हाल ही में कर्नाटक के पर्यटन विभाग ने मैसूर पर्यटन सर्किट के हिस्से के रूप में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल सोमनाथपुरा (Somanathapura) को बढ़ावा देने की योजना बनाई है।
होयसला मंदिर (Hoysala Temples)
परिचय: 12वीं और 13वीं शताब्दी में निर्मित, यूनेस्को (UNESCO) की सूची में शामिल मंदिरों की त्रि-संरचना न केवल अपने निर्माताओं के असाधारण कौशल को प्रदर्शित करने के लिए उल्लेखनीय है, बल्कि अपने निर्माण को आकार देने वाले राजनीतिक इतिहास का भी उल्लेख करती है।
चेन्नाकेशव मंदिर: भगवान विष्णु को समर्पित चेन्नाकेशव मंदिर का निर्माण 1117 ई. के आसपास होयसल राजा विष्णुवर्धन ने चोल राजाओं पर अपनी विजय का जश्न मनाने के लिए करवाया था। इसलिए इसे विजय नारायण मंदिर भी कहा जाता है।
केशव मंदिर: केशव मंदिर भी एक वैष्णव तीर्थस्थल है, जिसका निर्माण 1268 ईसवी में सोमनाथपुरा में होयसल राजा नरसिंह तृतीय के सेनापति सोमनाथ द्वारा कराया गया था।
16-बिंदु वाले तारे के आकार वाले इस मंदिर में केशव (हालाँकि अब मूर्ति गायब है), जनार्दन और वेणुगोपाल को समर्पित तीन मंदिर हैं।
होयसलेश्वर मंदिर: होयसलेश्वर मंदिर, होयसलों द्वारा निर्मित सबसे बड़ा शिव मंदिर माना जाता है, जिसका निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल
परिचय: विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site- WHS) एक ऐसा स्थल या क्षेत्र है, जिसे यूनेस्को (UNESCO) की देखरेख में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के तहत कानूनी संरक्षण प्राप्त है, जिसे वर्ष 1972 में यूनेस्को विश्व विरासत सम्मेलन के माध्यम से स्थापित किया गया था।
महत्त्व: यूनेस्को इन स्थलों को उनके सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक या अन्य प्रकार के महत्त्व के आधार पर नामित करता है। सांस्कृतिक, प्राकृतिक या मिश्रित विरासत (सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों मानदंडों को पूरा करने वाले) के रूप में वर्गीकृत, इन स्थलों को मानवता के लिए असाधारण मूल्य का माना जाता है।
मानदंड: विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site- WHS) के रूप में चयन के मानदंडों में विशिष्टता, भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्त्व तथा विशेष सांस्कृतिक या भौतिक महत्त्व शामिल हैं।
WHS के उदाहरणों में प्राचीन खंडहर, ऐतिहासिक संरचनाएँ, शहर, रेगिस्तान, जंगल, द्वीप, झीलें, स्मारक, पहाड़ और जंगली क्षेत्र शामिल हैं।
प्रबंधन: यूनेस्को ने इन स्थलों को संरक्षित क्षेत्र के रूप में नामित किया है, जिनका प्रबंधन और रखरखाव यूनेस्को विश्व धरोहर समिति के तहत अंतरराष्ट्रीय विश्व धरोहर कार्यक्रम द्वारा किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर में प्रयुक्त फूल
हाल ही में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) के एक संस्थान, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (National Botanical Research Institute- NBRI) ने मंदिर अनुष्ठानों में उपयोग किए जाने वाले फूलों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान किया।
मंदिर में प्रयुक्त फूल
पवित्र पौधों की खेती: गेंदा, रजनीगंधा, तुलसी, चमेली, दवना (दयाना) की रोपण सामग्री की आपूर्ति की गई और इन्हें मंदिर के मटिटोटा उद्यान में लगाया गया, ताकि पूजा के प्रयोजनों के लिए इन पौधों को उगाया जा सके।
मंदिर के कोइली बैकुंठ उद्यान में CSIR-NBRI द्वारा विकसित कमल की नमोह 108 (Namoh 108) किस्म भी लगाई गई।
