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बौद्ध धर्म सांप्रदायिकता का मुकाबला करना सिखा सकता है: राष्ट्रपति

Lokesh Pal November 11, 2024 01:43 35 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने नई दिल्ली में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय तथा अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (International Buddhist Confederation) द्वारा आयोजित प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया।

प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन वर्ष 2024 के बारे में

  • यह एक महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आयोजन है, जिसका उद्देश्य एशिया भर में बौद्ध समुदाय के बीच संवाद को बढ़ावा देना, समझ को बढ़ावा देना और समकालीन चुनौतियों का समाधान करना है।
  • इस आयोजन का विषय है:- ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’ (Role of Buddha Dhamma in Strengthening Asia) इस विषय के माध्यम से पूरे महाद्वीप में सामूहिक, समावेशी एवं आध्यात्मिक विकास पर जोर दिया गया।
  • शिखर सम्मेलन के मुख्य विषय
    • बौद्ध कला, वास्तुकला तथा विरासत: साँची स्तूप और अजंता गुफाओं जैसे स्थलों की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रदर्शन करना।
    • बुद्ध चारिका और शिक्षाओं का प्रसार: बुद्ध की यात्राओं और भारत भर में धम्म के प्रसार के उनके प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • बौद्ध अवशेषों की भूमिका और सामाजिक प्रभाव: चर्चा की गई कि कैसे अवशेष विश्वास को प्रेरित करते हैं, तीर्थ पर्यटन के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करते हैं और शांति तथा करुणा को बढ़ावा देते हैं।
    • बौद्ध साहित्य एवं आधुनिक दर्शन: समकालीन दार्शनिक संवाद में बौद्ध ग्रंथों की प्रासंगिकता को प्रदर्शित किया गया।
    • बुद्ध धम्म और वैज्ञानिक अनुसंधान: इस बात की जाँच की गई कि कैसे बौद्ध सिद्धांतों को मानव कल्याण को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान में एकीकृत किया जाता है।
  • प्रदर्शनी: इसमें बौद्ध धर्म के प्रसार में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, ‘भारत एशिया को जोड़ने वाला धम्म सेतु है [India as the Dhamma Setu (Bridge) Connecting Asia]’ शीर्षक से लेख प्रस्तुत किया गया।
  • भारत के लिए महत्त्व: एशिया में साझा विकास और आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीतियों को सुदृढ़ करता है।

त्रिपिटक (Tripitaka)

  • त्रिपिटक बौद्ध धर्मग्रंथों, नियमों, टिप्पणियों और इतिहास का संग्रह है और इसे बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथों के मुख्य संस्करणों में से एक माना जाता है।
  • नाम: त्रिपिटक का नाम ‘ट्रिपल बास्केट’ के रूप में अनुवादित होता है।
  • खंड: त्रिपिटक को तीन खंडों में विभाजित किया गया है, जिन्हें विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक के रूप में जाना जाता है।
    • विनय पिटक: इसमें भिक्षुओं और बौद्ध मंडली या संघ के लिए नियम शामिल हैं।
    • सुत्त पिटक: इसमें बुद्ध की शिक्षाएँ शामिल हैं, जिसमें धम्मपद भी शामिल है, जो बुद्ध द्वारा कानून या नियमों की व्याख्या है।
    • अभिधम्म पिटक: इसमें धर्म पर टिप्पणी है और इसे कभी-कभी दर्शन की टोकरी भी कहा जाता है।
  • संस्करण
    • त्रिपिटक के कई संस्करण हैं, जिनमें पाली कैनन, चीनी बौद्ध कैनन और तिब्बती बौद्ध कैनन शामिल हैं।
    • पाली कैनन मूल संस्करण है, जिसे पहली बार पहली शताब्दी ईसा पूर्व में संकलित किया गया था।

