100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

संक्षिप्त समाचार

Lokesh Pal July 08, 2024 02:53 143 0

अपसौर

(Aphelion) 

पूरे वर्ष में 5 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से सबसे अधिक दूरी पर पहुँच जाती है, जिसे खगोलशास्त्री अपसौर (Aphelion) की स्थिति कहते हैं। 

अपसौर (Aphelion)

  • परिचय: अपसौर पृथ्वी की कक्षा में वह बिंदु है, जहाँ वह सूर्य से सबसे दूर होती है। पृथ्वी को वर्ष के किसी भी अन्य समय की तुलना में सूर्य से कम विकिरण, ऊष्मा के रूप में प्राप्त होता है। 
  • घटना: अपसौर प्रत्येक वर्ष जुलाई माह में होता है।
  • इस दिन सूर्य, आकाश में सबसे छोटा दिखाई पड़ता है।

अपसौर और पृथ्वी की दीर्घवृत्ताकार कक्षा (Aphelion and Earth’s Elliptical Orbit)

  • जोहानेस केप्लर (Johannes Kepler): यह 17वीं शताब्दी के जर्मन गणितज्ञ जोहानेस केप्लर थे, जिन्होंने ग्रहीय गति के अपने प्रथम नियम के अनुसार बताया था कि सभी ग्रह दीर्घवृत्ताकार परिक्रमा करते हैं। 
  • पृथ्वी की अंडाकार कक्षा (Elliptical Orbit of the Earth): सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा पूर्णतः वृत्ताकार नहीं है; यह अंडाकार है। 
  • अपसौर (Aphelion) और उपसौर (Perihelion): इस अंडाकार आकार का अर्थ है कि दीर्घवृत्ताकार कक्षा में ऐसे बिंदु हैं, जहाँ पृथ्वी सूर्य के करीब होती है तो ऐसे स्थिति को उपसौर (Aphelion) और ऐसे स्थिति जहाँ पृथ्वी सूर्य से दूर होती है उसे अपसौर (Perihelion) की स्थिति कहते है। 
  • अपसौर पर पृथ्वी सूर्य से लगभग 152.1 मिलियन किमी. (94.5 मिलियन मील) दूर होती है।
  • जनवरी के प्रारंभ में पृथ्वी लगभग 147.1 मिलियन किमी. (91.4 मिलियन मील) की दूरी पर स्थित उपसौर (Perihelion) (सूर्य के सबसे निकट का बिंदु) पर पहुँच जाती है। 

गुरुत्वाकर्षण प्रभाव (Gravitational Influences)

  • ग्रहों की कक्षाओं की अंडाकार प्रकृति गुरुत्वाकर्षण बलों के कारण है।
  • ग्रह एक दूसरे पर गुरुत्वाकर्षण प्रभाव डालते हैं, जिसके कारण उनकी कक्षाएँ वृत्ताकार के बजाय लंबी हो जाती हैं। 
  • सौरमंडल का सबसे विशाल ग्रह बृहस्पति, अन्य ग्रहों की कक्षाओं पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है। 

उत्केंद्रता मापना (Measuring Eccentricity)

  • किसी कक्षा का पूर्ण वृत्त से विचलन जिस डिग्री तक होता है उसे उसकी उत्केंद्रता कहते हैं।
  • उच्च उत्केंद्रता अधिक दीर्घवृत्ताकार कक्षा को इंगित करती है।
  • उदाहरण के लिए, मंगल की उत्केंद्रता 0.094 है, प्लूटो की 0.244 है, तथा पृथ्वी की निम्न उत्केंद्रता 0.017 है।

अपसौर और पृथ्वी का तापमान (Aphelion and Earth’s Temperatures) 

  • एक सामान्य धारणा यह है कि पृथ्वी की सूर्य से बदलती दूरी के कारण ऋतुएँ बदलती हैं, जो कि गलत है। 
  • पृथ्वी को उपसौर की तुलना में अपसौर पर 7% कम सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है, जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere) में ग्रीष्मकाल और शीतकाल थोड़ा मंद होता है।
  • हालाँकि, सूर्य से पृथ्वी की दूरी का प्रभाव ग्रह के अक्षीय झुकाव से संतुलित हो जाता है, जो ऋतुओं का कारण बनता है। 

