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संक्षिप्त समाचार

Lokesh Pal June 19, 2024 03:39 188 0

टाइटन पनडुब्बी 

(Titan)

18 जून को टाइटन (Titan) नामक प्रायोगिक पनडुब्बी की एक वर्षगाँठ पूरी हुई है।         

टाइटन सबमर्सिबल  (Titan Submersible)

  • परिचय: ओशन गेट (Ocean Gate), एक अमेरिकी कंपनी, अनुसंधान और पर्यटन के लिए जल के नीचे किए जाने वाले अभियानों के लिए टाइटन सबमर्सिबल का उपयोग करती है।  
    • टाइटन का निर्माण ‘ऑफ-द-शेल्फ’ (Off-The-Shelf) घटकों से किया गया है, जिससे यह अन्य गहरे जल में जाने वाली पनडुब्बियों की तुलना में हलकी एवं अधिक लागत प्रभावी है।
  • उद्देश्य:  ठंडे उत्तरी अटलांटिक महासागर में लगभग 4,000 मीटर गहराई पर स्थित RMS टाइटैनिक के मलबे का पता लगाना।
  • विशेष विवरण: टाइटन, कार्बन फाइबर और टाइटेनियम से बना है। यह समुद्र में 4,000 मीटर की जल की गहराई तक जा सकती है और तीन नॉट प्रति घंटे (5.56 किलोमीटर प्रति घंटे) की गति से संचलन कर सकती है। 
  • अंतः विस्फोट का कारण: जैसे ही कोई पनडुब्बी समुद्र में गहराई तक जाती है, उसे जल के उच्च दबाव का सामना करना पड़ता है। अगर दबाव एक सुनिश्चित सीमा से अधिक हो जाता है, तो इसमें खतरनाक विस्फोट की संभावना बढ़ जाती है। 
डिजी यात्रा  

(DigiYatra)

डिजी यात्रा फाउंडेशन के CEO के अनुसार, हवाई अड्डों पर इस्तेमाल की जाने वाली फेसियल रिकग्निशन चेक-इन सेवा, डिजी यात्रा, जल्द ही होटलों और ऐतिहासिक स्मारकों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर भी लागू की जा सकती है।      

डिजी यात्रा

  • संबंधित तथ्य: डिजी यात्रा हवाई अड्डे के यात्रियों के लिए एक अभिनव कार्यक्रम है, जो प्रवेश से लेकर विमान में चढ़ने तक की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए चेहरे की पहचान का उपयोग करता है। 
    • यह पहचान और डेटा पुनः प्राप्ति के लिए चेहरे की पहचान का लाभ उठाकर स्वयं बैग रखने और चेक-इन को सरल बनाता है, कागज रहित यात्रा को संभव बनाता है और एक से अधिक बार पहचान की जाँच करने की आवश्यकता को समाप्त करता है।   
  • नोडल मंत्रालय: नागरिक उड्डयन मंत्रालय (भारत सरकार)       
  • उद्देश्य:  इसका उद्देश्य भारतीय विमानन क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन के लिए उद्योग मानक और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) स्थापित करना है।      
    • सभी भारतीय हवाई अड्डों पर बायोमेट्रिक बोर्डिंग के लिए आधार, ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट जैसी डिजिटल पहचान को एकीकृत ‘डिजी यात्रा’ पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत करना।     
    • एयरलाइनों, ट्रैवल एजेंटों, वितरण प्रणालियों और हवाई अड्डों के बीच समन्वय स्थापित करके डिजी यात्रा प्रणाली का समय पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।        
    • नए मानकों और प्रक्रियाओं के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए व्यापक संचार और विपणन अभियान चलाना।       
  • कार्यान्वयन: डिजी यात्रा का क्रियान्वयन डिजी यात्रा फाउंडेशन द्वारा किया जाता है, जो भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, बंगलूरू हवाई अड्डा, दिल्ली हवाई अड्डा, हैदराबाद हवाई अड्डा, मुंबई हवाई अड्डा और कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा सहित शेयरधारकों द्वारा समर्थित एक संयुक्त उद्यम है।    