राष्ट्रपति के भाषण के मुख्य अंश

  • अनेकता में एकता (Unity in Diversity): राष्ट्रपति ने शिखर सम्मेलन में उपस्थित विभिन्न लोगों के बीच एकता पर जोर दिया, जो विभिन्न देशों से आते हैं, विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं तथा विभिन्न रंगों के वस्त्र पहनते हैं, लेकिन सभी धम्म के लिए अपने प्रयास में एकजुट हैं।
  • एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका: शिखर सम्मेलन का विषय एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका पर केंद्रित था, जिसे संघर्ष और पर्यावरणीय संकट जैसी समकालीन चुनौतियों से निपटने में समयानुकूल तथा महत्त्वपूर्ण बताया गया।
  • बुद्ध की शिक्षाओं की विरासत:राष्ट्रपति ने बुद्ध के ज्ञानोदय की प्रशंसा करते हुए इसे इतिहास की एक अद्वितीय घटना बताया तथा बुद्ध के शांति, अहिंसा और करुणा के संदेश पर जोर दिया, जो दुनिया भर में अरबों लोगों को प्रेरित करता है।
  • बुद्ध धर्म का वैश्विक प्रसार तथा संरक्षण: विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों (दक्षिण-पूर्व एशिया, तिब्बत, चीन और पश्चिमी देशों) में बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार को स्वीकार किया गया, साथ ही उनकी शिक्षाओं को संरक्षित करने के सामूहिक प्रयास को भी स्वीकार किया गया, जिसमें त्रिपिटक की रचना तथा श्रीलंका, तिब्बत और चीन के भिक्षुओं द्वारा अनुवाद शामिल हैं।
  • संरक्षण के लिए भारत की प्रतिबद्धता: राष्ट्रपति ने बौद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिए भारत द्वारा क्रियान्वित किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला, जैसे कि हाल ही में पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता देना, उनके संरक्षण तथा पुनरोद्धार के लिए वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना है।
  • आगे की खोज के लिए निमंत्रण: राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों को भारत की समृद्ध बौद्ध विरासत का पता लगाने और बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में अपनी समझ को गहरा करने के लिए राष्ट्रीय संग्रहालय एवं बौद्ध सर्किट का दौरा करने का निमंत्रण दिया।

बौद्ध दर्शन (Buddhist Philosophy)

  • बौद्ध धर्म के दार्शनिक आधार
    • संसार क्षणभंगुर या अनित्य है।
    • यह निष्प्राण (अनत्ता) भी है, इसमें कुछ भी स्थायी नहीं है।
    • दुःख  मानव अस्तित्व का अभिन्न अंग है।
  • इस प्रकार कठिन तपस्या और आत्म-भोग के बीच संयम का मार्ग अपनाकर मनुष्य इन सांसारिक कष्टों से ऊपर उठ सकता है।
  • अन्य मान्यताएँ
    • उन्होंने न तो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया और न ही नकारा।
    • उन्होंने सांसारिक मुद्दों पर बात की और आत्मा (आत्मन) और ब्रह्म के बारे में बहस से उनका कोई सरोकार नहीं था।
    • उन्होंने वेदों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया।
    • वर्ण व्यवस्था की निंदा की और समानता की वकालत की।
  • बुद्ध के चार आर्य सत्य: बौद्ध दर्शन के सार को समझने के लिए चार आर्य सत्यों को जानना आवश्यक है। 
    • दुख का आर्य सत्य: जन्म, आयु, मृत्यु, वियोग, अधूरी इच्छा।
    • दुख के कारणों का आर्य सत्य: सुख, शक्ति और दीर्घायु की इच्छाओं (तृष्णा) से उत्पन्न होता है।
    • दुख निवारण का आर्य सत्य: दुख से मुक्ति प्राप्त करना।
    • दुख निवारण के मार्ग का आर्य सत्य, जिसे आर्य अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

सांप्रदायिकता समाज के लिए चुनौती क्यों है?

