100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

ब्राउन रिवॉल्यूशन 2.0

Lokesh Pal August 14, 2025 02:00 6 0

संदर्भ 

ब्राउन रिवॉल्यूशन 2.0 (Brown Revolution 2.0), अमूल से प्रेरित एक राष्ट्रव्यापी सहकारी मॉडल का प्रस्ताव है, जो कृषि अपशिष्ट को कंपोस्ट, वर्मीकंपोस्ट और बायोचार में परिवर्तित कर मृदा स्वास्थ्य, कृषि उत्पादकता और ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देगा।

ब्राउन  रिवॉल्यूशन 1.0

  • प्रवर्तक: हीरालाल चौधरी।
  • उद्देश्य: चमड़ा और कॉफी उत्पादन को बढ़ावा देना।
  • क्षेत्र: विशाखापत्तनम के आदिवासी क्षेत्र।

कृषि अपशिष्ट (Agro Waste) 

  • इसे कृषि गतिविधियों से उत्पन्न सभी अवांछनीय पदार्थों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो पौधों या जानवरों से उत्पन्न हो सकते हैं।
  • ये अपशिष्ट मुख्य रूप से पादप समुच्चय या रेशों द्वारा निर्मित होते हैं, जिनमें सेल्यूलोज और लिग्नोसेल्यूलोज शामिल हैं, और अकार्बनिक रेशों की तुलना में इनका घनत्व कम होता है।

ब्राउन  रिवॉल्यूशन 2.0 क्या है?

  • परिभाषा: कृषि अपशिष्ट को कंपोस्ट, वर्मीकंपोस्ट और बायोचार में परिवर्तित करके मृदा गुणवत्ता में वृद्धि करने हेतु एक प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी पहल है।
  • दृष्टिकोण: कृषि अपशिष्ट का जैविक मृदा सुधार में विकेंद्रीकृत, सहकारी पुनर्चक्रण।
  • लक्ष्य: क्षरित मृदा को पुनर्जीवित करना, सतत् कृषि को बढ़ावा देना और ग्रामीण आजीविका में सुधार करना।
  • ब्राउन  रिवॉल्यूशन 1.0 के विपरीत, दूसरा संस्करण मृदा कार्बनिक कार्बन (SOC) पुनर्स्थापन और जलवायु लचीलेपन पर केंद्रित है।
  • महत्त्व: जलवायु परिवर्तन, घटती मृदा उर्वरता और सतत् कृषि आवश्यकताओं के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है।
    • यह पहल सतत् कृषि, ग्रामीण विकास और पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्यों के अनुरूप है।

जलाए गए प्रत्येक टन धान के भूसे से अनुमानित प्रदूषण:

  • तीन किलोग्राम पार्टिकुलैट मैटर
  • 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड
  • 1,460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड
  • साथ ही कम लेकिन महत्त्वपूर्ण मात्रा में राख और सल्फर डाइऑक्साइड।