डिजी यात्रा का उद्देश्य

  • भीड़भाड़ वाले हवाई अड्डे एवं देरी: हवाई अड्डों पर भारी भीड़ और कागजी कार्रवाई की अड़चनों के कारण विलंब होता है, जिससे यात्रियों की संतुष्टि प्रभावित होती है।     
  • अकुशल कागजी प्रक्रियाएँ: वर्तमान कागज आधारित दस्तावेज सत्यापन भौतिक दस्तावेजों और मैन्युअल जाँच पर निर्भर करता है, जिसके परिणामस्वरूप समय लेने वाली प्रक्रिया होती है और त्रुटियाँ होने की संभावना रहती है।         
  • सुरक्षा जोखिम: कागज आधारित पद्धतियों से धोखाधड़ी और पहचान की चोरी का खतरा रहता है, जिससे यात्रियों एवं प्राधिकारियों की सुरक्षा के लिए चिंताएँ बढ़ जाती हैं।              
  • संपर्क रहित विकल्पों की आवश्यकता: महामारी के दौरान, यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संपर्क रहित यात्रा विकल्पों की आवश्यकता बढ़ गई थी।    
महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर पहल 

(iCET)

हाल ही में NSA अजीत डोभाल और उनके अमेरिकी समकक्ष जैक सुलिवन ने महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर भारत-अमेरिका पहल (iCET) पर चर्चा की, जिसका उद्देश्य प्रमुख प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है।         

महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर पहल (Initiative on Critical and Emerging Technology)

  • परिचय: महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल की रूपरेखा भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के लिए एक व्यापक मंच प्रदान करती है।      
  • उद्देश्य: भारत और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को विश्वसनीय प्रौद्योगिकी साझेदार के रूप में स्थापित करना, आपूर्ति शृंखला विकास को बढ़ावा देना तथा वस्तुओं के सहयोगात्मक उत्पादन और विकास को समर्थन देना।
  • सहयोग: iCET के तहत, दोनों देशों ने सहयोग के लिए छह क्षेत्रों की पहचान की है, जिसमें सह-विकास (Co-Development) और सह-उत्पादन (Co-Production) शामिल है। इन प्रयासों को समय के साथ धीरे-धीरे QUAD से NATO, यूरोप और वैश्विक स्तर पर विस्तारित किया जाना है।        
    • सामान्य AI मानक स्थापित करना। 
    • रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग बढ़ाने के लिए एक रोडमैप तैयार करना तथा रक्षा स्टार्टअप्स को जोड़ने के लिए एक ‘इनोवेशन ब्रिज’ (Innovation Bridge) बनाना।           
    • अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र (Semiconductor Ecosystem) के विकास का समर्थन करना।  
    • मानव अंतरिक्ष उड़ान में सहयोग को मजबूत करना।    
    • 5G और 6G विकास में संयुक्त प्रयासों को आगे बढ़ाना।          
    • भारत में OpenRAN नेटवर्क प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन।           

iCET की दूसरी बैठक के मुख्य निष्कर्ष

  • निर्भरता कम करना: बैठक में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए कदमों की रूपरेखा तैयार की गई, जैसे कि दक्षिण अमेरिका में लीथियम संसाधनों और अफ्रीका में दुर्लभ मृदा तत्वों में निवेश के माध्यम से खनिज सुरक्षा साझेदारी में भारत की भूमिका को बढ़ावा देना।
  • रक्षा खरीद: भारत और अमेरिका वर्तमान में 31 MQ-9B मानवरहित हवाई वाहनों की खरीद, जनरल इलेक्ट्रिक GE-414 इंजन के स्थानीय लाइसेंस प्राप्त विनिर्माण तथा स्ट्राइकर पैदल सेना वाहनों की खरीद के लिए बातचीत के उन्नत चरण में हैं।
    • भूमि युद्ध प्रणालियों के संभावित सह-उत्पादन तथा रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिए भारत-अमेरिका रोडमैप में उल्लिखित अन्य सह-उत्पादन पहलों पर प्रगति पर वार्ता करना।              
CCRAS-NIIMH  पारंपरिक चिकित्सा अनुसंधान के लिए सहयोगी केंद्र     राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा विरासत संस्थान  (NIIMH) को ‘पारंपरिक चिकित्सा में मौलिक और साहित्यिक अनुसंधान’ (CC IND-177) के लिए प्रथम WHO सहयोगी केंद्र (CC) के रूप में नामित किया गया है।                