  • राष्ट्रीय एकता को खतरा: संप्रदायवाद और सांप्रदायिकता देश को विभाजित करती है, सामाजिक एकीकरण को कमजोर करती है तथा सामाजिक विखंडन को बढ़ावा देती है।
    • मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच नृजातीय संघर्ष के कारण वर्ष 2023 में व्यापक हिंसा, विस्थापन और जानमाल की हानि हुई।
  • सामाजिक असामंजस्य: घृणा, अविश्वास तथा हिंसा को बढ़ावा मिलता है, जिससे सामाजिक शांति भंग होती है।
    • वर्ष 2002 के गुजरात दंगों ने सांप्रदायिक अंतराल को गहरा कर दिया तथा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दीर्घकालिक अविश्वास को बढ़ावा दिया।
  • राजनीतिक बदलाव: राजनेता अक्सर चुनावी लाभ के लिए सांप्रदायिक विभाजन का लाभ उठाते हैं, जिससे सामाजिक मतभेद और गहराते हैं।
    • राजनेता अक्सर स्थानीय या स्वदेशी लोगों के बीच समर्थन प्राप्त करने के लिए ‘भूमिपुत्रों’ (Sons of the Soil) की भावनाओं का सहारा लेते हैं तथा नौकरियों, संसाधनों या भूमि पर उनके अधिकार पर जोर देते हैं।
      • जैसे- बिहार तथा उत्तर प्रदेश प्रवासियों के विरुद्ध महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का आंदोलन।
  • आर्थिक व्यवधान: सांप्रदायिक हिंसा व्यापार और निवेश को बाधित करती है, जिससे आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
    • ‘इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस’ (Institute for Economics and Peace- IEP) ग्लोबल पीस इंडेक्स- 2023 के अनुसार, भारत में हिंसा का आर्थिक प्रभाव वर्ष 2022 में 1.2 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6% है।
  • मानव अधिकार उल्लंघन: इन मुद्दों ने अल्पसंख्यक समूहों को हाशिए पर डाल दिया तथा उन्हें समान अधिकारों और अवसरों से वंचित कर दिया।
    • म्याँमार में रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न में हिंसा और बुनियादी मानवाधिकारों का हनन शामिल था।
  • धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करता है: सांप्रदायिकता धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव को बढ़ावा देकर धर्मनिरपेक्षता को चुनौती देती है।
    • भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के विरुद्ध धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव की हालिया घटनाएँ, जैसे कि कुछ राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को चुनौती देती हैं तथा सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देती हैं।

सांप्रदायिकता से निपटने के लिए बौद्ध सिद्धांतों का प्रयोग

  • करुणा पर जोर (Emphasis on Compassion): बौद्ध शिक्षाओं के केंद्र में, करुणा विभिन्न समूहों के बीच सहानुभूति और समझ को बढ़ावा देती है, विभाजनकारी प्रवृत्तियों को कम करती है और सद्भाव को बढ़ावा देती है।
  • अहिंसा का सिद्धांत (Principle of NonViolence): बौद्ध धर्म की अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता, सांप्रदायिक आक्रामकता के आधार का मुकाबला करते हुए, संघर्ष पर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं संवाद को प्रोत्साहित करती है।
  • मध्यम मार्ग दर्शन (Middle Path Philosophy): बुद्ध का मध्यमक (मध्य मार्ग) चरम विचारों और प्रथाओं को हतोत्साहित करता है, संतुलित तथा समावेशी दृष्टिकोणों को बढ़ावा देता है, जो विभिन्न विश्वासों के बीच के अंतर को पाटते हैं।
  • विविधता में एकता: थेरवाद, महायान और वज्रयान जैसे विभिन्न स्कूलों के विकास के बावजूद, बौद्ध धर्म विभिन्न व्याख्याओं के प्रति सम्मान को बनाए रखता है, यह सिखाता है कि विभिन्न मार्ग एक साझा आध्यात्मिक ढाँचे के भीतर शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।
  • अस्थायित्व और अनासक्ति पर शिक्षाएँ: यह समझकर कि सभी चीजें, जिसमें कठोर पहचान और विश्वास भी शामिल हैं, अस्थायित्वपूर्ण हैं, व्यक्तियों के संप्रदायवाद को बढ़ावा देने वाली संस्थाओं के स्थायित्त्व संभावना कम होती है।
  • सम्यक वाक् को बढ़ावा देना: अष्टांगिक मार्ग सही भाषण पर जोर देता है, जिसमें सत्य बोलना और विनम्रता से बोलना शामिल है। यह सिद्धांत रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देता है।