कृषि अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियाँ

  • कृषि-अपशिष्ट संकट: भारत में प्रतिवर्ष 350-500 मिलियन टन कृषि-अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका अधिकांश भाग जला दिया जाता है या कुप्रबंधित कर दिया जाता है, जिससे प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और मृदा कार्बन हानि होती है।
    • उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण रहा है।
  • मृदा की उर्वरता में गिरावट: दशकों से उच्च-निवेश वाली एकल-फसल और रसायन-प्रधान कृषि ने भारत की मृदा को क्षीण कर दिया है।
    • कई क्षेत्र अब जैविक पदार्थों के लिए स्थिरता सीमा से नीचे हैं, जिससे दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण समृद्धि को खतरा है।
  • पर्यावरणीय खतरे: धान की पराली जलाने से PM2.5, CO और CO₂ का उच्च स्तर उत्सर्जित होता है, जिससे वायु की गुणवत्ता और जल सुपोषण विकृत करता है।
    • अप्रबंधित वृक्षारोपण अपशिष्ट लंबे समय तक जमा रहता है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरा उत्पन्न होता है।
  • स्थायित्व जोखिम: SOC में गिरावट भविष्य की पैदावार के लिए खतरा है, उर्वरकों पर निर्भरता बढ़ाती है और जलवायु प्रतिबद्धताओं को कमजोर करती है।
  • आर्थिक: कृषि अपशिष्ट से संभावित मूल्यवर्द्धन में बड़े पैमाने पर कमी जारी है, साथ ही रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता भी बढ़ती जा रही है।
  • जलवायु परिवर्तन के दबाव: सूखे और अनियमित वर्षा के लिए अनुकूलित मृदा प्रणालियों की आवश्यकता होती है।
  • नीतिगत कमियाँ: वर्तमान में जैव ईंधन और औद्योगिक उपयोगों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, मृदा स्वास्थ्य की उपेक्षा, जलाने पर प्रतिबंधों का कमजोर प्रवर्तन और अपशिष्ट पुनर्चक्रण हेतु अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, ये सभी प्रमुख चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

भारतीय कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण क्रांतियाँ

  • हरित क्रांति: खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उच्च उपज वाली फसल किस्मों, सिंचाई और उर्वरकों का प्रचलन।
  • श्वेत क्रांति (White Revolution): दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए राष्ट्रव्यापी डेयरी विकास आंदोलन (ऑपरेशन फ्लड)।
  • नीली क्रांति: मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के लिए मत्स्यपालन और जलीय कृषि का विस्तार तथा आधुनिकीकरण।
  • स्वर्ण क्रांति (Golden Revolution): बागवानी, फल, सब्जियों और शहद उत्पादन में वृद्धि।
  • गुलाबी क्रांति (Pink Revolution): माँस, मुर्गी पालन और झींगा उत्पादन क्षेत्रों का विकास।
  • रजत क्रांति (Silver Revolution): अंडा और मुर्गी पालन उत्पादन में तीव्र वृद्धि।
  • धूसर क्रांति (Grey Revolution): फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता उपयोग।
  • पीली क्रांति (Yellow Revolution): तिलहन उत्पादन में वृद्धि।
  • काली क्रांति (Black Revolution): पेट्रोलियम और खनिज तेल उत्पादन में वृद्धि।

प्रस्तावित मॉडल – ब्राउन रिवॉल्यूशन 2.0 (अमूल सहकारी मॉडल से प्रेरित)

  • विकेंद्रीकृत, संघीय सहकारी समितियाँ: कृषि अपशिष्ट पुनर्चक्रण सहकारी समितियाँ स्थानीय भागीदारी, साझा लाभ और पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं को संभव बनाएँगी।
    • ग्राम-स्तरीय समूह जैविक संशोधनों (खाद, वर्मीकंपोस्ट, बायोचार) का संग्रह, प्रसंस्करण और विपणन करेंगे, जिससे अधिकांश उत्पाद स्थानीय मृदा की गुणवत्ता वृद्धि में प्रयोग किए जाएँगे।
  • समावेशन: यह मॉडल लघु समूहों से लेकर क्षेत्रीय संघों तक, रसद, वित्त और गुणवत्ता नियंत्रण के लिए संसाधनों को एकत्रित करते हुए, तीव्र मापनीयता सुनिश्चित करता है।
  • तकनीकी सहायता: क्षमता निर्माण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR), राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (State Agricultural Universities- SAU), कृषि विज्ञान केंद्रों (Krishi Vigyan Kendras- KVK) और विस्तार सेवाओं के साथ साझेदारी पर आधारित है।
  • संघीय संरचना: एकीकृत रसद, साझा वित्त, गुणवत्ता नियंत्रण और पता लगाने की क्षमता का समन्वय एक बहु-स्तरीय सहकारी नेटवर्क के माध्यम से किया जाएगा।
  • प्रौद्योगिकी (AI और IoT) एकीकरण: वास्तविक समय में मृदा स्वास्थ्य ट्रैकिंग, अनुकूलित बायोमास प्रवाह और कुशल खाद/बायोचार उत्पादन को सक्षम बनाता है।
  • कार्बन क्रेडिट सिस्टम: डेटा-संचालित सत्यापन, वित्तीय लाभ के लिए मृदा कार्बन पृथक्करण को राष्ट्रीय और वैश्विक कार्बन बाजारों से जोड़ता है।