NIIMH

  • परिचय: वर्ष 1956 में स्थापित, NIIMH आयुष मंत्रालय के केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (CCRAS) के अधीन कार्य करता है।   
  • अधिदेश (Mandate): इसके कार्यक्षेत्र में भारत में आयुर्वेद, योग प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और अन्य संबद्ध स्वास्थ्य देखभाल विषयों में चिकित्सा-ऐतिहासिक अनुसंधान का दस्तावेजीकरण और प्रस्तुति शामिल है।            
  • CC IND-177 के रूप में NIIMH के कार्य: NIIMH आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और सोवा-रिग्पा (Sowa-Rigpa) में प्रयुक्त शब्दावली को सुसंगत बनाकर WHO की सहायता करता है। इसके अतिरिक्त, NIIMH ICD-11 के लिए पारंपरिक चिकित्सा मॉड्यूल-II को संशोधित करने में WHO की सहायता करता है।         

पारंपरिक चिकित्सा अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए NIIMH की पहलों में शामिल हैं-  

  • जर्नल ऑफ इंडियन मेडिकल हेरिटेज (Journal of Indian Medical Heritage): पारंपरिक चिकित्सा पर केंद्रित प्रकाशन।    
  • डिजिटल पहल  (Digital Initiatives)
    • AMAR पोर्टल: 16,000 आयुष पांडुलिपियों (Ayush Manuscripts) की सूची, जिसमें डिजीटल पांडुलिपियाँ और दुर्लभ पुस्तकें शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय आयुष रुग्णता एवं मानकीकृत शब्दावली इलेक्ट्रॉनिक (National Ayush Morbidity and Standardized Terminologies Electronic- NAMSTE) पोर्टल: आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी प्रणालियों के लिए मानकीकृत शब्दावली और रुग्णता कोड प्रदान करता है।   
    • शोकेस ऑफ आयुर्वेद हिस्टोरिकल इम्प्रिंट्स  (Showcase of Ayurvedic Historical Imprints- SAHI) पोर्टल: विभिन्न औषधीय-ऐतिहासिक कलाकृतियों को प्रदर्शित करता है।       
  • अन्य पहल
    • आयुष की ई-पुस्तकें   
    • आयुष अनुसंधान पोर्टल 

ICD

  • परिचय: ICD मृत्यु दर और रुग्णता डेटा की व्यवस्थित रिकॉर्डिंग, रिपोर्टिंग, विश्लेषण, व्याख्या और तुलना के लिए वैश्विक मानक के रूप में कार्य करता है।   
  • विशेषताएँ: इसमें पारंपरिक चिकित्सा पर एक विशिष्ट अध्याय है, जिसमें मॉड्यूल 2 ICD-11 के अंतर्गत आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी डेटा और शब्दावली पर केंद्रित है।        
  • कार्य: पारंपरिक चिकित्सा के लिए अनुसंधान पद्धतियाँ तैयार करने में सदस्य राज्यों की सहायता करना।  
नागास्त्र-1 

(Nagastra-1)

हाल ही में नागपुर स्थित सोलर इंडस्ट्रीज ने भारतीय सेना को घरेलू स्तर पर निर्मित नागास्त्र-1 लोइटरिंग म्यूनिशन (Nagastra-1 Loitering Munitions) की प्रारंभिक खेप की आपूर्ति की है।                  

नागस्त्र-1 (Nagastra-1)

  • परिचय: नागास्त्र-1 एक UAV बेस्ड लोइटरिंग म्यूनिशन है, जिसे एरियल एम्बुस सिस्टम के रूप में कार्य करने के लिए डिजाइन किया गया है।           

