–भारत सीमा विवाद।
    • राजनीतिक एकजुटता की कमी एक वास्तविक रूप से एकीकृत भुगतान नेटवर्क की स्थापना में बाधा बन सकती है।
  • सीमित भौगोलिक दायरा 
    • प्रारंभिक चरण में ब्रिक्स पे केवल सदस्य और साझेदार अर्थव्यवस्थाओं तक सीमित रहेगा, जिससे इसकी वैश्विक पहुँच और नेटवर्क प्रभाव SWIFT के 11,000 सदस्य संस्थानों की तुलना में सीमित रहेगा।

आगे की राह 

  • चरणबद्ध एकीकरण: ब्रिक्स को द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्रा निपटानों (जैसे- भारत–रूस या चीन–ब्राजील) से शुरू करते हुए धीरे-धीरे पूर्ण बहुपक्षीय भुगतान ढाँचे की ओर बढ़ना चाहिए।
    • इससे प्रत्येक चरण में परिचालन स्थिरता और नियामकीय संरेखण सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: ब्रिक्स पे को न्यू डवलपमेंट बैंक (NDB) से जोड़ने से तरलता समर्थन, गारंटी तंत्र और जोखिम-निवारण साधन प्राप्त हो सकते हैं।
    • यह संस्थागत समर्थन इस पहल को वित्तीय विश्वसनीयता और परिचालन मजबूती प्रदान करेगा।
  • नियामकीय और डिजिटल सामंजस्य: एक साझा ‘ब्रिक्स फिनटेक चार्टर’ (BRICS Fintech Charter) तैयार किया जाना चाहिए, जो अनुपालन, साइबर सुरक्षा और डेटा शासन के मानकों को एकरूप बनाए।
    • ऐसा ढाँचा सदस्य देशों के बीच कानूनी और तकनीकी विश्वास को बढ़ाएगा और सीमा-पार लेनदेन को सरल बनाएगा।
  • तकनीकी आधुनिकीकरण: पारदर्शी लेखा-परीक्षण हेतु ब्लॉकचेन, धोखाधड़ी पहचान हेतु एआई (AI) और उन्नत एन्क्रिप्शन मानकों को अपनाना सिस्टम की सुरक्षा तथा दक्षता दोनों को बढ़ाएगा।
    • भारत का UPI, चीन का CIPS और ब्राजील की Pix जैसे राष्ट्रीय प्रणालियों को परस्पर जोड़ना रियल-टाइम निपटान की नींव रख सकता है।
  • रणनीतिक विस्तार: ब्रिक्स+ के माध्यम से: सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और मिस्र जैसे नए सदस्यों को शामिल करने से ‘ब्रिक्स पे’ को ऊर्जा और व्यापार गलियारों से जोड़ा जा सकता है। 
    • यह विस्तार इसे एक क्षेत्रीय भुगतान प्रणाली से आगे बढ़ाकर दक्षिण-दक्षिण आर्थिक एकीकरण का प्रमुख स्तंभ बना सकता है।
  • वैश्विक प्रणाली के साथ रचनात्मक सहभागिता: ब्रिक्स को SWIFT का विकल्प बनने की बजाय पूरक बनने का लक्ष्य रखना चाहिए।
    • पश्चिमी प्रणालियों के साथ अंतरसंचालनीयता बनाए रखते हुए वित्तीय संप्रभुता को प्रोत्साहित करना विश्वास को सुदृढ़ करेगा और वैश्विक भुगतान संरचना के विखंडन को रोकेगा।

निष्कर्ष

ब्रिक्स पे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की उस सामूहिक आकांक्षा का प्रतीक है, जो वैश्विक वित्त को लोकतांत्रिक बनाना चाहती है। यह मौजूदा व्यवस्था का अस्वीकरण नहीं, बल्कि उसका संतुलन पुनर्स्थापित करने का प्रयास है। यदि इसे संस्थागत अनुशासन, तकनीकी दूरदर्शिता और कूटनीतिक विवेक के साथ आगे बढ़ाया जाए, तो ब्रिक्स पे एक बहुध्रुवीय, सुरक्षित और समावेशी वित्तीय प्रणाली की आधारशिला बन सकता है, जहाँ स्वायत्तता और सहयोग दोनों साथ-साथ विकसित हों।

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