कार्बन क्रेडिट सिस्टम

  • कार्बन क्रेडिट प्रणाली एक बाजार आधारित व्यवस्था है, जिसे उत्सर्जन में कमी को एक मौद्रिक मूल्य प्रदान करके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • कार्बन क्रेडिट, जिसे ‘कार्बन ऑफसेट’ भी कहा जाता है, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी को दर्शाता है, जिसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (tCO₂e) के टन में निर्धारित की जाती है।

अमूल सहकारी मॉडल (Amul Cooperative Model)

  • अमूल मॉडल एक त्रि-स्तरीय सहकारी संरचना है, जिसे किसानों को सशक्त बनाने, बिचौलियों को समाप्त करने और उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • मुख्य विशेषताएँ: किसान स्वामित्व, लोकतांत्रिक प्रबंधन, पारदर्शी भुगतान प्रणाली और सदस्यों के बीच लाभ का वितरण।

3-स्तरीय संरचना

  • ग्राम डेयरी सहकारी समिति (Village Dairy Cooperative Society- VDCS): गाँव का प्रत्येक दुग्ध उत्पादक इसका सदस्य होता है। यह समिति दिन में दो बार दुग्ध एकत्र करती है, गुणवत्ता की जाँच करती है और किसानों को प्रत्यक्ष भुगतान करती है।
  • जिला दुग्ध संघ (District Milk Union): कई ग्राम समितियों से चुने गए प्रतिनिधि दुग्ध प्रसंस्करण, पैकेजिंग और मूल्य संवर्द्धन (मक्खन, पनीर, आइसक्रीम) का प्रबंधन करते हैं।
  • राज्य दुग्ध संघ (State Milk Federation): राज्य, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर अमूल ब्रांड के तहत विपणन, ब्रांडिंग और वितरण का प्रबंधन करता है।

बहुआयामी लाभ

  • कृषि: SOC को पुनर्स्थापित करता है, पोषक चक्रण में सुधार करता है, जल धारण क्षमता को बढ़ाता है।
  • आर्थिक: ग्रामीण रोजगार सृजित करता है, सहकारी आय को मजबूत करता है और उर्वरक व्यय को कम करता है।
  • पर्यावरणीय: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है, वायु एवं जल प्रदूषण को कम करता है तथा जैव विविधता में सुधार करता है।
  • तकनीकी: भारत को डेटा-आधारित सतत् कृषि में अग्रणी के रूप में स्थापित करता है।
  • सामाजिक: मूल्य शृंखलाओं में सीमांत किसानों, महिलाओं और युवाओं के समावेश को बढ़ावा देता है।

वैश्विक पहल

  • जापान: जीरो-बर्न नीति (Zero-Burn Policy)
    • जापान कृषि अवशेषों के लिए एक सख्त जीरो-बर्न नीति (Zero-Burn Policy) लागू करता है, जो फसल अपशिष्टों के खुले में दहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
    • किसानों को अवशेषों का प्रबंधन खाद बनाने, मल्चिंग या जैव ऊर्जा रूपांतरण जैसे तरीकों से करना आवश्यक है।
  • चीन: भूसा-आधारित उर्वरक निर्माण कार्यक्रम
    • इस पहल के तहत, किसानों को खाद बनाने, सूक्ष्मजीवी अपघटन या पशु खाद के साथ मिलाकर पराली एकत्र करने और उसका प्रसंस्करण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
    • इस कार्यक्रम को सब्सिडी, प्रशिक्षण और पराली एकत्र करने और खेतों में डालने के लिए विशेष मशीनरी द्वारा किया जाता है।
  • यूरोपीय संघ: सामान्य कृषि नीति (Common Agricultural Policy- CAP)
    • यह स्थायी अवशेष प्रबंधन और मृदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है।
    • किसानों को खुले में जलाने के बजाय मल्चिंग, कंपोस्टिंग, कवर क्रॉपिंग और न्यूनतम जुताई जैसी पद्धतियों को अपनाने पर प्रत्यक्ष भुगतान और पर्यावरण-योजना पुरस्कार प्राप्त होते हैं।