कार्य

  • सटीकता: इसका प्राथमिक कार्य लक्ष्य के ऊपर हवा में घूमना और GPS सक्षम सटीकता के साथ सटीक लक्ष्य भेदन करना है, जिससे 2 मीटर की उल्लेखनीय सटीकता प्राप्त होती है।       
  • सटीक प्रहार क्षमता (Precision Strike Capability): ‘कामिकेज मोड’ (Kamikaze Mode) में, नागास्त्र-1 सीधे लक्ष्य पर प्रहार करके तथा इस प्रक्रिया में स्वयं को नष्ट करके शत्रुतापूर्ण खतरों को बेअसर कर सकता है। 
  • उच्च ऊँचाई पर संचालन: ड्रोन 4,500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर उड़ सकता है, जिससे रडार द्वारा इसका पता लगाना कठिन हो जाता है।      
  • निगरानी उपकरण: यह दिन-रात निगरानी कैमरों और छोटे लक्ष्यों को नष्ट करने में सक्षम वारहेड से सुसज्जित है।                 
  • सहनशक्ति और रेंज (Endurance and Range): फिक्स्ड-विंग इलेक्ट्रिक UAV 60 मिनट तक कार्य कर सकता है, जिसमें मैंन-इन-लूप नियंत्रण रेंज 15 किलोमीटर और ऑटोनॉमस मोड रेंज 30 किलोमीटर है।                   
  • रिकवरी मैकेनिज्म: नागास्त्र-1 में निरस्त करने, पुनः प्राप्त करने और पुनः उपयोग करने की सुविधा है। यदि लक्ष्य का पता नहीं चलता है या मिशन निरस्त हो जाता है, तो इसे वापस बुलाया जा सकता है और पैराशूट सिस्टम का उपयोग करके सुरक्षित रूप से उतारा जा सकता है, जो इसे उन्नत देशों द्वारा विकसित समान प्रणालियों से बेहतर बनाता है।               
विश्व मगरमच्छ दिवस 2024

(World Crocodile Day 2024)

वर्ष 1975 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के सहयोग से ओडिशा के भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान में मगरमच्छ संरक्षण परियोजना शुरू की।                              

मगरमच्छ (Crocodiles)

  • परिचय: मगरमच्छ कशेरुकी वर्ग सरीसृप की सबसे बड़ी जीवित प्रजाति है।            
  • निवास स्थान: मुख्य रूप से मीठे जल के दलदलों, झीलों और नदियों में पाया जाता है, इसके अलावा एक खारे जल की प्रजाति अपवाद के रूप में भी है।             
  • व्यवहार: मगरमच्छ रात्रिचर और विषमतापी होते हैं, अर्थात् वे अपने शरीर के तापमान को केवल एक सीमित सीमा तक ही नियंत्रित कर सकते हैं।          
  • प्रमुख खतरे: आवास विनाश, अंडों का शिकार, अवैध शिकार, बाँध निर्माण और रेत खनन।      

भारत में मगरमच्छ की प्रजातियाँ

  • मुहाना या खारे जल के मगरमच्छ [क्रोकोडाइलस पोरोसस-Crocodylus Porosus]      
    • संरक्षण स्थिति: IUCN के अनुसार सबसे कम चिंताजनक       
    • कानूनी संरक्षण: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (WPA) की अनुसूची I के अंतर्गत सूचीबद्ध                   
    • अंतरराष्ट्रीय व्यापार विनियमन: CITES की परिशिष्ट I के अंतर्गत सूचीबद्ध 
    • स्थान: केवल तीन स्थानों पर पाया जाता है: भीतरकनिका, सुंदरबन और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह        
  • मगर (Mugger) या दलदली मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पलुस्ट्रिस- Crocodylus Palustris
    • संरक्षण स्थिति: IUCN की रेड लिस्ट में सुभेद्य    
    • कानूनी संरक्षण: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) के तहत अनुसूची I में सूचीबद्ध        
    • अंतरराष्ट्रीय व्यापार विनियमन: CITES की परिशिष्ट I में सूचीबद्ध

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