देवताओं के लिए सजावट: देवताओं को पुष्प आभूषणों जैसे अधरा, झुम्पा, चंद्रिका, तिलक, हृदय पदक, कर पल्लव, गुण, गवा और कई मालाओं से सजाया जाता है, इनमें से कुछ में तुलसी के पत्ते भी मिलाए जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने वाला पराग्वे 100वाँ देश बन गया है।
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)
परिचय: यह पहल भारत और फ्राँस द्वारा संयुक्त रूप से वर्ष 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (UNFCCC) के COP 21 के अवसर पर शुरू की गई थी।
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन फ्रेमवर्क समझौता 6 दिसंबर, 2017 को लागू हुआ था।
मानदंड: सदस्यता उन सौर संसाधन संपन्न राष्ट्रों के लिए खुली है, जो पूर्णतः या आंशिक रूप से कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच अवस्थित हैं तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं।
सदस्य: इस गठबंधन ने अपनी स्थापना के बाद से महत्त्वपूर्ण प्रगति की है तथा अब तक 119 देश ISA फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
इनमें से 100 ने पूर्ण सदस्य बनने के लिए अनुसमर्थन प्रक्रिया पूरी कर ली है, जिसमें स्पेन 99वें सदस्य के रूप में शामिल हुआ है।
उद्देश्य: ISA का प्राथमिक लक्ष्य सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की तीव्र और बड़े पैमाने पर तैनाती के माध्यम से पेरिस जलवायु समझौते के कार्यान्वयन में योगदान करना है।
इस सहयोगात्मक प्रयास को जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने में महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
मधुमेह परीक्षण
भारत, लंदन और अफ्रीका के शोधकर्ताओं ने गर्भावधि मधुमेह के निदान के लिए ओरल ग्लूकोज टाॅलरेंस टेस्ट(Oral Glucose Tolerance Test- OGTT) के स्थान पर ‘पॉइंट-ऑफ-केयर HbA1c टेस्ट’ का प्रस्ताव रखा है।
परिचय: मधुमेह के निदान की पुष्टि के लिए ओरल ग्लूकोज टाॅलरेंस टेस्ट का उपयोग किया जा सकता है, हालाँकि यह केवल उपवास के दौरान रक्त में ग्लूकोज और मुक्त फैटी एसिड को मापने के लिए अधिक सामान्य है।
प्रक्रिया: व्यक्ति रात भर उपवास रखता है और सुबह उसे ग्लूकोज की एक निश्चित खुराक दी जाती है, जो आमतौर पर मीठे पेय के रूप में होती है।
रक्त के नमूने 2 घंटे के लिए 30 मिनट के अंतराल पर लिए जाते हैं तथा ग्लूकोज और इंसुलिन दोनों की सांद्रता मापी जाती है।
हीमोग्लोबिन A1C (HbA1C) टेस्ट
परिचय: इसका उपयोग प्री-डायबिटीज तथा टाइप 1 और टाइप 2 दोनों प्रकार के मधुमेह के निदान के साथ-साथ मधुमेह प्रबंधन में सहायता के लिए व्यापक रूप से किया जाता है।
इस परीक्षण को ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन या ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन परीक्षण भी कहा जाता है।
लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला हीमोग्लोबिन फेफड़ों से पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुँचाता है।
उद्देश्य: यह महत्त्वपूर्ण रक्त परीक्षण मधुमेह नियंत्रण की प्रभावशीलता के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
प्रक्रिया: भोजन से शर्करा रक्तप्रवाह में प्रवेश करती है और लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन से बंध जाती है, जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन करती है।
HbA1C परीक्षण ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन के प्रतिशत को मापता है, जो मधुमेह और मधुमेह-पूर्व प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
दो नए जियोपोर्टल
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) द्वारा दो नए जियोपोर्टल प्रस्तुत किये गए: भुवन पंचायत (संस्करण 4.0) और आपातकालीन प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस (National Database for Emergency Management (NDEM Version 5.0)।