सरकारी पहल

  • परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana- PKVY): जैविक पद्धतियों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता के माध्यम से जैविक कृषि को बढ़ावा देती है।
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA): मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन को प्राथमिकता देता है और कृषि वानिकी, मृदा संरक्षण और जल-कुशल खेती जैसे उपायों का समर्थन करता है।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: किसानों को विस्तृत मृदा मूल्यांकन और पोषक तत्त्व प्रबंधन सलाह प्रदान करता है ताकि वे कृषि संबंधी निर्णय ले सकें।

कार्यान्वयन के लिए नीतिगत उपाय / सिफारिशें

  • संस्थागत: प्रत्येक कृषि जिले में सहकारिता आधारित कृषि-अपशिष्ट पुनर्चक्रण को अनिवार्य बनाना। डेटा-संचालित प्रबंधन के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme) के साथ एकीकृत करना।
  • आर्थिक: प्रसंस्कृत बायोमास के लिए MSP जैसा मूल्य निर्धारण, विकेंद्रीकृत कंपोस्ट और बायोचार इकाइयों के लिए सब्सिडी, एक राष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट रजिस्ट्री बनाना।
  • कानूनी: वहनीय विकल्प सुनिश्चित करते हुए खुले में जलाने पर सख्त प्रतिबंध लागू करना।
  • क्षमता निर्माण: महिलाओं, युवाओं और स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षित करना; ग्रामीण उद्यमिता कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करना।
  • अनुसंधान: क्षेत्र-विशिष्ट पुनर्चक्रण तकनीकों और प्रदर्शन फार्मों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • औद्योगिक फीडस्टॉक के अतिरिक्त: वर्तमान कृषि-अपशिष्ट नीतियाँ मृदा पुनर्स्थापन की तुलना में जैव ईंधन को प्राथमिकता देती हैं; ब्राउन रिवॉल्यूशन 2.0 भूमि में कार्बनिक पदार्थों के पुनर्भंडारण पर जोर देती है।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण
    • प्रसंस्करण नवाचार: उच्च-गुणवत्ता वाले उत्पादन के लिए तीव्र इन-वेसल कंपोस्टिंग, अनुकूलित वर्मीकंपोस्टिंग और मॉड्यूलर बायोचार इकाइयों का उपयोग करना।
    • निगरानी प्रणालियाँ: वास्तविक समय में मृदा स्वास्थ्य निगरानी, उत्पादन अनुकूलन और बायोमास प्रवाह के लिए AI और IoT का उपयोग करना।
    • पारदर्शिता: गुणवत्ता आश्वासन और कार्बन क्रेडिट सत्यापन के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।

निष्कर्ष

ब्राउन  रिवॉल्यूशन 2.0 कोई गौण नीतिगत विकल्प नहीं है, बल्कि भारत के भविष्य के खाद्य, जलवायु और ग्रामीण समृद्धि के लिए एक परिपक्व, आधारभूत रणनीति है। प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक सहायता से संचालित विकेंद्रीकृत, सहकारी कार्रवाई के माध्यम से अरबों टन कार्बनिक पदार्थों का मृदा में पुनर्भंडारण कर, भारत सतत् कृषि के आधार को पुनर्स्थापित कर सकता है, अपने किसानों को सशक्त बना सकता है, वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए पोषण सुनिश्चित कर सकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.