काल्पनिक परिदृश्य (Hypothetical Scenarios) 

  • कोई अपसौर नहीं (No Aphelion): यदि पृथ्वी की कक्षा पूर्णतया वृत्ताकार होती, तो ऋतुओं की लंबाई बिल्कुल समान होती। 
    • वर्तमान में, उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत और ग्रीष्म ऋतु, पतझड़ और शीत ऋतु से कुछ दिन लंबी होती हैं।
  • उत्केंद्रता में वृद्धि (Increased Eccentricity): यदि पृथ्वी की कक्षा अधिक उत्केंद्रित हो गई, तो इससे विशेष रूप से दक्षिणी गोलार्द्ध में, चरम मौसम उत्पन्न होंगे।
    • गर्मियाँ असहनीय रूप से गर्म और सर्दियाँ असह्य रूप से ठंडी होंगी, जिससे फसलें बर्बाद हो सकती हैं।

निष्कर्ष

 पृथ्वी की वर्तमान कक्षीय विशेषताएं और सूर्य से दूरी जीवन के लिए अनुकूल एक स्थिर वातावरण बनाती हैं।

माउंट एटना (Mt Etna)

हाल ही में सिसिली (इटली) में माउंट एटना के साथ-साथ छोटे स्ट्रॉम्बोली ज्वालामुखी (Stromboli Volcano) में भी विस्फोट हुआ है। 

माउंट एटना

  • परिचय: माउंट एटना इटली के सिसिली के पूर्वी तट पर स्थित कैटेनिया महानगर शहर में एक सक्रिय स्ट्रेटो ज्वालामुखी है।
  • स्थान: यह अफ्रीकी प्लेट (African Plate) और यूरेशियन प्लेट (Eurasian Plate) के बीच अभिसारी प्लेट मार्जिन के ऊपर स्थित है। यह यूरोप का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है और दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखियों में से एक है। 
  • दर्ज की गई गतिविधि: इसकी दर्ज ज्वालामुखी गतिविधियाँ 1500 ईसा पूर्व की है। तब से, इसमें 200 से अधिक बार विस्फोट हो चुका है।
  • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल: जून 2013 में इसे UNESCO विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया। 