बौद्ध धम्म तथा समकालीन विश्व में प्रासंगिकता

  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण नैतिकता: धम्म की अवधारणा प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने को बढ़ावा देती है।
    • अहिंसा का सिद्धांत पर्यावरण संरक्षण तक फैला हुआ है, जो सभी प्रकार के जीवन के प्रति सम्मान की वकालत करता है।
    • भूटान जैसे देशों ने बौद्ध सिद्धांतों को राष्ट्रीय नीति में एकीकृत किया है, जिसके परिणामस्वरूप वे जीरो कार्बन उत्सर्जन होने और आर्थिक वृद्धि पर सकल राष्ट्रीय खुशहाली को प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  • शांति और संघर्ष समाधान: अहिंसा और करुणा की शिक्षाएँ संघर्षों को हल करने के लिए शांतिपूर्ण संवाद और समझ पर जोर देती हैं।
    • अष्टांगिक मार्ग का सम्यक् वाणी घटक सत्यपूर्ण तथा हानिकारक न होने वाले संचार को प्रोत्साहित करता है।
    • तिब्बत मुद्दे पर अहिंसक दृष्टिकोण के लिए दलाई लामा की वकालत इस बात का उदाहरण है कि किस तरह बौद्ध सिद्धांत शांतिपूर्ण प्रतिरोध तथा संघर्ष समाधान का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण: ध्यान (स्मृति) और ध्यान अभ्यास बौद्ध धर्म के लिए केंद्रीय हैं और मानसिक कल्याण तथा भावनात्मक लचीलापन बढ़ाने के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त हैं। धम्म दुख को कम करने के लिए इच्छाओं एवं आसक्तियों को प्रबंधित करने पर जोर देता है।
    • पश्चिमी देशों में माइंडफुलनेस प्रथाओं को अपनाने का चलन बढ़ रहा है, जिसमें चिकित्सा में ‘माइंडफुलनेस-आधारित तनाव न्यूनीकरण’ (Mindfulness- Based Stress Reduction- MBSR) का उपयोग भी शामिल है, यह दर्शाता है कि चिंता, अवसाद और तनाव को दूर करने के लिए बौद्ध तकनीकों को कैसे लागू किया जाता है।
  • आर्थिक असमानता तथा नैतिक नेतृत्व: बौद्ध धर्म सही आजीविका और उदारता (दान) के महत्त्व को सिखाता है। आर्थिक प्रणालियों का लक्ष्य समान वितरण होना चाहिए और लालच (लोभ) को हतोत्साहित करना चाहिए।
    • बौद्ध सिद्धांतों से प्रेरित सामाजिक उद्यम साझा समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उदाहरण के लिए, विकासशील देशों में माइक्रोफाइनेंस मॉडल समावेशी विकास को प्रोत्साहित करते हैं और हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाते हैं।
  • शरणार्थी संकट और करुणामयी नीतियाँ: करुणा का मूल्य जरूरतमंद लोगों, जैसे कि शरणार्थियों और विस्थापित व्यक्तियों के प्रति करुणामयी व्यवहार की माँग करता है। यह सिद्धांत सभी में मानवता को देखने और सहानुभूति के साथ कार्य करने पर जोर देता है।
    • एशिया में बौद्ध धर्मार्थ संस्थाओं और संगठनों द्वारा की गई पहल, जो शरणार्थियों को सहायता और आश्रय प्रदान करती हैं, जैसे कि म्याँमार में संघर्षों के कारण विस्थापित हुए लोग, मानवीय प्रयासों पर धम्म के प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं।
  • अतिवाद और सामाजिक सामंजस्य: बुद्ध की शिक्षाएँ संयम और अतिवादी विचारों से बचने की वकालत करती हैं। मेत्ता (प्रेम-दया) और समभाव (उपेक्षा) सामंजस्यपूर्ण जीवन तथा घृणा (दोष) को कम करने को प्रोत्साहित करते हैं।
    • बहु-धार्मिक समाजों में अंतर-धार्मिक संवाद और शांति-निर्माण के प्रयास, जैसे कि श्रीलंका के गृहयुद्ध के बाद के सुलह कार्यक्रम, सांप्रदायिक तनाव को कम करने के बौद्ध दृष्टिकोण को मूर्त रूप देते हैं।
  • उपभोक्तावाद तथा स्थिरता: धम्म अत्यधिक आसक्ति तथा इच्छा के विरुद्ध चेतावनी देता है, जो असंतुलित उपभोक्ता आदतों को बढ़ावा देते हैं। संतोष (संतुष्टि) का अभ्यास करने से पर्यावरण क्षरण को कम करने में मदद मिलती है।
    • बौद्ध शिक्षाओं से प्रभावित न्यूनतम जीवन शैली, कम उपभोग को प्रोत्साहित करती है तथा सतत् जीवन शैली को बढ़ावा देती है तथा अति उपभोग और वस्तुओं की बर्बादी की आधुनिक समस्याओं का मुकाबला करती है।
  • राजनीतिक और सामाजिक नैतिकता: नेताओं को धर्म की तरह कार्य करना चाहिए अर्थात् ऐसे धार्मिक शासक जो अपने लोगों के कल्याण को प्राथमिकता देते हैं। नीतियाँ नैतिक विचारों से प्रेरित होनी चाहिए, न्याय और निष्पक्षता को बढ़ावा देना चाहिए।
    • कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध सिद्धांतों को अपनाने से शासन के प्रति उनका दृष्टिकोण बदल गया तथा उन्होंने अहिंसा, कल्याणकारी कार्यक्रमों और नैतिक आचरण पर ध्यान केंद्रित किया, जो आधुनिक नेतृत्व के लिए एक ऐतिहासिक मॉडल के रूप में कार्य करता है।
  • शिक्षा और नैतिक विकास: धम्म शिक्षा के महत्त्व पर जोर देता है, जो बौद्धिक विकास और नैतिक विकास दोनों को पोषित करती है। ज्ञान की खोज नैतिक मूल्यों और सहानुभूति के साथ संरेखित होनी चाहिए।
    • थाईलैंड तथा म्याँमार जैसे देशों में बौद्ध स्कूल और मठवासी संस्थाएँ ऐसी शिक्षाएँ प्रदान करती हैं, जो न केवल अकादमिक शिक्षा को बढ़ावा देती हैं, बल्कि चरित्र निर्माण और नैतिक आचरण को भी बढ़ावा देती हैं।

