हाल ही में अमेरिका के ओरेगॉन में बुबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) का एक मामला सामने आया है।
बुबोनिक प्लेग
यह यर्सिनिया पेस्टिस (Yersinia Pestis) नामक जूनोटिक जीवाणु (जो जानवरों और मनुष्यों में फैल सकता हैI) के कारण होने वाला संक्रामक रोग है, जो आमतौर पर छोटे स्तनधारियों और पिस्सुओं (Fleas) में पाया जाता है।
इस रोग का नाम सूजे हुए लासिका नोड (Lymph Node) जिसे बुबोज कहा जाता है, से प्रेरित है।
WHO के अनुसार रोग के संचरण के तरीके
संक्रमित पिस्सू के काटने से
संक्रमित शरीर के तरल पदार्थ या दूषित सामग्री (जिसे संक्रमित चूहे द्वारा काटा गया हैंI) के साथ असुरक्षित तरीके से संपर्क में आने से
न्यूमोनिक प्लेग के रोगियों के श्वसन कणों के संपर्क में आने से
रोग के लक्षण पूर्ण रूप से 2 से 8 दिन में विकसित हो जाते हैं।
लक्षण: लासिका नोड (Lymph Node) में सूजन आ जाती है।
इस रोग के कारण अन्य गंभीर बीमारियाँ जैसे- श्वसन प्रक्रिया में समस्या, गैंग्रीन (Gangrene), मेनिनजाइटिस (Meningitis), सेप्सिस (Sepsis) आदि होने का भी खतरा है।
मृत्यु दर: इस बीमारी से ग्रसित लोगों के मृत्यु की संभावना 30% से 60% होती है।
इलाज: सिप्रोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin), लेवोफ्लोक्सासिन (Levofloxacin), मोक्सीफ्लोक्सासिन (Moxifloxacin), जेंटामाइसिन (Gentamicin) और डॉक्सीसाइक्लिन (Doxycycline) जैसे एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से इस रोग का प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है।
उपचार के अभाव में यह रोग जानलेवा हो सकता है।
वर्तमान समय में इस रोग का प्रसार कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मेडागास्कर और पेरू में है।
भारत में बुबोनिक प्लेग का इतिहास
इस रोग का पहला मामला 23 सितंबर, 1896 को मुंबई में दर्ज किया गया था। इस रोग की पहचान पहली बार वर्ष 1855 में चीन से शुरू हुई तीसरी प्लेग महामारी के दौरान की गई थी।
प्रसार: इस बीमारी का प्रसार मुख्य रूप से व्यापारिक जहाजों से आने वाले यात्रियों के माध्यम से भारत में हुआ, जिसके कारण कोलकाता, कराची, पंजाब और संयुक्त प्रांत आदि जैसे प्रमुख क्षेत्र प्रभावित हुए।
अनुमान लगाया गया है कि उस दौरान 12 मिलियन से अधिक भारतीय इस बीमारी से ग्रसित हुए थे।
कानूनी प्रतिक्रिया: इस महामारी के बाद वर्ष 1897 में महामारी रोग अधिनियम (Epidemic Diseases Act) का मसौदा तैयार किया गया। इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत अधिकारियों को खतरनाक महामारी से निपटने के लिए विशेष उपायों एवं नियमों को लागू करने की क्षमता प्रदान की गई।
भारत में प्लेग का प्रकोप (26 अगस्त से 18 अक्टूबर, 1994): भारत के दक्षिण-मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में बुबोनिक (Bubonic) और न्यूमोनिक प्लेग (Pneumonic plague) का प्रकोप बढ़ गया था।
दिल्ली सहित भारत के 5 राज्यों में लगभग 693 संदिग्ध मामले और 56 मौतें दर्ज की गई थीं।
इतिहास में प्लेग के घातक प्रकोप
प्लेग ऑफ जस्टिनियन (Plague of Justinian) (541-542 ईसवी): बाईजेन्टाइन साम्राज्य में इस महामारी का प्रकोप 8वीं शताब्दी के मध्य तक भयानक रूप से फैला।
द ब्लैक डेथ (Black Death, 1346-1353): इस विनाशकारी महामारी के कारण यूरोप की कम-से-कम एक-तिहाई जनसंख्या समाप्त हो गई तथा इसका प्रकोप 19वीं शताब्दी तक जारी रहा।
तीसरी प्लेग महामारी (1855 के बाद): चीन के युन्नान से शुरू होकर यह महामारी विश्व स्तर पर फैल गई, जिसके परिणामस्वरूप अकेले भारत और चीन में 12 मिलियन से अधिक मौतें हुई थीं।
बुबोनिक प्लेग की वर्तमान स्थिति
विश्वव्यापी मामले: विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) प्रतिवर्ष प्लेग के 1,000 से 2,000 मामले दर्ज करता है।
वैश्विक वितरण: अफ्रीका, एशिया, दक्षिण अमेरिका और उत्तरी अमेरिका के कुछ क्षेत्रों में इस रोग के मामले आ रहे हैं। हालाँकि 1990 के दशक के बाद से सर्वाधिक मामले अफ्रीका में दर्ज किए गए हैं।
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