ज्वालामुखी

  • परिचय: ज्वालामुखी वे छिद्र या द्वार हैं, जहाँ से लावा, टेफ्रा (छोटी चट्टानें) और भाप का पृथ्वी की सतह पर उद्गार होता है।
  • निर्माण का स्थान: इनका निर्माण स्थल तथा समुद्र में हो सकता है। 
  • निर्माण की विधि: ज्वालामुखी, आंशिक रूप से, अपने स्वयं के विस्फोटों का परिणाम हैं, लेकिन यह पृथ्वी के सामान्य निर्माण का भी परिणाम है, क्योंकि टेक्टॉनिक प्लेटें संचलन करती रहती हैं। 
    • दक्षिण अमेरिका में एंडीज (Andes in South America) और उत्तरी अमेरिका में रॉकीज (Rockies in North America) जैसी पर्वत शृंखलाएँ, साथ ही ज्वालामुखी, टेक्टॉनिक प्लेटों की गति और टकराव के कारण बने हैं।
  • ज्वालामुखी के प्रकार: ज्वालामुखी के प्रकार इस बात से निर्धारित होते हैं कि विस्फोट से लावा कैसे बहता है और वह प्रवाह ज्वालामुखी को कैसे प्रभावित करता है और परिणामस्वरूप, यह उसके आस-पास के वातावरण को कैसे प्रभावित करता है। ज्वालामुखी के चार मुख्य प्रकार हैं: 
    • सिंडर शंकु (Cinder cones): यह ज्वालामुखीय क्लिंकर, ज्वालामुखीय राख या स्कोरिया जैसे ढीले पाइरोक्लास्टिक टुकड़ों की एक खड़ी शंक्वाकार पहाड़ी है, जो ज्वालामुखीय छिद्र के चारों ओर बनी है। 
    • मिश्रित या स्ट्रेटो ज्वालामुखी (Composite or Stratovolcanoes): स्ट्रेटो ज्वालामुखी एक खड़ी शंकु की तरह आकार का होता है और कठोर लावा एवं टेफ्रा की परतों से बना होता है। 
      • उच्च श्यानता के कारण, स्ट्रेटो ज्वालामुखियों से बहने वाला लावा आमतौर पर दूर तक फैलने से पहले ठंडा होकर ठोस हो जाता है। 
    • शील्ड ज्वालामुखी (Shield volcanoes): शील्ड ज्वालामुखी कम श्यानता वाले लावा के विस्फोट से बनते हैं, जो दूर तक बहता है और स्ट्रेटो ज्वालामुखियों से निकलने वाले मोटे लावा की तुलना में पतली परतों में फैल जाता है। 
      • समय के साथ, बार-बार विस्फोट से चौड़ी, हल्की ढलान वाली ढालें ​​बन जाती हैं, जो इन ज्वालामुखियों की विशेषता है। 
    • लावा गुंबद : यह एक गोलाकार, टीले के आकार का उभार है, जो ज्वालामुखी से निकलने वाले चिपचिपे लावा के धीमे-धीमे बाहर निकलने से उत्पन्न होता है। 
  • ज्वालामुखी विस्फोट का तरीका 
    • ज्वालामुखी तब फटते हैं, जब पृथ्वी की सतह के नीचे पिघली चट्टान (मैग्मा) का दबाव दरारों और छिद्रों से होकर बाहर निकलता है तथा लावा, राख और गैसें बाहर निकलती हैं। 
    • यह विस्फोटक उत्सर्जन तब होता है, जब दबाव इतना अधिक हो जाता है कि पृथ्वी की पपड़ी उसे सहन नहीं कर पाती।
  • रिंग ऑफ फायर (Ring of Fire): कुछ सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखी प्रशांत रिंग ऑफ फायर में स्थित हैं, जिसमें न्यूजीलैंड, दक्षिण-पूर्व एशिया, जापान और अमेरिका का पश्चिमी तट शामिल हैं। 
    • विश्व भर में आने वाले लगभग 90% भूकंप इसी क्षेत्र में आते हैं। 
  • ज्वालामुखी विस्फोट की भविष्यवाणी (Prediction of Volcanic Eruptions): वैज्ञानिक कुछ ज्वालामुखी विस्फोटों की भविष्यवाणी घंटों या कभी-कभी कई दिन पहले ही करने में सक्षम हैं। 
    • भूकंपीय डेटा (Seismographic Data): ज्वालामुखी गतिविधियों के संभावित रूप में भूकंप और झटकों की निगरानी करना। 
    • भू-विरूपण (Ground Deformation): मैग्मा की गति के कारण भू-आकृति में परिवर्तन का अवलोकन करना। 
    • गैस उत्सर्जन (Gas Emissions): बढ़ती गतिविधियों के संकेत के रूप में ज्वालामुखी गैस उत्सर्जन को मापना। 
    • गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन (Gravity and Magnetic Field Changes): ज्वालामुखियों के पास गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन पर नजर रखना, जो संभावित विस्फोट के जोखिम का संकेत देता है। 
एल्युमीनियम और स्टील के बर्तनों को अब ISI मार्क की जरूरत (Aluminium, Steel utensils now need ISI mark)

संदर्भ

रसोई की सुरक्षा, गुणवत्ता और दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने सभी स्टेनलेस स्टील और एल्युमीनियम बर्तनों के लिए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (Quality Control Order- QCO) लागू किया है। 

गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (Quality Control Order- QCO) की मुख्य आवश्यकताएँ

