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बहुध्रुवीय विश्व में ब्रिक्स की भूमिका

Lokesh Pal September 30, 2024 04:21 64 0

संदर्भ

भारतीय विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 79वें सत्र के अवसर पर ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक में बहुध्रुवीयता तथा वैश्विक विविधता के लिए ब्रिक्स के महत्त्व पर प्रकाश डाला।

  • इस बैठक का आयोजन ब्राजील के विदेश मंत्री मौरो विएरा (Mauro Vieira) ने किया था।
  • एजेंडा: चर्चा का मुख्य बिंदु बहुपक्षवाद में सुधार एवं विकास को मजबूत करना, सतत् विकास लक्ष्य, ऋण समाधान, निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देना एवं गरीबी उन्मूलन पर था।

ब्रिक्स समूह

  • ब्रिक्स विश्व की अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह का संक्षिप्त नाम है। इस समूह के सदस्य देश ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं। 
    • दक्षिण अफ्रीका वर्ष 2010 में इस समूह में शामिल हुआ।

  • स्थापना: इस समूह की स्थापना का विचार वर्ष 2001 में अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने चार तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं ब्राजील, रूस, भारत और चीन के लिए किया था।
  • उत्पत्ति: इस समूह को ‘ब्रिक’ के रूप में औपचारिक रूप पहली ब्रिक विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान दिया गया, जो वर्ष 2006 में न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र सभा की सामान्य चर्चा  के दौरान हुई थी।
    • प्रथम ब्रिक शिखर सम्मेलन: प्रथम ब्रिक शिखर सम्मेलन 16 जून, 2009 को येकातेरिनबर्ग, रूस में आयोजित किया गया था।
  • विस्तार: जोहान्सबर्ग में वर्ष 2023 में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में 5 नए देशों को शामिल किया गया है। इनमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और UAE शामिल हैं। यह सम्मेलन 1 जनवरी, 2024 से शुरू होगा।
  • ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, 2024: इसकी मेजबानी 22 से 24 अक्टूबर, 2024 तक रूस द्वारा कजान में की जाएगी।
    • एजेंडा: समूह के ढाँचे के भीतर तीन प्रमुख क्षेत्रों- राजनीति तथा सुरक्षा, अर्थव्यवस्था तथा वित्त एवं सांस्कृतिक तथा मानवीय संबंधों पर साझेदारी एवं सहयोग को बढ़ावा देना।

महत्त्व

  • प्रतिनिधित्व: ब्रिक्स देश वैश्विक जनसंख्या के 41% की मेजबानी करते हैं, जिनका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद लगभग 25.85 ट्रिलियन डॉलर है, जो दुनिया के कुल आर्थिक उत्पादन का लगभग 24% है और पृथ्वी के भूमि संसाधन का 29 प्रतिशत कवर करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: ब्रिक्स देश संयुक्त राष्ट्र, G20, गुटनिरपेक्ष आंदोलन और समूह-77 सहित प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों और एजेंसियों के प्रभावशाली सदस्य हैं।
  • वैश्विक दक्षिण: ब्रिक्स उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है, जो पश्चिमी प्रणालियों एवं संस्थाओं के साथ पूर्ण रूप से संरेखित नहीं है और इस प्रकार यह ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व करते हुए अपने स्वयं के विकास के लिए समानांतर व्यवस्था विकसित कर रहा है।
  • वैकल्पिक वित्तीय ढाँचा: ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ (NDB) के माध्यम से ब्रिक्स, विश्व बैंक और  अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा लगाए गए समर्थन की कमजोर शर्तों के बिना कम विकसित देशों में आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देता है।

बहुध्रुवीयता (Multipolarity)

  • अंतरराष्ट्रीय प्रणाली की विशेषता शक्ति का वितरण है और बहुध्रुवीयता वह प्रणाली है, जहाँ अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में तीन या अधिक महाशक्तियाँ सक्रिय होती हैं।
    • बहुध्रुवीय प्रणाली के लिए समान आकार की तीन शक्तियों की आवश्यकता नहीं होती; इसके लिए केवल यह आवश्यक है कि महत्त्वपूर्ण शक्ति दो से अधिक अवस्थाओं में केंद्रित हो।

ब्रिक्स एवं उभरती बहुध्रुवीयता (BRICS and Emerging Multipolarity)

  • वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व: ब्रिक्स वैश्विक एजेंडा, व्यापार विनियमन तथा अन्य महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मामलों को आकार देने वाले महत्त्वपूर्ण विचार-विमर्श में ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वैकल्पिक ढाँचा प्रदान करता है।
  • वित्तीय स्वायत्तता और समानता: ब्रिक्स देशों ने अंतर-ब्रिक्स लेनदेन को डॉलर-मुक्त करने के लिए चर्चा शुरू की है, जो वित्तीय समानता एवं स्वायत्तता की दिशा में एक कदम है।
    • विचार यह है कि ब्रिक्स देशों की मुद्राओं (ब्राजील रियल, रूसी रूबल, भारतीय रुपया, चीनी रेनमिनबी और दक्षिण अफ्रीकी रैंड) को दर्शाने वाले ‘R5’ के बीच व्यापार किया जाए।
  • ब्रिक्स का विस्तार: ब्रिक्स के 5 नए सदस्य समूह की पहुँच को महत्वपूर्ण नए क्षेत्र में विस्तारित करेंगे, अर्थात् अफ्रीका से इथियोपिया और मिस्र को तथा मध्य-पूर्व एशिया से ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब को शामिल किया जाएगा।
  • ऊर्जा रणनीतिक लाभ: विस्तारित ब्रिक्स समूह अब रूस, सऊदी अरब, ब्राजील, ईरान और UAE के साथ वैश्विक ऊर्जा उत्पादन के लगभग आधे हिस्से को नियंत्रित करता है। साथ ही चीन एवं भारत (सबसे बड़े उपभोक्ता देश) के साथ, ब्लॉक के भीतर एक सामंजस्य बनाया गया है, जहाँ सदस्यों की ऊर्जा माँगों को इंट्रा-ब्लॉक आपूर्ति द्वारा काफी हद तक पूरा किया जा सकता है।
  • पेट्रो-डॉलर (Petrodollars): ब्रिक्स+ (BRICS+) राष्ट्रों के लिए, पेट्रो-डॉलर में तेल का व्यापार न केवल उनके विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक मंच पर सौदेबाजी में भी उन्हें लाभ प्रदान करेगा, जो ग्लोबल साउथ में डॉलर के आधिपत्य के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करेगा।
  • एकजुटता दर्शाना: व्यापार में बदलाव तथा अन्य राहत की पेशकश करके रूस के विरुद्ध पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले आर्थिक एवं वित्तीय प्रतिबंधों का पालन न करने से आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के उपकरण के रूप में अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों की प्रभावशीलता कमजोर हो गई है।

चुनौतियाँ

  • भौगोलिक सामंजस्य: ब्रिक्स देश भौगोलिक दृष्टि से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में विस्तृत हैं, जिसके कारण उनका सहयोग और सौदेबाजी की शक्ति केवल विशिष्ट मामलों तक ही सीमित है।
    • उदाहरण: अफ्रीकी संघ या आसियान जैसे क्षेत्रीय समूह अधिक सामंजस्य के साथ कार्य करते हैं क्योंकि क्षेत्रीय विकास में उनकी हिस्सेदारी होती है।

  • साझा बिंदु का अभाव: ब्रिक्स देश केवल अर्थव्यवस्था और व्यापार में संलग्न होने के आधार पर एक साथ आए, जबकि उनके बीच कोई साझा इतिहास, संस्कृति, भाषा या राजनीतिक संरचना नहीं थी।
  • सामूहिक निर्णय: यूरोपीय संघ या आसियान जैसे समूहों के विपरीत, ब्रिक्स की विशेषता सामूहिक निर्णय लेने की नहीं है और यह पारंपरिक अर्थों में एक गुट के रूप में कार्य नहीं करता है।
  • आर्थिक विषमताएँ: इस समूह में चीन के आर्थिक प्रभुत्व ने चीन केंद्रित अंतर-ब्रिक्स व्यापार संबंधों को स्थापित किया है, जिसके परिणामस्वरूप चीन निर्मित उत्पादों द्वारा बाजारों पर अधिकार किया जा रहा है।
  • पश्चिम विरोधी धारणा: समूह में चीन, रूस और अब ईरान की उपस्थिति तथा वैकल्पिक वित्तीय और शासकीय संरचना प्रदान करने के इसके घोषित लक्ष्य को पश्चिमी प्रभुत्व वाली नियम आधारित व्यवस्था को चुनौती देने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
  • विस्तार रणनीति: ब्रिक्स की विस्तार रणनीति स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है और समूह के भविष्य के विस्तार को निर्देशित करने के लिए ठोस नीति के बिना इसकी घोषणा की गई थी। इसके अलावा लोकतांत्रिक और गैर-लोकतांत्रिक राजनीतिक विचारधाराओं के बीच टकराव हो सकता है, जिससे भविष्य में समूह के भीतर और अधिक मतभेद हो सकते हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धी राजनीतिक हित: ब्रिक्स समूह में चीन बनाम भारत और अब सऊदी अरब बनाम ईरान जैसे प्रतिस्पर्द्धी राजनीतिक और आर्थिक हित वाले क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी शामिल हैं। इस तरह की प्रतिस्पर्द्धा से समूह के भीतर सहयोग के अभाव का जोखिम हो सकता है एवं समूह के भीतर विखंडन हो सकता है।

आगे की राह 

  • सहयोग को मजबूत करना: ब्रिक्स देशों को वैश्विक आर्थिक प्रशासन में सुधार के लिए G-20, विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे ढाँचों के भीतर शामिल होकर आपस में व्यापक आर्थिक नीति समन्वय तथा बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करना चाहिए।
  • विविधीकरण: ब्रिक्स विस्तार ने अपने सदस्यों को ऊर्जा क्षेत्र (समूह में 6 शीर्ष तेल उत्पादक) में अपनी साझेदारी में विविधता लाने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सक्षम करने, अंतरिक्ष अनुसंधान को आगे बढ़ाने और ब्रिक्स के नए विकास बैंक (NDB) को मजबूत करने के अवसर प्रदान किए हैं।
  • नई संस्थाओं का निर्माण: हाल ही में शामिल हुए सदस्यों के साथ ब्रिक्स एक विस्तारित निकाय है, जिसे सचिवालय और ब्रिक्स मुद्रा संघ जैसी नई ब्रिक्स संस्थाओं की आवश्यकता है, जो निकाय की भविष्य की दिशा को नियंत्रित करेंगी।
  • लोगों के बीच सहयोग पर ध्यान देना: ब्रिक्स समूह को लोगों के बीच संबंध स्थापित करने पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि इसमें कोई साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध नहीं है। यह ब्रिक्स वीजा के जरिए पर्यटन को बढ़ावा देकर या ब्रिक्स शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण करके किया जा सकता है।

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