भुवन पंचायत (संस्करण 4.0)
परिचय: यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भू-स्थानिक डेटा और सेवाएँ प्रदान करता है, जिससे अंतरिक्ष आधारित जानकारी को शासन और अनुसंधान में एकीकृत किया जा सके तथा ग्राम पंचायत स्तर तक स्थानिक नियोजन में सहायता मिल सके।
कार्य: NRSC, इसरो द्वारा विकसित यह WebGIS प्लेटफॉर्म, विकेंद्रीकृत योजना के लिए अंतरिक्ष आधारित सूचना समर्थन (Space-based Information Support for Decentralized Planning- SISDP) परियोजना के अंतर्गत 1:10k पैमाने पर उत्पन्न सभी विषयगत डेटा उत्पादों के लिए वेब मानचित्र सेवाओं (Web Map Services- WMS) के विजुअलाइजेशन, विश्लेषण और साझाकरण को सक्षम बनाता है।
राष्ट्रीय आपातकालीन प्रबंधन डेटाबेस (National Database for Emergency Management- NDEM) पोर्टल
परिचय: यह संपूर्ण देश को कवर करने वाला एक व्यापक, संरचित, बहु-स्तरीय भू-स्थानिक डेटाबेस प्रदान करता है।
यह डेटाबेस परिस्थितिजन्य आकलन का समर्थन करता है और आपदाओं तथा आपातकालीन स्थितियों के दौरान प्रभावी निर्णय लेने में सहायता करता है।
कार्य: यह एक राष्ट्रीय स्तर के जियोपोर्टल के रूप में कार्य करता है, जो अंतरिक्ष आधारित सूचना को आपदा पूर्वानुमान संगठनों के निर्णय समर्थन उपकरणों और सेवाओं के साथ एकीकृत करता है।
यह एकीकरण तैयारी को बढ़ाता है और प्राकृतिक आपदाओं के सभी चरणों को संबोधित करता है, जिससे पूरे देश में प्रभावी आपदा जोखिम न्यूनीकरण में योगदान मिलता है।
यह गृह मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली में स्थापित किए जा रहे आपातकालीन प्रतिक्रिया हेतु एकीकृत नियंत्रण कक्ष (Integrated Control Room for Emergency Response- ICR-ER) के लिए आपदा रिकवरी और डेटा प्रदाता नोड के रूप में भी कार्य करेगा।
माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट (MR-MOCR)
हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने भारतीय नौसेना को मीडियम रेंज-माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट (MR-MOCR) सौंपा।
परिचय: माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ (MOC), DRDO की रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर द्वारा विकसित एक उन्नत तकनीक है। यह रडार सिग्नल को बाधित करता है और प्लेटफॉर्म एवं संपत्तियों के चारों ओर माइक्रोवेव शील्ड का निर्माण करता है, जिससे रडार द्वारा पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
मध्यम दूरी के चैफ रॉकेट में कुछ माइक्रोमीटर व्यास और विशिष्ट माइक्रोवेव अस्पष्टता गुणों वाले एक विशेष प्रकार के फाइबर को शामिल किया गया है।
कार्य: फायर करने पर, रॉकेट अंतरिक्ष में एक माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट क्लाउड को फैलाता है, जो पर्याप्त दृढ़ता के साथ एक बड़े क्षेत्र को कवर करता है। यह क्लाउड रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर्स से लैस शत्रुतापूर्ण खतरों से प्रभावी रूप से रक्षा करता है।
विकास: DRDO ने स्वतंत्र रूप से इस आवश्यक प्रौद्योगिकी के तीन संस्करण विकसित किए हैं: शॉर्ट रेंज चैफ रॉकेट (SRCR),मीडियम रेंज चैफ रॉकेट (MRCR), और लॉन्ग रेंज चैफ रॉकेट (LRCR)।
चरण: चरण-I परीक्षणों में, MR-MOCR का भारतीय नौसेना के जहाजों से सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया, जिसमें अंतरिक्ष में प्रभावी MOC क्लाउड तैनाती और दृढ़ता दिखाई गई।
चरण-II परीक्षणों के दौरान, भारतीय नौसेना ने एक हवाई लक्ष्य के रडार क्रॉस सेक्शन (RCS) में 90 प्रतिशत की कमी का प्रदर्शन किया और उसे मंजूरी दी।
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