  • ISI  मार्क की आवश्यकता: स्टेनलेस स्टील या एल्युमीनियम से बने सभी बर्तनों पर अब ISI मार्क अंकित होना चाहिए, जो भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) के नियमों के अनुपालन का प्रतीक है। 
  • गैर-अनुपालन दंड: QCO मानदंडों का पालन न करने पर उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत दंडनीय अपराध होगा। 
  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा नए मानक: उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार, BIS ने उच्च गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक रसोई वस्तुओं के लिए अद्यतन मानक स्थापित किए हैं। 
    • मानक: निर्माताओं को सामग्री संरचना, एकरूपता और व्यावहारिक डिजाइन के संबंध में कड़े BIS मानकों को पूरा करना आवश्यक है।
    • परीक्षण प्रोटोकॉल (Testing Protocols): स्टेनलेस स्टील के बर्तनों को उनकी गुणवत्ता और स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न परीक्षणों से गुजरना पड़ता है, जिसमें धुँधलापन परीक्षण, यांत्रिक झटका परीक्षण और थर्मल शॉक परीक्षण शामिल हैं। 
  • मानकों का उद्देश्य (Purpose of the Standards): इन मानकों को उत्पाद प्रदर्शन और उपभोक्ता सुरक्षा को बढ़ाते हुए खाना पकाने की प्रथाओं में सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने के लिए तैयार किया गया है।

स्टेनलेस स्टील के बर्तनों के लाभ

  • स्थायित्व: स्टेनलेस स्टील के बर्तन अपने स्थायित्व, बहुमुखी उपयोग के कारण विश्व भर में रसोईघरों में व्यापक रूप से पसंद किए जाते हैं।
  • सामग्री संरचना (Material Composition): स्टेनलेस स्टील जंग के प्रति प्रतिरोध, स्थायित्व और मजबूती के लिए प्रसिद्ध है, जो स्टील, क्रोमियम और अतिरिक्त धातुओं जैसे निकेल, मोलिब्डेनम और मैंगनीज के मिश्रण से प्राप्त होता है। 
प्लास्टिक रीसाइक्लिंग और स्थिरता पर वैश्विक सम्मेलन (Global Conclave on Plastic Recycling and Sustainability (GCPRS) चार दिवसीय प्लास्टिक रीसाइक्लिंग और स्थिरता पर वैश्विक सम्मेलन (Global Conclave on Plastic Recycling and Sustainability- GCPRS) वर्तमान में दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम् में आयोजित किया गया। 

प्लास्टिक रीसाइक्लिंग और स्थिरता पर वैश्विक सम्मेलन (GCPRS) के बारे में

  • आयोजक: इसका आयोजन उद्योग निकाय अखिल भारतीय प्लास्टिक निर्माता संघ (All India Plastics Manufacturers Association- AIPMA) और रसायन एवं पेट्रोकेमिकल्स निर्माता संघ (Chemicals and Petrochemicals Manufacturers Association- CPMA) द्वारा किया जाता है।
  • फोकस: कार्यक्रम का फोकस प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग, पर्यावरण पर इसके प्रभाव तथा समाधान के लिए आवश्यक कदमों पर होगा। 
  • उद्देश्य: GCPRS का उद्देश्य समाधान विकसित करने के लिए संवाद और चर्चा हेतु एक मंच प्रदान करना है और भारतीय उद्योग सरकार के साथ सहयोग के माध्यम से प्लास्टिक परिपत्रता में सुधार लाने तथा नियामक आवश्यकताओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। 

प्लास्टिक प्रदूषण संकट

  • उत्पादित और प्रयुक्त प्लास्टिक की मात्रा के बीच असंतुलन तथा जब प्लास्टिक अपशिष्ट बन जाता है तो विश्व की उस मात्रा को प्रबंधित करने की क्षमता, प्लास्टिक प्रदूषण का मूल कारण है। 
  • प्लास्टिक की वैश्विक खपत में तेजी आ रही है: अब तक निर्मित प्लास्टिक उत्पादन का आधे से अधिक हिस्सा वर्ष 2000 के बाद से उत्पादित किया गया है और वर्ष 2050 तक इसके वर्तमान वैश्विक वार्षिक उत्पादन का दोगुना होने की संभावना है। 
    • अब तक उत्पादित प्लास्टिक का अनुमानतः केवल 9% ही पुनर्चक्रित किया गया है तथा 12% को जला दिया गया है। 
    • शेष या तो अभी भी उपयोग में है या उसे लैंडफिल में निपटा दिया गया है अथवा फिर उसे पर्यावरण में छोड़ दिया गया है, जिसमें महासागर भी शामिल हैं।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.