बुद्ध धम्म के संरक्षण और संवर्द्धन में भारत की भूमिका

  • बौद्ध विरासत का ऐतिहासिक संरक्षक: भारत बौद्ध धर्म का मूल स्थान है, यहाँ बोधगया (बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति का स्थल), सारनाथ (उनका पहला उपदेश) और कुशीनगर (उनका महापरिनिर्वाण) जैसे पवित्र स्थल हैं। इन स्थलों को वैश्विक तीर्थयात्रा के लिए संरक्षित और प्रचारित किया जाता है, जिससे बुद्ध की शिक्षाओं के साथ गहरा संबंध विकसित होता है।
  • सांस्कृतिक तथा कूटनीतिक पहुँच: एक्ट ईस्ट पॉलिसी सहित भारत की विदेश नीति, श्रीलंका, थाईलैंड और जापान जैसे एशियाई देशों के साथ साझा बौद्ध विरासत को बढ़ावा देकर, क्षेत्रीय संबंधों और सॉफ्ट पॉवर को मजबूत करके सांस्कृतिक कूटनीति पर जोर देती है।
  • बौद्ध सम्मेलनों और शिखर सम्मेलनों के लिए समर्थन: भारत ने वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलनों की मेजबानी और समर्थन किया है, जो समकालीन वैश्विक मुद्दों पर बुद्ध धम्म को लागू करने, शांति और सहयोग को बढ़ावा देने पर संवाद के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • बौद्ध साहित्य का संरक्षण: त्रिपिटक तथा अन्य धर्मग्रंथों के लिए डिजिटलीकरण और जीर्णोद्धार प्रयासों सहित प्राचीन ग्रंथों को संरक्षित करने की पहल, इस साझा विरासत को बनाए रखने में मदद करती है। पाली और प्राकृत जैसी शास्त्रीय भाषाओं की मान्यता विद्वानों के काम तथा बौद्ध शिक्षाओं के प्रसार का समर्थन करती है।
  • अनुसंधान एवं अध्ययन केंद्रों की स्थापना: नालंदा विश्वविद्यालय (पुनर्स्थापित) और ‘सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ हायर तिब्बतन स्टडीज’ (Central Institute of Higher Tibetan Studies) जैसे संस्थान बौद्ध अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते हैं और धम्म के अकादमिक अन्वेषण को बढ़ावा देते हैं, जिससे विश्व भर के विद्वान आकर्षित होते हैं।
  • पुनरुद्धार तथा पर्यटन में स्मारकीय प्रयास: भारत सक्रिय रूप से बौद्ध पर्यटन सर्किटों को बढ़ावा देता है, जो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों को जोड़ते हैं, बुद्ध के जीवन एवं शिक्षाओं की वैश्विक समझ में योगदान करते हैं तथा सांस्कृतिक संरक्षण और आर्थिक विकास में सहायता करते है।

निष्कर्ष

भारत सांस्कृतिक विरासत, शैक्षणिक पहल और कूटनीतिक प्रयासों को मिलाकर बुद्ध धम्म को संरक्षित करने तथा बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह प्रतिबद्धता न केवल इसकी ऐतिहासिक विरासत का सम्मान करती है बल्कि बुद्ध की कालातीत शिक्षाओं के माध्यम से वैश्विक शांति एवं एकता को भी बढ़ावा देती है।

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